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विविध

अगस्त 2018

  • 09 Jan 2019
  • 55 min read

PRS की प्रमुख हाइलाइट्स

RBI ने जारी की वार्षिक रिपोर्ट 2017-18

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2017-18 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2016 में अवैध घोषित किये गए 500 और 1,000 रुपए के नोटों में से 15.31 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट रिज़र्व बैंक के पास वापस आ गए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि 8 नवंबर, 2016 तक इन नोटों में से 15.42 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट परिचालन में थे। इसका तात्पर्य है यह है कि इन नोटों में से 11,000 करोड़ रुपए मूल्य के नोटों की वापसी नहीं हुई है।

संयुक्त समिति की रिपोर्ट के बाद वापस लिया गया FRDI विधेयक (Financial Resolution and Deposit Insurance Bill), 2017

10 अगस्त, 2017 को यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था और उसके बाद इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। 1 अगस्त, 2018 को संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसके बाद सरकार ने इस विधेयक को वापस लेने का फैसला किया।

  • विधेयक को वापस लेने का फैसला विधेयक के कई प्रावधानों पर कई दावेदारों तथा जनता द्वारा प्रकट की गई चिंताओं के बाद लिया गया। विधेयक के जिन प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की गई उनमें शामिल हैं-

♦ बेल-इन (Bail-in) प्रावधान, जिसके लागू होने के बाद बैंक में जमा धन पर जमाकर्त्ता से अधिक बैंक का अधिकार होता।
♦ बैंकों में जमा राशि पर मिलने वाली बीमा की अपर्याप्तता।
♦ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वित्तीय समाधान ढाँचे का अनुप्रयोग।

  • समिति ने विधेयक की वापसी हेतु प्रस्ताव सूचना (Notice of Motion) पर विचार किया और सरकार द्वारा विधेयक को वापस लेने के फैसले पर सहमति व्यक्त की जिसके बाद 7 अगस्त, 2018 को यह विधेयक वापस ले लिया गया।

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IDBI बैंक में सरकारी शेयरहोल्डिंग को कम करने की मंज़ूरी


मंत्रिमंडल ने औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India-IDBI) में सरकार की शेयरहोल्डिंग को 50% से कम करने की मंज़ूरी दी है। इसके अलावा, IDBI बैंक में प्रमोटर के रूप में भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India-LIC) द्वारा नियंत्रित हिस्सेदारी के अधिग्रहण की भी मंज़ूरी दी गई है।


आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2018 [Criminal Law (Amendment) Bill, 2018]

बलात्कार के मामलों में फाँसी की सज़ा संबंधी आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2018 को लोकसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक प्रावधान किये गए हैं। इस विधेयक के अंतर्गत 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामलों में मौत की सज़ा तथा किसी वयस्क महिला के साथ बलात्कार के मामले में न्यूनतम सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल करने का प्रावधान किया गया हैं।

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मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2018 [Protection of Human Rights (Amendment) Bill, 2018]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में मानव अधिकारों के बेहतर संरक्षण और संवर्द्धन के लिये मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2018 को अपनी स्वीकृति दी।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • विधेयक में आयोग के मानित सदस्य के रूप में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को शामिल करने का प्रस्ताव है।
  • आयोग के गठन में एक महिला सदस्य को जोड़ने का प्रस्ताव।
  • राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तथा राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष पद के लिये पात्रता और चयन के दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव।
  • विधेयक में केंद्रशासित प्रदेशों में मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामलों को देखने के लिये एक व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव।
  • राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तथा राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल में संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि इसे अन्य आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल के अनुरूप बनाया जा सके।

लाभः

  • इस संशोधन से भारत में मानव अधिकार संस्थानों को मज़बूती मिलेगी और संस्थान अपने दायित्वों एवं भूमिकाओं तथा ज़िम्मेदारियों का कारगर ढंग से निष्पादन कर सकेंगे। इतना ही नहीं, संशोधित अधिनियम से मानवाधिकार संस्थान जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा व्यक्ति के सम्मान से संबंधित अधिकारों को सुनिश्चित करने के प्रति सहमत होकर वैश्विक मानकों का परिपालन करेंगे।

पृष्ठभूमिः

  • मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम. 1993 में संशोधन से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) तथा राज्य मानव अधिकार आयोग (SHRC) कारगर तरीके से मानव अधिकारों का संरक्षण और संवर्द्धन करने के लिये अपनी स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुलवाद तथा व्यापक कार्यों से संबंधित पेरिस सिद्धांत का परिपालन करेंगे।

संविधान (123वाँ संशोधन) विधेयक, 2018 [Constitution (One Hundred Twenty-Third Amendment) Bill]

हाल ही में संसद द्वारा संविधान (123वाँ संशोधन) विधेयक, 2018 पारित किया गया। यह विधेयक अनुसूचित जातियों के राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) और अनुसूचित जातियों के राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Scheduled Castes-NCSC) के समान ही पिछड़ा वर्ग (National Commission for Backward Classes-NCBC) को राष्ट्रीय आयोग का संवैधानिक दर्जा (Constitutional Status) देता है।

  • नतीजतन, अब NCSC के पास पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों की जाँच करने की शक्ति नहीं रहेगी।

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पर्सनल लॉ (संशोधन) विधेयक, 2018 [Personal Law (Amendment) Bill]

  • विधि और न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 10 अगस्त, 2018 को लोकसभा में पर्सनल लॉ (संशोधन) विधेयक, 2018 पेश किया।
  • यह विधेयक पाँच कानूनों में संशोधन करता है। ये कानून हैं:
  1. तलाक अधिनियम (Divorce Act), 1869
  2. डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज अधिनियम (Dissolution of Muslim Marriage Act), 1939
  3. स्पेशल मैरिज अधिनियम, 1954
  4. हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act),1955
  5. हिंदू एडॉप्शन एंड मेनटेनेंस अधिनियम (Hindu Adoptions and Maintenance Ac), 1956
  • इन सभी कानूनों में हिंदू और मुस्लिम युगलों के विवाह, तलाक और संबंध विच्छेद से संबंधित प्रावधान हैं। इनमें से प्रत्येक कानून में कहा गया है कि कुष्ठ रोग (Leprosy) की वजह से तलाक या सेपरेशन की मांग की जा सकती है।
  • विधेयक तलाक या सेपरेशन की वजहों में से कुष्ठ रोग को हटाता है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार का निवारण) संशोधन विधेयक, 2018 Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Bill

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्री थावरचंद गहलौत ने 3 अगस्त, 2018 को लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार का निवारण) संशोधन विधेयक, 2018 पेश किया। विधेयक अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ (अत्याचार का निवारण) अधिनियम, 1989 में संशोधन का प्रावधान करता है।

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महादयी जल विवाद न्यायाधिकरण (Mahadayi Water Disputes Tribunal)

महादयी जल विवाद न्यायाधिकरण (Mahadayi Water Disputes Tribunal) ने गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों के बीच महादयी नदी के जल साझाकरण पर अपना अंतिम फैसला दिया। इस न्यायाधिकरण का गठन नवंबर 2010 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम (Inter-State River Water Disputes Act), 1956 के तहत किया गया था।

  • महादयी नदी बेसिन का अपवाह 2,032 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में होता है, जिसमें से 1,680 वर्ग किमी. गोवा में, 375 वर्ग किमी. क्षेत्र कर्नाटक में और शेष 77 वर्ग किमी. महाराष्ट्र में स्थित है।
  • अपने फैसले में न्यायाधिकरण ने गोवा को 24 हज़ार मिलियन घन फीट (Thousand Million Cubic- TMC) पानी तक पहुँच सुनिश्चित करने की मंज़ूरी दी।
  • कर्नाटक को 13.42 TMC फीट (5.4 TMC फीट उपभोग के लिये तथा 8.02 TMC फीट बिजली उत्पादन के लिये) जल प्राप्त करने की मंज़ूरी दी गई, जबकि महाराष्ट्र को 1.33 TMC फीट पानी आवंटित किया गया।

अचल संपत्ति का अधिग्रहण और अर्जन (संशोधन) विधेयक, 2017 [Requisitioning and Acquisition of Immovable Property (Amendment) Bill]

  • अचल संपित्त का अधिग्रहण और अर्जन (संशोधन) विधेयक,2017 लोकसभा में 18 जुलाई, 2017 को पेश किया गया। विधेयक अचल संपत्ति का अधिग्रहण और अर्जन अधिनियम, 1952 में संशोधन करता है।
  • अधिनियम के अंतर्गत किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये केंद्र सरकार अचल संपत्ति (या ज़मीन) का अधिग्रहण कर सकती है। यह सार्वजनिक उद्देश्य केंद्र सरकार का उद्देश्य होना चाहिये (जैसे- रक्षा, केंद्र सरकार के कार्यालय और आवास)। जब संपत्ति के अधिग्रहण का उद्देश्य पूरा हो जाए तो संपत्ति को उसके मालिक को वैसी ही अच्छी स्थिति में लौटा दिया जाना चाहिये, जैसी कब्ज़े के समय उस संपत्ति की थी।
  • केंद्र सरकार ऐसी अधिग्रहीत संपत्ति को दो स्थितियों में अर्जित (एक्वायर) कर सकती है: (1) अगर केंद्र सरकार ने ऐसी संपत्ति पर कोई निर्माण किया है और उस निर्माण को इस्तेमाल करने का अधिकार सरकार के पास होना ज़रुरी है, या (2) उस संपत्ति को मूल स्थिति में लाने की कीमत बहुत ज़्यादा है और मुआवज़ा लिये बिना मालिक उसे वापस लेने को तैयार नहीं है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • पूर्व प्रभाव से लागू: अधिनियम के लागू होने की तिथि 14 मार्च, 1952 से यह विधेयक लागू माना जाएगा।
  • अधिग्रहण के लिये नोटिस दोबारा जारी करना: अधिनियम के अंतर्गत किसी अधिग्रहीत संपत्ति को अर्जित करने के समय, केंद्र सरकार को इस अर्जन के संबंध में अधिसूचना जारी करनी होगी। ऐसी सूचना जारी करने से पहले सरकार को संपत्ति के मालिक (या संपत्ति के लिये मुआवज़े का दावा करने वाले किसी अन्य व्यक्ति) को सुनवाई का अवसर देना होगा। सुनवाई के समय संपत्ति के मालिक को इस बात की वज़ह बतानी होगी कि संपत्ति का अधिग्रहण क्यों नहीं किया जाना चाहिये।
  • मुआवज़ा पर देय ब्याज: जिन मामलों में नोटिस दोबारा जारी किया गया हो, उन स्थितियों में संपत्ति का मालिक (या संपत्ति में रुचि रखने वाला व्यक्ति) मुआवज़े पर ब्याज पाने का भी हकदार होगा।
  • बढ़े हुए मुआवज़े का प्रावधान: विधेयक कहता है कि यह बढ़ा हुआ मुआवज़ा दो स्थितियों में दिया जाएगा: (1) अगर अधिग्रहण का नोटिस दोबारा जारी किया जाता है और (2) अगर ज़मीन का अधिग्रहण राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के उद्देश्य से किया जाता है।

जीवन सुगमता सूचकांक 2018

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने जीवन सुगमता सूचकांक-2018 (Ease of Living Index) जारी किया है। इस सूचकांक पर किसी शहर का आकलन चार प्रमुख मानकों के आधार पर किया जाता है, जिसमें संस्‍थागत प्रबंधन, सामाजिक और आर्थिक स्थिति तथा बुनियादी ढाँचे की स्थिति शामिल है। इन चार मानकों का आगे 15 उपश्रेणियों और 78 संकेतों में वर्गीकरण किया गया है।

  • जीवन सुगमता सूचकांक आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की पहल है, जिसके ज़रिये शहरों में बसने वाले लोगों के जीवन को आसान बनाने का प्रयास किया गया है।
  • इस सूचकांक में किसी शहर का आकलन चार प्रमुख मानकों के आधार पर किया जाता है, जिसमें संस्‍थागत प्रबंधन, सामाजिक और आर्थिक स्थिति तथा बुनियादी ढाँचे की स्थिति शामिल है। इन चार मानकों को आगे 15 उपश्रेणियों और 78 संकेतकों में वर्गीकृत किया गया है।
  • सूचकांक में शामिल शीर्ष दस शहर
रैंक रैंक
1. पुणे
2. नवी मुंबई
3. ग्रेटर मुंबई
4. तिरुपति
5. चंडीगढ़
6. ठाणे
7. रायपुर
8. इंदौर
9. विजयवाड़ा
10. भोपाल

होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) विधेयक, 2018 Homoeopathy Central Council (Amendment) Bill

  • आयुष राज्य मंत्री येसो नाईक ने लोकसभा में होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) विधेयक, 2018 पेश किया। यह विधेयक होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल अधिनियम, 1973 में संशोधन करता है और होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) अध्यादेश, 2018 का स्थान लेता है।

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किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018 Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Amendment Bill

  • महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 6 अगस्त, 2018 को लोकसभा में किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018 पेश किया। विधेयक किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन करता है। इस अधिनियम में कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों और देखरेख एवं संरक्षण की ज़रूरत वाले बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं। विधेयक बच्चों के एडॉप्शन (Adoption) से संबंधित प्रावधानों में कुछ परिवर्तन करने का प्रयास करता है।
  • 2015 के अधिनियम के अंतर्गत एडॉप्शन : अधिनियम में भारत और विदेशों में भावी दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता द्वारा बच्चों को गोद लेने से संबंधित प्रावधान हैं। भावी माता-पिता के द्वारा बच्चे की स्वीकृति के बाद स्पेशलाइज़्ड एडॉप्शन एजेंसी (Specialized Adoption Agency) एडॉप्शन आदेश हासिल करने के लिये दीवानी अदालत में आवेदन दे सकती है। अदालत द्वारा जारी किये गए आदेश के बाद बच्चा दत्तक माता-पिता का हो जाता है। विधेयक में कहा गया है कि अदालत के बजाय अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट एडॉप्शन के आदेश जारी करेंगे।
  • जिन मामलों में विदेश में रहने वाला कोई व्यक्ति भारत में अपने किसी संबंधी से बच्चा गोद लेना चाहता है, उन मामलों में उस व्यक्ति को अदालत से एडॉप्शन का आदेश हासिल करना होता है। ऐसे मामलों में विधेयक अदालत को प्रतिस्थापित करता है उनके स्थान पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (District Magistrate) को एडॉप्शन के आदेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।

DNA टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन विधेयक, 2018 [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bil]

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने 9 अगस्त, 2018 को लोकसभा में DNA टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन विधेयक, 2018 पेश किया। इस विधेयक में कुछ लोगों की पहचान स्थापित करने हेतु DNA टेक्नोलॉजी के प्रयोग के रेगुलेशन का प्रावधान है।

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आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) विधेयक, 2018 (Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill)

  • विधि और न्याय मंत्री पीपी चौधरी ने 18 जुलाई, 2018 को लोकसभा में आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) विधेयक, 2018 पेश किया। यह विधेयक आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन अधिनियम, 1996 में संशोधन करता है। अधिनियम में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आर्बिट्रेशन से संबंधित प्रावधान हैं और यह सुलह प्रक्रिया को संचालित करने से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद (Indian Arbitration Council-ACI):

  • विधेयक आर्बिट्रेशन, मीडिएशन, कंसीलियेशन और विवाद निपटाने के दूसरे तरीकों को बढ़ावा देने के लिये एक स्वतंत्र संस्था भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद (ACI) की स्थापना करने का प्रयास करता है।

परिषद के कार्य:

  1. आर्बिट्रल संस्थानों की ग्रेडिंग के लिये नीतियाँ बनाना और आर्बिट्रेटर्स को एक्रेडेट करने संबंधी फैसले लेना।
  2. विवाद निवारण के सभी वैकल्पिक मामलों में एक समान पेशेवर मानदंडों की स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिये नीतियाँ बनाना।
  3. भारत और विदेशों में आर्बिट्रेशन से संबंधित फैसलों की डिपोज़िटरी (भंडार) का रखरखाव करना।

ACI में एक चेयरपर्सन तथा आर्बिट्रेशन के क्षेत्र से संबंधित एक विख्यात व्यक्ति, आर्बिट्रेशन में अनुभव प्राप्त एक एकेडमीशियन और सरकार द्वारा नियुक्त सदस्य शामिल होंगे।

आर्बिट्रेटर्स की नियुक्ति:

  • 1996 के अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न पक्ष आर्बिट्रेटर्स को नियुक्त करने के लिये स्वतंत्र होते हैं। किसी नियुक्ति पर मतभेद होने की स्थिति में, पक्ष सर्वोच्च न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय या उस न्यायालय द्वारा नामित व्यक्ति या संस्थान से आर्बिट्रेटर की नियुक्ति का आग्रह कर सकते हैं।
  • विधेयक के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय आर्बिट्रलर संस्थानों को नामित कर सकते हैं।
  • आर्बिट्रेशन के घरेलू मामलों में संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्थानों द्वारा नियुक्तियाँ की जाएंगी। अगर कोई आर्बिट्रेशन संस्थान मौजूद न हों तो संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर्बिट्रेटर्स का एक पैनल बना सकते हैं जोकि आर्बिट्रेशन संस्थानों का काम करेंगे।
  • 1996 के अधिनियम के अंतर्गत आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सभी कार्यवाहियों पर 12 महीने के अंदर फैसला ले लें। विधेयक ने अंतर्राष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशंस में इस समय सीमा को हटा दिया है।
  • विधेयक में अपेक्षा की गई है कि आर्बिट्रेशन की किसी कार्यवाही में लिखित दावे और दावे के बचाव की प्रक्रिया आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के छ: महीने के अंदर पूरी हो जानी चाहिये।
  • विधेयक में प्रावधान है कि आर्बिट्रेशन की कार्यवाहियों से जुड़े सभी विवरणों को गोपनीय रखा जाएगा, विशेष रूप से कुछ स्थितियों में आर्बिट्रेशन से संबंधित फैसलों के विवरण को छोड़कर।

आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन अधिनियम, 2018 की एप्लीकेबिलिटी:

  • विधेयक स्पष्ट करता है कि 2015 का अधिनियम केवल उन्हीं कार्यवाहियों में लागू होगा जो कि 23 अक्तूबर, 2015 को या उसके बाद शुरू हुई थीं।

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2018 [The Insolvency and Bankruptcy Code (Second Amendment) Bill]

वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने 23 जुलाई, 2018 को इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2018 पेश किया। यह विधेयक इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है तथा इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 का स्थान लेता है जिसे 6 जून, 2018 को जारी किया गया था। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिजॉल्व करने के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है।

इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते।

फाइनेंशियल क्रेडिटर्स (वित्तीय लेनदार):

  • संहिता स्पष्ट करती है कि फाइनेंशियल क्रेडिटर्स (Financial Creditors) ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका वित्तीय ऋण बकाया होता है। इस ऋण में ऐसी कोई भी राशि शामिल होती है जिसे कमर्शियल स्तर पर उधार लेकर जमा किया गया है।
  • विधेयक स्पष्ट करता है कि कुछ मामलों में जैसे- जब ऋण क्रेडिटर्स के एक समूह पर बकाया है, कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में फाइनेंशियल क्रेडिटर्स का प्रतिनिधित्व अधिकृत प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा। क्रेडिटर्स से मिलने वाले पूर्व निर्देशों के अनुसार, ये प्रतिनिधि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में वोट देंगे। अध्यादेश के अंतर्गत फाइनेंशियल क्रेडिटर्स मिल-जुलकर इन प्रतिनिधियों का मेहनताना चुकाएंगे।
  • संहिता यह स्पष्ट करती है कि फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के कम-से-कम 75 प्रतिशत बहुमत के साथ कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स अपने सभी फैसले लेगी, विधेयक इस सीमा को कम करके 51 प्रतिशत करता है।
  • विधेयक उस मानदंड में संशोधन करता है जोकि कुछ व्यक्तियों को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से प्रतिबंधित करता है। उदाहरण के लिये संहिता ऐसे व्यक्ति को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट (Resolution applicant) होने से रोकती है जिसे किसी अपराध के लिये दो या उससे अधिक वर्षों के कारावास की सज़ा हुई है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों (MSMEs) पर संहिता का लागू होना:

  • विधेयक कहता है कि MSMEs के रेज़ोल्यूशन के लिये आवेदन करने वाले व्यक्तियेां पर NPAs और गारंटरों से संबंधित अयोग्यता के मानदंड लागू नहीं होंगे। संहिता के प्रावधानों को MSMEs पर लागू करते समय केंद्र सरकार उनमें परिवर्तन कर सकती है या उन्हें हटा सकती है।
  • विधेयक प्रावधान करता है कि इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस को शुरू करने वाले कॉरपोरेट एप्लीकेंट को स्पेशल रेज़ोल्यूशन सौंपना होगा। इस स्पेशल रेज़ोल्यूशन को कॉरपोरेट देनदार के कम-से-कम तीन चौथाई पार्टनर्स द्वारा मंजूर किया जाना चाहिये।
  • विधेयक के अंतर्गत रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (NCLT) में दायर की गई किसी एप्लीकेशन को वापस ले सकता है। वापसी के इस प्रस्ताव को कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स के 90 प्रतिशत वोट द्वारा मंजूर किया जाना चाहिये।
  • अध्यादेश स्पष्ट करता है कि NCLT को किसी रेज़ोल्यूशन प्लान को मंज़ूर करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसे प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।

उचित बाज़ार व्यवहार पर सेबी समिति की रिपोर्ट

भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने बाज़ार में उचित व्यवहार (Fair Market Coduct) तथा प्रतिभूति बाज़ार के नियमों को मज़बूत करने के उपाय सुझाने के लिये टी.के. विश्वनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने 8 अगस्त, 2018 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति की प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं-

बाज़ार में हेर-फेर तथा धोखाधड़ी:

  • समिति ने पाया कि बाज़ार में हेर-फेर (manipulation) में विभिन्न व्यक्तियों की अप्रत्यक्ष भूमिका होती है। समिति ने धोखाधड़ी और अवांछित व्यापार व्यवहार विनियमों की रोकथाम के लिये ‘कारोबारीप्रतिभूतियों’ की परिभाषा में उन लोगों को शामिल करने की सिफारिश की गई है जो अवांछित व्यापार व्यवहार से निपटने में सहायता कर रहे हैं।
  • इसके अलावा, समिति ने पाया कि वित्तीय विवरणों की धोखाधड़ी के कार्य में बुक ऑफ़ अकाउंट में हेरफेर शामिल है, अक्सर सूचीबद्ध कंपनियों की शेयर कीमतों में हेरफेर किया जाता है। समिति ने पाया कि प्रतिभूति बाज़ार के नियामक के रूप में सेबी का कर्त्तव्य है कि वह ऐसी धोखाधड़ी से निवेशकों के हितों की रक्षा करे। समिति ने सिफारिश की है कि सेबी अधिनियम, 1992 की धारा 12A, जो षड्यंत्रकारी और भ्रामक उपकरणों को प्रतिबंधित करती है, में एक नई उपधारा को शामिल करने के लिये संशोधित किया जाना चाहिये।

निगरानी और जाँच:

  • समिति ने सिफारिश की है कि उच्च आवृत्ति व्यापार (High-Frequency Trading) में उपयोग किये जाने वाले प्रत्येक एल्गोरिदम/कलन विधि को एक विशिष्ट पहचान संख्या (unique identification number) आवंटित की जानी चाहिये। यह सशक्त रूप से बाज़ार में धोखा-धड़ी के मामलों की पहचान करने में मदद करेगा।
  • इसके अलावा, सेबी को जाँच के दौरान पुख्ता सबूत इकट्ठा करने के लिये कॉल और इलेक्ट्रॉनिक संचार को रोकने की शक्ति दी जानी चाहिये।
  • समिति ने सिफारिश की है कि एक ऐसा तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये जिसके ज़रिये व्यक्तियों को व्यापार करने की उनकी वित्तीय क्षमता का प्रदर्शन करना आवश्यक हो।

कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दांडिक प्रावधानों की समीक्षा

27 अगस्त, 2018 को कंपनी अधिनियम, 2013 के दांडिक प्रावधानों की समीक्षा करने वाली समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली को सौंपी। गौरतलब है कि 15 जुलाई, 2018 को केंद्र सरकार ने कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में इस 10 सदस्यीय समिति का गठन किया था।

समिति की प्रमुख सिफारिशें

  • समिति ने उन सभी दंड विषयक प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण किया, जिन्हें अपराधों की प्रकृति के आधार पर उस समय आठ श्रेणियों में बाँट दिया गया था।
  • समिति ने सिफारिश की कि छह श्रेणियों को शामिल करते हुए गंभीर अपराधों के लिये वर्तमान कठोर कानून जारी रहना चाहिये, जबकि दो श्रेणियों के अंतर्गत आने वाली तकनीकी अथवा प्रक्रियात्मक खामियों के लिये निर्णय की आंतरिक प्रक्रिया होनी चाहिये।
  • समिति द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) को इसके समक्ष मौजूदा शमनीय अपराधों की संख्या में पर्याप्त कटौती कर मुक्त करने की सिफारिश की गई है।
  • 81 शमनीय अपराधों में से 16 को विशेष अदालतों के अधिकार क्षेत्र से हटाकर आंतरिक ई-निर्णय के लिये अपराधों की नई श्रेणियाँ बनाना जहाँ अधिकृत निर्णय अधिकारी (कंपनियों के रजिस्ट्रार) चूककर्त्ता पर दंड लगा सकेंगे।
  • शेष 65 शमनीय अपराध अपने संभावित दुरुपयोग के कारण विशेषज्ञ अदालतों के अधिकार क्षेत्र में ही रहेंगे।
  • इसी प्रकार गंभीर कॉर्पोरेट अपराधों से जुड़े सभी अशमनीय अपराधों के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने की सिफारिश की गई है।
  • फैसलों का ई-अधिनिर्णय और ई-प्रकाशन करने के लिये पारदर्शी ऑनलाइन मंच तैयार करना।

कॉर्पोरेट अनुपालन और कॉर्पोरेट शासन से जुड़ी अन्य प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं-

  • ‘मुखौटा कंपनियों’ (Shell Companies) से बेहतर तरीके से निपटने के लिये व्यावसायिक प्रावधानों की दोबारा शुरुआत की घोषणा करना।
  • सार्वजनिक जमा के संबंध में बृहत्तर प्रकटीकरण, विशेष तौर पर ऐसे लेन-देन के संबंध में जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुच्छेद 76 के अंतर्गत सार्वजनिक जमा की परिभाषा से मुक्त कर दिया गया है।
  • सृजन, सुधार और लेनदेन के अधिकार से जुड़े दस्तावेज़ों को भरने के लिये समय-सीमा में भारी कटौती तथा जानकारी नहीं देने के लिये दंड विषयक कड़े प्रावधान।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में कॉर्पोरेट शासन प्रणाली जैसे कि व्यवसाय शुरू करने की घोषणा, पंजीकृत कार्यालय का संरक्षण, जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा, पंजीकरण और शुल्क प्रबंधन, हितकारी स्वामित्व की घोषणा और निदेशकों की स्वतंत्रता से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को शामिल किया गया है।

अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने पर विधि आयोग की रिपोर्ट

विधि आयोग ने ‘अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने (न्याय की विफलता): कानूनी उपाय’ नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। अदालत ने अनुचित तरीके से मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिये एक कानूनी रूपरेखा तैयार करने की तत्‍काल आवश्‍यकता बताई थी और विधि आयोग से कहा था कि वह इस मुद्दे की विस्‍तृत जाँच का काम अपने हाथ में ले और सरकार को अपनी सिफारिशें दें।

आयोग द्वारा प्रस्तावित सिफारिशें

  • आयोग ने न्याय की विफलता के मामलों में मुआवज़ा देने हेतु आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में संशोधन की सिफारिश की। न्याय की विफलता गलत या दुर्भावनापूर्ण अभियोजन पक्ष को संदर्भित करती है।
  • आयोग ने पाया कि दावेदार के हित को ध्यान में रखते हुए मुआवज़े के संबंध में दावों को तुरंत सुलझाया जाना चाहिये। इसलिये, मुआवज़े के दावों पर निर्णय लेने के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष न्यायालयों की स्थापना की सिफारिश की गई।
  • आयोग ने पाया कि वर्तमान में भुगतान किये जाने वाले मौद्रिक मुआवज़े की निश्चित राशि निर्धारित करना संभव नहीं है। आयोग ने मुआवज़े की राशि तय करते समय CrPC में अदालत के मार्गदर्शी सिद्धांतों को शामिल करने हेतु इसमें संशोधन की सिफारिश की। इनमें अपराध की गंभीरता, दंड की कठोरता, हिरासत की अवधि, स्वास्थ्य को क्षति, प्रतिष्ठा को नुकसान और अवसरों की हानि शामिल है।

♦ आयोग ने अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने के मामलों के निपटारे के लिये विशेष कानूनी प्रावधानों को लागू करने की सिफारिश की है, ताकि अनुचित तरीके से चलाए गए मुकदमें के शिकार लोगों को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक मुआवज़े (जैसे-परामर्श, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएँ, व्‍यावसायिक/रोज़गार, कौशल विकास आदि) के मामले में वैधानिक दायरे के भीतर राहत प्रदान की जा सके।

राजद्रोह पर विधि आयोग का परामर्श पत्र

भारत के विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत राजद्रोह पर एक परामर्श पत्र जारी किया। आयोग के मुख्य अवलोकन और सिफारिशें इस प्रकार हैं:

कानून की प्रासंगिकता:

  • राजद्रोह के अपराध को भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 124 A के तहत शामिल किया गया है। यह उस व्यक्ति को दंडित करता है जो सरकार के प्रति घृणा या असंतोष उत्पन्न करने का प्रयास करता है। इसके लिये आजीवन कारावास और/या जुर्माना या तीन साल तक कारावास और/या ज़ुर्माना जैसे दंड हो सकते हैं। आयोग ने पाया कि किसी स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र में इस अनुच्छेद की प्रासंगिकता बहस का विषय है। हालाँकि तर्क दिया जाता है कि यह कानून औपनिवेशिक युग से है और भारतीय अदालतों ने इसकी संवैधानिकता को बरकरार रखा है।
  • आयोग ने पाया कि राजद्रोह संविधान के तहत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। धारा 124A को लगातार कई पीढ़ियों द्वारा पुनर्विचार करके इसे बचाकर रखा गया है, किंतु इसे पूरी तरह से निरस्त नहीं किया जाता है। वर्ष 1968 में विधि आयोग की एक पूर्व रिपोर्ट में इस खंड को रद्द करने के विचार को खारिज कर दिया गया था। राजद्रोह पर प्रावधान के लिये सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि इसकी परिभाषा बहुत व्यापक है। अतः इसके दुरुपयोग की घटनाएँ भी कम नहीं हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:

  • आयोग के अनुसार, राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिये राजद्रोह कानून ज़रुरी है, लेकिन भाषण देने कि स्वंतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिये। आयोग ने पाया कि अदालतों ने यह कहा है कि हर आलोचना में देशद्रोह नहीं होता है। किसी भी कृत्य के पीछे की मंशा: (i) सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने या (ii) सरकार को हिंसक और गैर-कानूनी तरीकों से उखाड़ फेंकने के लिये अध्यादेश कानून लागू किया जाना चाहिये। इसके अलावा, सरकार या संस्थानों के प्रति की जाने वाली कड़ी निंदा के कारण देशद्रोह की स्थिति नहीं बन सकती। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हर प्रतिबंध को अनुचित प्रतिबंधों से बचाने के लिये सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिये।

राजद्रोह और अन्य कानून: आयोग ने सिफारिश की है कि किसी व्यक्ति को देशद्रोह का दोषी ठहराने के लिये उच्च स्तर के प्रमाण लागू होने चाहिये। इसके अलावा, यह कहा गया है कि यदि कोई अधिनियम राजद्रोह के दायरे में नहीं आता है, लेकिन किसी अन्य कानून के प्रावधानों को प्रदर्शित करता है तो उसे दूसरे कानून के तहत दर्ज किया जाना चाहिये।


परिवार कानून सुधार पर विधि आयोग का परामर्श पत्र

‘परिवार कानून सुधार’ पर विधि आयोग ने 31 अगस्त, 2018 को एक परामर्श पत्र जारी किया। यह विधि एवं न्याय मंत्रालय के निर्देशानुसार समान नागरिक संहिता की व्यवहार्यता की जाँच करने हेतु प्रस्तुत किया गया था।

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महासागर सेवाओं, प्रौद्योगिकी, अवलोकन, संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान योजना को मंज़ूरी

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की अंब्रेला स्कीम ओशन सर्विसेज़, टेक्नोलॉजी, ऑब्ज़र्वेशन, रिसोर्स मॉडलिंग और साइंस (O-SMART) को मंज़ूरी दे दी है। 37 परियोजनाओं में समुद्री विकास गतिविधियों जैसे-सेवाओं, टेक्नोलॉजी को संबोधित करने वाले 16 उप-प्रोजेक्ट संसाधनों, अवलोकनों और विज्ञान को शामिल किया गया है। 2017-18 से 2019-20 की अवधि के दौरान योजना के कार्यान्वयन के लिये 1,623 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी गई है।

इस अवधि के दौरान योजना में शामिल परियोजनाएँ

  • महासागरों के अवलोकन, मॉडलिंग और मछुआरों के लिये सेवाओं को सुदृढ़ करना।
  • समुद्री प्रदूषण की निगरानी के लिये एक समुद्र तटीय वेधशाला की स्थापना।
  • कावारत्ती में एक महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र की स्थापना करना।
  • गहरे खनन प्रणाली और मानवयुक्त पनडुब्बियों का उपयोग करते हुए गहरे महासागर खनन प्रौद्योगिकी का विकास करना।

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पानी के व्यावसायिक उपयोग के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर स्थायी समिति की रिपोर्ट  

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प (अध्यक्ष: श्री राजीव प्रताप रूडी) पर स्थायी समिति ने 9 अगस्त, 2018 को ‘उद्योगों द्वारा पानी के व्यावसायिक उपयोग के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति द्वारा प्रस्तुत किये गए 40 प्रमुख निष्कर्षों में शामिल हैं:

पैकेज़्ड पेयजल उपलब्ध कराने वाले उद्योगों द्वारा भूजल का दोहन:

  • वार्षिक उपलब्ध भूजल का 6% (25 बिलियन क्यूबिक मीटर) घरेलू, पीने और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है। इसमें से, पैकेज़्ड ड्रिंकिंग वॉटर यूनिट्स/प्लांट्स 0.1% (13.3 मिलियन क्यूबिक मीटर) भूजल का सालाना दोहन करते हैं।
  • केंद्रीय भूजल प्राधिकरण इन बॉटलिंग संयंत्रों को विशिष्ट पुनर्भरण दायित्वों के लिये भूजल निकालने की अनुमति देता है।
  • समिति के अनुसार, बड़ी संख्या में ऐसे राज्यों द्वारा लाइसेंस दिये गए हैं, जिनके पास पहले से ही अत्यधिक दोहन करने वाली भूजल इकाइयों (जिन क्षेत्रों में भूजल निष्कर्षण निषिद्ध है) की संख्या बहुत अधिक है। तमिलनाडु में 374 इकाइयाँ और उत्तर प्रदेश में 111 इकाइयाँ क्रमशः 895 m3 / दिन और 941 m3 / दिन निकालती हैं।

भूजल पर अत्यधिक निर्भरता:

  • समिति ने इस बात का भी उल्लेख किया कि जल संसाधन मंत्रालय ने देश में भूजल के मामले में पैकेज़्ड पेयजल उद्योगों द्वारा उपयोग किये जा रहे कुल जल और इसके परिणामी प्रभाव का अनुमान नहीं लगाया है। इन उद्योगों द्वारा निकाले जा रहे भूजल के अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में 85% पेयजल योजनाएँ भूजल पर निर्भर हैं।
  • 27% शहरी परिवार पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भूजल का उपयोग करते हैं। यह देखा गया कि पैकेज़्ड पेयजल इकाइयाँ जनता को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने में सरकार के प्रयासों के पूरक हैं।
  • हालाँकि समिति ने यह सिफारिश की है कि मांग और खपत को देखते हुए आपूर्ति की व्यवस्था को मुख्य रूप से सरकार द्वारा की जानी चाहिये।
  • इसने तर्क दिया कि खपत के अनुसार पानी उपलब्ध कराना सरकार की सामाजिक ज़िम्मेदारी है और उद्योगों को इस क्षेत्र का दोहन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • यह सिफारिश की गई है कि पैकेज़्ड पेयजल उद्योगों को सार्वजनिक निजी भागीदारी के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिये ताकि तर्कसंगत तरीके से पानी का उपयोग और लागत प्रभावी आधार पर सुरक्षित पानी उपलब्ध कराने के प्रावधान में सरकार की भूमिका सुनिश्चित हो सके।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पर कैग की रिपोर्ट

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने 7 अगस्त, 2018 को ‘राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) की शुरुआत वर्ष 2009 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल तथा खानाबनाने और अन्य घरेलू ज़रूरतों के लिये प्रत्येक ग्रामीण हेतु स्थायी एवं सतत रूप से पानी उपलब्ध कराना है।
  • यह लेखा परीक्षण 2012-17 की अवधि के लिये आयोजित किया गया था।

CAG के प्रमुख निष्कर्षों और सिफारिशों में शामिल हैं:

योजना का ख़राब प्रदर्शन:

  • NRDWP ने 2017 तक कुछ उद्देश्यों को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा था लेकिन, दिसंबर 2017 तक इन उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका।
  • इसका उद्देश्य सभी ग्रामीण बस्तियों, सरकारी स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना था। इसमें से केवल 44% ग्रामीण परिवारों और 85% सरकारी स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों तक पहुँच प्रदान की गई।
  • इसका लक्ष्य 50% ग्रामीण आबादी के लिये प्रतिदिन पीने के पानी की आपूर्ति (55 लीटर प्रति व्यक्ति) की व्यवस्था करना था जबकि, इसमें से केवल 18% ग्रामीण आबादी को पीने योग्य पानी उपलब्ध कराया गया।
  • इसके तहत 35% ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन देने का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन, केवल 17% ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन दिये गए।

योजना और वितरण तंत्र:

  • CAG ने केंद्र और राज्यों में स्थापित नियोजन और वितरण ढाँचे में कार्यक्रम के दिशा-निर्देशों में भिन्नता का उल्लेख किया है। 21 राज्यों द्वारा जल सुरक्षा योजना तैयार नहीं की गई थी।
  • वार्षिक कार्ययोजनाओं की तैयारी और समीक्षा में कमियाँ पाई गईं जो इस प्रकार हैं:
  1. हितधारकों और समुदायों की भागीदारी में कमी।
  2. योजनाओं में पानी के न्यूनतम उपयोग स्तर को शामिल न किया जाना।
  3. कार्यक्रम में शामिल योजनाओं के लिये राज्य स्तर पर अनुमोदन की कमी।
  • शीर्ष स्तर की राष्ट्रीय पेयजल और स्वच्छता परिषद ने समन्वय स्थापित करने और अभिसरण सुनिश्चित करने के लिये बड़े पैमाने पर गैर-कार्यात्मक व्यवस्था की। राज्य स्तर की एजेंसियाँ ​​कार्यक्रम की योजना और क्रियान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे कि राज्य जल और स्वच्छता मिशन, राज्य तकनीकी एजेंसी और ब्लॉक संसाधन केंद्रों की या तो स्थापना नहीं की गई थी या इनके प्रदर्शन का स्तर निम्न था।

सिफारिश

  • CAG ने सिफारिश की है कि पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को नियोजन और वितरण तंत्र की व्यवहार्यता और व्यावहारिकता की समीक्षा करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
  • यह भी सुझाव दिया कि सामुदायिक सुरक्षा के साथ जल सुरक्षा योजना और वार्षिक कार्य योजना तैयार की जानी चाहिये। जो यह सुनिश्चित करेगा कि योजनाओं को सामुदायिक आवश्यकताओं से जोड़ा जाए और जल संसाधनों का उपयोग एक इष्टतम और स्थायी तरीके से किया जा सके।

गैर-पारंपरिक हाइड्रोकार्बन की खोज और दोहन के लिये नीति-रूपरेखा को कैबिनेट की मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन जैसे- शेल तेल, गैस, और कोयला तल मीथेन (CBM) के अन्वेषण और दोहन के लिये नीतिगत ढाँचे को मंज़ूरी दी। मौजूदा अनुबंधों के अनुसार, CBM के अलावा अन्य किसी मामले में अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन की खोज और शोधन की अनुमति नहीं है।

प्रमुख बिंदु

  • CBM अनुबंध CBM को छोड़कर किसी भी अन्य हाइड्रोकार्बन के दोहन की अनुमति नहीं देते हैं।
  • अनुमोदित नीति ठेकेदारों को उनके मौजूदा अनुबंधों के अनुसार उनके लाइसेंस/पट्टे वाले क्षेत्रों में अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन का पता लगाने और उनका दोहन करने की अनुमति देती है।<%
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