संत नरहरि तीर्थ | 22 Jan 2025
स्रोत: डेक्कन क्रॉनिकल
चर्चा में क्यों?
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में सिंहचलम मंदिर में 13वीं शताब्दी के संत नरहरि तीर्थ की तीन फुट ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई है, जिसमें उन्हें ताड़ के पत्तों पर लिपि में दर्शाया गया है जिनके दोनों ओर श्रद्धालु खड़े हैं।
संत नरहरि तीर्थ से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- संत नरहरि तीर्थ (1243-1333 ई.) माधव परंपरा के एक द्वैत दार्शनिक, बुद्धिजीवी, विद्वान, राजनेता व संत थे।
- वे आंध्र प्रदेश के चिकाकोलू (आधुनिक श्रीकाकुलम) के निवासी थे तथा उनका जन्म ओडिशा के गजपति साम्राज्य में एक कुलीन परिवार में हुआ था।
- पूर्वी गंग राजवंश में भूमिका: 30 से अधिक वर्षों तक, नरहरि तीर्थ ने पूर्वी गंग राजवंश के राजाओं की सहायता की।
- उन्होंने शासकों को सनातन धर्म का पालन करने में सहायता तथा मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिये एक संरचित कार्यकारी प्रणाली की स्थापना की।
- उनके प्रयासों का विवरण सिंहचलम और श्रीकुरमम मंदिरों में पाए गए शिलालेखों में मिलता है।
- धार्मिक योगदान: वे द्वैत दर्शन के प्रवर्तक माधवाचार्य के अनुयायी थे और उन्होंने इस क्षेत्र में माधवाचार्य के वैष्णववाद का प्रचार किया, तथा अहस्तक्षेपकारी, धर्मनिरपेक्ष तरीके से इसकी दृढ़ स्थापना सुनिश्चित की।
- उनके प्रभाव से क्षेत्र में धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने में मदद मिली।
- उनके योगदान को मान्यता देने के लिये "लोक सुरक्षा अति निपुणः" और "यो अवति कलिंग भू संभवन्" जैसी सम्मान उपाधियाँ दी गई हैं।
- बौद्धिक विरासत: वह एक विपुल लेखक थे, उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की, हालाँकि उनकी केवल 2 रचनाएँ - गीता भाष्य और भावप्रकाशिका ही बची हैं।
- कन्नड़ में प्रथम देववर्णम की रचना का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।
- सांस्कृतिक योगदान: उन्होंने क्षेत्रीय कला रूपों के विकास में भी योगदान दिया और यक्षगान बयालता (तटीय कर्नाटक का एक नृत्य-नाट्य रूप) और शास्त्रीय नृत्य शैली, जो आंध्र प्रदेश में कुचिपुड़ी के रूप में विकसित हुई, के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
- विरासत: उनकी मृत्यु के बाद, नरहरि तीर्थ को तुंगभद्रा नदी के तट पर हम्पी में चक्रतीर्थ के पास प्रतिष्ठित किया गया।
- उनका योगदान पुरी जगन्नाथ की मंदिर परंपराओं को प्रभावित करता रहा है तथा ओडिशा में माधव परंपरा को मज़बूत करता रहा है।
पूर्वी गंग राजवंश
- उन्होंने 5 वीं से 15 वीं शताब्दी तक कलिंग (आधुनिक पूर्वी तटीय भारत) पर शासन किया तथा उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र प्रदेश सहित कई क्षेत्रों पर नियंत्रण किया।
- उनकी प्रारंभिक राजधानी कलिंगनगर थी, और द्वितीयक राजधानी दंतपुरा (पालुर) थी।
- उल्लेखनीय शासकों में अनंतवर्मन चोडगंग (1078-1147 ई.) शामिल हैं, जो कला और साहित्य के संरक्षक थे और पुरी में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण के लिये प्रसिद्ध हैं। उनके उत्तराधिकारी नरसिंह देव प्रथम ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।
- राजवंश की संपत्ति से मंदिर का निर्माण किया गया तथा राजनीतिक गठबंधनों को बढ़ावा मिला, जिनमें चोल और चालुक्य राजवंशों के साथ विवाह भी शामिल थे।
सिंहाचलम मंदिर
- यह मंदिर आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित है और भगवान नरसिंह को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं ।
- इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में ओडिशा के गजपति शासकों द्वारा किया गया था और बाद में इसे वेंगी चालुक्यों और पूर्वी गंग राजवंश के नरसिंह प्रथम द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।
- इस मंदिर में जटिल नक्काशी और प्रतिमाओं के साथ कलिंग और द्रविड़ स्थापत्य शैली का संयोजन देखने को मिलता है, जिनमें एक पाषाण से निर्मित रथ और कल्याण मंडप में 16 नक्काशीदार स्तंभ शामिल हैं।
- मंदिर का इतिहास 1516 ई. में कृष्णदेव राय जैसे प्रमुख शासकों के आगमन से संबंधित है।
माधवाचार्य
- मध्वाचार्य (1238 ई.) एक हिन्दू दार्शनिक और वेदांत के द्वैतवाद के प्रवर्तक थे।
- उन्होंने आत्मा (व्यक्तिगत आत्मा) और ब्रह्म (परम वास्तविकता, विष्णु) के बीच मूल प्रथकता का दर्शन दिया और उनके अनुसार ये दोनों पृथक और अपरिवर्तनीय वास्तविकताएँ हैं।
- उनके प्रमुख कार्यों में गीता भाष्य और विष्णुतत्त्वविनिर्णयः शामिल हैं।
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