पर्सपेक्टिव: संयुक्त राष्ट्र सुधारों की आवश्यकता | 10 Nov 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, UNSC, UNGA। मेन्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र सुधार और भारत |
प्रसंग:
वर्ष 1948 के बाद से प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र दिवस (United Nations Day) मनाया जाता है। यह दिवस वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अस्तित्व में आने की स्मृति को चिह्नित करता है। वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने वैश्विक समुदाय को संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के बारे में सूचित करने, वैश्विक सहयोग, शांति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति अपने समर्पण को मज़बूत करने के लिये इस तिथि को नामित किया था।
संयुक्त राष्ट्र, विशेषकर बढ़ती वैश्विक चुनौतियों का सामना कर एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिये राष्ट्रों को एकजुट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हालाँकि जैसे-जैसे दुनिया 21वीं सदी तक विकसित होती गई संयुक्त राष्ट्र की संरचना, निर्णयन प्रक्रिया और प्रभावशीलता जाँच के दायरे में आ गई है। नतीजतन एक बहुपक्षीय संगठन के रूप में इसकी प्रभावशीलता, पारदर्शिता तथा विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुधार अनिवार्य है।
संयुक्त राष्ट्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- संयुक्त राष्ट्र का गठन (1945):
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापना:
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र की नींव रखने के लिये वर्ष 1944 में डमबार्टन ऑक्स (Dumbarton Oaks) सम्मेलन बुलाया और 26 जून, 1945 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे आधिकारिक तौर पर संगठन की स्थापना हुई, इसके लागू होने के साथ ही वर्ष 1945 में 24 अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में मनाया गया।
- संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांत:
- सामूहिक सुरक्षा:
- संयुक्त राष्ट्र ने चार्टर के अनुसार, कूटनीति, अर्थशास्त्र या सैन्य कार्रवाई के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति के खतरों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिये सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित की।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
- UNSC की स्थापना इसके P5 सदस्यों के पास वीटो शक्तियों के साथ सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत को लागू करने के लिये केंद्रीय अंग के रूप में की गई, जो वैश्विक सुरक्षा में प्रमुख शक्तियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करती है।
- निरस्त्रीकरण:
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर, तंत्र और समझौतों के माध्यम से वैश्विक संघर्ष के जोखिमों को कम करने के लिये निरस्त्रीकरण तथा हथियार नियंत्रण को प्राथमिकता देता है।
- शांति स्थापना:
- संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन संघर्षरत क्षेत्रों में तैनाती, युद्धविराम को दृढ़ता से लागू करने, नागरिकों की सुरक्षा और शांति वार्ता में सहायता करके शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं।
- सामूहिक सुरक्षा:
- हालाँकि संयुक्त राष्ट्र को वर्षों से चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन इसके मूलभूत सिद्धांत समकालीन वैश्विक संघर्षों और संकटों को संबोधित करने में वर्तमान में भी प्रासंगिक बने हुए हैं।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापना:
- संयुक्त राष्ट्र की संरचना:
- महासभा (GA):
- महासभा संयुक्त राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह विचार-विमर्श, नीति-निर्धारण जैसे कार्यों के लिये उत्तरदायी है। महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व है।
- GA विकास लक्ष्यों से लेकर बजटीय मामलों तक विभिन्न वैश्विक मुद्दों को संबोधित करती है और राजनयिक चर्चाओं तथा समाधानों के लिये एक मंच प्रदान करती है।
- सुरक्षा परिषद:
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा इसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
- सुरक्षा परिषद पंद्रह सदस्य राज्यों से मिलकर बनी है, जिसमें पाँच स्थायी सदस्य हैं- चीन, फ्राँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष के लिये क्षेत्रीय आधार पर चुने जाते हैं।
- विशिष्ट एजेंसियाँ:
- महासभा (GA):
संयुक्त राष्ट्र का महत्त्व:
- वैश्विक चुनौतियों को संबोधित करना:
- शांति स्थापना और संघर्ष समाधान:
- संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के माध्यम से वैश्विक शांति बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है, यह संघर्ष क्षेत्रों में सैनिकों और मध्यस्थों को तैनाती, वार्ता की सुविधा प्रदान करता है और हिंसा को रोकता है।
- मानवीय सहायता और विकास कार्यक्रम:
- संयुक्त राष्ट्र प्राकृतिक आपदाओं और सशस्त्र संघर्षों सहित संकटों से प्रभावित समुदायों को महत्त्वपूर्ण मानवीय सहायता प्रदान करता है।
- पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन पहल:
- संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करता है, पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में प्रयास का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
- शांति स्थापना और संघर्ष समाधान:
- संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDGs):
- सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा:
- संयुक्त राष्ट्र का 2030 एजेंडा, जिसमें 17 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) शामिल हैं, समावेशिता और स्थिरता पर केंद्रित एक विश्वव्यापी विकास ढाँचा स्थापित करता है।
- SDG हासिल करने में प्रगति और चुनौतियाँ:
- संयुक्त राष्ट्र SDG की दिशा में प्रगति पर नज़र रखने में केंद्रीय भूमिका निभाता है। संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक रिपोर्ट सदस्य देशों की प्रगति और सामना की जाने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन करती है।
- सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा:
संयुक्त राष्ट्र संरचना में सुधार की आवश्यकता:
- पुरानी संरचना और निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ:
- P5 और शक्ति का असंतुलन:
- पाँच स्थायी सदस्यों (P5) के पास वीटो शक्ति है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को दर्शाती है।
- समकालीन वैश्विक शक्ति की गतिशीलता को प्रतिबिंबित करने के लिये इस क्षेत्र में सुधार आवश्यक है।
- वीटो शक्ति को सीमित करने या सुधार के प्रस्तावों पर चर्चा की गई है लेकिन अभी तक लागू नहीं किया गया है।
- प्रतिनिधित्व और समावेशिता का अभाव:
- संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाले निकायों को अधिक प्रतिनिधिक होने की आवश्यकता है, कई देशों, विशेष रूप से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का वैश्विक नीतियों को आकार देने में प्रभावी ढंग से अपनी आवाज़ उठाने तथा पर्याप्त प्रभाव की कमी है।
- P5 और शक्ति का असंतुलन:
- अप्रभावी और अकुशलता:
- नौकरशाही और लालफीताशाही:
- संयुक्त राष्ट्र की नौकरशाही संरचनाएँ और जटिल निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ वैश्विक चुनौतियों पर प्रतिक्रिया को धीमा कर सकती हैं।
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और लालफीताशाही को कम करने से संगठन को अधिक कुशल तथा उत्तरदायी बनाने में मदद मिलेगी।
- विशिष्ट एजेंसियों के बीच प्रयासों का दोहराव:
- संयुक्त राष्ट्र में अनेक विशिष्ट एजेंसियाँ हैं, प्रत्येक के पास अपने-अपने अधिदेश और संसाधन हैं।
- प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये दोहराव को खत्म करने और सहयोग में सुधार हेतु इन एजेंसियों के कार्यों के बीच समन्वय स्थापित करना आवश्यक है।
- नौकरशाही और लालफीताशाही:
- वित्तीय स्थिरता:
- वित्तीय बाधाएँ और बकाया भुगतान:
- संयुक्त राष्ट्र को अक्सर वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ता है, जिसमें सदस्य देश अपने योगदान का तुरंत मूल्यांकन कर भुगतान करने में विफल रहते हैं।
- सुधारों के लिये सदस्य राज्यों से समय पर वित्तीय योगदान सुनिश्चित करने और बकाया राशि को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- वित्तीय बोझ का न्यायसंगत वितरण:
- संयुक्त राष्ट्र बजट में वित्तीय योगदान के आकलन के फॉर्मूले का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में यह काफी हद तक देश की सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है, जिसमें योगदान की एक सीमा होती है। कुछ लोगों का तर्क है कि यह प्रणाली देशों के बीच वित्तीय बोझ को उचित रूप से वितरित नहीं करती है, जिससे असंतुलन की स्थिति पैदा होती है।
- वित्तीय बाधाएँ और बकाया भुगतान:
- इस प्रकार यह अपनी पुरानी संरचना को संबोधित करके प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करके संयुक्त राष्ट्र एक अधिक प्रभावी तथा समावेशी वैश्विक संस्था बन सकता है जो शांति, सुरक्षा एवं विकास को बढ़ावा देने के अपने मिशन को बेहतर ढंग से पूरा करता है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार के प्रस्ताव:
- UNSC में सुधार:
- स्थायी सदस्यता का विस्तार:
- सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये एक प्रमुख प्रस्ताव, स्थायी सदस्यों की संख्या को मौजूदा P5 से बढ़ाना है।
- इस विस्तार से समकालीन शक्ति गतिशीलता का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा और इसमें भारत, ब्राज़ील, जर्मनी तथा जापान जैसे देश शामिल होंगे।
- वीटो शक्ति को समाप्त करना या सीमित करना:
- कई लोग P5 के पास मौजूद वीटो शक्ति को खत्म करने या इसमें सुधार करने का तर्क देते हैं।
- वीटो शक्ति को सीमित करने से इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि परिषद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सर्वोत्तम हित में कार्य करेगी।
- वैश्विक दक्षिण का समावेशी प्रतिनिधित्व:
- सुरक्षा परिषद में अस्थायी सीटों की संख्या बढ़ाना, विशेष रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के देशों के लिये एक और प्रस्ताव है।
- यह ग्लोबल साउथ के कम प्रतिनिधित्व के लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को संबोधित करेगा और महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अधिक प्रभावी ढंग से अपनी बात को रख सकेगा।
- स्थायी सदस्यता का विस्तार:
- नौकरशाही और निर्णयन क्षमता में सुधार:
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अक्षमताओं को कम करना:
- संयुक्त राष्ट्र की प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और नौकरशाही की जटिलताओं को कम करने से इसकी दक्षता में काफी सुधार हो सकता है।
- जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाना:
- संगठन के भीतर अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- ऑडिटिंग और निरीक्षण के लिये तंत्र विकसित करने के साथ-साथ पारदर्शिता की संस्कृति को बढ़ावा देने से संयुक्त राष्ट्र में विश्वास फिर से हासिल करने में मदद मिल सकती है।
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अक्षमताओं को कम करना:
- वित्तीय स्थिरता को सुदृढ़ करना:
- वित्तीय योगदान का उचित और न्यायसंगत वितरण:
- वर्तमान प्रणाली की असमानताओं के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिये वित्तीय योगदान के आकलन हेतु संशोधित करना आवश्यक है।
- GDP, जनसंख्या और विकास संकेतकों जैसे कारकों के आधार पर अधिक न्यायसंगत वितरण की ओर बढ़ने से सदस्य राज्यों के बीच वित्तीय बोझ का उचित बँटवारा सुनिश्चित हो सकता है।
- बकाया और राजकोषीय बाधाओं को संबोधित करना:
- बकाया और राजकोषीय बाधाओं से निपटने के लिये मूल्यांकन किये गए योगदान के शीघ्र भुगतान को प्रोत्साहित करने हेतु तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
- बकाया राशि वाले देशों के लिये प्रतिबंध या ज़ुर्माने का प्रावधान किया जा सकता है।
- वित्तीय योगदान का उचित और न्यायसंगत वितरण:
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार एक जटिल और दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जिसके लिये इसके सदस्य देशों के बीच सर्वसम्मति की आवश्यकता होती है। हालाँकि इन प्रस्तावों को लागू करने से कुछ सबसे गंभीर मुद्दों का समाधान हो सकता है और संगठन को अधिक प्रभावी, पारदर्शी तथा समावेशी बनाया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार संबंधी राजनीतिक चुनौतियाँ:
- वर्तमान स्थायी सदस्यों का विरोध:
- वीटो शक्ति संपन्न देश सत्ता छोड़ने को अनिच्छुक:
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिये प्राथमिक राजनीतिक चुनौतियों में से एक वर्तमान स्थायी सदस्यों (P5) की अपनी शक्ति को छोड़ने या इसमें कमी करने के प्रति अनिच्छा।
- वे अक्सर प्रभाव खोने के डर से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करने या वीटो प्रणाली में सुधार करने के प्रयासों का विरोध करते हैं।
- स्थायी सदस्यों के बीच आम सहमति की आवश्यकता:
- संयुक्त राष्ट्र में किसी भी महत्त्वपूर्ण सुधार, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद और वीटो शक्ति से संबंधित सुधारों के लिये P5 देशों के बीच सर्वसम्मत सहमति की आवश्यकता होती है।
- इन प्रमुख शक्तियों के बीच आम सहमति हासिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि उनके हित और प्राथमिकताएँ अक्सर अलग-अलग होती हैं।
- वीटो शक्ति संपन्न देश सत्ता छोड़ने को अनिच्छुक:
- भू-राजनीतिक तनाव:
- संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रयासों पर वैश्विक संघर्षों का प्रभाव:
- प्रमुख शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक संघर्ष और तनाव संयुक्त राष्ट्र के सुधार प्रयासों को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिये रूस और पश्चिमी देशों के बीच विवाद जैसे कि यूक्रेन या सीरिया से संबंधित विवाद, व्यापक सुधार मुद्दों पर सहयोग में बाधा बन सकते हैं।
- ये संघर्ष विचारों और संसाधनों को सुधार एजेंडे से दूर ले जाते हैं, जिससे एक सर्वसम्मत हल खोजना मुश्किल हो जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे को प्रभावित करने में क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका:
- क्षेत्रीय शक्तियाँ, सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों वाली और बिना स्थायी सीटों वाली, दोनों ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे और सुधार प्रयासों को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- ये देश अक्सर ऐसे सुधारों का समर्थन करते हैं जो उनके क्षेत्रीय हितों और प्राथमिकताओं के अनुरूप हों। इससे संयुक्त राष्ट्र के भीतर प्रतिस्पर्द्धी एजेंडे तथा वार्ताओं को लेकर जटिलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार कर सार्थक प्रगति के लिये इन राजनीतिक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रयासों पर वैश्विक संघर्षों का प्रभाव:
संयुक्त राष्ट्र सुधार में भारत की भूमिका:
- भारत का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भारत का संयुक्त राष्ट्र के साथ एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक जुड़ाव है। यह वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक था और इसने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रारूपण में सक्रिय भूमिका निभाई।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों, मानवीय सहायता कार्यक्रमों और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में योगदान के माध्यम से वैश्विक शांति, सुरक्षा तथा विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लगातार प्रदर्शित किया है।
- सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का समर्थन:
- भारत समकालीन भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने के लिये UNSC में सुधार का मुखर समर्थक रहा है।
- यह सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट चाहता है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इस तरह का कदम परिषद को 21वीं सदी की ज़रूरतों के प्रति अधिक प्रतिनिधिक और उत्तरदायी बना देगा।
- भारत का दावा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक के रूप में उसकी स्थिति और उसके बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर आधारित है।
- भारत समकालीन भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने के लिये UNSC में सुधार का मुखर समर्थक रहा है।
- समावेशी विश्व व्यवस्था के महत्त्व पर ज़ोर देना:
- भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र के भीतर अधिक समावेशी विश्व व्यवस्था का समर्थन करता है। इसका तर्क है कि संगठन को उभरती अर्थव्यवस्थाओं और क्षेत्रीय शक्तियों के बढ़ते प्रभाव को प्रतिबिंबित करने के लिये विकसित होना चाहिये।
- सुधार के लिये भारत का आह्वान संयुक्त राष्ट्र की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को लोकतांत्रिक बनाने और उन्हें अधिक न्यायसंगत तथा प्रतिनिधिक बनाने के व्यापक सिद्धांतों के अनुरूप है।
21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता:
- समसामयिक संकटों पर वैश्विक प्रतिक्रिया:
- कोविड-19 महामारी प्रतिक्रिया:
- कोविड-19 महामारी वैश्विक संकटों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसी अपनी विशेष एजेंसियों के माध्यम से महामारी के प्रति अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं के समन्वय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसने राष्ट्रों के बीच सूचना, संसाधनों और विशेषज्ञता को साझा करने की सुविधा प्रदान की तथा टीकों के विकास एवं वितरण के लिये एक मंच प्रदान किया।
- मानवीय सहायता में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका:
- संयुक्त राष्ट्र संघर्षों, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य आपात स्थितियों से प्रभावित लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने में प्राथमिक अभिनेता के रूप में बना हुआ है।
- संसाधन जुटाने, राहत प्रयासों का समन्वय और कमज़ोर आबादी का समर्थन करने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता मानवीय संकटों से निपटने में इसके स्थायी महत्त्व को रेखांकित करती है।
- कोविड-19 महामारी प्रतिक्रिया:
- भविष्य की ओर उन्मुख:
- उभरती चुनौतियों को अपनाना:
- 21वीं सदी जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा खतरों और आर्थिक असमानता सहित जटिल चुनौतियों की एक शृंखला प्रस्तुत करती है।
- अपनी संयोजक शक्ति, कूटनीतिक भूमिका और अपूर्णताओं के बावजूद एजेंसियों के विशाल नेटवर्क को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की बहुमुखी मुद्दों को संबोधित करने के लिये विशिष्ट भूमिका है।
- सुधारों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र को सशक्त बनाना:
- सुधारों को लागू करने से वैश्विक चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
- नौकरशाही को सुव्यवस्थित करने, अक्षमताओं को कम करने और अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से संयुक्त राष्ट्र की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सुधार हो सकता है।
- उभरती चुनौतियों को अपनाना:
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र समसामयिक संकटों और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करता है। हालाँकि इसमें सुधार किये जाने की आवश्यकता है, वैश्विक शासन, मानवीय सहायता और संकट प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र की निरंतर भूमिका इसके स्थायी महत्त्व को दर्शाती है।
चूँकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय जटिल वैश्विक मुद्दों से जूझ रहा है, संयुक्त राष्ट्र मानवता की भलाई के लिये सहयोग, संवाद और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने में सक्षम एक आवश्यक संस्था के रूप में है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ‘‘संयुक्त राष्ट्र प्रत्यय समिति (यूनाईटेड नेशंस क्रेडेंशियल्स कमिटी)’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? केवल 3 उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के प्रमुख कार्य क्या हैं? इससे साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (2017) |