शासन व्यवस्था
संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024
- 08 Feb 2024
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प्रिलिम्स के लिये:संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), नगर निकाय मेन्स के लिये:संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024, अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की प्रक्रिया और मानदंड |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के विशिष्ट जातीय समूहों तथा जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करना है।
- केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की पंचायतों तथा नगर निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण प्रदान करने के लिये जम्मू-कश्मीर स्थानीय निकाय कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 भी पेश किया।
संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) विधेयक, 2024 क्या है?
- परिचय:
- इस विधेयक का उद्देश्य विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूची जम्मू-कश्मीर की चार जातीय समूहों को शामिल करना है।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची में गड्डा ब्राह्मण, कोली, पद्दारी जनजाति तथा पहाड़ी जातीय समूह जैसे जातीय समूहों को शामिल किया जाएगा।
- इन समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान कर यह विधेयक उनके सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण को सुनिश्चित करेगा।
- महत्त्व:
- इस विधेयक में यह सुनिश्चित किया गया कि जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों की सूची में इन समुदायों को शामिल करने तथा उन्हें आरक्षण प्रदान करने के दौरान गुज्जर और बकरवाल जैसे मौजूदा अनुसूचित जनजाति समुदायों को उपलब्ध आरक्षण के वर्तमान स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- गुज्जर और बकरवाल खानाबदोश समूह हैं तथा वे गर्मियों में अपने पशुओं के साथ ऊँचाई वाले इलाकों की ओर चले जाते हैं एवं सर्दी के आगमन से पहले अपनी वापसी सुनिश्चित करते हैं।
- इस विधेयक को जम्मू-कश्मीर में समावेशी विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो "सबका साथ, सबका विश्वास" मूलमंत्र के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग एवं समुदाय के सर्वसमावेशी विकास के प्रति कटिबद्ध है।
- इस विधेयक में यह सुनिश्चित किया गया कि जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों की सूची में इन समुदायों को शामिल करने तथा उन्हें आरक्षण प्रदान करने के दौरान गुज्जर और बकरवाल जैसे मौजूदा अनुसूचित जनजाति समुदायों को उपलब्ध आरक्षण के वर्तमान स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
पहाड़ियों की प्रारंभिक स्थिति:
- वर्ष 2019 में पहाड़ियों को रोज़गार तथा शैक्षणिक संस्थानों में 4% आरक्षण प्रदान किया गया।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2019 में सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों की पहचान करने के लिये न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जी.डी. शर्मा आयोग गठित किया गया था।
- इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में गद्दा ब्राह्मणों, कोलियों, पद्दारी जनजाति और पहाड़ी जातीय समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान करने की अनुशंसा की।
जम्मू-कश्मीर स्थानीय निकाय कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- कुछ प्रावधानों में संशोधन: विधेयक का उद्देश्य केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में OBC को आरक्षण प्रदान करने के लिये जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989, जम्मू-कश्मीर नगरपालिका अधिनियम, 2000 तथा जम्मू-कश्मीर नगर निगम अधिनियम, 2000 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करना है।
- संवैधानिक प्रावधानों के साथ संरेखण: प्रस्तावित संशोधन संविधान के प्रावधानों, विशेष रूप से भाग IX और भाग IXA, जो पंचायतों तथा नगर पालिकाओं से संबंधित हैं, के साथ कानूनों में स्थिरता लाने का प्रयास करते हैं।
- इसमें संविधान के अनुच्छेद 243D और 243T के खंड (6) द्वारा सशक्त, पंचायतों तथा नगर पालिकाओं में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण प्रदान करना शामिल है।
- चुनाव का पर्यवेक्षण: विधेयक मतदाता सूची की तैयारी और पंचायतों तथा नगर पालिकाओं के चुनावों के संचालन के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण के संबंध में विसंगतियों को संबोधित करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि राज्य निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रावधान संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 243K और 243ZA के अनुरूप हैं।
- राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाना: विधेयक का उद्देश्य राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने के संबंध में जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 और संविधान के प्रावधानों के बीच अंतर को सुधारना है।
- इसका उद्देश्य निष्कासन प्रक्रिया को संवैधानिक प्रावधानों के साथ संरेखित करना साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त (State Election Commissioner) को केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान परिस्थितियों में ही हटाया जा सकता है।
भारत में जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान और पहल क्या हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को ‘बहिर्वेशित’ और ‘आंशिक रूप से बहिष्कृत’ क्षेत्रों में ‘पिछड़ी जनजातियों’ के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत पहली बार ‘पिछड़ी जनजातियों’ के प्रतिनिधियों को प्रांतीय विधानसभाओं में आमंत्रित किया गया।
- संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है और इसलिये वर्ष 1931 की जनगणना में निहित परिभाषा का उपयोग स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक वर्षों में किया गया था।
- हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 366(25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है: “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंदर कुछ वर्गों या समूहों से है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- अनुच्छेद 342(1): राष्ट्रपति, राज्यपाल से परामर्श करने तथा जनता के लिये एक अधिसूचना प्रकाशित करने के बाद किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में कुछ जनजातियों, आदिवासी समुदायों अथवा जनजातियों या आदिवासी समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित कर सकते हैं।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों तथा अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के लिये प्रावधान करती है।
- छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
- कानूनी प्रावधान:
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955:
- यह अस्पृश्यता के प्रचार एवं आचरण के साथ-साथ उससे संबंधित किसी भी मुद्दे और किसी भी परिणामी विकलांगता को लागू करने के लिये दंड का प्रावधान करता है।
- संबंधित पहल:
- संबंधित समितियाँ:
- शाशा समिति (2013)
- भूरिया आयोग (2002-2004): इसने अधिक आदिवासी समुदायों को ST के रूप में मान्यता देने की सिफारिश की, जिससे इन हाशिये पर रहने वाले समूहों को विभिन्न लाभ और सुरक्षा प्रदान की गई।
- लोकुर समिति (1965): इसकी सिफारिशों में आदिवासी भूमि अधिकारों की सुरक्षा, ST समुदायों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं रोज़गार के अवसरों तक पहुँच में सुधार के साथ ही उनकी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के लिये आदिवासी कल्याण योजनाओं में वृद्धि के उपाय शामिल थे।
- शाशा समिति (2013)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवी अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक कथन इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों के अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |