फरवरी 2024 | 13 May 2024

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:

  • वित्त:
    • अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25
  • कानून एवं न्याय:
    • चुनावी बॉण्ड योजना
    • जम्मू-कश्मीर के स्थानीय निकाय कानूनों में संशोधन विधेयक
    • अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची को संशोधित करने वाला विधेयक पारित
    • विधि आयोग ने विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की
    • उत्तर-पूर्व भारत में न्यायिक अवसंरचना पर रिपोर्ट
    • कानूनी शिक्षा को मज़बूत करने हेतु रिपोर्ट
  • पर्यावरण:
    • जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024
  • शिक्षा:
    • सार्वजनिक परीक्षा में अनुचित साधनों की रोकथाम संबंधी विधेयक
    • स्नातक छात्रों हेतु इंटर्नशिप के लिये दिशा-निर्देश जारी
    • भ्रामक कोचिंग विज्ञापनों की रोकथाम हेतु दिशा-निर्देशों
  • वाणिज्य:
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में FDI नीति में संशोधनों को मंज़ूरी
    • निर्यात बढ़ाने और आयात को कम करने की रणनीति पर रिपोर्ट
  • कृषि:
    • मत्स्य पालन हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना
    • मत्स्य पालन की रोज़गार और राजस्व अर्जन क्षमता पर प्रस्तुत रिपोर्ट
    • जलवायु अनुकूल कृषि पर अपनी रिपोर्ट
    • कपास क्षेत्र के विकास पर प्रस्तुत रिपोर्ट
  • सूचना प्रौद्योगिकी:
    • IT संशोधन नियमों के तहत गृह सचिव से अवरोधन के रिकॉर्ड नष्ट करना अपेक्षित
  • स्वास्थ्य:
    • सरोगेसी नियमों में संशोधन
    • भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता पर रिपोर्ट
    • चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देने पर रिपोर्ट
    • राष्ट्रीय आयुष मिशन
  • ऊर्जा:
    • एक करोड़ घरों में रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाने की योजना को मंज़ूरी
    • विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020
    • अक्षय ऊर्जा के लिये टैरिफ निर्धारण का मसौदा विनियम
  • उपभोक्ता मामले:
    • ड्राफ्ट ग्रीनवॉशिंग दिशा-निर्देश
  • सूचना एवं प्रसारण
    • ड्राफ्ट सिनेमैटोग्राफ प्रमाणन नियम
    • भारत में केबल टेलीविज़न के विनियमन पर रिपोर्ट
  • खान:
    • अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट पर मसौदा नियमों पर टिप्पणियाँ
  • परिवहन:
    • राष्ट्रीय राजमार्गों के संचालन और रखरखाव पर रिपोर्ट
    • जहाज़ निर्माण उद्योगों की स्थिति पर रिपोर्ट
  • आवासन एवं शहरी मामले
    • स्मार्ट सिटीज़ पर रिपोर्ट
  • ग्रामीण विकास:
    • मनरेगा के कामकाज पर रिपोर्ट
  • जल संसाधन:
    • दिल्ली में यमुना नदी सफाई परियोजाओं की समीक्षा पर रिपोर्ट

वित्त

अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25

वित्त मंत्री ने अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25 को प्रस्तुत किया।

बजट की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • व्यय: सरकार ने 2024-25 में 47,65,768 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा है, जो 2023-24 के संशोधित अनुमान (44,90,486 करोड़ रुपए) से 6.1% अधिक है।
  • प्राप्तियाँ: 2024-25 में प्राप्तियाँ (उधारियों के अलावा) 30,80,274 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है, जिसमें 2023-24 के संशोधित अनुमान (27,55,713 करोड़ रुपए) की तुलना में 11.8% की वृद्धि है।
  • GDP वृद्धि: 2024-25 में नॉमिनल GDP वृद्धि दर 10.5% अनुमानित की गई है (यानी मुद्रास्फीति के लिये समायोजित नहीं)।
  • घाटा: 2024-25 में राजकोषीय घाटा GDP के 5.1% पर लक्षित है, जो 2023-24 में GDP के 5.8% के संशोधित अनुमान से कम है। 2024-25 में राजस्व घाटा GDP के 2% पर लक्षित है, जो 2023-24 में GDP के 2.8% के संशोधित अनुमान से कम है।
  • कर प्रस्ताव: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में कोई बदलाव प्रस्तावित नहीं किया गया है।
  • नीतिगत प्रस्ताव: पी.एम. आवास योजना के तहत अगले पाँच वर्षों में अतिरिक्त दो करोड़ घर बनाए जाएँगे। साथ ही एक करोड़ घरों की छत पर सोलराइज़ेशन किया जाएगा।
  • अनुसंधान और नवाचार को बढ़ाने के लिये निजी संस्थाओं को कम या शून्य ब्याज दरों पर दीर्घकालिक ऋण प्रदान किया जाएगा। ऋण एक लाख करोड़ रुपए के कोष (सरकार द्वारा स्थापित) के माध्यम से प्रदान किया जाएगा।

कानून एवं न्याय

चुनावी बॉण्ड योजना

वित्त अधिनियम, 2017 के माध्यम से शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना को सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने असंवैधानिक माना था।

  • चुनावी बॉण्ड एक उपकरण है जिसका उपयोग किसी राजनीतिक दल को चंदा देने हेतु किया जा सकता है। कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी चुनावी बॉण्ड खरीदने के लिये पात्र है।
  • न्यायालय ने पाया कि चुनावी बॉण्ड मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट योगदान की अनुमति देना मनमाना है तथा कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India- SBI) को चुनावी बॉण्ड जारी न करने का भी निर्देश दिया। SBI को उन राजनीतिक दलों का विवरण जमा करने का भी निर्देश दिया गया है जिन्होंने 12 अप्रैल, 2019 से इन बॉण्डों के माध्यम से आर्थिक योगदान प्राप्त किया है। SBI को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉण्ड का विवरण 6 मार्च, 2024 तक भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) को देना होगा।

जम्मू-कश्मीर के स्थानीय निकाय कानूनों में संशोधन विधेयक:

ये कानून हैं:

  • जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989
  • जम्मू-कश्मीर नगरपालिका अधिनियम, 2000
  • जम्मू-कश्मीर नगर निगम अधिनियम, 2000।

मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC) के लिये आरक्षण: तीनों कानूनों के तहत, जम्मू-कश्मीर में कुछ संस्थानों में सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं। ये संस्थाएँ हैं:
    • पंचायतें।
    • नगर पालिकाएँ।
    • नगर निगम।
    • ब्लॉक विकास परिषदें।
    • ज़िला विकास परिषदें।
  • राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य: वर्तमान में जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 के तहत, जम्मू-कश्मीर में राज्य निर्वाचन आयोग मतदाता सूची तैयार करता है और पंचायतों, ब्लॉक विकास परिषदों एवं ज़िला विकास परिषदों के लिये चुनाव आयोजित करता है। नगर पालिकाओं और नगर निगमों के मामले में इन ज़िम्मेदारियों का निर्वहन मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा किया जाता है। विधेयक इन संस्थाओं की चुनाव-संबंधी ज़िम्मेदारियों को राज्य चुनाव आयोग को निर्दिष्ट करता है।
  • राज्य चुनाव आयुक्त को हटाना: विधेयक में प्रस्ताव है कि राज्य चुनाव आयुक्त को हटाया जाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान आधार और प्रक्रिया पर आधारित होगा, जो जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 में संशोधन करता है।

अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची को संशोधित करने वाला विधेयक पारित:

संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 व संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 को संसद में पारित किया गया। विधेयक ओडिशा और आंध्र प्रदेश के संबंध में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 व संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करते हैं।

  • अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल समुदाय: विधेयक निम्नलिखित समुदायों को ओड़िशा की अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करता है:
    • मुका डोरा, मूका डोरा, नुका डोरा, नूका डोरा (कोरापुट, नौरंगपुर, रायगढ़ा और मलकानगिरी ज़िलों हेतु)
    • कोंडा रेड्डी (Konda Reddy), कोंडा रेड्डी (Konda Reddi)।
  • आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जनजातियाँ: विधेयक आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की सूची में निम्नलिखित को शामिल करता है:
    • बोंडो पोरजा
    • खोंड पोरजा
      • कोंडा सवारस

विधि आयोग ने विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की-

  • भारत के विधि आयोग ने निम्नलिखित विषयों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की:
    • 'आपराधिक मानहानि पर कानून',
    • 'महामारी रोग अधिनियम, 1897 की व्यापक समीक्षा',
    • 'गैर-निवासी भारतीयों और भारत के प्रवासी नागरिकों के वैवाहिक मुद्दों से संबंधित कानून'।

आयोग के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आपराधिक मानहानि: आयोग ने कहा कि प्रतिष्ठा का अधिकार किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को खतरे में नहीं डाला जा सकता। इस प्रकार, आपराधिक मानहानि एक सुरक्षा है जिसका लाभ किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचने पर प्राप्त किया जा सकता है और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से समझा जाना चाहिये। आयोग ने आपराधिक मानहानि को देश के आपराधिक कानूनों के भीतर बनाए रखने का सुझाव दिया।
  • महामारी रोग अधिनियम: आयोग ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 में कई त्रुटियाँ देखीं।

इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • महामारी की परिभाषा का अभाव।
  • आउटब्रेक, एपिडेमिक और पैंडामिक के बीच कोई अंतर नहीं।
  • आइसोलेशन, क्वारंटाइन और रोग निगरानी के लिये दिशा-निर्देशों की कमी।
  • महामारी को नियंत्रित करने के लिये केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के बीच शक्तियों का अस्पष्ट वितरण।
  • NRI और OCI से संबंधित वैवाहिक मुद्दे: आयोग ने गैर- निवासी भारती (Non Resident Indian- NRI) पतियों द्वारा अपनी भारतीय पत्नियों को छोड़ने का मुद्दा उठाया। उसने कहा कि NRI बिल में NRI की व्यापक परिभाषा नहीं दी गई है। इसके अलावा भारत में विवाह संबंधी कानून न तो NRI जीवनसाथी के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं और न ही उन्हें समन जारी करने का प्रावधान करते हैं। आयोग ने पर्यटन को छोड़कर, किसी भी उद्देश्य के लिये विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक के रूप में NRI को परिभाषित करने का सुझाव दिया। उसने NRI और OCI के विवाह के अनिवार्य पंजीकरण का सुझाव दिया। उसने NRI विधेयक, 2019 के तहत तलाक और बच्चे के भरण-पोषण जैसे कुछ प्रावधानों को जोड़ने का सुझाव दिया। उसने 2019 के विधेयक में संशोधन का सुझाव दिया ताकि वैवाहिक मामलों में NRI डिफॉल्टर के लिये न्यायालय में पेश होना अनिवार्य किया जा सके।

उत्तर-पूर्व भारत में न्यायिक अवसंरचना पर रिपोर्ट:

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्टैंडिंग समिति ने 'भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में न्यायिक अवसंरचना' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1993-94 से अधीनस्थ न्यायपालिका अवसंरचना सुविधाओं के विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) लागू की जा रही है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों के लिये केंद्र योजना के तहत 90% योगदान वहन करता है।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • केंद्र प्रायोजित योजना के तहत धनराशि जारी करने के लिये नए दिशा-निर्देशों में आगे की किश्तें देने से पहले वितरित धनराशि का कम-से-कम 75% उपयोग शामिल है।
  • समिति ने कहा कि संशोधित मानदंडों का पालन करने में विफलता के कारण मिज़ोरम, नगालैंड और त्रिपुरा को 2022-23 में कोई धनराशि जारी नहीं की गई।
  • समिति ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों को कई भौगोलिक और ढाँचागत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे सामग्री की आवाजाही मुश्किल हो जाती है।
  • समिति ने यह भी कहा कि कुछ पूर्वोत्तर राज्य अपनी ओर से परियोजना निधि का 10% योगदान करने में असमर्थ हैं। उसने न्याय विभाग को ऐसे राज्यों को धन का आवंटन बढ़ाने पर विचार करने का सुझाव दिया।

कानूनी शिक्षा को मज़बूत करने हेतु रिपोर्ट:

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने ‘कानूनी पेशे के समक्ष उभरती चुनौतियों के मद्देनज़र कानूनी शिक्षा की मज़बूती’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।

  • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अनुसार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया निम्नलिखित के लिये ज़िम्मेदार है:
  • कानूनी शिक्षा के मानकों को विनियमित करना।
  • कानून की डिग्री देने वाले विश्वविद्यालयों को मान्यता देना।
  • इन विश्वविद्यालयों द्वारा निर्धारित मानकों के अनुपालन का निरीक्षण करना।

कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की शक्तियाँ:
    • समिति ने कहा कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 न्यायालयों के लिये अधिवक्ता तैयार करने के एक संकीर्ण दृष्टिकोण के साथ पारित किया गया था। उसने कहा कि कानूनी शिक्षा को न्यायालयी कक्षों से परे कानूनी प्रैक्टिस का आवश्यक कौशल प्रदान किया जाना चाहिये। समिति ने सुझाव दिया कि BCI की शक्तियाँ बार में प्रैक्टिस की बुनियादी पात्रता को विनियमित करने तक सीमित होनी चाहियें।
    • इससे परे कानूनी शिक्षा का विनियमन एक स्वतंत्र प्राधिकरण को सौंपा जाना चाहिये। उसने सुझाव दिया कि भारत के प्रस्तावित उच्च शिक्षा आयोग के तहत एक राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद की स्थापना की जाए।
    • उसने निम्न गुणवत्ता वाले लॉ कॉलेजों की वृद्धि को रोकने के लिये प्रभावी उपाय करने का सुझाव दिया।
  • एक समान पाठ्यक्रम: समिति ने कहा कि लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के बीच पाठ्यक्रम में अंतर से असमानता उत्पन्न होती है। ये मतभेद लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा जारी पाठ्यक्रम को अपनाने तथा BCI द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम को मंज़ूर न करने के कारण उत्पन्न होते हैं। समिति ने BCI की भूमिका को फिर से परिभाषित करने तथा यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि BCI कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिये एक समान पाठ्यक्रम निर्धारित करना। स्नातकोत्तर शिक्षा के लिये प्रस्तावित स्वतंत्र प्राधिकरण द्वारा एक समान पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाना चाहिये।

पर्यावरण

जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024

जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 संसद में पारित कर दिया गया है। यह जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 में संशोधन करता है। यह अधिनियम जल प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB और SPCB) की स्थापना करता है।

  • विधेयक कई उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाता है और इसके बदले ज़ुर्माना लगाता है। यह शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होगा। दूसरे राज्य अपने यहाँ इसे लागू करने के लिये प्रस्ताव पारित कर सकते हैं।
  • उद्योग स्थापित करने हेतु सहमति से छूट: अधिनियम के अनुसार, ऐसे किसी भी उद्योग या उपचार संयंत्र की स्थापना के लिये SPCB की पूर्व सहमति आवश्यक है जिससे जलाशयों, सीवर या भूमि में सीवेज के बहने की आशंका हो। विधेयक में निर्दिष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार, CPCB के परामर्श से, कुछ श्रेणियों के औद्योगिक संयंत्रों को ऐसी सहमति प्राप्त करने से छूट दे सकती है।
  • अधिनियम के तहत CPCB से ऐसी सहमति प्राप्त किये बिना उद्योग स्थापित तथा संचालित करना छह वर्ष तक की कैद और जुर्माने से दंडनीय है, और ये विधेयक इसे बरकरार रखता है। विधेयक उन निगरानी उपायों से छेड़छाड़ को दंडनीय बनाता है जिनसे यह निर्धारित होता है कि क्या कोई उद्योग या उपचार संयंत्र बिना सहमती के लगाया गया है। इसके लिये 10,000 रुपए से 15 लाख रुपए के बीच ज़ुर्माना देय होगा।
  • प्रदूषित पदार्थ का निर्वहन: अधिनियम के तहत SPCB, ऐसी किसी भी गतिविधि को तुरंत रोकने के लिये निर्देश जारी कर सकता है जिससे जलाशयों में हानिकारक या प्रदूषणकारी पदार्थ निर्वहन होता हो। अधिनियम कुछ रियायतों के अतिरिक्त, जलाशयों में या भूमि पर प्रदूषणकारी पदार्थों से संबंधित मानकों (SPCB द्वारा निर्धारित) के उल्लंघन पर भी रोक लगाता है। इस छूट में लैंड रीक्लेमेशन के लिये नदी तट पर गैर-प्रदूषित पदार्थों को एकत्रित करना शामिल है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर डेढ़ साल से छह साल तक की कैद और ज़ुर्माने का प्रावधान है। विधेयक सज़ा के प्रावधान को समाप्त करता है और इसके स्थान पर 10,000 रुपए से 15 लाख रुपए के बीच ज़ुर्माना लगाता है।

शिक्षा

सार्वजनिक परीक्षा में अनुचित साधनों की रोकथाम संबंधी विधेयक

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024 को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकना है।

  • सार्वजनिक परीक्षाओं का अर्थ, विधेयक की अनुसूची के तहत निर्दिष्ट अधिकारियों द्वारा या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित परीक्षाएँ हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
  • संघ लोक सेवा आयोग।
  • कर्मचारी चयन आयोग।
  • रेलवे भर्ती बोर्ड।
  • राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी।
  • बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान।
  • केंद्र सरकार के विभाग और भर्ती के लिये उनके संलग्न कार्यालय।

विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सार्वजनिक परीक्षाओं से संबंधित अपराध:
    • विधेयक सार्वजनिक परीक्षाओं के संबंध में कई अपराधों को परिभाषित करता है। विधेयक के तहत अनुचित साधन में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी तक अनाधिकृत पहुँच या उन्हें लीक करना।
      • सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की मदद करना।
      • कंप्यूटर नेटवर्क या रिसोर्स के साथ छेड़छाड़।
      • मेरिट लिस्ट या रैंक को शॉर्टलिस्ट करने या अंतिम रूप देने के लिये डॉक्यूमेंट्स के साथ छेड़छाड़ करना।
      • फर्ज़ी परीक्षा आयोजित करना।
      • नकल करने या मौद्रिक लाभ के लिये फर्ज़ी प्रवेश पत्र या ऑफर लेटर जारी करना।
      • उपर्युक्त अपराधों के लिये तीन से पाँच वर्ष तक की कैद और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना होगा।
  • सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारियाँ: सेवा प्रदाताओं को विधेयक के उल्लंघन की सूचना तुरंत पुलिस और संबंधित परीक्षा प्राधिकरण को देनी चाहिये, ऐसा करने में विफलता एक अपराध है।

स्नातक छात्रों हेतु इंटर्नशिप पर दिशा-निर्देश जारी:

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 'स्नातक विद्यार्थियों के लिये इंटर्नशिप/अनुसंधान इंटर्नशिप हेतु दिशा-निर्देश' जारी किये हैं। दिशा-निर्देश आमतौर पर इंटर्नशिप को दो प्रकार से वर्गीकृत करते हैं: दिशा-निर्देशों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
  • HEI में अधिकारियों की ज़िम्मेदारियाँ: दिशा-निर्देशों में उच्च शिक्षा संस्थानों (Higher Education Institutions- HEI) को निम्नलिखित को नियुक्त करना होगा:
    • नोडल अधिकारी।
    • इंटर्नशिप सुपरवाइज़र।
    • मेंटर।
  • HEI में UGC द्वारा मान्यता प्राप्त कॉलेज और विश्वविद्यालय शामिल हैं।
  • प्रक्रिया: प्रत्येक HEI से एक इंटर्नशिप पोर्टल संचालित करने की अपेक्षा की जाती है जो संगठनों, विशेषज्ञों और फैकेल्टी को पंजीकृत करता है। विद्यार्थी पोर्टल के माध्यम से इंटर्नशिप के लिये आवेदन कर सकते हैं। HEI को उन विद्यार्थियों के लिये डिजिटल या सामूहिक रूप से इंटर्नशिप प्रदान करनी चाहिये जो फिज़िकल मोड में इंटर्नशिप प्राप्त करने में विफल रहते हैं। इंटर्नशिप के पूरा होने पर विद्यार्थियों का उनके इंटर्नशिप सुपरवाइज़र द्वारा प्रदर्शन मूल्यांकन किया जाएगा।
  • क्रेडिट्स: उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) ऑनर्स के साथ तीन या चार वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रम के लिये न्यूनतम दो से चार इंटर्नशिप क्रेडिट अनिवार्य कर सकते हैं। चौथे सेमिस्टर में 60-120 घंटे की अवधि के लिये इंटर्नशिप आयोजित की जानी चाहिये।

भ्रामक कोचिंग विज्ञापनों की रोकथाम हेतु दिशा-निर्देशों

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने कोचिंग क्षेत्र में भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिये मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये। दिशा-निर्देश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत जारी किये गए हैं। कोचिंग का तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा प्रदान की जाने वाली ट्यूशन, निर्देश, शैक्षणिक सहायता या मार्गदर्शन से है।
  • दिशा-निर्देश सभी विज्ञापनों पर लागू होते हैं। दिशानिर्देशों की मुख्य विशेषताएँ हैं:
  • भ्रामक विज्ञापन: एक विज्ञापन को भ्रामक माना जाएगा, अगर वह:
    • महत्त्वपूर्ण जानकारी छुपाता है जो उपभोक्ता के सेवा को चुनने के निर्णय को प्रभावित कर सकता है, जैसे पाठ्यक्रम की अवधि या लागत।
    • एक प्रतियोगी परीक्षा में विद्यार्थियों की सफलता दर या रैंकिंग के बारे में गलत दावे करता है।
    • गलत तरीके से यह कहता है कि विद्यार्थियों की सफलता का मुख्य कारण कोचिंग है।
    • तात्कालिकता या चूक जाने के डर की झूठी भावना उत्पन्न करता है जो विद्यार्थियों या अभिभावकों की चिंता में वृद्धि कर सकती है।
  • दायित्व: कोचिंग में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति के कुछ दायित्व होंगे। इनमें प्रत्येक सफल उम्मीदवार की रैंक और पाठ्यक्रम का खुलासा करना, उपलब्ध सुविधाओं और संसाधनों की सटीक जानकारी देना तथा सफलता की विषम धारणा बनाने के लिये असाधारण मामलों को चुनने से बचना शामिल है।
  • प्रतिबंधित गतिविधियाँ: कोचिंग में लगे व्यक्तियों को सफल उम्मीदवारों के विवरण का उपयोग उनकी सहमति के बिना नहीं करना चाहिये। उन्हें निम्नलिखित गतिविधियाँ भी नहीं करना चाहिये:
  • अनुचित समीक्षाओं का उपयोग या 100% चयन या 100% नौकरी की गारंटी देने वाले झूठे दावे।
  • उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाना कि संस्थान में नामांकन कराने पर उन्हें रैंक, नौकरी, प्रवेश आदि की गारंटी मिलेगी।
  • फैकेल्टी के क्रेडेंशियल्स के भ्रामक और अतिरंजित दावे करना।

वाणिज्य

अंतरिक्ष क्षेत्र में FDI नीति में संशोधनों को मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन को मंज़ूरी दे दी।

  • संशोधित नीति के अनुसार, सैटेलाइट निर्माण और संचालन, सैटेलाइट डेटा उत्पाद, ग्राउंड सेगमेंट और यूजर सेगमेंट के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 74% तक FDI की अनुमति दी जाएगी।
    • 74% से अधिक FDI सरकार की मंज़ूरी के अधीन होगा।
  • लॉन्च वाहनों के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 49% तक FDI की अनुमति दी जाएगी
  • स्पेसपोर्ट, जिसके आगे यह सरकार की मंज़ूरी के अधीन होगा।
  • उपग्रहों के लिये घटकों और प्रणालियों/उप-प्रणालियों के निर्माण हेतु स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति दी गई है।

निर्यात बढ़ाने और आयात को कम करने की रणनीति पर रिपोर्ट

वाणिज्य संबंधी स्थायी समिति ने 'निर्यात बढ़ाने और आयात कम करने के लिये प्रमुख उत्पादों तथा देशों को चिह्नित करने की व्यापक रणनीति' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पेट्रोलियम उत्पादों का आयात: भारत के कुल आयात के एक तिहाई हिस्से में अपरिष्कृत पेट्रोलियम, कोयला, कोक और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं। समिति ने कहा कि जीवाश्म ईंधन से हाइड्रोकार्बन की खोज और निकासी को प्रोत्साहित करके, इनके घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है। पेट्रोलियम उत्पादों के आयात को कम करने के लिये पारंपरिक ईंधन आधारित वाहनों से इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की ओर संक्रमण करना ज़रूरी है।
  • इंजीनियरिंग निर्यात: भारत के कुल वस्तु निर्यात में इंजीनियरिंग निर्यात का हिस्सा 25% से अधिक है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 107 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात किया। समिति ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय संघ की टैरिफ और नॉन-टैरिफ बाधाएँ भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात की वृद्धि में रुकावट बन सकती हैं। इसमें यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM) शामिल है जिसके कारण उर्वरक, एल्यूमीनियम और सीमेंट जैसे विभिन्न उत्पादों पर अतिरिक्त आयात शुल्क लग सकता है। समिति ने कहा कि MSME क्षेत्र में भारतीय निर्माताओं के पास ऐसे ज़रूरी वित्तीय संसाधन न हों, जिनसे CBAM का मुकाबला किया जा सके। समिति ने सरकार को सुझाव दिया कि MSME क्षेत्र पर CBAM को लागू करने के लिये कम-से-कम तीन वर्ष का समय दिया जाए।
  • निर्यात उत्पादों पर शुल्क या कर में छूट (RoDTEP) योजना: निर्यात पर शुल्क छूट के लिये RoDTEP योजना जनवरी 2021 से लागू की जा रही है। यह उन करों, शुल्कों और लेवी की प्रतिपूर्ति करता है जो किसी दूसरे रिफंड मैकेनिज़्म के दायरे में नहीं आते। समिति ने कहा कि योजना के तहत प्रदान की गई छूट की न्यूनतम दर भारतीय निर्यात को अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है। उसने सुझाव दिया कि विभिन्न क्षेत्रों के लिये दरों की जाँच करने वाली RoDTEP समिति को अपनी रिपोर्ट जल्द देनी चाहिये। समिति ने योजना के अंतर्गत आने वाले उत्पादों की संख्या बढ़ाने का भी सुझाव दिया।

कृषि

मत्स्य पालन हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (PM-MKSSY) को मंज़ूरी दे दी है। यह केंद्रीय क्षेत्र की योजना PM मत्स्य संपदा योजना के तहत उप-योजना है। नई योजना का उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र को औपचारिक बनाना तथा छोटे और सूक्ष्म मत्स्य उद्यमों को सहयोग देना है।

योजना के प्रमुख घटकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • असंगठित मत्स्य पालन क्षेत्र का औपचारीकरण करना: नई योजना मछुआरों, मत्स्य किसानों और अन्य सहायक श्रमिकों के स्व-पंजीकरण के माध्यम से क्षेत्र को धीरे-धीरे औपचारिक बनाने का प्रयास करती है। पंजीकरण एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किया जाएगा, जिसका उपयोग वित्तीय प्रोत्साहन वितरित करने और प्रशिक्षण आयोजित करने के लिये भी किया जाएगा।
  • जलीय कृषि बीमा को प्रोत्साहित करना: एक बीमा उत्पाद बनाया जाएगा जो कम-से-कम एक लाख हेक्टेयर जलीय कृषि फार्मों को कवर करेगा। छोटे किसानों को बीमा खरीद पर एक लाख रुपए तक की एकमुश्त प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी।
  • मूल्य शृंखला की क्षमता को सुधारना: प्रदर्शन अनुदान के माध्यम से मूल्य शृंखला की क्षमता में सुधार लाने का प्रयास किया गया है। इससे सूक्ष्म उद्यमों को उत्पादन, नौकरियों के सृजन और उनकी बहाली में पुनर्सहभागिता हेतु प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। सामान्य वर्ग के लिये प्रदर्शन अनुदान कुल निवेश का 25% या 35 लाख रुपए, जो भी कम हो, से अधिक नहीं होगा।
  • उत्पाद सुरक्षा और गुणवत्ता प्रणाली को अपनाना: सूक्ष्म और लघु उद्यमों को मछली एवं मत्स्य उत्पादों की मार्केटिंग में सुरक्षा तथा गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। इन मानकों को अपनाने के लिये ऐसा ही प्रदर्शन अनुदान प्रदान किया जाएगा।

मत्स्य पालन की रोज़गार और राजस्व अर्जन क्षमता पर रिपोर्ट प्रस्तुत

  • मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी संबंधी स्थायी समिति ने 'मत्स्य पालन क्षेत्र की रोज़गार सृजन एवं राजस्व अर्जन क्षमता' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • मत्स्य पालन में रोज़गार सृजन: समिति ने सुझाव दिया कि रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिये निर्यात, मछली पकड़ने के बाद प्रसंस्करण और आयात प्रतिस्थापन जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया जाना चाहिये।
  • मत्स्य पालन उद्योग: समिति ने इस क्षेत्र की विकास क्षमता और सरकारी राजस्व में इसके संभावित योगदान पर प्रकाश डाला तथा इसके महत्त्व के कारण एक समर्पित अनुसंधान परिषद के गठन की सिफारिश की।

जलवायु अनुकूल कृषि पर अपनी रिपोर्ट

कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी स्थायी समिति ने 'जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। जलवायु परिवर्तन फसलों की पैदावार और कृषि उत्पादकता को हानि पहुँचाता है। अगर जलवायु परिवर्तन को अपने अनुकूल करने के लिये संस्थागत और नीतिगत सहयोग प्रदान किया जाए तो उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • फसल विविधीकरण: समिति ने सुझाव दिया कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इसे प्राप्त करने के लिये किसानों को हर संभव सहायता प्रदान करना।
  • जल संरक्षण: उसने सुझाव दिया कि ऐसे प्रणालियों का उपयोग किया जाना चाहिये जो सिंचाई के संमय को अनुकूलित करती हैं, जल संरक्षण करती हैं और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती हैं।
  • संभावित प्रभाव और शमन के उपाय: समिति ने सुझाव दिया कि किसानों को जलवायु और मौसम संबंधी विपदा से बचाने के लिये सभी जोखिम संभावित गाँवों में नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलियेंट एग्रीकल्चर (NICRA) योजना लागू की जानी चाहिये। NICRA एक ऐसी परियोजना है जिसे वर्ष 2011 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य रणनीतिक अनुसंधान के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय कृषि के लचीलापन को बढ़ाना है।

कपास क्षेत्र के विकास पर रिपोर्ट प्रस्तुत

श्रम, कपड़ा और कौशल विकास संबंधी स्थायी समिति ने 'कपास क्षेत्र का विकास' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कपास की निम्न उत्पादकता: भारत में कपास की उत्पादकता लगभग 447 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो ब्राज़ील (1,830 किलोग्राम/हेक्टेयर) और संयुक्त राज्य अमेरिका (1,065 किलोग्राम/हेक्टेयर) जैसे अन्य कपास उत्पादक देशों की तुलना में काफी कम है। समिति ने ऐसे कई कारकों की पहचान की जो इष्टतम से कम उत्पादन का कारण बनते हैं। भारतीय कपास का लगभग 67% हिस्सा वर्षा पर निर्भर है, जो इसे बार-बार मौसम परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होता है। जिन क्षेत्रों में फसल की सिंचाई की जाती है, वहाँ सिंचाई नहर के पानी के छोड़े जाने पर निर्भर करती है, न कि फसल की ज़रूरत के अनुसार। समिति ने कपास के खेती क्षेत्र को अधिक मात्रा में सिंचाई के अंतर्गत लाने के लिये स्थायी कदम उठाने का सुझाव दिया और कहा कि सिंचाई को धीरे-धीरे मांग आधारित बनाया जाना चाहिये।
  • बीजों की पुरानी किस्मों के कारण उत्पादकता में कमी: समिति ने यह भी कहा कि उपयोग में आने वाली बीज तकनीक पुरानी हो चुकी है और नई किस्म के बीजों की तत्काल आवश्यकता है।
    • इसने सिफारिश की कि मंत्रालय भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप शीघ्र परिपक्व होने वाले और संकर बीजों के विकास को बढ़ाए।

सूचना प्रौद्योगिकी

IT संशोधन नियमों के तहत गृह सचिव से अवरोधन के रिकॉर्ड नष्ट करना अपेक्षित

  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के अवरोधन, निगरानी तथा डिक्रिप्शन के लिये प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) संशोधन नियम, 2024 को अधिसूचित किया।
  • 2009 के नियमों के अनुसार, सुरक्षा एजेंसी को प्रत्येक छह माह में डेटा के इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग और डिक्रिप्शन से संबंधित सभी रिकॉर्ड नष्ट करने होंगे।
  • ऐसे कार्यों के लिये दिये गए निर्देशों से संबंधित रिकॉर्ड भी नष्ट कर दिये जाने चाहिये। जब तक आवश्यक न हो या आवश्यकता होने की संभावना न हो, इन रिकॉर्ड्स को नष्ट कर देना चाहिये। संशोधन में कहा गया है कि संबंधित प्राधिकारी (नियमों के तहत) को भी ऐसे रिकॉर्ड को नष्ट करना होगा।

ये संबंधित प्राधिकारी हैं:

  • गृह मंत्रालय में सचिव (केंद्र सरकार के मामले में)
  • गृह विभाग के प्रभारी सचिव (राज्य सरकार या केंद्रशासित प्रदेश के मामले में)।
  • ये प्राधिकरण सरकार की ओर से अवरोधन, निगरानी या डिक्रिप्शन की कार्रवाई को मंज़ूरी देते हैं।
  • डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन सुरक्षा पर रिपोर्ट
  • संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने 'डेटा सुरक्षा के लिये डिजिटल भुगतान एवं ऑनलाइन सुरक्षा उपायों' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • समिति के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव इस प्रकार हैं:
  • ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी में वृद्धि: समिति ने कहा कि साइबर अपराध को रोकने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सभी संबंधित मंत्रालय शामिल हों। उसने गृह मंत्रालय को एक नोडल एजेंसी गठित करने का सुझाव दिया जिसमें सभी संबंधित एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल हों।
  • समिति ने कहा कि साइबर अपराध को रोकने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सभी संबंधित मंत्रालय शामिल हों। उसने गृह मंत्रालय को एक नोडल एजेंसी गठित करने का सुझाव दिया, जिसमें सभी संबंधित एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल हों।
  • AePS-आधारित अपराध: एक AePS ग्राहकों को बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का उपयोग करके अपने आधार से जुड़े खातों से लेनदेन करने की सुविधा देता है। समिति ने कहा कि AePS के उपयोग से कर संबंधी धोखाधड़ी में वृद्धि हो रही है। गृह मंत्रालय ने कहा कि आधार का उपयोग करके बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को गलत साबित करने के लिये डमी या रबर उंगलियों का उपयोग किया जा रहा है।
  • धन की वसूली: इसने सिफारिश की कि गृह मंत्रालय पीड़ितों को रुकी हुई राशि वापस करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना।

स्वास्थ्य

सरोगेसी नियमों में संशोधन

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सेरोगेसी (विनियमन) संशोधन नियम, 2024 जारी किये हैं। ये नए नियम सेरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत जारी सेरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में संशोधन करते हैं।

  • 2022 के नियम सेरोगेसी हेतु दाता युग्मकों के उपयोग को प्रतिबंधित करते थे। एक सिंगल महिला (विधवा/तलाकशुदा) को सेरोगेसी के लिये अपने एग्स का ही उपयोग करना होता है।
  • अक्तूबर 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने दाता एग्स के उपयोग की अनुमति दे दी, अगर महिला अपने स्वयं के एग्स प्रॉड्यूस करने में सक्षम नहीं है।
  • 2024 के नियम सेरोगेसी में कुछ शर्तों के आधार पर दाता युग्मक के उपयोग की अनुमति देते हैं। इनमें कहा गया है कि दाता युग्मक के इस्तेमाल की अनुमति दी जा सकती है, अगर:
    • इच्छुक पति या पत्नी की कोई ऐसी मेडिकल स्थिति है, जिसके कारण सेरोगेसी ज़रूरी हो जाती है,
    • सेरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाला बच्चे में इच्छुक माता-पिता का कम-से-कम एक गैमेट("युग्मक") है।
    • मेडिकल स्थिति का ज़िला मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणीकरण किया जाएगा। एकल रूप से रह रही महिला की स्थिति अपरिवर्तनीय बनी रहेगी।

भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता पर रिपोर्ट

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्थायी समिति ने 'भारत में मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

स्थायी समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सीमित सीटें: सीटें अधिक संख्या में उपलब्ध हों, इसके लिये समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये:
    • ज़िला या रेफरल अस्पतालों से जुड़े मेडिकल कॉलेजों की स्थापना का काम जारी रखना,
    • फिज़िकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक बोझ डाले बिना, विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिये ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा को शुरू करना।
    • नए मेडिकल कॉलेजों को वार्षिक प्रवेश क्षमता 250 सीटों तक बढ़ाने की अनुमति देना
    • मेडिकल शिक्षा में निज़ी निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • मेडिकल कॉलेजों का असमान वितरण: समिति ने कहा कि राज्यों में मेडिकल कॉलेजों के वितरण में व्यापक असंतुलन है। समिति ने ऐसे समान मानदंडों को संशोधित करने और क्षेत्र-विशिष्ट दिशा-निर्देश एवं मानदंड तैयार करने का सुझाव दिया।
  • मेडिकल शिक्षा की लागत: समिति ने परिचालन लागत को कम करने हेतु छात्रों के लिये आवश्यकता-आधारित छात्रवृत्ति, मेडिकल कॉलेज चलाने वाले संगठनों के लिये कर रियायतें, निज़ी मेडिकल कॉलेजों और ज़िला अस्पतालों के बीच सहयोग एवं निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशाला उपकरणों पर सब्सिडी देने सहित उपाय सुझाए।

चिकित्सा उपकरण उद्योग को बढ़ावा देने पर रिपोर्ट

रसायन और उर्वरक संबंधी स्थायी समिति ने 'मेडिकल उपकरण उद्योग का संवर्द्धन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • समिति के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव इस प्रकार हैं:
  • चिकित्सा उपकरण उद्योग के विकास में बाधाएँ: चिकित्सा उपकरणों की घरेलू विनिर्माण फिलहाल उपभोग्य सामग्रियों, डिस्पोज़ेबल और प्रत्यारोपण जैसे निचले स्तर से मध्यम स्तर के मेडिकल उपकरणों तक सीमित है। 70% उच्च-स्तरीय उपकरण जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, उन्नत सर्जिकल उपकरण और डायग्नोस्टिक उत्पाद आयात किये जाते हैं।
  • समिति ने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा वर्ष 2015 से की गई पहल में अभी तक प्रगति नहीं हुई है। इसमें ब्याज सबसिडी, रियायती बिजली और सर्जिकल उपकरणों जैसे उपकरणों के लिये मूल्य नियंत्रण जैसे प्रोत्साहन शामिल हैं।
  • आयात पर निर्भरता: समिति ने घरेलू मैन्यूफैक्चरर्स को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी और अंतर-सरकारी रणनीति तैयार करने का सुझाव दिया।
  • चिकित्सा उपकरण पार्क: मेडिकल उपकरण पार्क संवर्द्धन योजना (Medical Devices Parks Scheme) के तहत चार राज्यों में चार मेडिकल उपकरण पार्क स्थापित किये जाएंगे। इन पार्कों में सामान्य परीक्षण सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित होंगी। पहले चरण (2022-23) में आवंटित 120 करोड़ रुपए में से अब तक केवल 89 लाख रुपए खर्च किये गए हैं। समिति ने सुझाव दिया कि राज्य एजेंसियों के साथ नियमित प्रगति निगरानी की आवश्यकता है। उसने इस योजना को अन्य राज्यों में लागू करने का भी सुझाव दिया।

राष्ट्रीय आयुष मिशन

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्थायी समिति ने 'राष्ट्रीय आयुष मिशन की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मिशन का कार्यान्वयन: समिति ने कहा कि मिशन के तहत स्वीकृत 69% से अधिक एकीकृत आयुष अस्पताल अभी भी निर्माणाधीन हैं।
  • समिति ने सुझाव दिया कि मिशन को 2024-25 से अगले पाँच वर्ष तक बढ़ाया जाए।
  • उसने यह सुझाव भी दिया कि हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली सोवा-रिग्पा को मिशन में शामिल किया जाना चाहिये।
  • देरी के कारण: मिशन के कार्यान्वयन में देरी फंड आवंटन में देरी, प्रशासनिक कार्यों के ओवरलैप होने और उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा करने में देरी के कारण होती है, समिति ने राज्य कार्य योजनाओं में बजट लाइन आइटम को सुव्यवस्थित करने तथा इकाई भूमिकाओं को स्पष्ट करने जैसे समाधान सुझाए हैं।

ऊर्जा

एक करोड़ घरों में रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाने की योजना को मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पीएम-सूर्य घर: मुफ्त विद्युत योजना को मंज़ूरी दे दी।

  • इस योजना का लक्ष्य एक करोड़ घरों में छत पर सौर प्रणाली की स्थापना करना है।
  • यह योजना 2 किलोवाट क्षमता तक की स्थापना के लिये सिस्टम लागत के 60% मूल्य की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। इसके अलावा 2 से 3 किलोवाट के बीच की क्षमता के लिये अतिरिक्त सिस्टम लागत का 40% प्रदान किया जाएगा।
  • 3 किलोवाट क्षमता तक छत पर सौर प्रणाली स्थापित करने हेतु परिवार लगभग 7% की ब्याज दर पर संपार्श्विक-मुक्त ऋण के लिये भी पात्र होंगे।

विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020

विद्युत मंत्रालय ने विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) संशोधन नियम, 2024 को अधिसूचित किया है। नियम विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020 में संशोधन करते हैं, जो विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकारों और दायित्वों को निर्दिष्ट करते हैं।

संशोधित नियमों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

  • किसी इमारत हेतु एक कनेक्शन चुनने का विकल्प: संशोधित नियमों में कहा गया है कि अपार्टमेंट/फ्लैट/कॉलोनियों में रहने वाले ओनर प्रत्येक ओनर हेतु अलग-अलग कनेक्शन या पूरे परिसर के लिये एक कनेक्शन के बीच चुन सकते हैं।
  • छत पर सौर प्रणाली: पहले, नियमों के अनुसार 21 दिनों के भीतर तकनीकी व्यवहार्यता अध्ययन की आवश्यकता होती थी, अब परियोजना को व्यवहार्य मानते हुए परिणामों की रिपोर्ट करने में विफलता के साथ 15 दिनों में संशोधन किया गया है; 10 किलोवाट से कम के सौर प्रणालियों को अध्ययन से छूट दी गई है और वितरण बुनियादी ढाँचे के उन्नयन की लागत डिस्कॉम द्वारा वहन की जाएगी।
  • मीटर संबंधी शिकायतों के लिये प्रोटोकॉल: 2020 के नियमों में प्रावधान है कि डिस्कॉम को शिकायत प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर या राज्य आयोग द्वारा निर्दिष्ट से कम दिनों के भीतर मीटर की टेस्टिंग करनी होगी। संशोधित नियम राज्य आयोग के स्व निर्णय की शक्ति को समाप्त करते हैं। अतः शिकायतों का समाधान 30 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये। संशोधित नियमों में यह भी कहा गया है कि मीटर रीडिंग वास्तविक बिजली खपत से भिन्न होने की शिकायत के मामले में पाँच दिनों के भीतर एक अतिरिक्त मीटर लगाया जाना चाहिये। अतिरिक्त मीटर कम-से-कम तीन माह के लिये लगाया जाना चाहिये।

अक्षय ऊर्जा के लिये टैरिफ निर्धारण का मसौदा विनियम

केंद्रीय विद्युत विनियमन आयोग ने अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy- RE) स्रोतों से विद्युत की दर निर्धारित करने हेतु मसौदा नियम जारी किये हैं।

मसौदा विनियम की मुख्य विशेषताओं में निम्न शामिल हैं:

  • टैरिफ के प्रकार: लघु पनबिजली, नॉन-फॉसिल आधारित सह-उत्पादन, बायोगैस आधारित और म्युनिसिपल ठोस अपशिष्ट-आधारित बिजली परियोजनाओं जैसी आर.ई. परियोजनाओं के लिये एक सामान्य टैरिफ होगा। जेनेरिक टैरिफ CERC द्वारा प्रतिवर्ष निर्धारित किया जाएगा। CERC सौर PV, फ्लोटिंग सौर परियोजनाओं, पवन ऊर्जा परियोजनाओं और अक्षय हाइब्रिड ऊर्जा परियोजनाओं जैसी परियोजनाओं के लिये एक परियोजना विशिष्ट टैरिफ निर्धारित करेगा।
  • टैरिफ की संरचना: उन परियोजनाओं के लिये जिनमें ईंधन लागत आधारित घटक हैं, एक निश्चित लागत और ईंधन लागत के साथ दो-घटक टैरिफ निर्धारित किया जाएगा।
  • अतिरिक्त उत्पादन: अगर कोई आर.ई. परियोजना प्लांट लोड फैक्टर से अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती है, तो परियोजना अतिरिक्त ऊर्जा को किसी भी अन्य इकाई को बेच सकती है। लाभार्थी को इसे इनकार करने का पहला अधिकार होगा। अगर लाभार्थी अतिरिक्त ऊर्जा को क्रय करता है, तो टैरिफ उस वर्ष के लिये लागू टैरिफ के बराबर होगा।

उपभोक्ता मामले

ड्राफ्ट ग्रीनवॉशिंग दिशा-निर्देश

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत ग्रीनवॉशिंग की रोकथाम और विनियमन के लिये मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

मसौदा दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ग्रीनवॉशिंग को प्रतिबंधित किया जाए: दिशा-निर्देश विज्ञापन या संचार के लिये ग्रीनवॉशिंग में शामिल होने पर रोक लगाते हैं। यह सभी विज्ञापनों, सेवा प्रदाताओं, उत्पाद विक्रेताओं, विज्ञापनदाताओं, एंडोर्सर्स या विज्ञापन एजेंसियों पर लागू होगा।
  • पर्यावरणीय दावों की पुष्टि: किसी भी पर्यावरणीय दावे करते समय स्वच्छ, हरित, पर्यावरण-अनुकूल, क्रूरता मुक्त और कार्बन-तटस्थ जैसे सामान्य शब्दों का उपयोग पर्याप्त क्वालिफायर्स एवं पुष्टि के बिना नहीं किया जाएगा। तकनीकी शब्दों को उपभोक्ता-अनुकूल भाषा में समझाया जाना चाहिये जो इसके अर्थ या निहितार्थ को स्पष्ट करता हो।
  • प्रकटीकरण: सभी पर्यावरणीय दावे सटीक होने चाहिये और सभी प्रकार की भौतिक जानकारी का खुलासा करना चाहिये। खुलासे करते समय रिसर्च डेटा को चुनकर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। यह स्पष्ट किया जाना चाहिये कि क्या पर्यावरणीय दावा किसी वस्तु, विनिर्माण की प्रक्रिया, पैकेजिंग या सेवा को संदर्भित करता है।
  • भविष्य से संबंधित दावे: आकांक्षी या भविष्यवादी पर्यावरणीय दावे केवल तभी किये जा सकते हैं जब स्पष्ट और कार्रवाई योग्य योजनाएँ विकसित की गई हों। इन योजनाओं में यह विवरण होना चाहिये कि इन उद्देश्यों को कैसे प्राप्त किया जाएगा।

सूचना एवं प्रसारण

ड्राफ्ट सिनेमैटोग्राफ प्रमाणन नियम

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 के मसौदे पर टिप्पणियाँ आमंत्रित की हैं।

मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • UA प्रमाणीकरण: सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने UA प्रमाणीकरण के लिये आयु उपयुक्तता का संकेत देने वाले निर्देशक प्रस्तुत किये।
  • सामग्री हेतु अनुमोदन प्राधिकारी: प्रमाणन के लिये अनुमोदन प्राधिकारी सामग्री के प्रकार और लंबाई के आधार पर अलग-अलग होंगे।
  • बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: मसौदा नियमों में निर्दिष्ट किया गया है कि बोर्ड और सलाहकार पैनल के एक तिहाई सदस्य महिलाएँ होनी चाहिये।
  • प्रमाणन के लिये विशेषज्ञों को आमंत्रित करना: मसौदा नियम क्षेत्रीय अधिकारी को किसी फिल्म की जाँच के लिये फिल्म के क्षेत्र में एक या अधिक विषय या भाषा विशेषज्ञों को आमंत्रित करने की अनुमति देते हैं।

भारत में केबल टेलीविज़न के विनियमन पर रिपोर्ट

संचार और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने 'भारत में केबल टेलीविज़न के विनियमन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • केबल टेलीविज़न का विनियमन: केबल टेलीविज़न को मुख्य रूप से केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम 1995 के द्वारा विनियमित किया जाता है। हालाँकि, कई ऐसे नियामक हैं जिन्होंने विभिन्न पहलुओं पर अपने स्वयं के नियम और दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इससे विविध प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध सामग्री में असमानता हो जाती है।
  • ओवर द टॉप (Over The Top- OTT) प्लेटफॉर्म जैसी सेवाओं को इस अधिनियम के तहत विनियमित नहीं किया जाता है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी नियमों द्वारा विनियमित किया जाता है। समिति ने कहा कि केबल टेलीविज़न उद्योग को एक व्यापक कानून के द्वारा विनियमित करने की आवश्यकता है।
  • मंत्रालय के सामने आने वाली बाधाएँ और चुनौतियाँ: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सामने आने वाली चुनौतियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • केबल ऑपरेटरों द्वारा ग्राहकों की पर्याप्त सूचना न 
  • ज़मीनी स्तर पर एक निरीक्षण तंत्र का अभाव
  • स्थानीय केबल ऑपरेटरों (Local Cable Operators- LCO) के एक केंद्रीय डेटाबेस का अभाव।

खान

अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट पर मसौदा नियमों पर टिप्पणियाँ

खान मंत्रालय ने अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट नियम, 2024 के मसौदे पर टिप्पणियाँ प्रस्तुत की हैं।

मसौदा नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ट्रस्ट का गवर्नेंस: ट्रस्ट एक शासी निकाय द्वारा शासित होगा। एक कार्यकारी समिति ट्रस्ट के प्रशासन, प्रबंधन और पर्यवेक्षण के लिये ज़िम्मेदार होगी। केंद्र सरकार दोनों निकायों की संरचना को अधिसूचित करेगी।
  • ट्रस्ट के तहत फंड: एक अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट फंड स्थापित किया जाएगा और इसका प्रबंधन कार्यकारी समिति द्वारा किया जाएगा। फंड नॉन-लैप्सेबल और नॉन-इंटरेस्ट-बीयरिंग होगा। अपतटीय खदानों के लिये उत्पादन पट्टे के धारकों को इस ट्रस्ट में केंद्र सरकार को देय रॉयल्टी के 10% के बराबर राशि का भुगतान करना होगा।
  • वार्षिक योजना: प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कार्यकारी समिति के सचिव द्वारा शासी निकाय के समक्ष एक वार्षिक योजना पेश की जाएगी। योजना में वर्ष के दौरान शुरू की जाने वाली प्रस्तावित परियोजनाओं का विवरण शामिल होना चाहिये। इसमें ऐसी परियोजनाओं के लिये समयसीमा और माइलस्टोंस के साथ-साथ वर्ष के दौरान की गई गतिविधियाँ भी शामिल होनी चाहिये।

परिवहन

राष्ट्रीय राजमार्गों के संचालन और रखरखाव पर रिपोर्ट

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्थायी समिति ने 'राष्ट्रीय राजमार्गों का परिचालन एवं रखरखाव तथा टोल प्लाज़ा का प्रबंधन' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • निर्माण में देरी और रखरखाव के लिये अपर्याप्त धनराशि: समिति ने कहा कि सैकड़ों राजमार्गों का काम निर्धारित समय से पीछे चल रहा है, और निर्माण प्रक्रिया में तेज़ी लाने का सुझाव दिया।
  • मुद्रीकरण की धीमी गति: उसने सुझाव दिया कि NHAI के बढ़ते कर्ज़ से मुक्त होने के लिये मुद्रीकरण की गति बढ़ाई जानी चाहिये।
  • समिति ने कहा कि हाइब्रिड संरचनाएँ, जहाँ यातायात जोखिम प्राधिकरणों द्वारा साझा किया जाता है और रियायतग्राहियों/कन्सेशनेर को न्यूनतम भुगतान का आश्वासन दिया जाता है, मौजूदा चुनौतियों में से कुछ को कम कर सकती हैं।

जहाज़ निर्माण उद्योगों की स्थिति पर रिपोर्ट

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्थायी समिति ने 'देश में जहाज़ निर्माण, जहाज़ मरम्मत और जहाज़ विध्वंस उद्योगों की स्थिति' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वित्तीय सहायता नीति: समिति ने कहा कि नीति के लिये बनाए गए 4,000 करोड़ रुपए के कोष में से केवल 6-7% का ही उपयोग किया गया है। समिति ने खराब योजना उपयोग के कारणों का मूल्यांकन करने का सुझाव दिया, तथा यह पता लगाने का भी सुझाव दिया कि क्या जहाज़ निर्माण के लिये उच्च सामग्री आयात और कम स्वचालन जैसे कारक भारतीय शिपयार्ड की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर रहे हैं।
  • जहाज़ निर्माण उद्योग का विकास: जहाज़ निर्माण की उच्च लागत के कारण विश्व जहाज़ निर्माण उद्योग में भारत की हिस्सेदारी लगभग 1% से 2% है। रंगराजन आयोग ने अवसंरचना के रूप में जहाज़ों और अन्य जहाज़ों के वर्गीकरण का सुझाव दिया था। वर्तमान में शिपयार्ड्स को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्ज़ा दिया गया है जो कम दरों पर दीर्घकालिक वित्तपोषण तक पहुँच प्रदान करेगा।
  • समिति ने विशेष इस्पात के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और कार्यशील पूंजी एवं दीर्घकालिक वित्त तक पहुँच के लिये समुद्री विकास कोष बनाने के साथ-साथ सभी जहाज़ों और अन्य जहाज़ों को बुनियादी ढाँचे का दर्ज़ा देने का प्रस्ताव दिया।

आवासन एवं शहरी मामले

स्मार्ट सिटीज़ पर रिपोर्ट

आवास और शहरी मामलों से संबंधित स्थायी समिति ने "स्मार्ट सिटीज़ मिशन: एक मूल्यांकन" पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति की रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव दिये गए हैं:

  • विशेष प्रयोजन वाहन: समिति ने कहा कि CEO का बार-बार स्थानांतरण और स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव SPV के सामने चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
  • उसने निम्नलिखित सुझाव दिये:
    • न्यूनतम निश्चित कार्यकाल वाले डेडिकेटेड CEO की नियुक्ति।
    • SPV में विशेषज्ञों और संबंधित हितधारकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
    • भविष्य की परियोजनाओं में SPV की मौज़ूदा विशेषज्ञता का उपयोग करना।
  • सार्वजनिक निजी भागीदारी: समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को न्यूनतम निजी निवेश के पीछे के कारणों का विश्लेषण करना चाहिये और इस संबंध में कदम उठाने चाहिये।
  • डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर संरक्षण: समिति ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को साइबर खतरों से बचाने और डेटा प्राइवेसी बनाए रखने के लिये एक तंत्र तैयार करने का सुझाव दिया।

ग्रामीण विकास

मनरेगा के कामकाज़ पर रिपोर्ट

ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से ग्रामीण रोज़गार-मज़दूरी दरों तथा उससे संबंधित अन्य मामलों पर एक अंतर्दृष्टि" पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मज़दूरी की दरों में संशोधन: मनरेगा के तहत मज़दूरी दरें 2010-11 को आधार वर्ष मानकर कृषि श्रम के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का उपयोग करके अधिसूचित की जाती हैं। ये दरें प्रत्येक वर्ष संशोधित की जाती हैं। समिति ने कहा कि 2010-11 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करना वर्तमान मुद्रास्फीति और जीवनयापन की लागत के साथ सुसंगत नहीं है।
  • भुगतान में विलंब: मनरेगा के अनुसार, मज़दूरी का भुगतान मस्टर रोल बंद होने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये। समिति ने गौर किया कि राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वेतन और मैटीरियल को जारी करने में देरी हुई।
  • बजटीय आवंटन में वित्तीय अंतराल: समिति ने कहा कि कम बजटीय आवंटन के कारण मज़दूरी और मैटीरियल को समय पर जारी करना मुश्किल होगा। उसने ग्रामीण विकास विभाग को पिछले वर्षों के व्यय के अनुरूप धन की मांग करने का सुझाव दिया।

जल संसाधन

दिल्ली में यमुना नदी सफाई परियोजाओं की समीक्षा पर रिपोर्ट

जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने "दिल्ली तक ऊपरी यमुना नदी सफाई परियोजनाओं और दिल्ली में नदी तल प्रबंधन की समीक्षा" पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • भूजल निकासी: समिति ने सुझाव दिया कि कृषि क्षेत्र सूक्ष्म और ड्रिप सिंचाई तकनीकों को अपनाए जाने चाहिये तथा जल बजटिंग एवं वाटरशेड प्रबंधन का अभ्यास किया जाना चाहिये।
  • जल गुणवत्ता: समिति ने कहा कि वर्ष 2021 और 2023 के बीच, 33 मॉनिटर किये गए स्थानों में से, 23 स्थानों में जल की गुणवत्ता बाहर स्नान के लिये प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों (PWQC) के अनुरूप नहीं है। घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर, जो जीवित रहने हेतु 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक निर्धारित है, दिल्ली में लगभग न के बराबर पाया गया।
  • नदी तल प्रदूषण: समिति ने कहा कि 2018 में यमुना में मलबे की डंपिंग का एक मामला था जो वर्ष 2021 में बढ़कर 610 हो गया। यमुना से तलछट के नमूनों में उच्च स्तर पर सीसा, ताँबा और जस्ता जैसी धातुएँ मिलीं, जो स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न कर