प्रिलिम्स फैक्ट: 12 अक्तूबर, 2021 | 12 Oct 2021
अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार, 2021
Nobel Prize for Economic Sciences, 2021
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 2021 के नोबेल पुरस्कार का आधा हिस्सा कनाडा में जन्मे डेविड कार्ड (David Card) को दिया गया है और दूसरा आधा हिस्सा इज़रायल-अमेरिकी जोशुआ डी एंग्रिस्ट (Joshua D Angrist) तथा डच-अमेरिकी गुइडो डब्ल्यू इम्बेन्स (Guido W Imbens) को संयुक्त रूप से दिया गया है।
- डेविड कार्ड को श्रम अर्थशास्त्र में उनके अनुभवजन्य योगदान के लिये सम्मानित किया गया है। जोशुआ डी एंग्रिस्ट और गुइडो डब्ल्यू इम्बेंस को "आकस्मिक संबंधों के विश्लेषण में उनके पद्धतिगत योगदान के लिये" पुरस्कृत किया गया।
- अर्थशास्त्र के क्षेत्र में वर्ष 2020 का नोबेल पुरस्कार पॉल आर मिलग्रोम (Paul R Milgrom) और रॉबर्ट बी विल्सन (Robert B Wilson) को "नीलामी सिद्धांत में सुधार तथा नए नीलामी प्रारूपों के आविष्कारों के लिये" प्रदान किया गया।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- स्थापना: अन्य नोबेल पुरस्कारों के विपरीत अर्थशास्त्र के लिये पुरस्कार को अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत में स्थापित नहीं किया गया था, बल्कि वर्ष1968 में उनकी स्मृति में स्वीडिश केंद्रीय बैंक द्वारा स्थापित किया गया था।
- योगदान:
- डेविड कार्ड: उन्होंने विश्लेषण किया है कि न्यूनतम मज़दूरी, आप्रवासन और शिक्षा श्रम बाज़ार को कैसे प्रभावित करते हैं।
- इस शोध के महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह था कि "न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने से यह ज़रूरी नहीं कि नौकरियाँ कम हों"।
- इससे यह भी समझ में आया कि "जो लोग किसी देश में पैदा हुए, वे नए आप्रवास से लाभान्वित हो सकते हैं, जबकि जो लोग पहले के समय में आप्रवासन कर चुके हैं, वे नकारात्मक रूप से प्रभावित होने का जोखिम उठा सकते हैं"।
- इसने श्रम बाज़ार में छात्रों के भविष्य को आकार देने में स्कूल में उपलब्ध संसाधनों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
- जोशुआ एंग्रिस्ट और गुइडो इम्बेंस: उन्हें शोध उपकरण में उनके "पद्धतिगत योगदान" के लिये पुरस्कृत किया गया था।
- उनके काम ने प्रदर्शित किया कि "प्राकृतिक अनुप्रयोगों से कारण और प्रभाव के बारे में सटीक निष्कर्ष कैसे निकाला जा सकता है"।
- डेविड कार्ड: उन्होंने विश्लेषण किया है कि न्यूनतम मज़दूरी, आप्रवासन और शिक्षा श्रम बाज़ार को कैसे प्रभावित करते हैं।
नोबेल पुरस्कार, 2021 |
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क्षेत्र |
प्राप्तकर्त्ता |
योगदान |
बेंजामिन लिस्ट और डेविड डब्ल्यू. सी. मैकमिलन |
अणुओं के निर्माण के लिये एक सरल और पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छतम विधि निर्मित करना, जिसका उपयोग दवाओं और कीटनाशकों (ऑर्गनोकैटलिसिस) सहित यौगिकों को बनाने के लिये किया जा सकता है। |
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‘स्युकुरो मनाबे’ (Syukuro Manabe), क्लॉस हेसलमैन (Klaus Hasselmann) और ‘जियोर्जियो पैरिसी’ (Giorgio Parisi) |
‘जटिल भौतिक प्रणालियों की समझ में अभूतपूर्व योगदान हेतु’ |
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‘डेविड जूलियस’ और ‘अर्डेम पटापाउटियन’ |
‘सोमाटोसेंसेशन’ यानी आँख, कान एवं त्वचा जैसे विशेष अंगों की देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता पर केंद्रित है। |
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मारिया रसा (Maria Ressa) और दिमित्री मुरातोव (Dmitry Muratov) |
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के उनके प्रयासों के लिये प्रदान किया गया जो लोकतंत्र और स्थायी शांति के लिये एक पूर्व शर्त है। |
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अब्दुलराजाक गुरनाह |
उपनिवेशवाद के प्रभावों और संस्कृतियों एवं महाद्वीपों के बीच की खाई में शरणार्थी के भाग्य हेतु अडिग और करुणामय पैठ के लिये। |
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अर्थशास्त्र |
डेविड कार्ड, जोशुआ डी एंग्रिस्ट और गुइडो डब्ल्यू इम्बेंस |
मज़दूरी, नौकरियों पर शोध |
डॉ. अब्दुल कादिर खान
Dr Abdul Qadeer Khan
हाल ही में पाकिस्तान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कादिर खान का निधन हो गया है। उन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने का श्रेय दिया जाता है। यह इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस कार्यक्रम ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार राज्य के मामले में भारत के बराबर ला दिया था।
- इसी वजह से उन्हें पाकिस्तान में देश के ‘परमाणु बम कार्यक्रम’ के जनक या ‘परमाणु नायक’ के रूप में जाना जाता है।
- हालाँकि पश्चिमी देशों द्वारा उन्हें ‘अब तक के सबसे बड़े परमाणु प्रसारक’ के रूप में संबोधित करते हुए उनकी आलोचना की जाती है।
प्रमुख बिंदु
- डॉ अब्दुल कादिर खान के विषय में:
- वर्ष 1975 में जर्मन-डच अनुवादक के रूप में एक यूरेनियम संवर्द्धन फैसिलिटी (हॉलैंड) में काम करने के दौरान अब्दुल कादिर खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी सेवाओं की पेशकश की थी, जो चाहते थे कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सफलतापूर्वक शुरू किया जाए।
- इसके पश्चात् उन्होंने पाकिस्तान के ‘सेंट्रीफ्यूज़’ हेतु पहला ब्लूप्रिंट प्रदान किया, जिससे देश में यूरेनियम संवर्द्धन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- वर्ष 1976 में वह ‘पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग’ के परमाणु हथियार प्रयास कार्यक्रम में शामिल हो गए।
- एक डच न्यायालय ने उन्हें चोरी के लिये भी दोषी ठहराया था।
- इसके अलावा उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया सहित कई देशों को परमाणु बम संबंधी सूचनाओं की तस्करी की थी।
- इसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर ‘हाउस अरेस्ट’ के रूप में रखा गया था।
- उनके योगदान के कारण ही वर्ष 1998 में पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था।
- पाकिस्तान द्वारा उन्हें ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ (ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस- पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान) और ‘मोहसिन-ए-पाकिस्तान’ (पाकिस्तान का हितैषी) की उपाधियों से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1975 में जर्मन-डच अनुवादक के रूप में एक यूरेनियम संवर्द्धन फैसिलिटी (हॉलैंड) में काम करने के दौरान अब्दुल कादिर खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी सेवाओं की पेशकश की थी, जो चाहते थे कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सफलतापूर्वक शुरू किया जाए।
- भारत के परमाणु परीक्षण और परमाणु सिद्धांत के विषय में:
- वर्ष 1965 में ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ में शामिल देशों के साथ भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग’ के समक्ष परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने हेतु कुछ सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा। इसमें शामिल हैं:
- परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध।
- गैर-परमाणु देशों के विरुद्ध परमाणु हथियारों के प्रयोग पर प्रतिबंध।
- गैर-परमाणु राज्यों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा।
- परमाणु परीक्षण पर परमाणु निरस्त्रीकरण प्रतिबंध।
- मई 1974 में भारत ने ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के कोड नेम के साथ पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
- वर्ष 1998 में पोखरण-II शृंखला के एक हिस्से के रूप में पाँच परमाणु परीक्षण किये गए।
- इन परीक्षणों को सामूहिक रूप से ‘ऑपरेशन शक्ति’ कहा जाता था।
- वर्ष 2003 में भारत ने 'नो फर्स्ट यूज़' के अपने परमाणु सिद्धांत को अपनाया यानी भारत अपने क्षेत्र पर परमाणु हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा।
- भारत के पास पिछले वर्ष की शुरुआत में 150 परमाणु हथियार थे, जो कि वर्ष 2021 की शुरुआत तक अनुमानतः 156 तक पहुँच गए हैं, जबकि पाकिस्तान के पास वर्तमान में 165 परमाणु हथियार हैं (SIPRI ईयरबुक 2021)।
- पाकिस्तान ने 'नो फर्स्ट यूज़' नीति को नहीं अपनाया है और इसके परमाणु सिद्धांत के विषय में बहुत कम जानकारी मौजूद है।
- वर्ष 1965 में ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ में शामिल देशों के साथ भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग’ के समक्ष परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने हेतु कुछ सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा। इसमें शामिल हैं: