शासन व्यवस्था
UGC : नया शैक्षणिक कैलेंडर
- 19 May 2020
- 17 min read
संदर्भ:
हाल ही में देश में COVID-19 महामारी और इसके नियंत्रण के लिये लागू लॉकडाउन के बीच अकादमिक नुकसान से बचने और छात्रों के हितों को देखते हुए ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (University Grants Commission- UGC) ने शैक्षणिक कैलेंडर में कुछ बदलाव किया है। UGC ने वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नए शैक्षणिक कैलेंडर के साथ सोशल डिस्टेंसिंग, ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन, वर्चुअल लैबोरेटरीज़ (Virtual Laboratories) आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिये हैं। साथ ही UGC ने भविष्य में ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिये अध्यापकों को ‘इनफॉर्मेशन व कम्युनिकेशन टूल्स’ (Information and Communication Tools- ICT) जैसी तकनीकों के लिये प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- UGC द्वारा वर्तमान में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को देखते हुए शैक्षणिक कैलेंडर और ऑनलाइन शिक्षा जैसे मुद्दों पर विचार करने हेतु दो विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया था।
- इन समितियों के सुझाव के आधार पर UGC द्वारा वर्तमान चुनौतियों से निपटने हेतु कई आवश्यक दिशा-निर्देशों जारी किये गए हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- UGC के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नए सत्र के लिये नामांकन की प्रक्रिया 1 अगस्त से 30 अगस्त, 2020 तक चलेगी, इसके आधार पर पहले समेस्टर की परीक्षाएँ जनवरी 2021 और दूसरे सेमेस्टर की परीक्षाएँ मई 2021 से प्रारंभ होंगी।
- लॉकडाउन के कारण हुए शैक्षणिक नुकसान की भरपाई के लिये संस्थान इस सत्र की बाकी कक्षाओं और अगले सत्र (2020-21) के लिये 6 डे वीक अर्थात् एक सप्ताह में 5 दिन के स्थान पर 6 दिन कक्षाओं का संचालन कर सकते हैं।
- जिन पाठ्यक्रमों में प्रयोगशाला और परीक्षणों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है उनमें ‘वर्चुअल लेबोरेटरीज़’ (Virtual Laboratories) के माध्यम से प्रयोग की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
- सभी संस्थानों में वर्चुअल कक्षाओं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा की व्यवस्था की जाए तथा सभी शिक्षकों को इनसे संबंधित तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान कराया जाए।
- छात्रों और शिक्षकों के बीच संवाद मज़बूत करने के लिये और छात्रों को नियमित रूप से मार्गदर्शन देने हेतु उचित प्रबंध किये जाने चाहिये।
- संस्थानों को ई-कंटेंट व ई-लैब एक्सपेरिमेंट्स तैयार कर उन्हें अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिये जिससे छात्र घर पर रहकर अध्ययन जारी रख सकें।
- एम. फिल. और पीएचडी से जुड़े छात्रों को अपना शोधकार्य पूरा करने के लिये 6 माह की अतिरिक्त छूट दी जा सकती है साथ ही इससे जुड़ी मौखिक परीक्षा (Viva-Voce) वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संपन्न कराई जा सकती है।
COVID-19 और शैक्षिक बदलाव:
- देश में COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण अन्य क्षेत्रों के साथ ही शिक्षा से जुड़ी गतिविधियों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा है।
- भारत में मार्च 2020 में COVID-19 के मामलों की शुरुआत तक देश के अधिकांश शिक्षण संस्थानों में आधे से अधिक पाठ्यक्रम पूरा किया जा चुका था, लॉकडाउन के बाद कई शिक्षण संस्थानों में ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षण कार्य जारी रखने का प्रयास किया गया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में विश्व में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा, ऐसे में हमें अपनी दैनिक गतिविधियों में इसी के अनुरूप परिवर्तन करने होंगे।
- इस महामारी के दौरान शिक्षण कार्यों को जारी रखने हेतु शिक्षा क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण बदलावों की आवश्यकता के साथ लोगों को शिक्षण पद्धति में नए प्रयोगों को शामिल करने और ई-लर्निंग के महत्त्व के बारे में पता चला है।
ऑनलाइन शिक्षा पद्धति के महत्त्व और संभावनाएँ:
- तकनीकी को बढ़ावा:
- हाल ही में ‘केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development- MHRD) द्वारा संचालित एक कार्यक्रम के तहत कुछ उपकरणों का निर्माण किया गया जिससे दृष्टि-बाधित छात्र भी आसानी से प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल कर सकें।
- केंद्र सरकार द्वारा जारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में एक अध्याय शिक्षा में ‘सूचना और संचार उपकरण’ (Information and Communication Tools- ICT) के उपयोग को बढ़ाने पर विस्तृत चर्चा की गई है।
- वर्ष 2019 में MHRD और NIOS के सहयोग से संचालित वीडियो कॉन्फ्रेंस कार्यक्रम के माध्यम से 14 लाख प्राथमिक शिक्षकों का प्रशिक्षण पूरा किया गया था।
- शिक्षा की पहुँच में विस्तार:
- पिछले कुछ वर्षों में ‘पढ़े भारत, बढ़े भारत’ योजना के तहत ‘राष्ट्रीय डिज़िटल लाइब्रेरी’ की शुरुआत की गई और ऐसे ही ‘मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़’ (Massive Open Online Courses- MOOCs) जैसे मंचों से बड़ी मात्रा में ऑनलाइन कोर्सेस उपलब्ध कराए गए हैं।
- देश के कई बड़े संस्थानों ने अब अपने पाठ्यक्रमों पर ऑनलाइन अध्ययन सामग्री का निर्माण करना प्रारंभ किया है जिससे उनसे जुड़े छात्रों के साथ अन्य संस्थानों के छात्र भी इसका लाभ उठा सकें।
- ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देकर ऐसे लोगों को आसानी से शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकती है जो किन्हीं कारणों से अपनी शिक्षा नहीं पूरी कर पाए हों।
- ऑनलाइन शिक्षा कुछ ही छात्रों के लिये सीमित नहीं है अर्थात् इसके माध्यम से एक ही समय में अधिक से अधिक छात्रों को जोड़ा जा सकता है, साथ ही ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से देश दूरस्थ हिस्सों में स्थित ग्रामीण इलाकों तक भी गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
- ऑनलाइन शिक्षा की स्वीकार्यता:
- इससे पहले भी देश में ‘इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी’ (IGNOU) और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (The National Institute of Open Schooling- NIOS) तथा कई अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के द्वारा दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के कई सफल प्रयास किये गए हैं।
- ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में शिक्षा के चार आधारों (‘पढ़ना, लिखना, सुनना और बोलना’) को शामिल किया जाता है, अतः यह अन्य दूरस्थ शिक्षा पद्धतियों से अधिक प्रभावी है।
- पिछले कुछ वर्षों में देश में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचलन बढ़ने और इसकी उपयोगिता को देखते हुए छात्रों, नियोक्ताओं और अन्य हितधारकों में ऑनलाइन शिक्षा की स्वीकार्यता बढ़ी है।
चुनौतियाँ:
- संस्थानों की चुनौतियाँ:
- COVID-19 से पहले देश के अधिकांश संस्थानों को ऑनलाइन शिक्षा का अधिक अनुभव नहीं रहा है, ऐसे में संस्थानों के लिये शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए कम समय में ऑनलाइन सामग्री उपलब्ध कराना और ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ना एक चुनौती है।
- COVID-19 के कारण वार्षिक परीक्षाओं और नए छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया प्रभावित हुई है, वर्तमान में बहुत से विषयों में छात्रों के मूल्यांकन के संदर्भ में UGC के नियमों स्पष्टता की कमी के कारण संस्थानों पर दबाव बढ़ेगा।
- प्रयोगशालाओं और तकनीकी परीक्षणों पर आधारित शिक्षा के संदर्भ में वर्तमान में ऑनलाइन शिक्षा की अपनी सीमाएँ है।
- किसी भी परीक्षा में आँकड़ों या तथ्यों के ज्ञान के अतिरिक्त छात्रों को कई अन्य मानकों पर परखा जाता है ऐसे में इतने कम समय में ऑनलाइन परीक्षाओं के लिये परीक्षा की प्रकृति और मानकों का निर्धारण बहुत कठिन होगा।
- शिक्षकों की चुनौतियाँ:
- COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों से पहले बहुत शिक्षकों को ऑनलाइन शिक्षा का अनुभव नहीं रहा है ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम का निर्धारण और उसके अनुरूप अध्ययन सामग्री का निर्माण की समस्या आदि से शिक्षकों पर दबाव बढ़ेगा।
- बिना किसी विशेष तकनीकी प्रशिक्षण के ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन के अतिरिक्त शिक्षकों को ऑनलाइन माध्यम के लिये नियमित क्लास टेस्ट के प्रारूप, मूल्यांकन आदि में भी बदलाव करने होंगे।
- छात्रों की चुनौतियाँ:
- COVID-19 के कारण शिक्षण, वार्षिक परीक्षाओं और नई कक्षाओं में दाखिले में विलंब से लेकर रोज़गार के अवसरों में आई गिरावट से छात्रों की समस्याएँ अधिक बढ़ गई हैं।
- भारत में सामान्यतः मार्च से लेकर अगस्त तक के महीने छात्रों के भविष्य के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं, COVID-19 के कारण बहुत सी परीक्षाओं के परिणामों में देरी के कारण छात्रों को नई कक्षाओं में दाखिले या रोज़गार प्राप्त करने में समस्याएँ हो सकती हैं।
- वर्तमान में देश के कई हिस्सों में तेज़ इंटरनेट की पहुँच नहीं है या बहुत से छात्रों के लिये अधिक इंटरनेट डेटा का खर्च वहन कर पाना संभव नहीं होगा, अतः ऐसे छात्रों के लिये ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ना एक बड़ी चुनौती होगी।
- इंटरनेट पर कई विशेष पाठ्यक्रमों या क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ी अध्ययन सामग्री की कमी होने से छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
समाधान:
- वर्तमान में पूरे देश में विभिन्न पाठ्यक्रमों की वार्षिक परीक्षाओं और नए पाठ्यक्रमों में दाखिले की तिथियों के बीच समन्वय हेतु केंद्र व राज्य सरकारों को परस्पर सहयोग में बढ़ावा देना चाहिये।
- टेलीविज़न और रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से देश के दूरस्थ भागों में स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में भी लॉकडाउन के दौरान शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
- केंद्र सरकार, NIOS और शिक्षा से जुड़े अन्य संस्थानों के सहयोग से संचालित वेब पोर्टल और अन्य कार्यक्रमों जैसे- दीक्षा पोर्टल, स्वयं (SWAYAM), स्वयं प्रभा (SWAYAM Prabha), ई-पाठशाला (ePathshala), नेशनल रिपोजिटरी ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज़ (NROER) और वर्चुअल लैब (Virtual Lab) आदि के माध्यमों से गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है।
- केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच को मज़बूत बनाने के लिये वर्ष 2022 तक देश के 90% क्षेत्रों में हाई-स्पीड मोबाईल इंटरनेट और आगे चलकर भारतनेट योजना के माध्यम से अधिक-से-अधिक क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट की पहुँच सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है।
- भारत का भौगोलिक विस्तार और बड़ी जनसंख्या के कारण सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करना लंबे समय से एक बड़ी चुनौती बनी हुई, अतः वर्तमान परिस्थिति से सीख लेते हुए भविष्य में इंटरनेट, मोबाईल एप और अन्य नवाचारों के माध्यम से शिक्षा की पहुँच में विस्तार को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
निष्कर्ष: भारत में COVID-19 महामारी का प्रभाव अन्य क्षेत्रों के साथ शिक्षा क्षेत्र पर भी देखने को मिला है। इस महामारी ने शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को शिक्षण माध्यमों के नए विकल्पों और संसाधनों पर विचार करने पर विवश किया है। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय शिक्षा का मूल ढाँचा बहुत सीमा तक अपरिवर्तित रहा है और पिछले कुछ वर्षों में देश के विभिन्न भागों में कुशल अध्यापकों की भारी कमी भी देखी गई है। पूर्व में भी दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से शिक्षा की पहुँच को बढ़ाने का प्रयास किया गया है और पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन शिक्षा में भी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। अतः इन सभी विकल्पों और संसाधनों का उपयोग कर दूरस्थ शिक्षा का एक मज़बूत आधार स्थापित किया जा सकता है जिससे भविष्य में सभी के लिये कम लागत में भी शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय शिक्षा प्रणाली में अपेक्षित सुधारों और इसके विस्तार में ई-शिक्षा की भूमिका को रेखांकित करते हुए वर्तमान में देश में ई-शिक्षा से जुड़ी चुनौतियों और इसके समाधानों पर चर्चा कीजिये।