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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 अप्रैल, 2023

  • 06 Apr 2023
  • 8 min read

राष्ट्रीय समुद्री दिवस 

भारत ने 5 अप्रैल को राष्ट्रीय समुद्री दिवस (National Maritime Day) मनाया, जो वर्ष 1919 में मुंबई से लंदन तक पहले भारतीय वाणिज्यिक पोत, SS लॉयल्टी की पहली यात्रा की याद दिलाता है। इस वर्ष का विषय "भारतीय समुद्र को शुद्ध शून्य तक बढ़ाना (Propelling Indian Maritime to Net Zero) है।" यह मुंबई में जहाज़रानी महानिदेशालय, बंदरगाह, नौवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था, यह मुंबई पोर्ट ट्रस्ट में घरेलू क्रूज़ टर्मिनस में एक समारोह के साथ संपन्न हुआ, जिसमें समुद्री क्षेत्र में नेट-शून्य लक्ष्य प्राप्त करने हेतु एक समन्वित तथा सहयोगी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। सरकार ने महामारी के दौरान नाविकों के योगदान को स्वीकार किया है और भारत को समुद्री क्षेत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनाने हेतु लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने एवं शिपिंग की सुविधा के लिये 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों पर ज़ोर दिया है। साथ ही मैरीटाइम विज़न 2030 के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु ग्लोबल मेरीटाइम यूनिवर्सिटीज़ के साथ अकादमिक साझेदारी तथा भारतीय समुद्री संस्थानों के कौशल को बढ़ाने का पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। कार्यक्रम के दौरान भारतीय समुद्री उद्योग के विकास में योगदान करने वालों को सागर सम्मान पुरस्कार प्रदान किये गए।                                  

और पढ़ें…मेरीटाइम विज़न 2030

लद्दाख की लकड़ी की नक्काशी को मिला GI टैग 

हाल ही में भौगोलिक संकेतक अधिनियम, 1999 के तहत उत्पादों को पंजीकृत करने के लिये उत्तरदायी चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री ने लद्दाख की लकड़ी की नक्काशी को पंजीकृत किया है। GI पंजीकरण किसी उत्पाद की उत्त्पत्ति और विशिष्ट पहचान सुनिश्चित करता है और इसे किसी अन्य क्षेत्र के किसी अन्य निर्माता द्वारा उसी नाम के तहत उसकी प्रति/डुप्लीकेट बनाकर बेचा नहीं जा सकता है। लद्दाख की लकड़ी की नक्काशी अपने जटिल डिज़ाइनों और अद्वितीय पैटर्न के लिये काफी प्रसिद्ध है जिनमें से ज़्यादातर बौद्ध विषयों और रूपांकनों पर आधारित हैं। इन लकड़ी की नक्काशी को बनाने के लिये विलो और खुबानी जैसी स्थानीय लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जिसका उपयोग अक्सर दरवाजे, खिड़कियाँ और अन्य घरेलू सामानों की सजावट के कार्य में किया जाता है।

और पढ़ें… भौगोलिक संकेतक (GI)

बनारसी पान को GI टैग 

हाल ही में बनारसी पान को GI टैग प्रदान किया गया है, धार्मिक एवं पर्यटन नगरी काशी GI हब के रूप में उभरी है। विशेष बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान, रामनगर के भंटा (व्हाइट बिग राउंड बैंगन) और आदमचीनी चावल (ज़िला चंदौली) को भौगोलिक संकेत तथा बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) टैग मिला है। स्थानीय वस्तुओं को व्यापक पहचान दिलाने के उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों के तहत न केवल 'बनारसी पान', बल्कि मथुरा का 'पेड़ा', आगरा के 'पेठा' और कानपुर के 'सत्तू' एवं 'बुकुनु' को भी टैग प्रदान किया जाएगा। एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) की सफलता के बाद स्थानीय वस्तुओं को व्यापक मान्यता प्रदान करने का लक्ष्य है। 

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भारत ने वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य रखा 

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 से शुरू होने वाले अगले पाँच वर्षों के लिये वार्षिक 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हेतु बोली आमंत्रित करने की योजना की घोषणा की है, जिसमें प्रत्येक वर्ष कम-से-कम 10 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता की स्थापना शामिल होगी। इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2030 तक परमाणु सहित गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावाट की स्थापित विद्युत क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करना है। भारत में वर्तमान में 168.96 गीगावाट की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता है, जिसमें लगभग 82 गीगावाट कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में है और लगभग 41 गीगावाट निविदा चरण में है।  यह योजना COP-26 में प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुरूप है तथा तेज़ी से ऊर्जा संक्रमण प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू करने में आमतौर पर 18-24 महीने लगते हैं, इसलिये यह बोली योजना 250 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा जोड़ेगी तथा वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट की स्थापित क्षमता सुनिश्चित करेगी। वित्त वर्ष 2023-24 हेतु लक्षित बोली क्षमता चार अक्षय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (REIAs) अर्थात् सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SECI), NTPC, NHPC एवं SJVN के बीच आवंटित की जाएगी।  

और पढ़ें… भारत का हरित-ऊर्जा संक्रमण

आइस मेमोरी 

इटली, फ्राँस और नॉर्वे के आर्कटिक वैज्ञानिकों की एक टीम जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलने से पूर्व प्राचीन बर्फ के नमूने निकालने के मिशन पर जा रही है। शोधकर्त्ताओं ने नॉर्वे के स्वालबार्ड द्वीप समूह में शिविर स्थापित किया है, जो सतह से 125 मीटर नीचे तक बर्फ में ड्रिल करेंगे, जिसमें तीन शताब्दियों से जमे हुए भू-रासायनिक निशान मौजूद हैं। इन आइस कोर का उपयोग तत्काल विश्लेषण हेतु किया जाएगा, जबकि दूसरे समूह को वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ियों के लिये अंटार्कटिक में "आइस मेमोरी सैंक्चुअरी" भेजा जाएगा। निष्कर्षण महत्त्वपूर्ण बर्फ रिकॉर्ड को संरक्षित करने हेतु एक प्रयास है जो पिछले पर्यावरणीय परिस्थितियों के बारे में मूल्यवान डेटा प्रदान करता है। 19वीं शताब्दी के बाद से मानव निर्मित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण दुनिया भर में तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में दो से चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है।

और पढ़ें…तेज़ी से पिघल रही अंटार्कटिक की बर्फ

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