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प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष

  • 27 Nov 2024
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को शामिल करने को प्राभावी बनाए रखा।

  • अनुच्छेद 368 के तहत संसद प्रस्तावना सहित संविधान के अन्य प्रावधानों में संशोधन कर सकती है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25-28) के तहत अपनी पसंद के धर्म का प्रचार, अभ्यास एवं प्रसार करने का अधिकार तथा स्वतंत्रता मिलती है।
  • पंथनिरपेक्षता को भारत की अद्वितीय विशेषता के रूप में बरकरार रखा गया (जिसमें राज्य द्वारा सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान किया जाता हो), जिसमें एसआर बोम्मई केस, 1994 का संदर्भ दिया गया।
    • संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत धार्मिक आधार पर नागरिकों के विरुद्ध भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है। इसके साथ ही विधि के समान संरक्षण तथा लोक नियोजन में समान अवसर की गारंटी प्रदान की गई है।
    • अनुच्छेद 44 सरकार को समान नागरिक संहिता के लिये प्रयास करने की अनुमति देता है और यह प्रस्तावना के पंथनिरपेक्ष शब्द द्वारा प्रतिबंधित नहीं है।
  • भारत में प्रचलित समाजवाद का उद्देश्य नागरिकों के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
    • इससे निजी उद्यमशीलता एवं व्यवसाय करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जिसे अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत मूल अधिकार माना गया है।

और पढ़ें: संविधान के अभिन्न अंग के रूप में समाजवादी एवं पंथनिरपेक्षता

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