सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाताओं ने MCLR बढ़ाया | 17 Jul 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय स्टेट बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाताओं ने अपने निधि आधारित उधार दर की सीमांत लागत (Marginal Cost of funds based Lending Rates - MCLR) में वृद्धि की है। इससे उधारकर्त्ताओं के लिये समान मासिक किस्तों (Equated Monthly Instalments- EMIs) में वृद्धि होगी।
- MCLR वह न्यूनतम ब्याज दर है जो बैंक को उधार देने के लिये वसूलनी चाहिये। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अनुमत कुछ मामलों को छोड़कर, बैंक उस दर से कम पर कोई ऋण नहीं दे सकता है।
- MCLR एक "आंतरिक बेंचमार्क" है जो हर बैंक में अलग-अलग होता है। इसकी गणना निधि की सीमांत लागत के आधार पर की जाती है।
- MCLR के मुख्य घटक:
- निधियों की सीमांत लागत
- CRR का नकारात्मक कैरी ऑन अकाउंट
- परिचालन लागत
- अवधि प्रीमियम
- अगर निधि की लागत बढ़ जाती है, तो MCLR बढ़ जाता है और किसी भी MCLR अवधि से जुड़े लोन महँगे हो जाते हैं। इसी तरह अगर MCLR कम हो जाता है, तो लोन सस्ते हो जाते हैं।
- वर्ष 2019 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने MCLR व्यवस्था को बदलने के लिये एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड लेंडिंग रेट (External Benchmark Based Lending Rate - EBLR) की शुरुआत की।
- परिणामस्वरूप, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को दिये जाने वाले सभी खुदरा ऋण तथा फ्लोटिंग-रेट ऋण अब ईबीएलआर से जुड़ गए हैं।