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भारतीय अर्थव्यवस्था

एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट

  • 01 Jan 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट

मेन्स के लिये:

एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में परिवर्तन से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ (State Bank of India-SBI) ने एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड-रेट (External Benchmark-based Rate) को 8.05 प्रतिशत से घटाकर 7.80 प्रतिशत कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • SBI ने अपने एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में 25 आधार अंकों (Basis Points) की कमी की है।
  • SBI द्वारा कम किया गया यह एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट 1 जनवरी, 2020 से लागू होगा।
  • वहीं SBI ने आवास ऋण पर भी ब्याज दर को 8.15 प्रतिशत से घटाकर 7.90 प्रतिशत कर दिया।

क्या था RBI का दिशा-निर्देश:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 अक्तूबर, 2019 से बैंकों के लिये सभी नए पर्सनल या रिटेल ऋण (Personal or Retail Loan) तथा आवास एवं ऑटो ऋण जैसे फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) पर आधारित ऋण को एक्सटर्नल बेंचमार्क (External Benchmark) से लिंक करना अनिवार्य कर दिया है।
  • फ्लोटिंग रेट ऋण वे ऋण होते हैं जिनके ब्याज की दर परिवर्तनशील होती है।
  • इससे पहले बैंकों की ऋण दरें या तो फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (Funds based Lending Rate) या मार्जिनल कॉस्ट (Marginal Cost) पर आधारित होती थीं।

बैंकों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न ब्याज दरें:

प्रधान उधार दर:

(Prime Lending Rate-PLR):

  • ‘प्रधान उधार दर’ वह ब्याज दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपने सबसे विश्वसनीय ग्राहकों को ऋण देने के लिये तैयार होते हैं, अतः इस प्रकार के ऋणों में जोखिम बहुत ही कम होता है।
  • यह वह न्यूनतम दर होती है जिस पर बैंक अपनी सभी लागतें और व्यय को पूरा कर लेता है और कुछ प्रतिफल भी प्राप्त कर सकता है।
  • प्रधान उधार दर को ही बेंचमार्क प्रधान उधार दर (Benchmark Prime Lending Rate-BPLR) कहते हैं।

आधार दर:

(Base Rate):

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने PLR आधारित उधार देय प्रणाली के स्थान पर जुलाई 2010 से आधार दर प्रणाली को लागू किया है।
  • आधार दर वह ब्याज दर है जिससे कम दर पर कोई भी अनुसूचित बैंक अपने ग्राहकों को कोई भी ऋण प्रदान नहीं करेंगे।
  • इससे पूर्व BPLR में बैंक PLR से नीचे भी ऋण दे सकते थे, इससे कर्ज़दाता बैंकों के साथ सौदेबाजी एवं मोल-भाव करते थे जिसके कारण अलग-अलग कर्ज़दाताओं के लिये ब्याज की दरें भी अलग-अलग हो जाती थीं।

सीमांत निधि लागत पर आधारित उधार दर:

(Marginal Cost of Funds based Lending Rate-MCLR):

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों द्वारा उधार देने हेतु इस नई दर को अपनाया। यह 01 अप्रैल, 2016 से प्रभावी है।
  • यह अवधि आधारित आंतरिक बेंचमार्क होगा जिसका पुनर्निर्धारण एक वर्ष या उससे कम अवधि के लिये किया जाता है।
  • सभी बैंक प्रत्येक माह में पहले से घोषित तिथि को विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली अपनी MCLR की समीक्षा करते हैं और उन्हें जारी करते हैं।
  • मौजूद कर्ज़धारकों को पारस्परिक रूप से ‘सहमत शर्तों’ पर MCLR से संबद्ध ऋण में परिवर्तन करने का विकल्प होगा।

एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट में परिवर्तन से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • एक्सटर्नल बेंचमार्क-बेस्ड रेट कम करने से बाज़ार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता है, अतः बाज़ार में तरलता बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरुप रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं और अंततः देश की विकास दर बढ़ती है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में अवसंरचना की कमी सबसे बड़ी समस्या है जिसको दूर करने के लिये बड़े स्तर पर वित्त की आवश्यकता है। अतः ब्याज दर कम होने से तरलता की स्थिति के चलते लोगों को आसानी से वित्त उपलब्ध होगा।
  • भारत आर्थिक विकास के साथ ही पर्यावरण को लेकर बेहद संवेदनशील रहा है, इसलिये सतत् और संधारणीय विकास के लिये बेहतर तकनीक तथा नीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन हेतु वित्त की अधिक आवश्यकता है।
  • कौशल और तकनीक के क्षेत्र में स्वयं को और अधिक विकसित करने के लिये भी बड़ी मात्रा में वित्त की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू

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