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पीआरएस कैप्सूल्स

विविध

अक्तूबर 2020

  • 19 Nov 2020
  • 64 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  • कोविड-19
    • उपभोक्ता व्यय और पूंजीगत व्यय
    • तरलता और ऋण प्रवाह
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना 2006 
  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास 
    • वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में CPI आधारित मुद्रास्फीति 
    • पॉलिसी रेपो दर और रिवर्स रेपो दर 
  • वित्त
    • GST मुवावज़े की कमी को पूरा करने के लिये उधारी योजना
    • स्टैंडअलोन माइक्रोइंश्योरेंस कंपनी 
    • साइबर लायबिलिटी इंश्योरेंस 
    • नियामक सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क
    • त्वरित प्रतिक्रिया कोड की अंतर-संक्रियता
  • पर्यावरण 
    • वायु गुणवत्ता प्रबंधन 
    • पर्यावरण (संरक्षण) संशोधन नियम, 2020 
    • खतरनाक और अन्य अपशिष्ट संशोधन नियम, 2020 
    • स्टॉकहोम कन्वेंशन
  • श्रम एवं रोज़गार
    • कारखाना अधिनियम, 1948 
    • राष्ट्रीय पेंशन योजना
  • गृह मामले 
    • जम्मू एवं कश्मीर में केंद्रीय और राज्य स्तरीय कानून 
  • विधि एवं न्याय
    • ऑनलाइन विवाद समाधान 
  • परिवहन
    • केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 
    • राइट ऑफ फर्स्ट रिफ्यूज़ल लाइसेंसिंग के नियम
    • जहाज़़ों का पुनर्चक्रण 
  • बिजली
    • मसौदा विद्युत (कानून में परिवर्तन, आवश्यक स्थिति और अन्य मामले) नियम, 2020
    • मसौदा विद्युत (लेट पेमेंट सरचार्ज) नियम, 2020 
  • नवीन और अक्षय ऊर्जा
    • ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर हाइब्रिड परियोजना
  • कृषि
    • तेल कंपनियों द्वारा इथेनॉल की खरीद के लिये संशोधित प्रक्रिया 
  • जल संसाधन
    • स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों में नल से सुरक्षित जलापूर्ति के लिये अभियान 
  • शिक्षा
    • स्टार्स परियोजना 

कोविड-19

  • उपभोक्ता व्यय और पूंजीगत व्यय 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2020-21 के लिये उपभोक्ता व्यय और पूंजीगत व्यय को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ उपायों की घोषणा की है। 

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  • तरलता और ऋण प्रवाह

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने कोविड-19 के कारण उत्पन्न तनाव को कम करने के लिये वित्तीय बाज़ार को तरलता समर्थन और ऋण प्रवाह बढ़ाने हेतु उपायों की घोषणा की। RBI द्वारा घोषित उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं:

तरलता: RBI एक लाख करोड़ रुपए तक के ऑन टैप लक्षित दीर्घकालिक पुनर्खरीद संचालन (Targeted Long-Term Repurchase Operations- TLTRO) का संचालन 31 मार्च, 2021 तक करेगा। 

  • इस योजना के अंतर्गत बैंक एक फ्लोटिंग दर पर तीन वर्ष की अवधि के लिये धनराशि उधार ले सकते हैं जो रेपो दर से जुड़ा हुआ है। इस योजना के अंतर्गत मिलने वाली धनराशि या तो: 
    • बॉण्ड और अन्य वित्तीय साधनों में निवेश की जा सकती है, या
    • कुछ क्षेत्रों में काम करने वाली संस्थाओं को ऋण देने के लिये उपयोग की जा सकती है। 
  • इन क्षेत्रों में कृषि, MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) और ड्रग्स, फार्मास्यूटिकल्स तथा  स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं।
  • RBI राज्य विकास ऋण (State Development Loans- SDL) में खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations- OMO) वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये एक विशेष मामले के रूप में करेगा। SDL राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली प्रतिभूतियाँ है। OMO विभिन्न राज्यों द्वारा जारी SDL बास्केट के लिये संचालित किये जाएंगे

निर्यात समर्थन: वर्ष 2016 में RBI ने निर्यातकों की ऑटोमेटेड कॉशन/डी-कॉशन लिस्टिंग शुरू कर दी थी। अगर निर्यातकों का शिपिंग बिल दो वर्ष से अधिक समय तक बकाया रहता है तो उन्हें कॉशन लिस्टेड किया जाएगा। ऐसे निर्यातकों को विभिन्न प्रकार के ऋण नहीं दिये जाएंगे। एक बार बिल चुकाने पर निर्यातक डी-कॉशन सूची में आ जाएंगे। RBI बैंकों के सुझाव पर भी कॉशन/डी-कॉशन कर सकता है। अब RBI कॉशन/डी-कॉशन लिस्टिंग बंद कर देगा, हालाँकि बैंकों के सुझाव पर यह सूची जारी रहेगी। इससे निर्यातकों को निर्यात से प्राप्त होने वाली आय में फ्लेक्सिबिलिटी सुनिश्चित होगी, क्योंकि मामलों के आधार पर कॉशन लिस्टिंग की जाएगी।

खुदरा एक्सपोज़र के लिये कम जोखिम भार: एक्सपोज़र (ऋण) में आमतौर पर 100% का जोखिम-भार होता है, जो पूंजी की मात्रा को बनाए रखने का संकेत होता है। उच्च स्तर के जोखिम-भार के परिणामस्वरूप अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है और इसलिये ऋण की लागत भी उच्च होती है। 5 करोड़ रुपए तक के निजीऔर छोटे व्यवसायों के लिये एक्सपोज़र नियामक खुदरा पोर्टफोलियो में शामिल होने के पात्र होते हैं और उनका जोखिम-भार 75% होता है। RBI ने इस सीमा को बढ़ाकर 7.5 करोड़ रुपए कर दिया है। 

  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना 2006 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अधिसूचना के अंतर्गत पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी देने के लिये गठित राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (State Environment Impact Assessment Authority- SEIAA) और मूल्यांकन समितियों के कार्यकाल को बढ़ाने के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (Environmental Impact Assessment- EIA), 2006 में संशोधन किया है। 

  • अधिसूचना का उद्देश्य विभिन्न परियोजनाओं जैसे- बाँधों, खदानों, हवाई अड्डों और राजमार्गों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव का नियमन करना है।
    • परियोजनाओं की कुछ निर्दिष्ट श्रेणियों को मूल्यांकन समिति के सुझाव पर SEIAA से पहले पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। 
    • केंद्र सरकार द्वारा SEIAA और मूल्यांकन समितियों का गठन तीन वर्ष की निश्चित अवधि के लिये किया जाता है। 
  • मई 2020 में कोविड-19 को एक असाधारण परिस्थिति मानते हुए मंत्रालय ने मौजूदा SEIAA और मूल्यांकन समितियों के कार्यकाल को छह महीने बढ़ाने के लिये EIA अधिसूचना, 2006 में संशोधन किया। संशोधन में SEIAA और मूल्यांकन समितियों के कार्यकाल में विस्तार की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर बारह महीने कर दिया गया है।

समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास 

  • वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में CPI आधारित मुद्रास्फीति 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) आधारित मुद्रास्फीति (आधार वर्ष 2011-12) 2019 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर 2020) की तुलना में वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में 6.9% हो गई। वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 3.4% (पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में) थी और वर्ष 2020-21 (पिछली तिमाही के मुकाबले) की पहली तिमाही में 6.6% थी।

  • जुलाई 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति 9.3% और सितंबर में 10.7% थी जो कि वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में 9.7% दर्ज की गई। यह वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में 3.5% की मुद्रास्फीति और वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 9.2% की मुद्रास्फीति से अधिक है।
  • वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) आधारित मुद्रास्फीति 0.4% थी जी कि वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में 0.9% की मुद्रास्फीति से कम है और 2020-21 की पहली तिमाही में -2.2% की मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक है।

वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियाँ (% परिवर्तन, वर्ष-दर-वर्ष)

Inflation

  • पॉलिसी रेपो दर और रिवर्स रेपो दर 

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य जारी किया। पॉलिसी रेपो दर (जिस दर पर RBI बैंकों को ऋण देता है) 4% पर बरकरार रही। MPC के अन्य निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • रिवर्स रेपो दर (RBI जिस दर पर बैंकों से ऋण लेता है) 3.35% पर अपरिवर्तित रही।
  • सीमांत स्थायी सुविधा दर (जिस दर पर बैंक अतिरिक्त ऋण ले सकते हैं) और बैंक दर 4.25% पर अपरिवर्तित रही।
  • MPC ने आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिये मौद्रिक नीति के समायोजन के रुख को बनाए रखने का निर्णय लिया।

वित्त

  • GST मुवावज़े की कमी को पूरा करने के लिये उधारी योजना

केंद्र सरकार ने वर्ष के दौरान GST मुवावज़े के उपकर संग्रह में आई कमी को पूरा करने के लिये वर्ष 2020-21 के लिये अपनी उधारी योजना में संशोधन किया है। 

  • GST (राज्यों के लिये मुआवज़ा) अधिनियम [GST (Compensation to States) Act], 2017 के अंतर्गत अगर जुलाई 2017 से जून 2022 की अवधि के दौरान किसी भी वर्ष में राज्यों का GST राजस्व 14% से कम हो तो केंद्र सरकार को उन्हें मुआवज़ा देना होता है। 
    • इसके लिये धनराशि जुटाने हेतु अधिनियम में लक्जरी वस्तुओं और सिन वस्तुओं, जैसे- सिगरेट, तंबाकू उत्पाद, पान मसाला, कोयला और कुछ यात्री वाहनों तथा पेय पदार्थों पर GST मुआवज़ा उपकर लगाने का प्रावधान है। 
  • वर्ष 2020-21 में राज्यों के मुवावज़े की तुलना में उपकर संग्रह कम है जिसके परिणामस्वरूप लगभग 2.3 लाख करोड़ रुपए की कमी हुई है। इस कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 में 1.1 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त उधारी का प्रस्ताव रखा है ताकि ‘GST के कार्यान्वयन’ से संबंधित कमी को पूरा किया जा सके। 
  • शेष राशि को जून 2022 के बाद उपकर संग्रह से चुकाया जाएगा। 1.1 लाख करोड़ रुपए की उधारी का पुनर्भुगतान और उस पर मिलने वाला ब्याज भुगतान भी भविष्य के उपकर संग्रह से चुकाया जाएगा। 
    • इसके लिये GST परिषद ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार जून 2022 के बाद भी GST मुआवज़े के लिये उपकर की वसूली कर सकती है ताकि इस कमी को पूरा किया जा सके।
  • केंद्र सरकार की 1.1 लाख करोड़ रुपए की उधारी को राज्यों (जिन राज्यों ने इस तरह से उधार लेने को मंज़ूरी दी) को उनके GST मुआवज़ा अनुदान के बदले में बैक-टू-बैक ऋण के रूप में हस्तांतरित किया जाएगा। 
    • राज्यों द्वारा उधार ली गई राशि के कारण उनका राजकोषीय घाटा बढ़ेगा लेकिन वर्ष 2020-21 में राज्यों के लिये अनुमोदित GSDP के 5% को राजकोषीय घाटे की सीमा के भीतर नहीं गिना जाएगा।
  • 1.1 लाख करोड़ रुपए उधार लेने से वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की सकल बाज़ार ऋण के लक्ष्य में 9.2% बढ़ोतरी होगी और यह 13.1 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। केंद्र सरकार ने कहा है कि यह अतिरिक्त उधारी उसके राजकोषीय घाटे या सामान्य ऋण (यानी केंद्र और राज्य सरकार) के को प्रभावित नहीं करेगी।
  • स्टैंडअलोन माइक्रोइंश्योरेंस कंपनी 

स्टैंडअलोन माइक्रोइंश्योरेंस कंपनी पर समिति (अध्यक्ष: मिराई चटर्जी) ने भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 

  • “माइक्रोइंश्योरेंस वह प्रणाली है जो निम्न आय वाले व्यक्तियों को मृत्यु, दुर्घटना, बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं जैसे जोखिमों से सुरक्षित रखती है।” 

समिति द्वारा दिये गए मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • स्टैंडअलोन माइक्रोइंश्योरेंस कंपनी: समिति ने कहा कि मौजूदा बीमा कंपनियाँ माइक्रोइंश्योरेंस कारोबार अच्छी तरह से नहीं कर पाती हैं क्योंकि इनमें लेन-देन की लागत अधिक होती है और औसत प्रीमियम निम्न स्तरीय। उसने सुझाव दिया है कि कि स्टैंडअलोन माइक्रोइंश्योरेंस कंपनियों की स्थापना की जानी चाहिये।
  • विनियामक ढाँचा: बीमा व्यवसाय को बीमा अधिनियम (Insurance Act), 1938 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है। समिति ने सुझाव दिया कि माइक्रोइंश्योरेंस के अध्याय को शामिल करने और उससे संबंधित शब्दों को स्पष्ट करने के लिये अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिये। समिति ने कहा कि इससे माइक्रोइंश्योरेंस उत्पादों को पेश करने वाले गैर-सरकारी संगठनों और सहकारी संस्थानों के विकास के लिये विनियामक परिवेश भी तैयार होगा।
  • न्यूनतम पूंजीगत आवश्यकता: बीमा अधिनियम, 1938 बीमा व्यवसाय के लिये न्यूनतम 100 करोड़ रुपए की पूंजी का प्रावधान करता है। समिति ने सुझाव दिया है कि इस सीमा को 20 करोड़ रुपए या इससे कम कर दिया जाए।
  • व्यवसाय का दायरा: समिति ने सुझाव दिया है कि माइक्रोइंश्योरेंस कंपनियों को जीवन और गैर-जीवन बीमा उत्पाद पेश करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • जोखिम आधारित पूंजीगत संरचना: समिति ने सुझाव दिया है कि माइक्रोइंश्योरेंस कंपनियों को जोखिम आधारित पूंजीगत संरचना को लागू करना चाहिये। बीमाकर्त्ताओं को अपने व्यवसाय के आकार और रिस्क प्रोफाइल के आधार पर पूंजी को बनाए रखना होगा। वर्तमान में बीमाकर्त्ता फैक्टर आधारित सॉल्वेंसी सिस्टम का पालन करते हैं जिसमें कुल लायबिलिटी के फिक्स्ड मल्टीपल पर पूंजी को बरक़रार रखा जाता है।
  • माइक्रोइंश्योरेंस डेवलपमेंट फंड: समिति ने सुझाव दिया है कि पचास करोड़ रुपए के शुरुआती संग्रह से एक फंड की स्थापना की जाए। माइक्रोइंश्योरेंस कंपनियों के लिये तकनीकी अवसंरचना के विकास, मानव संसाधन प्रशिक्षण और उत्पाद विकास जैसे कार्यों में इस फंड का उपयोग किया जा सकता है।
  • साइबर लायबिलिटी इंश्योरेंस 

IRDAI ने एक मानक साइबर लायबिलिटी बीमा उत्पाद की आवश्यकता पर अध्ययन के लिये कार्यदल का गठन किया है। 

  • पी. उमेश इस वर्किंग समूह के अध्यक्ष होंगे और इसमें आठ अन्य सदस्य शामिल होंगे। समूह के लिये संदर्भ शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • सूचना और साइबर सुरक्षा पर संवैधानिक प्रावधानों का अध्ययन। 
    • साइबर स्पेस में लेन-देन संबंधी महत्त्वपूर्ण कानूनी मुद्दों का मूल्यांकन। 
    • साइबर सुरक्षा से जुड़े मामलों और इन मामलों के लिये संभावित बीमा कवरेज की जाँच।
    • वर्तमान में उपलब्ध साइबर लायबिलिटी बीमा उत्पादों की जाँच।
    • साइबर लायबिलिटी बीमा के दायरे के संबंध में सुझाव देना।
  • “साइबर लायबिलिटी बीमा में व्यक्तियों और प्रतिष्ठानों को साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों के लिये सुरक्षा  कवर प्रदान किया जाता है। इनमें पहचान की चोरी, अनाधिकृत लेन-देन, मालवेयर अतिक्रमण या साइबर एक्सटॉर्शन इत्यादि शामिल हो सकते हैं।”
    • उन जोखिमों को सामान्य लायबिलिटी बीमा द्वारा कवर नहीं किया जाता है जो शारीरिक चोट और संपत्ति की क्षति को कवर करते हैं।
  • नियामक सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority- IFSCA) ने एक नियामक सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क जारी किया है। 

विनियम सैंडबॉक्स ऐसा परिवेश प्रदान करता है जिसमें बाज़ार के भागीदारों को एक सीमित परीक्षण अवधि के दौरान नियंत्रित तरीके से ग्राहकों के साथ नए फिनटेक समाधानों (उत्पाद, सेवा और व्यापार मॉडल) की जाँच  का मौका मिलता है। फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • भागीदारी: पात्र संस्थाएँ नियामक सैंडबॉक्स में भाग ले सकती हैं और इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
  1. RBI के साथ पंजीकृत संस्थाएँ, IRDAI, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड तथा पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण। 
  2. स्टार्टअप इंडिया के साथ पंजीकृत स्टार्टअप्स। 
  3. भारत में निगमित और पंजीकृत कंपनियाँ।
  4. भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (गिफ्ट सिटी) के आधार पर परिचालन के साथ वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के अनुपालन वाले क्षेत्रों में निगमित और पंजीकृत कंपनियाँ। 
  • “वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) एक ऐसा अंतर-सरकारी निकाय है जो मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग (Terror Financing) से निपटने के लिये मानक निर्धारित करता है।”
  • परियोजना की पात्रता: सैंडबॉक्स में भाग लेने वाले आवेदकों को निम्नलिखित प्रदर्शित करना होगा:
  1. लाइव परीक्षण की आवश्यकता।
  2. निवेशकों, संस्थाओं या पूंजी बाज़ार को चिह्नित करने योग्य लाभ। 
  3. समाधान के परीक्षण से होने वाले जोखिम से सुरक्षा।
  4. व्यापक स्तर पर समाधान सुनिश्चित करने का इरादा।
  • विनियम से छूट: सैंडबॉक्स में भाग लेने वाली संस्थाओं को कुछ नियमों के अनुपालन से छूट दी जा सकती है। यह व्यापक छूट हो सकती है या मामले के आधार पर दी जा सकती है। किंतु अपने ग्राहक को जानिये (Know Your Customer- KYC) और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग नियमों में कोई छूट नहीं दी जाएगी।
  • परीक्षण: संस्थाओं को उपयोगकर्त्ताओं को परीक्षण में शामिल करने से पहले उनसे सूचनापरक सहमति प्राप्त करनी चाहिये। परीक्षण की अधिकतम अवधि 12 महीने होगी जिसे अनुरोध के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। IFSCA कुछ स्थितियों में परीक्षण अवधि के समाप्त होने से पहले सैंडबॉक्स में भागीदारी को रद्द कर सकता है। यह निम्नलिखित स्थितियों में हो सकता है: 
  1. यदि संस्थाएँ जोखिम को कम करने के तरीकों को लागू नहीं करतीं। 
  2. यदि वह अन्य परिसमापन में चली जाती है।
  • त्वरित प्रतिक्रिया कोड की अंतर-संक्रियता

RBI ने डिजिटल भुगतान हेतु त्वरित प्रतिक्रिया (Quick Response- QR) कोड अवसंरचना की अंतर-संक्रियता के लिये निर्देश जारी किये हैं। यह उपाय त्वरित प्रतिक्रिया पर गठित समिति के सुझावों पर आधारित है।

  • त्वरित प्रतिक्रिया एक दो-आयामी बार कोड होता है जिसे इमेजिंग उपकरणों जैसे- स्मार्टफोन द्वारा पढ़ा जा सकता है। इसके ज़रिये पॉइंट ऑफ सेल टर्मिनल्स के बिना डिजिटल भुगतान किया जा सकता है। एक अंतर-सक्रियता त्वरित प्रतिक्रिया से उपभोक्ता किसी भी भुगतान एप का उपयोग किये बिना भुगतान कर सकते हैं। 
    • अंतर-संक्रियता के बिना भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों (पीएसओ) के त्वरित प्रतिक्रिया कोड को सिर्फ सहायक भुगतान एप से स्कैन किया जा सकता है।
  • RBI की अधिसूचना के अनुसार, वर्तमान में दो अंतर-संक्रियता त्वरित प्रतिक्रिया कोड, UPI त्वरित प्रतिक्रिया और भारत त्वरित प्रतिक्रिया काम करते रहेंगे। 
  • कुछ मोबाइल वॉलेट प्रदाता जो कि मालिकाना (गैर-अंतर-सक्रियता) त्वरित प्रतिक्रिया कोड का उपयोग करते हैं, को 31 मार्च, 2022 तक अंतर सक्रियता त्वरित प्रतिक्रिया कोड में स्थानांतरित हो जाना चाहिये। PSO को नए मालिकाना (गैर-अंतर-संक्रियता) त्वरित प्रतिक्रिया कोड को शुरू करने की अनुमति नहीं है।

पर्यावरण 

  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग द्वारा अध्यादेश, 2020 जारी किया गया। अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region- NCR) और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के लिये बेहतर समन्वय, अनुसंधान, उन्हें पहचानने और  समाधान करने के लिये आयोग के गठन का प्रावधान करता है। 

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  • पर्यावरण (संरक्षण) संशोधन नियम, 2020 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने पर्यावरण (संरक्षण) संशोधन नियम [Environment (Protection) Amendment Rules], 2020 को अधिसूचित किया। 

  • यह पर्यावरण (संरक्षण) नियम [Environment (Protection) Rules], 1986 में संशोधन करता है जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय प्रदूषकों और उत्सर्जन मानदंडों को विनियमित करना है। 
  • 2020 संशोधन नियम थर्मल पावर प्लांट के लिये (1 जनवरी, 2003 और 31 दिसंबर, 2016 के बीच स्थापित) नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के कण उत्सर्जन मानक की सीमा को 300 मिलीग्राम प्रति सामान्य क्यूबिक मीटर से 450 मिलीग्राम प्रति सामान्य क्यूबिक मीटर तक बढ़ाता है।
  • खतरनाक और अन्य अपशिष्ट संशोधन नियम, 2020 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन तथा ट्रांसबाउंड्री आंदोलन) संशोधन नियम, 2020 को अधिसूचित किया है। यह 2016 के नियमों में संशोधन करता है जो खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है। 

  • खतरनाक अपशिष्ट ऐसा अपशिष्ट होता है जो स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिये खतरनाक हो सकता है।
  • 2016 के नियमों के अनुसार, खतरनाक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण, पूर्व-प्रसंस्करण और अन्य उपयोगी गतिविधियों में शामिल श्रमिक कुछ लाभों के हकदार हैं, जैसे: 
    • श्रमिकों को मान्यता और उनका पंजीकरण।
    • औद्योगिक कौशल विकास।
    • वार्षिक स्वास्थ्य और सुरक्षा निगरानी। 
  • 2020 के संशोधन नियम कुछ अन्य श्रमिकों को भी यह लाभ प्रदान करते हैं, जिसमें खतरनाक अपशिष्ट के जनरेशन, हैंडलिंग, संग्रह, अभिग्रहण, उपचार, परिवहन, भंडारण, पुन: उपयोग, निपटान और प्रतिलाभ में संलग्न श्रमिक शामिल हैं ।
  • स्टॉकहोम कन्वेंशन

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्टॉकहोम कन्वेंशन के अंतर्गत सूचीबद्ध सात स्‍थायी कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants- POP) को स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिये खतरनाक रसायनों के रूप में चिह्नित करते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। 

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श्रम एवं रोज़गार

  • कारखाना अधिनियम, 1948 

कारखाना अधिनियम (Factories Act), 1948 न्यूनतम 10 या 20 श्रमिकों वाले कारखानों (विद्युत् के उपयोग पर आधारित) में श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करता है। 

  • अधिनियम सरकार को यह अधिकार देता है कि वह ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की स्थिति में किसी कारखाने या कारखानों के एक वर्ग को उसके कुछ प्रावधानों से छूट दे सकती है। 
  • ‘सार्वजनिक आपातकाल’ में ऐसा ‘गंभीर आपातकाल’ शामिल है, जो युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति के चलते राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
  • अप्रैल 2020 में गुजरात सरकार ने अधिनियम के अंतर्गत एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र राज्य के कारखानों को अधिनियम के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई थी। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • साप्ताहिक कार्य के अधिकतम घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 करना। 
    • दैनिक कार्य के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 करना। 
    • अनिवार्य विश्राम की अवधि को पाँच घंटे में एक बार से बदलकर छह घंटे में एक बार करना। 
    • ओवरटाइम मज़दूरी की गणना के फार्मूले में संशोधन करना, मज़दूरी दर को दोगुने की बजाय मौजूदा मज़दूरी के अनुपात करना। 
  • यह अधिसूचना 20 अप्रैल, 2020 से 19 अक्तूबर, 2020 तक मान्य थी।
  • इन अधिसूचनाओं को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। न्यायालय के समक्ष प्रश्न रखा गया है कि क्या कोविड-19 महामारी और उसके बाद लॉकडाउन ने अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की स्थिति उत्पन्न की। न्यायालय ने कहा कि राज्य ने यह दलील दी थी कि महामारी ने आर्थिक मंदी की स्थिति पैदा की है और यह स्थिति ‘आंतरिक अशांति के कगार’ पर है। 
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंदी से भारत या उसके किसी भी क्षेत्र की सुरक्षा इस तरह से प्रभावित नहीं हुई है कि उसकी शांति और अखंडता को खतरा हो। इसलिये न्यायालय ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया, चूँकि महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक मंदी ‘आंतरिक अशांति’ के योग्य नहीं है जो कि ‘गंभीर आपातकाल’ की स्थिति उत्पन्न करे और जो राज्य की सुरक्षा को खतरइ में डाले।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून द्वारा प्रदत्त कार्य की मानवीय कार्य शर्तों और ओवरटाइम मज़दूरी के भुगतान से इनकार करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) और अनुच्छेद 23 (ज़बरन श्रम के खिलाफ निषेध) के हिसाब से विरोधाभासी हैं।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि ओवरटाइम मज़दूरी का भुगतान उन सभी श्रमिकों को किया जाए जो अधिसूचना जारी करने की तारीख से काम कर रहे हैं और इसकी दर सामान्य मज़दूरी की दोगुनी  होगी।
  • राष्ट्रीय पेंशन योजना

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) ने राष्ट्रीय पेंशन योजना (National Pension Scheme- NPS) पर अपनी प्रदर्शन लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • NPS एक योगदान आधारित पेंशन योजना है जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों और उनके स्वायत्त निकायों (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिये अनिवार्य है। 
  • राज्य सरकारें और उनके स्वायत्त निकाय भी अपने कर्मचारियों के लिये विभिन्न अवसरों पर NPS संरचना को अपना सकते हैं। 
  • NPS को पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority- PFRDA) द्वारा विनियमित किया जाता है।

CAG के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • योजना: CAG ने कहा कि: 
    • NPS के तहत कवर किये गए कर्मचारियों की सेवा शर्तों और सेवानिवृत्ति लाभों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। 
    • PFRDA अधिनियम, 2013 का उल्लंघन करते हुए NPS ग्राहकों को न्यूनतम रिटर्न प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिये एक न्यूनतम बीमित रिटर्न योजना अभी भी तैयार नहीं की गई है।
    • CAG ने सेवा नियमों को अंतिम रूप देने और न्यूनतम बीमित रिटर्न योजना प्रदान करने के लिये सुधारात्मक उपाय करने का सुझाव दिया। 
    • इसके अतिरिक्त उसने कहा कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि निधि/योजना का मूल्यांकन दो वर्षों में एक बार (उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समूह द्वारा अनुशंसित) किया गया है या उसकी व्यवहार्यता का आकलन करने के लिये कोई अन्य तरीका अपनाया गया है।
  • कार्यान्वयन: CAG ने कहा कि योजना बनाते समय यह सुनिश्चित करने के लिये कोई नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया था कि 100% कर्मचारी कवर किये जाएँ।
    • यह सुझाव दिया गया कि सभी नोडल अधिकारियों और पात्र कर्मचारियों को NPS के अंतर्गत पंजीकृत करने के लिये एक प्रणाली पेश की जाए। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि कुछ मामलों में नोडल अधिकारियों ने ट्रस्टी बैंकों में अंशदान का प्रेषण नहीं किया या देरी से प्रेषण किया।
    • ट्रस्टी बैंक योजना के अंतर्गत दिन-प्रतिदिन निधि प्रवाह और बैंकिंग सुविधाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं। CAG ने PFRDA अधिनियम में संशोधन का सुझाव दिया ताकि उसमें प्रत्येक स्तर पर विलंब के लिये ज़िम्मेदारी, जवाबदेही और सजा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सके और यह सुनिश्चित हो कि बैंक में अंशदान प्रेषित होता है और समय पर ग्राहकों के खातों में जमा किया जाता है।
  • निगरानी: CAG ने कहा कि वर्ष 2009 में यह निर्णय लिया गया था कि केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों में NPS के कार्यान्वयन का निरीक्षण करने के लिये समितियों का गठन किया जाए।
    • संयुक्त सचिव और अन्य अधिकारी इनके सदस्य होंगे। उसने कहा कि वर्ष 2012-13 और वर्ष 2018-19 के बीच 66-68 मंत्रालयों/विभागों में ऐसी समितियाँ नहीं थी।

गृह मामले 

  • जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय और राज्य स्तरीय कानून 

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में 14 केंद्रीय कानूनों को संशोधनों के साथ लागू करने के लिये अधिसूचना जारी की है।

  • इन कानूनों में ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926; कारखाना अधिनियम, 1948 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 शामिल हैं। संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • कारखाना अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं को उनकी सहमति से शाम के 7 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच काम करने की अनुमति 
    • औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के निपटान का प्रावधान।
  • इसके अतिरिक्त 37 कानूनों (जो पूर्व में जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू थे) को संशोधनों के साथ केंद्रशासित प्रदेश में लागू किया गया है, या कुछ मामलों में रद्द किया गया है। 
    • इनमें से कुछ संशोधनों और रद्द किये गए कानूनों का उद्देश्य उन प्रावधानों को हटाना है जो सिर्फ स्थानीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में संपत्ति खरीदने की अनुमति देते हैं। 
    • कुछ अन्य संशोधित कानून वस्तु और सेवा कर की वसूली, कृषि सुधारों तथा विधानसभा के सदस्यों के वेतन और भत्ते से संबंधित हैं। 
  • सरकार ने जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 में भी संशोधन किया है ताकि केंद्रशासित प्रदेश में प्रत्येक ज़िले (उन क्षेत्रों को छोड़कर जो नगर पालिका या नगर निगम में शामिल हैं) में ज़िला विकास परिषद नामक निर्वाचित निकायों का गठन किया जा सके।

विधि एवं न्याय

  • ऑनलाइन विवाद समाधान 

भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान पर फ्रेमवर्क बनाने के लिये नीति आयोग ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने चर्चा के लिये मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 

समिति ने विशेष रूप से कोविड-19 के बाद लॉकडाउन के मद्देनज़र मौजूदा नियमों के उपयोग और उनमें संशोधन के माध्यम से ऑनलाइन विवाद समाधान (Online Dispute Resolution- ODR) के लिये एक कार्यान्वयन ढाँचे की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

  • ODR अनेक प्रकार के संभावित लाभों को प्रस्तावित करता है, जैसे: 
    • लागत में कमी (क्योंकि इसमें विवाद में शामिल पक्षों को उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होती और  कानूनी शुल्क भी कम होता है)। 
    • जल्द विवाद निवारण। 
    • विवाद सुलझाने में पक्षपात का कम होना, जो कि शारीरिक रूप से उपस्थिति के कारण उत्पन्न हो सकता है।
  • हालाँकि ODR को अपनाने में कई चुनौतियाँ हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • डिजिटल अवसंरचना और डिजिटल साक्षरता का अभाव। 
    • ODR सेवाओं के संबंध में जागरूकता और विश्वास की कमी। 
    • पुरानी कानूनी प्रक्रियाएँ जिनमें शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता होती है 
    • गोपनीयता से संबंधित चिंताएँ।
  • डिजिटल अवसंरचना तक पहुँच: समिति ने देखा कि देश में ODR कई दूसरे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर निर्भर है, जैसे- डिजिटल अवसंरचना तैयार करने के लिये डिजिटल इंडिया और राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन, डिजिटल साक्षरता के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान और न्यायपालिका द्वारा ईकोर्ट परियोजना।
  • ODR के एडॉप्शन और विश्वास में सुधार: वर्तमान में MSME मंत्रालय द्वारा संचालित समाधान पोर्टल का उपयोग सूक्ष्म एवं मध्यम दर्जे के उद्यमों से संबंधित विवादों को ऑनलाइन सुलझाने के लिये किया जाता है। हालाँकि यह केवल MSME को किये जाने वाले भुगतान में देरी से संबंधित मुद्दों को शामिल करता है। 
    • समिति ने सुझाव दिया कि MSME से संबंधित सभी विवादों को शामिल करने के लिये इस पोर्टल का विस्तार किया जा सकता है। 
    • यह देखते हुए कि सरकार मुकदमेबाज़ी (देश में 46% मुकदमों में सरकार एक पक्ष है) के लिये सबसे बड़ा पक्ष है, उसने सुझाव दिया कि ODR को सरकारी मुकदमों की कुछ श्रेणियों के लिये अनिवार्य किया जा सकता है।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन: समिति ने सुझाव दिया कि ODR को चरणबद्ध तरीके से अपनाया जाना चाहिये। 
    • पहले चरण में कोविड-19 से संबंधित विवादों को हल करने के लिये ODR को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिये और इसके लिये डिजिटल अवसंरचना का निर्माण करना चाहिये, ODR पर विश्वास बनाए रखना चाहिये और ODR के लिये कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिये। 
    • तीसरे और अंतिम चरण में सरकार तथा न्यायपालिका को ODR को विवाद समाधान का मुख्य आधार बनाने पर ध्यान देना चाहिये।

परिवहन

  • केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में अनेक संशोधनों को जारी किया है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

नेक व्यक्ति का संरक्षण

  • नेक व्यक्ति (Good Samaritan) वह है जो दुर्घटना के समय पीड़ित व्यक्ति को आपातकालीन चिकित्सा या गैर-चिकित्सा सहायता प्रदान करता है। यह सहायता सद्भावनापूर्ण, स्वैच्छिक तथा किसी पुरस्कार की अपेक्षा के बिना होनी चाहिये।
  • अगर सहायता प्रदान करने में लापरवाही के कारण दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को किसी प्रकार की चोट लगती है या उसकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में पीड़ित को सहायता प्रदान करने में लापरवाही के आधार पर नेक व्यक्ति पर दीवानी या आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

संशोधित नियम में निम्नलिखित प्रावधान हैं:

  • एक नेक व्यक्ति जिसने पुलिस को मोटर दुर्घटना की सूचना दी है या दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाया है उससे पुलिस या अस्पताल कोई अन्य मांग नहीं करेगा और उसे तुरंत छोड़ दिया जाएगा। 
  • कोई भी पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति उसे अपना व्यक्तिगत विवरण देने के लिये मजबूर नहीं करेगा। वह नेक व्यक्ति स्वेच्छा से पुलिस अधिकारी को विवरण दे सकता है। 
  • उसे अस्पताल में पीड़ित के लिये प्रवेश संबंधी किसी भी प्रक्रिया को पूरा करने या उपचार के लिये कोई भी लागत वहन करने के लिये नहीं कहा जाएगा।
  • अगर वह नेक व्यक्ति गवाह बनने के लिये सहमत होता है तो उससे उसकी सुविधानुसार समय और स्थान पर पूछताछ की जाएगी। वह पुलिस स्टेशन में पूछताछ करने का विकल्प चुन सकता है। 
  • उसे आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार एक शपथ पत्र पर साक्ष्य देने की अनुमति होगी।

वाहन पंजीकरण दस्तावेज़ों में स्वामित्व: मंत्रालय ने मोटर वाहन पंजीकरण दस्तावेज़ों में स्वामित्व को शामिल करने के लिये 1989 के नियमों में संशोधन किया है। संशोधित नियमों में एक नया भाग शामिल किया गया है जो कि स्वामित्व के प्रकार का उल्लेख करता है। इन श्रेणियों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • स्वायत्त निकाय। 
  • केंद्र सरकार। 
  • ड्राइविंग स्कूल। 
  • दिव्यांगजन। 
  • फर्म। 
  • व्यक्ति।
  • पुलिस विभाग। 
  • कई स्वामित्व।

इसके अतिरिक्त मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में मसौदा संशोधन भी जारी किया है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट प्राप्त करने की शर्तें शामिल हैं। प्रस्तावित संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आवश्यक दस्तावेज़: वर्तमान में एक अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट (International Driving Permit- IDP) के आवेदन में वैध ड्राइविंग लाइसेंस, चिकित्सा प्रमाणपत्र, भारतीय नागरिकता का वैध प्रमाण, पासपोर्ट का वैध प्रमाण और वैध वीज़ा प्रमाण जैसे कई दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। मसौदा संशोधनों में चिकित्सा प्रमाणपत्र और वीज़ा प्रमाण की आवश्यकता को ख़त्म कर दिया गया है।
  • शुल्क: वर्तमान में एक IDP के आवेदन के साथ 500 रुपए का शुल्क लगता है। मसौदा संशोधन में इस शुल्क को बढ़ाकर 1,000 रुपए कर दिया गया है।
  • आवेदन पत्र का विवरण: वर्तमान में आवेदक को अपने आवेदन पत्र में यह निर्दिष्ट करना होता है कि क्या उसे ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिये अयोग्य घोषित किया गया है तथा अयोग्यता के कारण क्या थे। मसौदा संशोधनों में कहा गया है कि आवेदक को यह भी स्पष्ट करना होगा कि क्या उसे वर्तमान में देश में वाहन चलाने के लिये प्रतिबंधित किया गया है अगर ऐसा है तो उसका कारण क्या है।
  • राइट ऑफ फर्स्ट रिफ्यूज़ल लाइसेंसिंग के नियम

जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) ने सभी प्रकार की आवश्यकताओं के लिये निविदा प्रक्रिया के माध्यम से जहाज़ों के चार्टरिंग (Chartering) हेतु राइट ऑफ फर्स्ट रिफ्यूज़ल (Right of First Refusal) के नियमों की समीक्षा की है। 

  • संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, जहाज़ों की चार्टरिंग प्राथमिकता निम्नानुसार होगी:
    • भारत में निर्मित, भारतीय ध्वजांकित (भारत में पंजीकृत) और भारतीय स्वामित्व वाले।
    • विदेश में निर्मित, भारतीय ध्वजांकित और भारतीय स्वामित्व वाले। 
    •  भारत में निर्मित, विदेशी ध्वजांकित और विदेशी स्वामित्व वाले जहाज़।
  • शिपिंग महानिदेशालय द्वारा नया परिपत्र जारी करने की तारीख तक भारत में पंजीकृत सभी जहाज़ों को भारत में निर्मित माना जाएगा और ये पहली श्रेणी में आएंगे।
  • ऐसे चार्टर्ड जहाज़ों के लिये लाइसेंस की अवधि जहाज़ निर्माण की अवधि तक सीमित रहेगी, जैसा कि जहाज़ निर्माण अनुबंध में उल्लिखित है। 
  • संशोधित दिशा-निर्देशों से घरेलू जहाज़ निर्माण और शिपिंग उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • जहाज़़ों का पुनर्चक्रण 

जहाज़रानी महानिदेशालय को जहाज़़ों का पुनर्चक्रण अधिनियम (Recycling of Ships Act), 2019 के अंतर्गत जहाज़ों के पुनर्चक्रण हेतु राष्ट्रीय प्राधिकरण के रूप में अधिसूचित किया गया है। राष्ट्रीय प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत जहाज़ों के पुनर्चक्रण से संबंधित सभी गतिविधियों का प्रबंधन, पर्यवेक्षण और निरीक्षण करेगा।

  • अधिनियम के अनुसार, जहाज़ों को अधिसूचित प्रतिबंधित खतरनाक सामग्रियों का उपयोग नहीं करना चाहिये। 
  • राष्ट्रीय प्राधिकरण निर्धारित आवश्यकताओं को सत्यापित करने के लिये आवर्ती सर्वेक्षण करेगा।
  • प्रत्येक नए जहाज़ के मालिक को राष्ट्रीय प्राधिकरण में खतरनाक सामग्रियों की सूची (Inventory) को लेकर एक प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिये आवेदन करना होगा। इसके अतिरिक्त जहाज़ के मालिक को अपने जहाज़ के पुनर्चक्रण से पहले पुनर्चक्रण प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिये राष्ट्रीय प्राधिकरण में आवेदन करना होगा। 
  • राष्ट्रीय प्राधिकरण के निर्णयों के खिलाफ अपील की सुनवाई निर्णय प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर केंद्र सरकार से की जा सकती है।

बिजली

  • मसौदा विद्युत (कानून में परिवर्तन, आवश्यक स्थिति और अन्य मामले) नियम, 2020

विद्युत मंत्रालय ने मसौदा विद्युत (कानून में बदलाव, आवश्यक स्थिति और अन्य मामले) नियम [Draft Electricity (Change in Law, Must-run status and other Matters) Rules, 2020], 2020 जारी किया है। विद्युत अधिनियम (Electricity Act), 2003 के अंतर्गत मसौदा नियमों का उद्देश्य पास थ्रू (Pass Through) को आसान बनाना और खरीदारों द्वारा मांग में कमी के लिये नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को मुआवज़ा देना है। 

“पास थ्रू का मतलब ऐसी प्रणाली से है जिसमें किसी अतिरिक्त व्यय को लागत में जोड़ा जाता है और उसे उपभोक्ता से वसूला जाता है।”

मसौदा नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • कानून में परिवर्तन पर टैरिफ समायोजन: कानून में किसी भी बदलाव की स्थिति में प्रभावित पक्ष को मुआवज़ा देने के लिये टैरिफ को समायोजित किया जाएगा। 
    • कानूनी स्थिति में परिवर्तन के कारण अक्सर अतिरिक्त पूंजीगत व्यय होता है जो टैरिफ को प्रभावित करता है। 
    • मुआवज़े का उद्देश्य प्रभावित पक्ष की आर्थिक स्थिति को बहाल करना होगा जैसा कि कानून में परिवर्तन नहीं हुआ है। 
    • बिजली की प्रति यूनिट के आधार पर पास थ्रू की अनुमति दी जाएगी और कानूनी स्थिति में परिवर्तन के 30 दिनों के बाद यह अपने आप लागू हो जाएगी। 
    • पास थ्रू निर्धारित करने के फार्मूले का उल्लेख बिडिंग दस्तावेज़ या पावर पर्चेज़ एग्रीमेंट (Power Purchase Agreement- PPA) में किया जाना चाहिये। अन्यथा सरकारी दिशा-निर्देशों में निर्धारित फॉर्मूले  का उपयोग पास थ्रू निर्धारित करने के लिये किया जा सकता है। 
    • राज्य विद्युत नियामक आयोग को पास थ्रू के 60 दिनों के भीतर दावे के सत्यापन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। सत्यापन उत्पादक और खरीदारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों पर आधारित होगा।
  • मस्ट-रन बिजली संयंत्र: बिजली बेचने के PPA वाले सभी अक्षय ऊर्जा बिजली संयंत्रों (जैसे विंड, विंड-सोलर और हाइड्रो) को मस्ट-रन बिजली संयंत्र के रूप में माना जाएगा। 
    • बिजली ग्रिड में किसी भी प्रकार की तकनीकी बाधा या ग्रिड की सुरक्षा से संबंधित कारणों से मस्ट-रन बिजली संयंत्र को कटौती या विनियमन का पात्र बनाया जाएगा। 
    • किसी कारण से कटौती होने पर खरीदारों को उत्पादक को मुवावज़ा देना होगा। मुआवज़े की दर PPA में उल्लिखित होनी चाहिये अन्यथा यह PPA की प्रति यूनिट दर का 75% होगा।
  • वितरण कंपनियों के लिये बिजली खरीद हेतु ट्रेडिंग लाइसेंस: मध्यस्थ खरीदार को बिडिंग प्रक्रिया के माध्यम से वितरण कंपनियों से बिजली खरीदने की अनुमति होगी। अगर अलग-अलग दरों पर कई आपूर्तिकर्त्ता मौजूद हैं तो सभी बोलियों के औसत को अंतिम बोली माना जाएगा।
  • मसौदा विद्युत (लेट पेमेंट सरचार्ज) नियम, 2020 

ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of Power) ने मसौदा विद्युत (लेट पेमेंट सरचार्ज) नियम [Draft Electricity (Late Payment Surcharge) Rules], 2020 जारी किया है। 

  • विद्युत अधिनियम (Electricity Act), 2003 के अंतर्गत जारी नियमों का उद्देश्य निम्नलिखित द्वारा लेट पेमेंट सरचार्ज को विनियमित करना है: 
    • वितरण लाइसेंसधारी को उत्पादक कंपनी से।
    • ट्रांसमिशन प्रणाली उपयोगकर्त्ता को ट्रांसमिशन लाइसेंसी से। 
  • खरीदी गई बिजली या ट्रांसमिशन प्रणाली के उपयोग पर देय तिथि के बाद मासिक शुल्क चुकाने पर लेट पेमेंट सरचार्ज लगाया जाता है। यह देय तिथि के बाद सभी बकाया भुगतानों पर लागू होगा।
  • सरचार्ज की दर लागू बैंक दर या बिजली की आपूर्ति या ट्रांसमिशन के समझौते में प्रदान की गई दर से कम होगी। 
    • बैंक दर से तात्पर्य भारतीय स्टेट बैंक की एक वर्ष के धन-आधारित ऋण की सीमांत लागत की दर और 500 आधार अंक है। 
  • यदि लागू दर समझौते में प्रदान की गई दर से कम है, तो नियत तिथि से एक महीने बाद दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि होगी। लेट पेमेंट सरचार्ज की अधिकतम सीमा बैंक दर और 200 आधार अंक होगी। 
  • वितरण लाइसेंसधारी द्वारा किसी उत्पादक कंपनी को या ट्रांसमिशन प्रणाली उपयोगकर्त्ता द्वारा ट्रांसमिशन लाइसेंसी को किये जाने वाले सभी भुगतान लेट पेमेंट सरचार्ज में समायोजित किये जाएंगे।

नवीन और अक्षय ऊर्जा

  • ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर हाईब्रिड परियोजना

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) ने ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर हाईब्रिड परियोजनाओं से बिजली की खरीद के लिये प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी टैरिफ-आधारित बिडिंग प्रक्रिया के आधार पर एक रूपरेखा प्रदान करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये। यह मई 2018 में जारी विंड-सोलर हाइब्रिड नीति के अनुसार है। 

इस नीति का उद्देश्य ग्रिड-कनेक्टेड विंड-सोलर हाइब्रिड परियोजना को बेहतर ग्रिड स्थिरता प्राप्त करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना है। दिशानिर्देशों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  • प्रासंगिकता: दिशा-निर्देश एक साइट पर 50 मेगावाट से अधिक की क्षमता वाले हाइब्रिड परियोजनाओं से बिजली की दीर्घकालिक खरीद पर लागू होंगे जहाँ किसी एक संसाधन (विंड या सोलर) की रेटेड क्षमता कम-से-कम 33% होनी चाहिये।
  • बिड संरचना और प्रक्रिया: बिडर को एक साइट पर न्यूनतम 50 मेगावाट की परियोजना क्षमता के लिये बोली लगाने की अनुमति होगी। बिडर द्वारा उद्धृत किया गया टैरिफ बिडिंग प्रक्रिया का मानदंड होगा। बिडर इनमें से किसी भी प्रकार की टैरिफ-आधारित बिडिंग प्रदान करेगा: 
    • 25 वर्ष या उससे अधिक समय के लिये रुपए/किलोवाट आवर में नियत टैरिफ 
    • पूर्व निर्धारित वार्षिक वृद्धि के साथ रुपए/किलोवाट आवर में वृद्धिशील टैरिफ और जिस वर्ष से यह वृद्धि लागू होगी। 
    • खरीददार (वितरण कंपनी) अंतिम चयन के लिये ई-रिवर्स नीलामी का विकल्प भी चुन सकता है।
  • पावर पर्चेज एग्रीमेंट: चयनित बिडर पावर पर्चेज एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करेगा। 
    • PPA की न्यूनतम अवधि निर्धारित कमीशन तिथि से 25 वर्ष होनी चाहिये। 
    • यदि चयनित बिडर एक एकल कंपनी है तो परियोजना में कंपनी की शेयरधारिता बिना पूर्व अनुमोदन के वाणिज्यिक संचालन की तिथि के बाद पहले वर्ष में 51% से कम नहीं होनी चाहिये।

कृषि

  • तेल कंपनियों द्वारा इथेनॉल की खरीद के लिये संशोधित प्रक्रिया 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 में शुरू किये गए इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों (Oil Marketing Companies- OMC) से इथेनॉल की खरीद हेतु संशोधित प्रणाली को मंज़ूरी दी है। 

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत OMC प्रबंधित कीमत पर आसवन (Distilleries) से इथेनॉल खरीदती है और अधिकतम 10% तक इथेनॉल का मिश्रण कर पेट्रोल बेचती है। 
  • यह कार्यक्रम गन्ना आधारित कच्चे माल से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने का भी प्रयास करता है और इसका उद्देश्य देश में चीनी उत्पादन को कम करना है। 
  • पूर्व प्रणाली में OMC से यह अपेक्षा की जाती रही है कि वे उच्च सर्करा सामग्री (गन्ने के रस के बाद शिरा) का उपयोग कर इसके स्रोतों से बनने वाले इथेनॉल की खरीद को प्राथमिकता दें। 
  • नई प्रणाली में स्थानीय उद्योगों को उचित अवसर देने और राज्यों में इथेनॉल की आवाजाही को कम करने का प्रयास किया गया है। 
  • इस प्रणाली के अंतर्गत OMC विभिन्न स्रोतों से इथेनॉल खरीद की प्राथमिकता का निर्धारण करने के लिये मापदंड तय करेंगी। मापदंड में परिवहन लागत और उपलब्धता जैसे कारकों पर विचार किया जाएगा जो राज्य की सीमाओं के भीतर लागू होगा।

जल संसाधन

  • स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों में नल से सुरक्षित जलापूर्ति के लिये अभियान 

जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) ने 100 दिवसीय अभियान शुरू किया है ताकि देश के स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों में नल से सुरक्षित जलापूर्ति सुनिश्चित की जा सके। 

  • यह अभियान जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission- JJM) के अंतर्गत आता है जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में जलापूर्ति हेतु नल का कनेक्शन प्रदान करना है। 

अभियान की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • घटक: अभियान के प्रमुख घटकों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • आँगनवाड़ी केंद्रों, स्कूलों, आदिवासी छात्रावासों, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों तथा सामुदायिक शौचालयों में नल से जलापूर्ति का प्रावधान।
    • मलिन जल का उपचार और पुन: उपयोग ताकि पर्यावरण स्वच्छ बना रहे।
    • वितरण बिंदुओं पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी करना।
    • संचालन और रख-रखाव के लिये मानव संसाधन का विकास।
  • प्रशासन: राज्यों के सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग इस अभियान का नेतृत्व करने वाले नोडल विभाग होंगे। इसमें ग्राम पंचायतें और उनकी उप-समितियाँ शामिल होंगी। साथ ही इसमें शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण, पंचायती राज, ग्रामीण विकास तथा आदिवासी कल्याण विभाग भी शामिल होंगे।
    • सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की सुविधा का संचालन ग्राम पंचायत और उसकी उप-समिति जैसे- ग्रामीण जल और स्वच्छता समिति द्वारा किया जाएगा और वही उनका रख-रखाव भी करेंगी।
  • कार्यान्वयन: विभिन्न स्थितियों की कार्यान्वयन रणनीतियों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • नल से जलापूर्ति हेतु चालू कनेक्शन द्वारा लंबी अवधि के लिये पर्याप्त और सुरक्षित जल प्रदान करना। 
    • ऐसे नल लगे स्थान जहाँ पानी नहीं आता, पानी की आपूर्ति में सुधार करना। 
    • ऐसे स्थान जहाँ के लिये नल का कनेक्शन प्रस्तावित नहीं है,  जल आपूर्ति की स्टैंडअलोन योजनाओं का प्रावधान जैसे- ट्यूबवेल। साथ ही शुद्ध जलापूर्ति और शत प्रतिशत नल से पानी की व्यवस्था हेतु चालू कनेक्शन दिया जाना।

शिक्षा

  • स्टार्स परियोजना 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्टार्स परियोजना (Strengthening Teaching-Learning and Results for States- STARS Project) को मंज़ूरी दी है। इस परियोजना का उद्देश्य देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है।

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