विविध
जनवरी 2021
- 03 Feb 2021
- 55 min read
PRS के प्रमुख हाइलाइट्स
- कोविड-19
- दो वैक्सीन को मंज़ूरी
- पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006
- समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
- आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21
- GDP में 7.7% का संकुचन
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
- कृषि
- वर्ष 2020 में लागू तीन केंद्रीय कृषि कानूनों पर स्टे
- स्वास्थ्य
- यूनीक हेल्थ आइडेंटिफायर नियम, 2021
- सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003
- गृह मामले
- जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अध्यादेश
- आयुष्मान CAPF योजना
- वित्त
- डिजिटल ऋण पर कार्यकारी समूह का गठन
- कॉरपोरेट मामले
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति
- वाणिज्य एवं उद्योग
- नई केंद्रीय क्षेत्र की योजना
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना
- श्रम एवं रोज़गार
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना
- सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
- माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
- शिक्षा
- इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस
- परिवहन
- अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट
- प्रमुख बंदरगाहों के लिये दिशा-निर्देश
- पर्यावरण
- नारंगी रंग की श्रेणी में वर्गीकृत उद्योग
कोविड-19
दो वैक्सीन को मंज़ूरी
विषय विशेषज्ञ समिति (Subject Expert Committee) के सुझावों के आधार पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) ने दो वैक्सीन को सीमित आपातकालीन उपयोग के लिये मंज़ूरी दे दी है। ये वैक्सीन निम्नलिखित हैं:
(i) कोविशील्ड, पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया।
(ii) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (National Institute of Virology) पुणे के सहयोग से बनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन।
कोविशील्ड को आपातकालीन स्थितियों में उपयोग की मंज़ूरी मिली है जो कि नियामक शर्तों के अधीन होगी। समिति ने सुझाव दिया था कि कोवैक्सीन का उपयोग नैदानिक परीक्षण मोड (Clinical Trial Mode) में किया जा सकता है ताकि वैक्सीन के लिये अनेक विकल्प हों, विशेष रूप से उत्परिवर्ती उपभेदों (Mutant Strains) के संक्रमण के मामले में।
CDSCO ने कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड को भी उसके नॉवेल कोरोनावायरस-2019 एनकोव-वैक्सीन (Novel Coronavirus-2019-nCov-Vaccine) के तीसरे चरण के ट्रायल के लिये मंज़ूरी दे दी है।
वैक्सीनेशन कार्यक्रम 16 जनवरी को शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम में हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स (जो कि करीब तीन करोड़ लोग हैं) और उसके बाद 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों और को-मॉरबिडिटी वाले युवाओं (करीब 27 करोड़ लोग) को वरीयता दी जाएगी।
पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006
कोविड-19 महामारी के प्रभाव के मद्देनज़र पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (Environment Impact Notification), 2006 में संशोधन किया है। संशोधन में निर्दिष्ट किया गया है कि 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2021 के बीच की अवधि को निम्नलिखित की वैधता अवधि की गणना में शामिल नहीं किया जाएगा:
(i) पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी
(ii) संदर्भ शर्तें
उदाहरण के लिये खनन परियोजनाओं की मंज़ूरी की वैधता 30 वर्ष होती है। संशोधन में निर्दिष्ट अवधि खनन परियोजनाओं की इस 30 वर्ष की वैधता अवधि में शामिल नहीं होगी।
निर्माण या संबंधित गतिविधियों (जैसे आधुनिकीकरण और विस्तार) को शुरू करने से पहले सभी परियोजनाओं को संबंधित नियामक प्राधिकरण (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय या राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण) से मंज़ूरी हासिल करनी होती है। यह मंज़ूरी पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी कहलाती है। इन परियोजनाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) खनिजों का खनन।
(ii) कोल वॉशरीज़।
(iii) थर्मल पावर प्लांट्स।
परियोजनाओं को मंज़ूरी देने के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन करते समय नियामक प्राधिकरण प्रक्रिया में चीह्नित प्रासंगिक पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने के लिये आवेदक को निर्देश दे सकता है।
समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 29 जनवरी, 2021 को आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 प्रस्तुत किया। सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और राजकोषीय घाटा: वर्ष 2021-22 में नॉमिनल GDP में 15.4% और रियल GDP में 11% वृद्धि का अनुमान है। वर्ष 2019-20 के दौरान GDP में 4.2% की वृद्धि की तुलना में वर्ष 2020-21 के दौरान GDP में 7.7% की गिरावट का अनुमान है।
- अप्रैल-नवंबर 2020 के बीच राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 135.1% था (अप्रैल से नवंबर 2019 के बीच 114.8% के बजट अनुमान से अधिक)।
- चालू खाता अधिशेष: वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में चालू खाता अधिशेष सकल घरेलू उत्पाद (Gross domestic product- GDP) का 3.1% था। सर्वेक्षण में उम्मीद जताई गई है कि वर्ष 2020-21 के अंत तक चालू खाता अधिशेष GDP के कम-से-कम 2% होगा। अगर इस लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है तो यह मौजूदा खाता घाटा के 17 वर्ष के रुझान को तोड़ देगा। माल आयात में कमी और यात्रा सेवाओं पर निम्न व्यय के कारण यह अधिशेष की स्थिति उत्पन्न हुई है, चूँकि मौजूदा भुगतान में गिरावट (30.8%) प्राप्तियों में हुई गिरावट (15.1%) से अधिक है।
- क्षेत्रीय वृद्धि: वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की अनुमानित वृद्धि दर 3.4% है। उद्योग क्षेत्र और सेवा क्षेत्र में वर्ष के दौरान क्रमशः 9.6% और 8.8% की गिरावट का अनुमान है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय: सर्वेक्षण में कहा गया है कि विश्व के जिन देशों में कुल स्वास्थ्य व्यय (65%) में आउट-ऑफ-पॉकेट (वहन न करने लायक) खर्च का स्तर काफी अधिक है, उसमें भारत भी शामिल है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को GDP के 1% से बढ़ाकर 2.5-3% करने पर आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय 65% से घटकर 30% हो सकता है।
- संप्रभु क्रेडिट रेटिंग: सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की क्रेडिट रेटिंग GDP वृद्धि, मुद्रास्फीति, GDP के प्रतिशत के रूप में सरकारी ऋण इत्यादि के लिहाज से देश के मूल तत्त्वों को नहीं दर्शाती है। इसमें कहा गया है कि भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की रेटिंग्स के साथ पक्षपात किया जाता है। क्रेडिट, रेटिंग्स डिफॉल्ट की संभावना को प्रदर्शित करती है, कि उधारकर्त्ता ऋण चुकाने का इच्छुक और सक्षम है। निचले स्तर की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग का विदेशी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
GDP में 7.7% का संकुचन
प्रथम अग्रिम अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2019-20 की तुलना में वर्ष 2020-21 में GDP (वर्ष 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर) में 7.7% के संकुचन का अनुमान है। वर्ष 2020-21 की पहली और दूसरी तिमाही में GDP में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले क्रमशः 23.9% और 7.5% का संकुचन हुआ। वर्ष 2019-20 में GDP की वृद्धि 4.2% थी।
आर्थिक क्षेत्रों में GDP का मूल्यांकन सकल मूल्य संवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) के आधार पर किया जाता है। केवल कृषि और अन्य क्षेत्रों (बिजली और जलापूर्ति) में वर्ष 2020-21 के दौरान सकारात्मक वृद्धि की उम्मीद है। सबसे अधिक संकुचन जिन क्षेत्रों में हुआ है, वे हैं- व्यापार एवं हॉस्पिटैलिटी, निर्माण, खनन और विनिर्माण।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिये लॉकडाउन के कारण आँकड़े एकत्र करने के कार्य पर असर पड़ा था।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) मुद्रास्फीति (आधार वर्ष: 2011-12, वर्ष-दर-वर्ष) वर्ष 2019 की तीसरी तिमाही के मुकाबले वर्ष 2020-21 में इसी अवधि (अक्तूबर से दिसंबर 2020) के दौरान 6.4% थी। वर्ष 2019-20 की तीसरी तिमाही (पिछले वर्ष की इसी तिमाही) में मुद्रास्फीति 5.8% थी। वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (पिछली तिमाही) में मुद्रास्फीति 6.9% थी।
अक्तूबर 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति 11% से घटकर दिसंबर 2020 में 3.4% हो गई, जो वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही के लिये 7.9% थी। यह वर्ष 2019-20 की तीसरी तिमाही में 10.7% की मुद्रास्फीति और वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में 9.7% की मुद्रास्फीति से कम है।
थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) मुद्रास्फीति वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में 1.4% थी, वर्ष 2019-20 की तीसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 1.1% से अधिक और वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 0.4% से अधिक थी।
कृषि
वर्ष 2020 में लागू तीन केंद्रीय कृषि कानूनों पर स्टे
सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित केंद्रीय कृषि कानूनों पर स्टे लगाया है:
(i) कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020।
(ii) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक, 2020।
(iii) अनिवार्य वस्तुएँ (संशोधन) विधेयक, 2020।
इन तीनों कृषि कानूनों को सितंबर 2020 में अधिनियमित किया गया था और ये 5 जून, 2020 से लागू हुए थे। इन तीनों कानूनों का सामूहिक उद्देश्य हैं:
(i) विभिन्न राज्य APMC कानूनों के अंतर्गत अधिसूचित बाजारों के बाहर कृषि उपज का बाधा मुक्त व्यापार करना।
(ii) कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिये फ्रेमवर्क बनाना।
(iii) कृषि उपज की स्टॉक लिमिट तय करना, केवल तभी जब रिटेल कीमतों में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हो।
सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित के संबंध में याचिकाएँ दायर की गई थीं:
(i) तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती।
(ii) कानूनों और किसानों के लिये उनके लाभ की संवैधानिक वैधता को समर्थन।
(iii) दिल्ली की सीमा के निकट किसानों द्वारा रास्ता रोके जाने (कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए) को चुनौती क्योंकि इससे अन्य लोगों की आजादी से आवाजाही और अपना काम करने के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन होता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच कई दौर की वार्ता (किसानों के मुद्दों को हल करने के लिये) के बावजूद समस्या का कोई हल दिखाई नहीं देता।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत के लिये विशेषज्ञ समिति का गठन किये जाने से माहौल सौहार्दपूर्ण हो सकता है और किसानों का भरोसा बढ़ सकता है। उसने यह भी कहा कि तीनों कृषि कानूनों पर स्टे लगाने से आहत किसान शांत हो सकते हैं। इससे वे विश्वास और नेक-नीयत से बातचीत के लिये प्रेरित हो सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित के संबंध में अंतरिम आदेश पारित किया:
(i) अगले आदेश तक तीनों कानूनों को लागू करने पर स्टे।
(ii) कानूनों पर किसानों की शिकायतों और सरकार के विचार सुनने के लिये विशेषज्ञ समिति का गठन जो इस संबंध में अपने सुझाव देगी।
उसने चार सदस्यों वाली एक समिति का गठन किया:
(i) बी.एस. मान, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति (इस्तीफा दे दिया)।
(ii) डॉ. पी. के. जोशी, निदेशक दक्षिण एशिया, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट।
(iii) डॉ. अशोक गुलाटी, कृषि अर्थशास्त्री।
(iv) अनिल घनवट, अध्यक्ष, शेतकारी संगठन। समिति दो महीने में सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
स्वास्थ्य
यूनीक हेल्थ आइडेंटिफायर नियम, 2021
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने यूनिक हेल्थ आइडेंटिफायर नियम(Unique Health Identifier Rules), 2021 अधिसूचित किया है। इन नियमों को आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के अंतर्गत जारी किया गया है। अधिनियम में भारत में रहने वाले व्यक्तियों को सब्सिडी और लक्षित सेवाओं के लिये विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की गई है, जिसे आधार संख्या कहा जाता है।
इसका उद्देश्य UHID बनाना है ताकि मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित विभिन्न हेल्थ आईटी एप्लीकेशन में लाभार्थियों की पहचान और सत्यापन किया जा सके। UHID के निर्माण से हेल्थ डेटा इकट्ठा होगा और नागरिकों का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड दर्ज किया जाएगा। नियमों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- UHID बनाना: आधार सत्यापन का उपयोग UHID बनाने के लिये किया जाएगा। UHID का निर्माण स्वैच्छिक है। UHID न होने पर स्वास्थ्य सेवाओं से इनकार नहीं किया जाएगा। मंत्रालय एक आदेश के माध्यम से UHID बनाने के लिये अतिरिक्त दस्तावेज़ों की मांग कर सकता है।
- कंपनियों द्वारा UHID का इस्तेमाल: हेल्थ आईडी बनाने और विभिन्न हेल्थ आईटी एप्लीकेशन के अंतर्गत हेल्थ संबंधी सूचनाओं को साझा करने के लिये कंपनियों को इस बात की इजाज़त होगी कि वे यूज़र्स को स्वेच्छा से आधार के इस्तेमाल का विकल्प दे सकती हैं।
- अनुरोध: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय UHID के लिये आधार सत्यापन सेवाएँ प्रदान करने वाली रिक्वेस्टिंग एंटिटी (अनुरोध करने वाली संस्था) होगा। रिक्वेस्टिंग एंटिटी में ऐसी एजेंसियाँ और व्यक्ति शामिल हैं जो सत्यापन के लिये केंद्रीकृत आधार डेटाबेस को आधार नंबर के साथ जनसांख्यिकीय या बायोमेट्रिक जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन पर प्रतिबंध तथा व्यापार एवं वाणिज्य, उत्पादन, सप्लाई एवं वितरण का रेगुलेशन) अधिनियम, 2003 में मसौदा संशोधन जारी किये हैं। यह अधिनियम भारत में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों की बिक्री, उत्पादन और वितरण को रेगुलेट करता है। प्रस्तावित मुख्य संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- लाइसेंसिंग: मसौदा संशोधनों में प्रस्ताव है कि सिगरेट या तंबाकू उत्पादों के उत्पादन, सप्लाई, बिक्री और आयात के लिये केंद्र या राज्य सरकार के लाइसेंस, पंजीकरण या अनुमति की आवश्यकता होगी।
- विज्ञापन: विज्ञापन की परिभाषा में दृश्यमान प्रतिनिधित्व और मौखिक घोषणाएँ (Visible Representations and Oral Announcements) के अतिरिक्त सभी प्रकार के ऑडियो और वीडियो प्रचार को शामिल किया जाएगा। मसौदा संशोधनों में विज्ञापनों के प्रसार के साधनों में सोशल मीडिया और इंटरनेट शामिल हैं।
- बिक्री और व्यापार पर प्रतिबंध: तंबाकू उत्पादों की बिक्री के संबंध में लोगों की न्यूनतम आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करना प्रस्तावित है। सीलबंद ओरिजिनल पैकेजिंग के अलावा अन्य सिगरेट या तंबाकू उत्पादों का व्यापार और वाणिज्य प्रतिबंधित होगा।
- अवैध तंबाकू उत्पाद: मसौदा संशोधन अवैध सिगरेट या तंबाकू उत्पादों के उत्पादन, सप्लाई, बिक्री और आयात पर प्रतिबंध लगाता है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर निम्नलिखित सज़ा हो सकती है:
(i) मैन्युफैक्चर, सप्लाई या आयात करने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दो वर्ष तक की जेल या दोनों सज़ा।
(ii) वितरण या बिक्री करने पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना या एक वर्ष तक की जेल या दोनों सज़ा। - सज़ा को बढ़ाना: मसौदा संशोधन सज़ा को बढ़ाने का भी प्रस्ताव रखता है। जैसे कम उम्र के व्यक्ति को सिगरेट बेचने पर अधिकतम ज़ुर्माना 200 रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए किया गया है जो सात वर्ष तक की जेल के अतिरिक्त होगा। अधिनियम में इस अपराध के लिये अब तक जेल की सज़ा का प्रावधान नहीं था।
गृह मामले
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अध्यादेश
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अध्यादेश, 2021 जारी किया गया। यह अध्यादेश जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन करता है। अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य को जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश एवं लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश में पुनर्गठित करने का प्रावधान करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रशासनिक कैडर्स का विलय: अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि जम्मू और कश्मीर में भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा तथा भारतीय वन सेवा के सदस्य केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियोजन के आधार पर दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में कार्य करना जारी रखेंगे। इसके अतिरिक्त भविष्य में दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में अधिकारियों की तैनातियाँ अरुणाचल-गोवा-मिज़ोरम-केंद्रशासित (Arunachal Goa Mizoram Union Territory- AGMUT) कैडर से की जाएगी। AGMUT कैडर में अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और गोवा के तीन राज्य तथा सभी केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
- अध्यादेश इन खंडों में संशोधन करता है तथा जम्मू और कश्मीर के मौजूदा कैडर के अधिकारियों का विलय AGMUT कैडर में करता है।
- निर्वाचित विधायिका संबंधी प्रावधानों को लागू करना: अधिनियम में प्रावधान है कि संविधान का अनुच्छेद 239 ए, जो कि पुद्दुचेरी केंद्रशासित प्रदेश पर लागू है, जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश पर भी लागू होगा। अनुच्छेद 239 ए में पुद्दुचेरी केंद्रशासित प्रदेश की स्थापना का प्रावधान है, जिसमें: (i) एक विधायिका होगी, जो कि चयनित या आंशिक रूप से नामित और आंशिक रूप से निर्वाचित हो सकती है या (ii) एक मंत्रिपरिषद होगी।
- अध्यादेश में कहा गया है कि अनुच्छेद 239 ए के अतिरिक्त संविधान में ऐसा कोई भी प्रावधान, जिसमें राज्य विधानसभा के चयनित सदस्यों का संदर्भ हो और जो पुद्दुचेरी केंद्रशासित प्रदेश पर लागू होता है, भी जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश पर लागू होगा। उदाहरण के लिये इसमें संविधान का अनुच्छेद 54 शामिल हो सकता है (जो पुद्दुचेरी पर भी लागू है) जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति का चुनाव संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के एक निर्वाचक मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) द्वारा किया जाता है।
आयुष्मान CAPF योजना
- गृह मामलों के मंत्रालय ने ‘आयुष्मान CAPF’ योजना शुरू की है। यह योजना केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (Central Armed Police Forces- CAPF) के कर्मचारियों और उनके आश्रितों पर लागू है। CAPF में असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल तथा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड सहित सात केंद्रीय पुलिस बल शामिल हैं।
- योजना के अंतर्गत CAPF के वर्तमान कर्मचारियों और उनके आश्रितों को आयुष्मान भारत PM-JAY IT प्लेटफॉर्म के माध्यम से कैशलेस हेल्थ केयर सेवाएँ मिलेंगी। आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य गरीब और कमज़ोर तबके के 10.7 करोड़ परिवारों (परिवार के आकार और आयु की कोई सीमा नहीं) को प्रतिवर्ष प्रति परिवार पाँच लाख रुपए तक का कवर प्रदान किया जाता है।
- कैशलेस सेवाओं के अतिरिक्त योजना 24x7 कॉल सेंटर, ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली, रियल टाइम मॉनीटरिंग डैशबोर्ड और धोखाधड़ी तथा दुर्व्यवहार (Fraud and Abuse) नियंत्रण प्रणाली भी प्रदान करेगी।
वित्त
डिजिटल ऋण पर कार्यकारी समूह का गठन
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल एप के माध्यम से डिजिटल ऋण सहित सभी ऋणों पर एक कार्यकारी समूह का गठन किया। इस समूह के अध्यक्ष RBI के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और पाँच अन्य सदस्य (आंतरिक और बाहरी) होंगे।
समूह के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) RBI द्वारा विनियमित की जाने वाली संस्थाओं की डिजिटल ऋण गतिविधियों का मूल्यांकन और आउटसोर्स्ड डिजिटल ऋण गतिविधियों के मानकों का आकलन।
(ii) अनियमित डिजिटल ऋण से वित्तीय स्थिरता और उपभोक्ताओं को होने वाले जोखिमों को चीह्नित करना।
(iii) डिजिटल ऋण के व्यवस्थित विकास को बढ़ावा देने के लिये विनियामक परिवर्तनों का सुझाव देना।
(iv) उपभोक्ताओं की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये उपाय सुझाना।
कॉर्पोरेट मामले
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs- MCA) ने कंपनी (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति) संशोधन नियम, 2021 जारी किया है। ये नियम कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत जारी वर्ष 2014 के नियमों में संशोधन करते हैं। अधिनियम के अंतर्गत कुछ कंपनियों को अपने पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का 2% CSR पर खर्च करना होता है। नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पंजीकरण: कंपनी निम्नलिखित के ज़रिये CSR निर्धारित कर सकती है:
(i) खुद या कंपनी द्वारा स्थापित ट्रस्ट या सोसायटी के माध्यम से।
(ii) केंद्र या राज्य सरकार द्वारा स्थापित संस्था, ट्रस्ट या सोसायटी के माध्यम से।
(iii) ऐसे ट्रस्ट या सोसायटी के माध्यम से, जिनका ऐसी गतिविधियाँ को करने का तीन वर्ष का ट्रैक रिकॉर्ड हो।
नए नियमों में प्रत्येक संस्था को CSR गतिविधियों के लिये 1 अप्रैल, 2021 से केंद्र सरकार के साथ पंजीकृत करना होगा। यह शर्त उन परियोजनाओं के लिये नहीं है जिन्हें इन नियमों के पहले लागू किया जा चुका है।
- CSR व्यय: वर्ष 2014 के नियमों में प्रावधान है कि अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट गतिविधियों के लिये व्यय को CSR व्यय में जोड़ा जाएगा। इसमें भुखमरी खत्म करना, शिक्षा को बढ़ावा देना, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में योगदान देना शामिल है। वर्ष 2021 के नियमों में कहा गया है कि CSR फंड को पूंजीगत परिसंपत्ति के सृजन या अधिग्रहण के लिये उपयोग किया जा सकता है, जो निम्नलिखित को हो सकती हैं:
(i) CSR पंजीकृत नंबर वाले किसी ट्रस्ट या सोसायटी।
(ii) CSR परियोजना के लाभार्थियों।
(iii) सार्वजनिक प्रशासन। - प्रभाव आकलन: 10 करोड़ रुपए से अधिक की CSR बाध्यताओं वाली कंपनियों को उन सभी CSR परियोजनाओं के लिये एक प्रभाव आकलन रिपोर्ट तैयार करनी होगी जिनमें एक करोड़ रुपए से ज़्यादा धन खर्च हो। प्रभाव आकलन पर व्यय को CSR व्यय में गिना जाएगा अगर यह उस वित्तीय वर्ष के लिये कुल CSR के 5% या 50 लाख रुपए (जो भी कम हो) से ज़्यादा न हो।
- खुलासा और रिपोर्टिंग: नियमों में कंपनी की वेबसाइट और वार्षिक रिपोर्ट में CSR गतिविधियों से संबंधित अतिरिक्त खुलासे की अपेक्षा की गई है। CSR नीति के अतिरिक्त वेबसाइट पर CSR समिति के संयोजन और बोर्ड द्वारा मंज़ूर परियोजनाओं का खुलासा भी होना चाहिये। मौजूदा वित्तीय वर्ष के CSR व्यय की रिपोर्ट के अतिरिक्त वार्षिक रिपोर्ट में प्रभाव आकलन (अगर लागू होता है) तथा पिछले तीन वर्षों के चालू CSR परियोजनाओं से संबंधित विवरण होने चाहिये।
वाणिज्य एवं उद्योग
नई केंद्रीय क्षेत्र की योजना
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ( Cabinet Committee on Economic Affairs) ने जम्मू और कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिये केंद्रीय क्षेत्र की योजना को मंज़ूरी दी है। योजना नए और मौजूदा व्यापार में निवेश करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है। केंद्र सरकार विशेष श्रेणी के राज्यों जैसे- पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के औद्योगिक विकास के लिये कई योजनाएँ संचालित करती है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास को वर्ष 2018 में अधिसूचित किया गया था और यह 31 मार्च, 2021 तक मान्य है। नई योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पूंजी निवेश प्रोत्साहन: विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की 50 करोड़ रुपए के निवेश वाली नई और मौजूदा औद्योगिक इकाइयों में निवेश के लिये प्रोत्साहन दिया जाएगा। ज़ोन-ए में स्थित इकाइयों के लिये निवेश के 30% तक (अधिकतम सीमा पाँच करोड़ रुपए) का प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। ज़ोन-बी में आने वाली इकाइयों के लिये यह सीमा 50% होगी (अधिकतम 7.5 करोड़ रुपए)। जम्मू-कश्मीर में ज़िलों को उनके औद्योगिकीकरण के स्तर के लिहाज से ज़ोन-ए और बी में वर्गीकृत किया गया है।
- ब्याज पर छूट: नई और मौजूदा औद्योगिक इकाइयों को 500 करोड़ रुपए तक के लोन पर अधिकतम सात वर्षों के लिये 6% की ब्याज में छूट मिलेगी। इस लोन को प्लांट और मशीनरी में निवेश करने, इमारत बनाने और दूसरी टिकाऊ भौतिक परिसंपत्तियों के लिये उपयोग करना होगा।
- कार्यशील पूंजी ब्याज प्रोत्साहन: मौजूदा इकाइयों को अधिकतम पाँच वर्षों के लिये कार्यशील पूंजी ऋण पर 5% की ब्याज छूट मिलेगी। यह छूट अधिकतम एक करोड़ रुपए की होगी।
सरकार ने इस योजना के लिये वर्ष 2020-21 से वर्ष 2036-37 की अवधि तक 28,400 करोड़ रुपए के परिव्यय का प्रस्ताव रखा है।
स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) ने वर्ष 2021-25 के लिये स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना (Startup India Seed Fund Scheme) को अधिसूचित किया है। यह योजना सभी क्षेत्रों के स्टार्टअप्स का अवधारणा, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण के लिये वित्तीय सहायता देती है। योजना के तहत 945 करोड़ रुपए का कोष होगा और इसे इनक्यूबेटर्स (Incubators) को अनुदानों के माध्यम से स्टार्टअप्स में वितरित किया जाएगा। योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पात्रता: स्टार्टअप्स की पात्रता में निम्नलिखित शामिल है:
(i) उसे स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत मान्यता प्राप्त होनी चाहिये।
(ii) दो वर्ष से अधिक समय की नहीं होनी चाहिये (आवेदन के समय)।
(iii) केंद्रीय या राज्य सरकार की किसी योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपए से अधिक की वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं होनी चाहिये।
(iv) ऐसा कारोबार शुरू किया जाना चाहिये जिसमें तकनीक का इस्तेमाल होता है।
स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेश, रक्षा इत्यादि में सॉल्यूशंस देने वाले स्टार्टअप को वरीयता दी जाएगी। एक स्टार्टअप को सिर्फ एक बार सीड फंडिंग मिलेगी।
- इनक्यूबेटर्स के लिये पात्रता: इनक्यूबेटर्स को एक कानूनी इकाई होना चाहिये जो कि कम-से-कम दो वर्षों से कार्य कर रही हो। उसे तीसरे पक्ष की निजी इकाई की फंडिंग से सीड फंड वितरित नहीं किया जाना चाहिये। अगर इनक्यूबेटर केंद्र या राज्य सरकार से सहायता प्राप्त है तो उसके पास इनक्यूबेशन में जाने वाले कम-से-कम पाँच स्टार्टअप होने चाहिये। अगर ऐसा न हो तो उसके पास कम-से-कम 10 स्टार्टअप ऐसे होने चाहिये जिनका इनक्यूबेशन जारी हो और वे कम-से-कम तीन वर्ष से काम कर रहे हों।
- विशेषज्ञ सलाहकार समिति: एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति पाँच करोड़ रुपए तक के अनुदानों के आवंटन के लिये इनक्यूबेटर्स को चुनेगी जिसे माइलस्टोन हासिल करने पर किस्तों में जारी किया जाएगा। समिति योजना के तहत कार्यान्वयन की निगरानी भी रखेगी।
- धनराशि का संवितरण: इनक्यूबेटर्स निम्नलिखित तरीके से स्टार्टअप को सीड फंड वितरित करेंगे:
(i) उपलब्धि पर अवधारणा या उत्पाद परीक्षणों के प्रमाण के लिये अधिकतम 20 लाख रुपए का अनुदान।
(ii) कमर्शियलाइज़ेशन के लिये डेटा इंस्ट्रूमेंट के ज़रिये अधिकतम 50 लाख रुपए। - इनक्यूबेटर सीड प्रबंधन समिति: इनक्यूबेटर स्टार्टअप्स को चुनने के लिये एक इनक्यूबेटर सीड मैनेजमेंट समिति होगी इस समिति में इनक्यूबेटर के प्रतिनिधि, राज्य सरकार की स्टार्टअप नोडल टीम, एक उद्यम पूंजी निधि, शिक्षाविद और उद्यमी शामिल होंगे।
श्रम एवं रोज़गार
आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना
कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम (Employees Provident Fund and Miscellaneous Provisions Act), 1952 में कुछ प्रतिष्ठानों में अंशदान आधारित कर्मचारी भविष्य निधि (Employee Provident Fund- EPF) योजना का प्रावधान है। श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने ऐसे भविष्य निधि अंशदानों पर सब्सिडी देने के लिये ‘आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना’ को अधिसूचित किया है। योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रयोज्यता: केंद्र सरकार दो वर्षों (30 जून, 2023 तक) के लिये नए कर्मचारियों के EPF योगदान का भुगतान करेगी। 1,000 या उससे कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिये सरकार EPF का 24% योगदान को कवर करेगी (कर्मचारी और नियोक्ता, प्रत्येक के लिये 12%)। अन्य मामले में सरकार सिर्फ कर्मचारियों का अंशदान देगी।
- कर्मचारियों के लिये पात्रता मानदंड: यह योजना 15,000 रुपए प्रतिमाह से कम वेतन वाले और 1 अक्तूबर, 2020 से 30 जून, 2021 के बीच संलग्न होने वाले नए कर्मचारियों के लिये होगी। नए कर्मचारियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) कर्मचारी जो कि 1 अक्तूबर, 2020 से पहले किसी प्रतिष्ठान में कार्य नहीं कर रहे थे और जिन्हें सार्वभौमिक खाता संख्या (Universal Account Number - UAN) नहीं दिया गया है।
(ii) UAN वाले EPF सदस्य जिन्होंने 1 मार्च, 2020 से 30 सितंबर, 2020 के बीच रोज़गार छोड़ दिया है (जिसका नौकरी छोड़ना UAN में रिकॉर्ड किया गया है)। - UAN वह यूनिक नंबर होता है जिसे EPFO आवंटित करता है (1952 के अधिनियम के अंतर्गत)। योजना के तहत उन कर्मचारियों को लाभ नहीं लेगा जिनके नियोक्ता पहले से ही प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (Pradhan Mantri Rojgar Protsahan Yojana) के अंतर्गत लाभ प्राप्त कर रहे हैं। PMRPY के अंतर्गत केंद्र सरकार नियोक्ता की ओर से नए कर्मचारियों को नौकरी पर रखने के लिये (तीन वर्ष की अवधि हेतु) पेंशन अंशदान (वर्ष 1952 के अंतर्गत 8.33%) का भुगतान करती है।
- प्रतिष्ठानों के लिये पात्रता मानदंड: EPFO में पहले से पंजीकृत प्रतिष्ठानों को लाभ प्राप्त करने के लिये संदर्भित आधार से कम-से-कम दो अधिक नए कर्मचारियों (यदि यह आधार 50 या उससे कम कर्मचारी है) और कम-से-कम पाँच नए कर्मचारियों (यदि यह आधार 50 से अधिक है) को नियुक्त करना चाहिये। संदर्भित आधार कर्मचारियों की संख्या होती है जिसके लिये नियोक्ता द्वारा सितंबर के महीने में रिटर्न फाइल किया जाता है।
सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण संबंधी स्थायी समिति ने माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह विधेयक माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 में संशोधन करता है जो कि वरिष्ठ नागरिकों के लिये वित्तीय सुरक्षा, कल्याण तथा संरक्षण का प्रावधान करता है। समिति के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- केयर होम: अधिनियम में राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक वृद्धाश्रम बनाने की बात कही गई है। विधेयक इस प्रावधान में परिवर्तन करता है और प्रावधान करता है कि केंद्र या राज्य सरकार या कोई संगठन वरिष्ठ नागरिकों के लिये केयर होम बना सकता है। समिति ने कहा कि देश के 700 ज़िलों में से सिर्फ 482 में केयर होम हैं। उसने सुझाव दिया कि विधेयक में कम-से-कम एक केयर होम और प्रत्येक ज़िले में एक मल्टी-सर्विस डे केयर सेंटर की अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
- विधेयक में राज्य सरकारों से यह अपेक्षा की गई है कि वे केयर होम्स और डे केयर सेंटर्स के पंजीकरण और निगरानी के लिये पंजीकरण और विनियामक प्राधिकरणों को नामित करें। समिति ने सुझाव दिया है कि अधिनियम में संशोधन के छह महीनों के भीतर राज्य सरकारें इन प्राधिकरणों को नामित कर सकती है, इस प्रावधान को विधेयक में शामिल किया जाना चाहिये।
- वरिष्ठ नागरिकों के लिये स्वास्थ्य सेवा: अधिनियम में यह प्रावधान है कि सरकारी अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों को कुछ सुविधाएँ (जैसे-बिस्तर, अलग कतार, बूढ़ों के लिये अलग से सुविधाएँ) प्रदान की जाएंगी। विधेयक में यह अपेक्षा की गई है कि निजी संगठन सहित सभी अस्पताल वरिष्ठ नागरिकों को सुविधाएँ दें। समिति ने सुझाव दिया है कि ज़िला अस्पताल वरिष्ठ नागरिकों को काउंसिलिंग की सुविधा दे, इस संबंध में विधेयक में प्रावधान होने चाहिये। उसने यह सुझाव भी दिया है कि सरकार एक निश्चित समयावधि में सभी राज्यों में वरिष्ठ नागरिकों के लिये अलग से स्वास्थ्य सुविधाएँ, अस्पताल और अनुसंधान केंद्र स्थापित करे, विधेयक में यह अपेक्षित होना चाहिये।
शिक्षा
इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) ने इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस के नियमों में संशोधनों को अधिसूचित किया है। इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस योजना को वर्ष 2017 में शुरू किया गया था। योजना के अंतर्गत 10 सार्वजनिक और 10 निजी संस्थानों को इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस घोषित किया गया था। मुख्य संशोधनों में इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस को ऑफ-शोर कैंपस (भारत के बाहर कैंपस) और ऑफ-कैंपस सेंटर (भारत में मुख्य कैंपस के बाहर सेंटर) स्थापित करने की अनुमति दी गई है।
- ऑफ-कैंपस सेंटर: इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस को पाँच वर्षों में अधिकतम तीन ऑफ-कैंपस सेंटर बनाने की मंज़ूरी दी गई है जो कि एक वर्ष में अधिकतम एक सेंटर होगी। इंस्टीट्यूट्स 10 वर्ष के विज़न प्लान और पाँच वर्ष के कार्यान्वयन प्लान के विवरण के साथ मंत्रालय को आवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इंस्टीट्यूट्स को पाँच वर्षों की अवधि के भीतर प्रस्तावित ऑफ-कैंपस सेंटर में निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा:
(i) नियमित क्लास रूम मोड के अंतर्गत न्यूनतम 500 छात्र जिनमें से कम-से-कम एक-तिहाई पोस्ट स्नातकोत्तर या शोध छात्र हों।
(ii) पाँच स्नातकोत्तर कार्यक्रम।
(iii) शिक्षक-छात्र का 1:10 का अनुपात।
(iv) कम-से-कम 60% संकाय की नियुक्ति स्थायी होनी चाहिये। - ऑफ-शोर कैंपस: इंस्टीट्यूट्स ऑफ एमिनेंस को शिक्षा मंत्रालय की मंज़ूरी के साथ और गृह तथा विदेश मामलों के मंत्रालयों से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने के बाद ऑफ-शोर कैंपस बनाने की अनुमति है। इंस्टीट्यूट्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे मुख्य परिसर की तरह प्रवेश, पाठ्यक्रम और परीक्षा के नियमों और मानदंडों का पालन करेंगे।
इंस्टीट्यूट्स के ऑफ-कैंपस सेंटर्स और ऑफ-शोर कैंपस के कामकाज की समीक्षा एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तीन वर्षों में एक बार की जाएगी जो कि ऑफ-कैंपस सेंटर/ऑफ-शोर कैंपस को बंद करने का भी सुझाव दे सकती है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने सुझाव दिया था कि उच्च स्तरीय प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को दूसरे देशों में कैंपस बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
परिवहन
अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) ने केंद्रीय मोटर वाहन (पहला संशोधन) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। ये नियम अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट (International Driving Permit- IDP) हासिल करने के लिये केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन करते हैं। संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- आवश्यक दस्तावेज़: वर्तमान में IDP के आवेदन के लिये कई दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है जैसे- वैध ड्राइविंग लाइसेंस, भारतीय नागरिकता का प्रमाण, पासपोर्ट का प्रमाण, वीज़ा प्रमाण और चिकित्सा प्रमाण पत्र इत्यादि। संशोधन में चिकित्सा प्रमाण पत्र और वीज़ा प्रमाण की अनिवार्यता को हटाया गया है।
- शुल्क: IDP के आवेदन शुल्क को 500 रुपए से बढ़ाकर 1,000 रुपए किया गया है।
- आवेदन फॉर्म का विवरण: वर्तमान में आवेदक को अपने आवेदन फॉर्म में बताना होता है कि क्या उसे ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने के अयोग्य ठहराया गया है और इसका कारण क्या था। संशोधन में कहा गया है कि आवेदक को यह भी बताना होगा कि क्या उसे उस देश में ड्राइविंग से रोका गया है और इसका कारण क्या था।
प्रमुख बंदरगाहों के लिये दिशा-निर्देश
शिपिंग मंत्रालय (Ministry of Shipping) ने प्रमुख बंदरगाहों के लिये ड्राफ्ट ड्रेज़िंग दिशा-निर्देशों को जारी किया है। ये दिशा-निर्देश में वर्ष 2016 में जारी दिशा-निर्देशों का स्थान लेते हैं। ड्रेज़िंग समुद्र की सतह की सफाई की प्रक्रिया होती है जिससे जहाज़ों की आवाजाही आसान होती है। इसमें निम्नलिखित कार्य शामिल होते हैं:
(i) रख-रखाव ड्रेज़िंग के माध्यम से जमा वस्तुओं को हटाना।
(ii) पूंजी ड्रेज़िंग के माध्यम से मिट्टी और चट्टान के कटाव को हटाकर गहरा करना।
मसौदा दिशा-निर्देश भारत के मुख्य बंदरगाहों में सभी प्रकार की ड्रेज़िंग को विनियमित करने का प्रयास करते हैं। मसौदा दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- परियोजनाएँ: मसौदा दिशा-निर्देशों में ड्रेज़िंग परियोजना, उन्हें लागू करने, उनकी निगरानी और नियंत्रण करने के मानदंड निर्दिष्ट किये गए हैं। ड्रेज़िंग ठेकेदार को बोली और नामांकन के माध्यम से चुना जा सकता है। परियोजना के कार्यान्वयन के लिये वित्तीय व्यवहार्यता, समय योजना, उपयुक्त उपकरण और एक रोडमैप सहित घटकों पर ध्यान देने के लिये एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को एक निर्दिष्ट प्रारूप में बनाया जाना चाहिये। ऐसा दिशा-निर्देशों के अनुपालन और विकास के प्रत्येक चरण में निगरानी को सुनिश्चित करने के लिये किया जाना चाहिये।
- सर्वेक्षण: ड्रेज़िंग से पहले और बाद में निम्नलिखित का मानकीकृत सर्वेक्षण होना चाहिये:
(i) जल सतह की टोपोग्राफी को समझने के लिये बाथीमेट्री (पानी की गहराई का अध्ययन)।
(ii) तलछह और पत्थरों की परत को समझने के लिये भू-भौतिकीय परिवेश। - पर्यावरणीय प्रबंधन: मसौदा दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि ड्रेज़िंग से पर्यावरणीय अशांति की स्थिति उत्पन्न होती है। संरक्षण और परियोजना के माध्यम से कम-से-कम नुकसान के लिये परियोजना की योजना और उस पर विचार विमर्श के प्रत्येक चरण में पर्यावरणीय प्रभाव और जोखिम शमन का भी ध्यान रखा जाना चाहिये। उदाहरण के लिये ड्रेज़िंग परियोजना बनाते समय ड्रेज़ेड सामग्री के री-यूज या रीसाइकलिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। पूंजी ड्रेज़िंग के मामलों में पर्यावरणीय मंज़ूरी भी अनिवार्य है।
पर्यावरण
नारंगी रंग की श्रेणी में वर्गीकृत उद्योग
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) ने कुछ उद्योगों को नारंगी रंग की श्रेणी में वर्गीकृत किया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने प्रदूषण सूचकांक स्कोर के आधार पर उद्योगों को वर्गीकृत किया है। प्रदूषण सूचकांक 0 से 100 अंकों वाला एक स्केल होता है जो उद्योगों के प्रदूषण की संभाव्यता को मापता है। मंत्रालय द्वारा निर्दिष्ट श्रेणियाँ निम्नलिखित अंकों पर आधारित हैं:
- सफेद: 20 तक के अंक।
- हरा: 21 से 40 के बीच के अंक।
- नारंगी: 41 से 59 के बीच के अंक।
- लाल: 60 और उससे अधिक अंक।
इनमें जिन उद्योगों को वर्गीकृत किया गया है, वे हैं:
(i) 20,000 वर्ग मीटर के बिल्ड-अप एरिया वाले और प्रतिदिन 50 किलो लीटर या उससे अधिक वेस्ट वॉटर उत्पन्न करने वाले भवन निर्माण और निर्माण परियोजनाएँ।
(ii) निर्माण और डेमोलिशन वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट्स।
(iii) गोल्ड एसेइंग और हॉलमार्किंग सेंटर्स।
अगर संबंधित भवन निर्माण और निर्माण परियोजनाओं से उत्पन्न वेस्ट वॉटर प्रतिदिन 100 किलो लीटर या उससे अधिक है तो परियोजनाओं को लाल रंग की श्रेणी में वर्गीकृत किया जाएगा।
वर्गीकरण का उद्देश्य ज़िम्मेदारी के साथ पूर्ण व्यापार करने हेतु सुगमता को बढ़ाना है। सफेद रंग की श्रेणी वाले संगठनों को छोड़कर अन्य सभी संगठनों को भवन निर्माण या संबंधित गतिविधियों (जैसे- आधुनिकीकरण और विस्तार) को शुरू करने से पहले संबंधित नियामक प्राधिकरणों से मंज़ूरी लेनी होगी।