प्रिलिम्स फैक्ट: 16 सितंबर, 2021 | 16 Sep 2021
टारबॉल
(Tarballs)
हाल ही में तेल रिसाव के कारण बनने वाली बॉल्स, जिन्हें ‘टारबॉल’ भी कहा जाता है, मुंबई तट के किनारे पर पड़ी देखी गई हैं।
प्रमुख बिंदु
- ‘टारबॉल’ के विषय में
- ‘टारबॉल’ गहरे रंग के तेल के चिपचिपे गोले होते हैं जो प्रायः तब बनते हैं जब कच्चा तेल समुद्र की सतह पर तैरता है। इनका निर्माण समुद्री वातावरण में कच्चे तेल के अपक्षय के कारण होता है।
- इनमें से कई बॉल्स, बास्केटबॉल जितनी बड़ी होती हैं, जबकि अन्य छोटी गोलाकार होती हैं। इन्हें समुद्री धाराओं और लहरों द्वारा समुद्र तटों तक पहुँचाया जाता है।
- अधिकांश स्थानों पर टारबॉल की उपस्थिति तेल रिसाव का संकेत देती है। हालाँकि मानसून के दौरान पश्चिमी तट पर इनकी वार्षिक उपस्थिति ने समुद्री जीव विज्ञानियों और विशेषज्ञों को इस मामले में जाँच करने हेतु प्रेरित किया है।
- तेल-कुओं के फटने, जहाज़ों से बिल्ज़ की आकस्मिक और जान-बूझकर किया गया रिसाव, नदी अपवाह, नगरपालिका सीवेज एवं औद्योगिक अपशिष्टों के माध्यम से निर्वहन भी टारबॉल के निर्माण हेतु उत्तरदायी होते हैं।
- समुद्र तटों पर पहुँचने के बाद ‘टारबॉल’ को हाथ से या समुद्र तट की सफाई हेतु उपयोग की जाने वाली मशीनरी द्वारा उठाया जा सकता है।
- चिंताएँ
- समुद्र तट की ओर आने वाले ‘टारबॉल’ समुद्र में मौजूद मछली पकड़ने के जाल में फँस सकते हैं, जिससे मछुआरों के लिये जाल की सफाई करना मुश्किल हो जाता है।
- इसके अलावा यह समुद्री जीवन को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से क्लैम और सीप जैसे फिल्टर फीडर प्राणियों को।
- ‘टारबॉल’ को तोड़ना मुश्किल है और इसलिये ये समुद्र में सैकड़ों मील की यात्रा कर सकते हैं। वैश्विक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र हेतु टारबॉल प्रदूषण एक प्रमुख कारक है।
- यह तटीय जल से प्राप्त समुद्री भोजन (जैसे मछली) को भी दूषित कर सकता है और हमारी खाद्य शृंखला का हिस्सा बन सकता है।
AUKUS समूह
AUKUS Grouping
हाल ही में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस (AUKUS) के बीच इंडो-पैसिफिक क्षेत्र हेतु एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की घोषणा की है।
- इस व्यवस्था का मुख्य आकर्षण अमेरिका द्वारा ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी साझा करना है।
प्रमुख बिंदु
- इंडो-पैसिफिक पर ध्यान केंद्रित करना: सुरक्षा समूह AUKUS हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- हालाँकि अमेरिका ने इस बात से स्पष्ट रूप से इनकार किया है कि समूह को चीन के खिलाफ लक्षित किया गया है, लेकिन इसका इंडो-पैसिफिक ओरिएंटेशन का उद्देश्य दक्षिण चीन सागर में चीन की मुखर कार्रवाइयों के खिलाफ गठबंधन करना है।
- कनाडा और न्यूज़ीलैंड के साथ तीन देश पहले से ही ‘फाइव आईज़’ गठबंधन के माध्यम से व्यापक खुफिया जानकारी साझा करते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियों का हस्तांतरण: ऑस्ट्रेलिया इस पहल के तहत यूके और यूएस की मदद से परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का अधिग्रहण करेगा।
- यह कदम महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका ने पहले केवल एक बार परमाणु पनडुब्बी तकनीक साझा की है और इसकी शुरुआत वर्ष 1958 में ग्रेट ब्रिटेन के साथ हुई थी।
- परमाणु पनडुब्बियाँ जो अपने पारंपरिक समकक्षों की तुलना में शांत हैं, लेकिन लंबी अवधि की तैनाती हेतु सक्षम हैं।
- अधिक परमाणु संचालित पनडुब्बियों को प्राप्त करने के भारत के घोषित लक्ष्य के साथ यह क्वाड की समुद्र के नीचे और पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमताओं में एक कदम और आगे बढ़ने की दिशा में प्रयास होगा।
- क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का समूह है।
- ऑस्ट्रेलिया अब केवल छह देशों- भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांँस, रूस और चीन के समूह में शामिल होने के लिये तैयार है - जो परमाणु पनडुब्बियों का संचालन करते हैं। यह असैन्य परमाणु ऊर्जा उद्योग (Civilian Nuclear Power Industry ) के बिना ऐसी पनडुब्बियांँ रखने वाला यह एकमात्र देश होगा।
- बहु-क्षेत्रीय सहयोग: AUKUS में तीन देशों के मध्य बैठकों और आपसी जुड़ाव की एक नई व्यवस्था के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों ( एप्लाईड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम प्रौद्योगिकियों और पानी के नीचे की क्षमताओं) में सहयोग करना भी शामिल होगा।
फाइव आईज़ अलायंस
- फाइव आईज़ अलायंस पांँच अंग्रेज़ी भाषी लोकतंत्रों (अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड) के मध्य एक खुफिया-साझाकरण व्यवस्था है।
- यह गठबंधन शीत युद्ध (1946-1991) के दौरान हुआ जो संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के साथ-साथ उनके संबंधित सहयोगियों के बीच लड़ा गया था।
- इस युद्ध के दौरान सभी संभावित मोर्चों पर अपने विरोधियों के बारे में संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिये अलायंस की आवश्यकता महसूस की गई थी।
- इसे अक्सर विश्व के सबसे सफल खुफिया अलायंस के रूप में वर्णित किया जाता है।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शांतिपूर्ण मिशन 2021
Exercise SCO Peaceful Mission 2021
इस अभ्यास (शांतिपूर्ण मिशन) के छठे संस्करण की मेज़बानी रूस द्वारा की जा रही है। इसका आयोजन दक्षिण-पश्चिम रूस के ऑरेनबर्ग क्षेत्र में 13-25 सितंबर, 2021 के मध्य किया जा रहा है।
- भारत ने पहली बार इस अभ्यास (2018) के 5वें संस्करण में भाग लिया था।
प्रमुख बिंदु
- यह एक बहुपक्षीय और संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास है, जो शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के बीच सैन्य कूटनीति के एक हिस्से के रूप में द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
- SCO एक आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, इसमें भारत एवं पाकिस्तान को वर्ष 2017 में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। इसके संस्थापक सदस्यों में चीन, रूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल थे।
- इस अभ्यास के अंतर्गत पेशेवर आपसी संपर्क, अभ्यास और प्रक्रियाओं की आपसी समझ, संयुक्त कमान एवं नियंत्रण संरचनाओं की स्थापना के साथ ही आतंकवादी खतरों का उन्मूलन करना शामिल है।
- इस अभ्यास का उद्देश्य SCO सदस्य देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देना और बहुराष्ट्रीय सैन्य टुकड़ियों की नेतृत्व क्षमता में वृद्धि करना है।
- भारतीय वायु सेना के 38 कर्मियों सहित 200 सैन्यकर्मियों (सभी हथियारों की संयुक्त क्षमता वाले) का भारतीय सैन्य दल इस मिशन-2021 अभ्यास में भाग ले रहा है।