FPI के FDI में पुनर्वर्गीकरण हेतु RBI ढाँचा | 13 Nov 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को अपने निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में परिवर्तित करने की अनुमति देने हेतु एक ढाँचा प्रस्तुत किया है।
इस फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- थ्रेशोल्ड क्राॅसिंग: कुल पेड-अप इक्विटी के 10% से अधिक निवेश करने वाले किसी भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक के पास अपनी होल्डिंग्स को बेचने या ऐसी होल्डिंग्स को FDI के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने का विकल्प दिया गया है।
- किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी की पेड-अप इक्विटी पूंजी का 10% या उससे अधिक (10% से कम को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) माना जाता है)।
- FDI का आशय भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा पूंजीगत साधनों के माध्यम से किया गया निवेश है।
- किसी असूचीबद्ध भारतीय कंपनी में या
- समय पर पुनर्वर्गीकरण: पुनर्वर्गीकरण, लेनदेन (जिसके परिणामस्वरूप 10% से अधिक सीमा का अनुसरण होता है) से पांँच कारोबारी दिनों के अंदर पूरा होना चाहिये।
- अनुपालन आवश्यकताएँ: FPI को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भुगतान का तरीका और गैर-ऋण उपकरणों की रिपोर्टिंग) विनियम, 2019 (FEM (NDI) नियम, 2019) के तहत रिपोर्टिंग दायित्वों का पालन करना होगा।
- FEM (NDI) नियम, 2019 में यह अनिवार्य किया गया है कि भारत में गैर-निवासियों द्वारा निवेश को प्रवेश मार्गों, क्षेत्रीय सीमाओं या निवेश सीमाओं का पालन करना होगा, जब तक कि अन्यथा निर्दिष्ट न किया जाए।
- प्रतिबंधित क्षेत्र: उन क्षेत्रों में पुनर्वर्गीकरण की अनुमति नहीं है जहाँ FDI प्रतिबंधित है जैसे, जुआ और सट्टेबाजी, रियल एस्टेट व्यवसाय, निधि कंपनी (म्यूचुअल बेनिफिट फंड कंपनी) आदि।
- पूरक उपाय: यह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के इसी प्रकार के अद्यतन का पूरक है, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि एक बार FPI निवेशक द्वारा 10% इक्विटी सीमा पार कर लेने पर वह अपनी होल्डिंग को FDI में परिवर्तित करने का विकल्प चुन सकता है।
नोट: कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिये सरकार ने प्रेस नोट 3 (2020) के माध्यम से FDI नीति 2017 में संशोधन किया।
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FDI और FPI के बीच क्या अंतर है?
पैरामीटर |
FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) |
FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) |
निवेश की प्रकृति |
किसी विदेशी द्वारा भारत में प्रत्यक्ष निवेश और व्यवसाय का स्वामित्व। |
स्टॉक और बॉण्ड जैसी वित्तीय परिसंपत्तियों में अप्रत्यक्ष निवेश। |
निवेशक की भूमिका |
सक्रिय भूमिका |
निष्क्रिय भूमिका |
नियंत्रण और प्रभाव |
प्रबंधन और व्यावसायिक परिचालन पर उच्च स्तर का नियंत्रण। |
कंपनी के दिन-प्रतिदिन के परिचालन पर कोई प्रमुख नियंत्रण नहीं। |
संपदा प्रकार |
विदेशी कंपनी की भौतिक परिसंपत्तियाँ। |
स्टॉक, बॉण्ड और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) जैसी वित्तीय परिसंपत्तियाँ। |
निवेश दृष्टिकोण और समय सीमा |
दीर्घकालिक दृष्टिकोण। योजना से कार्यान्वयन तक प्रगति करने में वर्षों लग सकते हैं। |
FDI की तुलना में यह कम अवधि का निवेश है। यह बाज़ार से जुड़े लाभ पर केंद्रित है। |
उद्देश्य |
दीर्घकालिक लाभ के लिये किसी देश में बाजार पहुँच या रणनीतिक हितों को सुरक्षित करना। |
अल्पावधि रिटर्न और बाज़ार से जुड़े लाभ पर केंद्रित है। |
जोखिम कारक |
सामान्यतः अधिक स्थिर, लेकिन मेजबान देश की नीतियों, राजनीतिक वातावरण और नियमों से प्रभावित। |
सामान्यतः परिसंपत्ति की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण यह अधिक अस्थिर होता है। |
प्रवेश और निकास |
प्रवेश और निकास कठिन है। |
तरलता और परिसंपत्तियों के व्यापक व्यापार के कारण प्रवेश और निकास सुलभ है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) (a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कम्पनी में पूँजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है। उत्तर: (b) |