राष्ट्रीय अवसंरचना परियोजनाएँ | 02 Sep 2020
चर्चा में क्यों?
हाल में भारतीय प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से देश को संबोधित करते हुए अन्य कई क्षेत्रों के साथ देश के अवसंरचना क्षेत्र से जुड़ी महत्त्वपूर्ण घोषणा की है। वर्तमान में COVID-19 महामारी के बीच इस प्रकार की घोषणा का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। प्रधानमंत्री ने देश को तेज़ी से आधुनिकता की तरफ ले जाने के लिये समग्र बुनियादी ढाँचे के विकास को एक नई दिशा प्रदान करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। प्रधानमंत्री के अनुसार, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन' (National Infrastructure Pipeline- NIP) के तहत देश में अवसंरचना विकास पर 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- प्रधानमंत्री ने देश में बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ योजना के महत्त्व को रेखांकित किया।
- देश में अवसंरचना विकास के क्षेत्र में तीव्र सुधार हेतु विभिन्न क्षेत्रों से 7000 परियोजनाओं को चिन्हित किया गया है।
- इस योजना के लिये सरकार द्वारा लगभग 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश का अनुमान है।
- एक अनुमान के अनुसार, भारत में औद्योगिक क्षेत्र में परिवहन पर होने वाला खर्च अन्य देशों की तुलना में दोगुना (लगभग 13%) है।
‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन'
(National Infrastructure Pipeline- NIP):
- 15 अगस्त, 2019 को प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने के लक्ष्य के तहत अगले पाँच वर्षों में अवसंरचना क्षेत्र में 100 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की थी।
- इस योजना के क्रियान्वयन हेतु केंद्रीय सचिव (आर्थिक कार्य विभाग) की अध्यक्षता में एक कार्य बल/टास्क फोर्स (Task Force) का गठन किया गया था।
- इस टास्क फोर्स में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के साथ विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों को भी शामिल किया गया था।
- इस टास्क फोर्स ने अप्रैल 2020 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के समक्ष अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। गौरतलब है कि इस टास्क फोर्स ने दिसंबर 2019 में एक सारांश रिपोर्ट जारी की थी।
- केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार, इस योजना के क्रियान्वयन में निजी क्षेत्र से लगभग 21% सहयोग और शेष निवेश में केंद्र राज्य तथा सरकारों की बराबर भागीदारी होगी।
प्रमुख तथ्य:
- इस रिपोर्ट में अलग-अलग क्षेत्रों की प्राथमिकताओं और उनकी चुनौतियों की पहचान की गई तथा इसके समाधान के लिये एक रूप रेखा तैयार की गई।
- रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना की तहत निर्धारित लगभग 70% पूंजीगत व्यय में से ऊर्जा (24%), शहरी नियोजन (17%), रेलवे (12%) और सड़क (18%) जैसे क्षेत्रों के विकास के लिये आवश्यक होगा।
- इसके तहत में 100 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली सभी ग्रीनफील्ड या ब्राउनफील्ड परियोजनाओं को शामिल किया जाएगा।
- टास्क फोर्स द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, कुल अपेक्षित पूंजीगत व्यय (लगभग 111 लाख करोड़)में से 44 लाख करोड़ रुपए (एनआईपी का 40%) की लागत की परियोजनाओं पर कार्य प्रारंभ हो चुका है।
- वर्तमान में लगभग 33 लाख करोड़ रुपए (30%) की परियोजनाएँ परिकल्पना के स्तर पर हैं और 22 लाख करोड़ रुपए (20%) की लागत वाली परियोजनाएँ विकास के चरण में हैं।
सुझाव:
- परियोजना को तैयार करने की प्रक्रियाओं में सुधार।
- निजी क्षेत्र की की भागीदारी और क्षमता विकास के अवसरों को बढ़ावा देना।
- बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की योजना बनाने और बेहतर क्रियान्वयन के लिये सार्वजनिक संस्थानों की क्षमता बढ़ाना।
- प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना।
- दीर्घकालिक वित्तपोषण।
- परियोजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन में पारदर्शिता।
- प्रभावी विवाद निस्तारण।
इस रिपोर्ट में अलग-अलग उद्देश्यों के लिये तीन समितियों के गठन का भी सुझाव दिया है-
- निगरानी: NIP की प्रगति की निगरानी और विलंब को दूर करने हेतु समिति का गठन।
- क्रियान्वयन की समीक्षा: परियोजना में क्रियान्वयन की समीक्षा हेतु प्रत्येक अवसंरचना के लिये मंत्रालय स्तर पर एक संचालन समिति।
- वित्तीय संसाधन जुटाने हेतु: NIP के लिये वित्तीय संसाधन जुटाने हेतु आर्थिक मामलों के विभाग’ (Department of Economic Affairs- DEA) के अंतर्गत एक संचालन समिति का गठन।
अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में अवसंरचना परियोजनाओं की भूमिका:
- पिछले कई वर्षों में यह देखा गया है कि अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में अवसंरचना परियोजनाएँ बहुत ही सहायक रही हैं। उदाहरण के लिये ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’ (Golden Quadrilateral Highway Program) की शुरुआत के दौरान भी देश की आर्थिक स्थिति बहुत ठीक नहीं थी।
- अवसंरचना परियोजनाओं से सीमेंट, लोहा आदि की मांग बढ़ने के साथ बड़ी मात्रा में रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
चुनौतियाँ:
- वित्तीय चुनौतियाँ: हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं के लंबित अथवा स्थगित होने के कारण अधिकांश बैंक ऐसी परियोजनाओं के लिये ऋण उपलब्ध कराने से बचते रहें हैं। वर्तमान परिस्थिति में अधिक लागत वाली बड़ी परियोजनाओं को शुरू करना और उनके लिये धन जुटाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
- भूमि अधिग्रहण: अवसंरचना क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण एक बड़ी बाधा रही है।
- मंजूरी और विवाद निवारण की प्रक्रिया: परियोजनाओं की मंज़ूरी मिलने में देरी या धीमी विवाद निवारण प्रणाली के कारण लंबे समय तक परियोजना का स्थगित होना अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। उदाहरण के लिये- दिल्ली हवाई अड्डे के टी-3 टर्मिनल के नवीनीकरण पर निर्णय लेने में साथ वर्ष का समय लगा जबकि इसके नवीनीकरण मात्र 39 माह में ही पूरा हो गया।
- अनुबंध की अनिश्चितता: इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की अधिकांश बड़ी परियोजनाओं को पूरा होने में काफी समय लग जाता है परंतु इस दौरान सरकारों के बदलने या अन्य कारणों से अनुबंध के पार्टी सरकार की नीतियों में बदलाव निजी क्षेत्र की भागीदारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अवसर और समाधान:
- वर्तमान में COVID-19 महामारी के बाद स्थितियों के सामान्य होने के साथ शहरी क्षेत्रों में कामगारों के रहने हेतु कम लागत वाले घरों की मांग बढ़ेगी, जो अवसंरचना क्षेत्र की कंपनियों के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करेगा।
- जनसंख्या वृद्धि के साथ ही सार्वजनिक परिवहन तंत्र को मज़बूत करने, परिवहन को वहनीय बनाने और प्रदूषण जैसे मुद्दों को देखते हुए इलेक्ट्रिक परिवहन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
- वर्तमान में देश के अधिकांश बड़े शहर नदियों के किनारे बसे हुए हैं और इन शहरों के विकास में नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है परंतु औद्योगिक विकास के साथ-साथ इनमें प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ गया है।
- COVID-19 महामारी के दौरान नदियों के प्रदूषण में आई गिरावट से सीख लेते हुए नदियों और प्राकृतिक जल प्रणाली के जीर्णोद्धार और भविष्य में शहरी नियोजन में बढती जनसंख्या, पर्यावरण आदि पहलुओं पर विशेष ध्यान देना होगा।
परियोजनाओं का चुनाव:
- COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला पर पड़े नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये जो कम समय में पूरी की जा सकें, जिससे अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने में सहायता प्राप्त हो सके।
- अधिक लागत और समय में पूरी होने वाले बड़ी परियोजनाओं को राष्ट्रीय अवसंरचना विकास के दूसरे चरण में शामिल किया जा सकता है।
विकास वित्तीय संस्थान की स्थापना:
(Development Finance Institution- DFI)
- इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से आर्थिक लाभ प्राप्त करने में काफी समय लग जाता है, ऐसे में लंबी अवधि के ऋण के अभाव में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिये वित्तीय चुनौतियाँ और ‘गैर निष्पादित संपत्तियों’ के मामलों में वृद्धि जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं।
- सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं के लिये एक विशेष ‘विकास वित्तीय संस्थान’ की स्थापना का प्रयास करना चाहिये, जो ऐसी परियोजनाओं के लिये एक निर्धारित ब्याज दर पर 20-25 वर्षों का ऋण प्रदान कर सके।
- विकास वित्तीय संस्थानों की स्थापना से इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं के लिये कंपनियों को बैंकों के पास नहीं जाना पड़ेगा और NPA की समस्या को भी कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
- उदाहरण के लिये दिल्ली मेट्रो और बुलेट ट्रेन जैसी बड़ी परियोजनाओं को इसी लिये शुरू किया जा सका था क्योंकि इनके लिये जापान से लंबी अवधि का ऋण उपलब्ध कराया गया था।
लंबित परियोजनाओं पर विशेष ध्यान:
- वर्तमान में देश में एक बड़ी संख्या ऐसी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की भी है जो धन की कमी, सरकारी अनुमति के न मिलने या अन्य कारणों से लंबित हैं।
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अतः यदि ऐसी परियोजनाओं को पूरा करने पर विशेष ध्यान दिया जाए तो बहुत ही कम समय में इसके प्रभावी परिणाम देखने को मिलेंगे और इसका पूरा लाभ आम जनता को प्राप्त हो सकेगा।
निजी क्षेत्र की भागीदारी:
- वर्ष 2013-19 के दौरान डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और दूर संचार के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि देखने को मिली है हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में निजी क्षेत्र द्वारा विद्युत और सड़क से जुड़ी परियोजनाओं में अनुबंध मॉडल को अधिक प्राथमिकता दी है।
- वर्तमान में विद्युत, सड़क आदि क्षेत्रों में केंद्र या राज्य सरकारों का ही निवेश अधिक होने का अनुमान है।
- हालाँकि यदि इन क्षेत्रों के संदर्भ में सरकार द्वारा अपेक्षित सुधारों (भूमि अधिग्रहण, वित्तीय प्रबंध, नीतिगत स्थिरता आदि) पर ध्यान दिया जाता है तो निश्चित ही इनमें निजी क्षेत्र के घरेलू और विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी।
- वर्तमान में भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों ने विश्व के कई अन्य देशों में (विशेकर मध्यपूर्व के देशों में) अवसंरचना से जुड़ी कई बड़ी विश्व स्तरीय परियोजनाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- आगे की राह:
- वर्तमान में भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियाँ बड़ी परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने में सक्षम हैं, हालाँकि परियोजना की रूपरेखा से लेकर उसके प्रबंधन से जुड़े सुधार आवश्यक होंगे।
- सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में संबंधित प्रभारी अधिकारियों के कार्यकाल को परियोजना की आवश्यकता के अनुरूप बढ़ाया जा सकता है, परंतु अधिकारियों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि परियोजना निर्धारित समय-सीमा में पूरी हो।
- साथ ही अनुबंध या अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों के संदर्भ में सरकारी संस्थानों को शीघ्र निर्णय लेने होंगे।
- अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की सफलता की लिये वित्तीय तरलता का बने रहना बहुत ही आवश्यक है, अतः विकास वित्तीय संस्थान के माध्यम से लंबी अवधि के ऋण उपलब्ध करा कर कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
अभ्यास प्रश्न: ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ का संक्षिप्त परिचय देते हुए वर्तमान परिस्थितियों में देश के विकास में इसकी भूमिका की समीक्षा कीजिये।