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डेली अपडेट्स

प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स: 29 अक्तूबर, 2020

  • 29 Oct 2020
  • 8 min read

अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट-01

(Satellite EOS-01)

Satellite-EOS-01

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा 7 नवंबर, 2020 को  ‘ईओएस-01’ (EOS-01) नामक अपने ‘अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट’ (Earth Observation Satellite- EOS) को पीएसएलवी-सी 49 रॉकेट के माध्यम से से लॉन्च किया जाएगा।

  • गौरतलब है कि मार्च 2020 में COVID-19 महामारी के कारण लागू हुए लॉकडाउन के बाद यह इसरो द्वारा अंतरिक्ष प्रक्षेपण से जुड़ा पहला मिशन होगा। 
  • साथ ही यह इसरो द्वारा ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV) से भेजा जाने वाला 51वाँ अंतरिक्ष मिशन होगा।
  • ईओएस-01,  कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन में सहयोग प्रदान करने के लिये बनाया गया एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है।
  • ईओएस-01 उपग्रह को नौ अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों (Customer Satellites) के साथ इसरो के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre- SDSC), श्रीहरिकोटा  (आंध्र प्रदेश) से प्रक्षेपित किया जाएगा।
  • इस मिशन में शामिल ग्राहक उपग्रहों को न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited-NSIL), अंतरिक्ष विभाग के साथ किये गए वाणिज्यिक समझौते के तहत लॉन्च किया जा रहा है।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान

(Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV):    

  • PSLV तीसरी पीढ़ी का एक भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण यान है।
  • PSLV की ऊँचाई 44 मीटर और  व्यास 2.8 मीटर है, इस प्रक्षेपण यान में कुल चार चरण हैं।
  • यह  ‘तरल चरण’ (Liquid Stages) से युक्त भारत का पहला प्रक्षेपण यान है।
  • PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्तूबर 1994 में किया गया था।
  • PSLV का प्रयोग वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 और वर्ष 2013 में मंगल मिशन के प्रक्षेपण में भी किया गया था।

कुम्हार सशक्तीकरण योजना 

(Kumhar Sashaktikaran Yojana)

हाल ही में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री द्वारा कुम्हारों के सशक्तीकरण की दिशा में खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा शुरू की गई 'कुम्हार सशक्तीकरण योजना' के तहत एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से महाराष्ट्र के नांदेड़ और परभणी ज़िलों में 100 कुम्हार परिवारों को बिजली से चलने वाले चाक का वितरण किया गया। 

Kumhar-Sashaktikaran-Yojana

  • इस कार्यक्रम में दोनों ज़िलों के 15 गाँवों (नांदेड़ के 10 और परभणी ज़िले के 5 गाँव) के कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक उपलब्ध कराए गए तथा KVIC द्वारा उन्हें 10 दिनों का प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया।   

कुम्हार सशक्तीकरण योजना

(Kumhar Sashaktikaran Yojana): 

  • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2018 में ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (KVIC) द्वारा भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में रह रहे कुम्हार समुदाय के सशक्तीकरण के लिये की गई थी। 

उद्देश्य:   

  • कुम्हारों को उन्नत कोटि के मिट्टी के बर्तन व अन्य उत्पाद बनाने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करना।  
  • मिट्टी के बर्तन बनाने के लिये नवीनतम और नई तकनीक के उपकरण उपलब्ध कराना।
  • KVIC प्रदर्शनियों के माध्यम से बाज़ार तक कुम्हारों की पहुँच को मज़बूत करना।   

लाभ:   

  • बिजली के चाक से कुम्हारों की उत्पादकता में वृद्धि होगी, जिससे उनकी आय बढ़ेगी।
  • इस योजना के तहत देश भर में अब तक 18,000 से अधिक बिजली चालित चाक वितरित किये जा चुके हैं।  

सिंधु घाटी सभ्यता में डेयरी उत्पादन

(Dairy Production in Indus Valley Civilisation)

हाल ही में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता में डेयरी उत्पादन के  पहले ज्ञात प्रमाण मिलने की वैज्ञानिक पुष्टि की गई है।   

Indus-Valley-Civilisation

  • सिंधु घाटी सभ्यता में डेयरी उत्पादन के ये प्रमाण 2500 ईसा पूर्व के समय से संबंधित हैं।  
  • इस अध्ययन का नेतृत्त्व टोरंटो विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्त्ता कल्याण शेखर चक्रवर्ती द्वारा किया गया। 
  • इस अध्ययन का परिणाम कोटड़ा भादली (गुजरात) के एक पुरातात्त्विक स्थल पर पाए गए बर्तनों के टुकड़ों से प्राप्त भोज्य पदार्थों के अणुओं (जैसे- वसा और प्रोटीन) के आणविक रासायनिक विश्लेषण पर आधारित है। 
  • ‘स्थिर आइसोटोप विश्लेषण’ नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से शोधकर्त्ता उन पशुओं की पहचान करने में सफल रहे जिनसे यह दूध प्राप्त हुआ था, इसके साथ ही उन्होंने यह निष्कर्ष दिया कि यह दूध बकरी या भेड़ की बजाय गाय और भैंस जैसे पशुओं से प्राप्त हुआ था।
  • इस स्थान से प्राप्त बर्तनों के अवशेषों से पता चलता है कि उस समय कच्चे दूध के उपयोग के बजाय प्रसंस्कृत दूध का उपयोग किया जाता था तथा इसकी मात्रा यह दर्शाती है कि दूध का उपभोग घरेलू उपयोग से परे अर्थात् व्यापार अथवा सामुदायिक उद्देश्य के लिये भी किया जाता था

सिंधु घाटी सभ्यता

(Indus Valley Civilisation- IVC):  

  • सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।  
  • गौरतलब है कि लगभग 100 वर्ष पहले (वर्ष 1920) सिंधु घाटी से प्राप्त अवशेषों से सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्राचीन नगरों हड़प्पा तथा मोहनजोदाड़ो की खोज की गई थी।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के काल का निर्धारण लगभग 2600-1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। 
  • इस सभ्यता का नामकरण हड़प्पा (वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित) नामक स्थान के आधार पर किया गया था, जहाँ पहली बार इस सभ्यता की खोज की गई थी।
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