75 वर्ष: भारत को आकार देने वाले कानून | प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 | 12 Jul 2023
प्रिलिम्स के लिये:प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950, भारतीय ध्वज संहिता, 2002, राष्ट्रगान, प्रतीक मेन्स के लिये:प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 की आवश्यकता, संबंधित निर्णय |
संदर्भ:
वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को एक सिफारिश की। सिफारिश में उनसे विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के प्रतीक, आधिकारिक मुहर, नाम और संक्षिप्ताक्षरों के व्यावसायिक उद्देश्यों के अनधिकृत उपयोग को रोकने हेतु उपयुक्त विधायी या अन्य आवश्यक उपाय करने का आग्रह किया गया।
- भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तथा प्रतीक के अनुचित उपयोग के साथ-साथ महात्मा गांधी एवं अन्य राष्ट्रीय नेताओं के नाम या सचित्र प्रतिनिधित्व के मामले को भी ध्यान में लाया गया है। तद्नुसार, प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया था।
प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950:
- परिभाषा:
- यह संपूर्ण भारत तक फैला हुआ है और भारत के बाहर भारत के नागरिकों पर भी लागू होता है।
- शर्तें:
- प्रतीक: अनुसूची में निर्दिष्ट कोई भी प्रतीक, मुहर, झंडा, प्रतीक चिह्न, हथियार का कोट या सचित्र प्रतिनिधित्व।
- सक्षम प्राधिकारी: किसी भी कंपनी, फर्म या व्यक्तियों के अन्य निकाय या किसी ट्रेडमार्क या डिज़ाइन को पंजीकृत करने या पेटेंट देने के लिये किसी भी कानून के तहत सक्षम कोई भी प्राधिकारी।
- नाम: इसमें नाम का कोई भी संक्षिप्त रूप शामिल है।
- अनुचित उपयोग का निषेध (धारा 3):
- यह व्यापार, व्यवसाय, पेशा, पेटेंट शीर्षक, ट्रेडमार्क या डिज़ाइन के लिये उनका उपयोग करने पर लागू होता है। केंद्र सरकार कुछ मामलों और शर्तों को निर्दिष्ट कर सकती है जहाँ ऐसे उपयोग की अनुमति है।
- किसी भी मौजूदा कानून के बावजूद व्यक्तियों को केंद्र सरकार या उसके अधिकृत अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना अनुसूची में सूचीबद्ध किसी भी नाम या प्रतीक या उसके समान दिखने वाले किसी भी नकल का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
- यह व्यापार, व्यवसाय, पेशा, पेटेंट शीर्षक, ट्रेडमार्क या डिज़ाइन के लिये उनका उपयोग करने पर लागू होता है। केंद्र सरकार कुछ मामलों और शर्तों को निर्दिष्ट कर सकती है जहाँ ऐसे उपयोग की अनुमति है।
- दंड:
- कोई भी व्यक्ति जो धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा, उसे ज़ुर्माना से दंडित किया जाएगा जो 500 रुपए तक बढ़ सकता है।
- अभियोजन के लिये पूर्व स्वीकृतियाँ:
- इस अधिनियम के अंर्तगत किसी भी दंडनीय अपराध के लिये कोई भी कानूनी कार्रवाई केंद्र सरकार या सामान्य या विशिष्ट आदेश के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा नामित अधिकृत अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना नहीं प्रारंभ की जा सकती है।
- माफी:
- यह अधिनियम व्यक्तियों को किसी भी कानूनी कार्यवाही से कोई छूट प्रदान नहीं करता है जो इस अधिनियम से स्वतंत्र होकर उनके खिलाफ दायर की जा सकती है।
- अनुसूची में संशोधन करने की शक्ति:
- केंद्र सरकार को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करके अनुसूची को संशोधित या विस्तारित करने का अधिकार है। अनुसूची में किये गए ऐसे किसी भी परिवर्धन या परिवर्तन को वैध एवं लागू करने योग्य माना जाएगा जैसे कि वे मूल रूप से अधिनियम का ही भाग थे।
- नियम बनाने की शक्ति:
- केंद्र सरकार के पास इस अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये नियम बनाने का अधिकार है, जिसे आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा।
भारत में इस अधिनियम को लागू करने की आवश्यकता:
- राष्ट्रीय गौरव और संप्रभुता: इस अधिनियम का उद्देश्य उन प्रतीकों, नामों और चिह्नों की रक्षा करना है जिनको राष्ट्रीय गौरव के रूप में मान्यता प्राप्त है और साथ ही भारत की संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि इन प्रतीकों की गरिमा और पवित्रता को बनाए रखते हुए व्यक्तिगत या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये इनका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा।
- राष्ट्रीय प्रतीकों का संरक्षण: अधिनियम राष्ट्रीय प्रतीकों, जैसे- राष्ट्रीय ध्वज, प्रतीक और अन्य चिह्न या अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट नामों की रक्षा करना चाहता है। ये प्रतीक बहुत महत्त्वपूर्ण हैं एवं इनका सम्मान किया जाना चाहिये तथा उचित रूप से उपयोग किया जाना चाहिये।
- अपराध या अपमान की रोकथाम: इस अधिनियम का उद्देश्य प्रतीकों, नामों या चिह्न के इस तरह के उपयोग को रोकना है जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचती हो या उनका अपमान हो। यह सुनिश्चित करता है कि इन प्रतीकों का उपयोग अनुचित तरीके से नहीं किया जा सकता है, जो संभावित रूप से व्यक्तियों या समुदायों को नुकसान पहुँचा सकता है।
संबंधित निर्णय:
- नवीन जिंदल बनाम भारत संघ मामला, 2004:
- प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 तथा राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971 राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग को विनियमित करते हैं।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना कि राष्ट्रीय ध्वज को गरिमा के साथ फहराने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत नागरिक का मौलिक अधिकार है। राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार किसी व्यक्ति की राष्ट्र के प्रति निष्ठा और भावनाओं तथा गौरव की अभिव्यक्ति है।
- इस मामले में भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को चुनौती दी गई थी।
- प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 तथा राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971 राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग को विनियमित करते हैं।
राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 राष्ट्रीय ध्वज, संविधान, राष्ट्रगान और भारतीय मानचित्र सहित देश के सभी राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को प्रतिबंधित करता है।
भारतीय ध्वज संहिता
- इसने ध्वज के सम्मान और उसकी गरिमा को बनाए रखते हुए तिरंगे के अप्रतिबंधित प्रदर्शन की अनुमति दी।
- ध्वज संहिता, ध्वज के सही प्रदर्शन को नियंत्रित करने वाले पूर्व मौजूदा नियमों को प्रतिस्थापित नहीं करती है।
- हालाँकि यह पिछले सभी कानूनों, परंपराओं और प्रथाओं को एक साथ लाने का प्रयास था।
- भारतीय ध्वज संहिता को तीन भागों में बाँटा गया है:
- पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है।
- दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है।
- संहिता का तीसरा भाग केंद्र और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों एवं अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के विषय में जानकारी देता है।
- इसमें उल्लेख है कि तिरंगे का उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये नहीं किया जा सकता है और किसी व्यक्ति या वस्तु को सलामी देने हेतु इसे झुकाया नहीं जा सकता है।
- इसके अलावा ध्वज का उपयोग उत्सव के रूप में या किसी भी प्रकार की सजावट के प्रयोजन के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
- आधिकारिक प्रदर्शन के लिये केवल भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप चिह्न वाले झंडे का उपयोग किया जा सकता है।