विश्व मगरमच्छ दिवस | 18 Jun 2022
विश्व मगरमच्छ दिवस 17 जून को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में लुप्तप्राय मगरमच्छों और मगरमच्छों की दुर्दशा को उजागर करने के लिये एक वैश्विक जागरूकता अभियान है।
भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ:
- मगर या मार्श मगरमच्छ:
- विवरण:
- यह अंडा देने वाली और होल-नेस्टिंग स्पेसीज़ (Hole-Nesting Species) है जिसे खतरनाक भी माना जाता है।
- आवास:
- यह मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित है जहाँ यह मीठे पानी के स्रोतों और तटीय खारे जल के लैगून एवं मुहानों में भी पाई जाता है।
- भूटान और म्याँमार में यह पहले ही विलुप्त हो चुका है।
- खतरा:
- आवासों का विनाश और विखंडन एवं परिवर्तन, मछली पकड़ने की गतिविधियाँ तथा औषधीय प्रयोजनों हेतु मगरमच्छ के अंगों का उपयोग।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट: सुभेद्य
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- विवरण:
- एस्टुअरीन या खारे पानी का मगरमच्छ:
- परिचय:
- यह पृथ्वी पर सबसे बड़ी जीवित मगरमच्छ प्रजाति है, जिसे विश्व स्तर पर एक ज्ञात आदमखोर (Maneater) के रूप में जाना जाता है।
- निवास:
- यह मगरमच्छ ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है।
- यह दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।
- संकट:
- अवैध शिकार, निवास स्थान की हानि और प्रजातियों के प्रति शत्रुता।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: कम चिंतनीय
- CITES: परिशिष्ट- I (ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी की आबादी को छोड़कर, जो परिशिष्ट- II में शामिल हैं)।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- परिचय:
- घड़ियाल:
- विवरण:
- इन्हें गेवियल भी कहते हैं, यह एक प्रकार का एशियाई मगरमच्छ है और अपने लंबे, पतले थूथन के कारण अन्य से अलग होते हैं जो कि एक बर्तन (घड़ा) जैसा दिखता है।
- घड़ियाल की आबादी स्वच्छ नदी जल का एक अच्छा संकेतक है।
- इसे अपेक्षाकृत हानिरहित, मछली खाने वाली प्रजाति के रूप में जाना जाता है।
- आवास:
- यह प्रजाति ज़्यादातर हिमालयी नदियों के ताज़े पानी में पाई जाती है।
- विंध्य पर्वत (मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलानों में चंबल नदी को घड़ियाल के प्राथमिक आवास के रूप में जाना जाता है।
- अन्य हिमालयी नदियाँ जैसे- घाघरा, गंडक नदी, गिरवा नदी, रामगंगा नदी और सोन नदी इसके द्वितीयक आवास हैं।
- खतरा:
- अवैध रेत खनन, अवैध शिकार, नदी प्रदूषण में वृद्धि, बाँध निर्माण, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का कार्य और बाढ़।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
मानव-मगरमच्छ संघर्ष के कारण और समाधान:
- कारण:
- बढ़ते शहरीकरण के साथ नदी के किनारे और दलदली क्षेत्रों पर मनुष्यों का अतिक्रमण इन क्षेत्रों में मानव-मगरमच्छ संघर्ष को बढ़ाने के प्रमुख कारणों में से एक है।
- हॉटस्पॉट:
- गुजरात में वडोदरा, राजस्थान में कोटा, ओडिशा में भितरकनिका और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को भारत में मानव-मगरमच्छ संघर्ष का हॉटस्पॉट माना जाता है।
- संभावित समाधान:
- पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बनाए रखने में मगरमच्छों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए स्थानीय लोगों में मगरमच्छों के संभावित स्थानांतरण के साथ जागरूकता को बढ़ावा देना प्रजातियों के संरक्षण के लिये कुछ व्यवहार्य विकल्प हैं।
मगरमच्छ संरक्षण के प्रयास :
- ओडिशा सरकार द्वारा महानदी नदी बेसिन में घड़ियाल के संरक्षण के लिये 1,000 रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की है।
- वर्ष 1975 से मगरमच्छ संरक्षण परियोजना को विभिन्न राज्यों में शुरू किया गया था।
आगे की राह
- दक्षिण एशिया में सीमा पार सहयोग की अधिक संभावना है और इसकी आवश्यकता भी है।
- जहांँ भी जानवरों की सीमा पार आवाजाही हो वहांँ सूचनाओं का आदान-प्रदान होना चाहिये।
- उन जल निकायों में मगरमच्छ बहिष्करण बाड़े स्थापित किये जाने चाहिये जिनमें वे निवास करते हैं।
- उपद्रव करने वाले मगरमच्छों की पहचान की जानी चाहिये और 'मगरमच्छ दस्ते' को प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें पकड़ा जाना चाहिये। बड़े और समस्याग्रस्त (उपद्रव) मगरमच्छों को पकड़ने तथा स्थानांतरित करने के लिये एक उचित गाइडलाइन तैयार कि जानी चाहिये।
- देश में मगरमच्छों की आबादी की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिये एक उचित सर्वेक्षण करने हेतु जनशक्ति, आधुनिक तकनीक और धन का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- यह जानवरों की जियो-टैगिंग के माध्यम से किया जा सकता है ताकि मानव-मगरमच्छ संघर्ष को रोकने के लिये उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके।