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औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 का नियम 170

  • 04 Sep 2024
  • 2 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आयुष मंत्रालय की इस बात के लिये आलोचना की कि उसने राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकारियों को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 की अवहेलना करने का निर्देश दिया है, जिसे आयुष उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के लिये बनाया गया है।

  • आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन को विनियमित करने के लिये नियम 170 को वर्ष 2018 में प्रस्तुत किया गया था, जिसके तहत निर्माताओं को राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों से अनुमोदन तथा एक विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त करना आवश्यक था।
    • इस नियम का उद्देश्य आयुष उत्पाद विज्ञापनों में झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर दावे करने, अश्लील सामग्री रखने या सरकारी निकायों का उल्लेख करने से रोकना है।
    • नियम के अनुसार निर्माताओं को पाठ्य संदर्भ, औचित्य, संकेत, सुरक्षा, प्रभावशीलता और गुणवत्ता जैसे विवरण प्रस्तुत करने होंगे।
  • 1 जुलाई 2024 को आयुष मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य अधिकारियों को नियम 170 की अनदेखी करने का निर्देश दिया। यह निर्देश आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (ASUDTAB) द्वारा मई 2023 में की गई सिफारिश के बाद आया, जिसमें नियम को छोड़ने की सिफारिश की गई थी क्योंकि भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिये औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 में संशोधन पर विचार किया जा रहा था।
    • ASUDTAB एक विशेषज्ञ निकाय है जो आयुष औषधियों के विनियमन से संबंधित कार्यों की सिफारिश करता है।

और पढ़ें: भारत में भ्रामक विज्ञापनों का विनियमन

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