इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स: 16 अगस्त, 2021

  • 16 Aug 2021
  • 14 min read

अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास: भारत-सऊदी अरब

Al-Mohed Al-Hindi Exercise: India-Saudi Arabia 

हाल ही में भारत और सऊदी अरब ने अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास (Al-Mohed Al-Hindi Exercise) नामक अपना पहला नौसेना संयुक्त अभ्यास शुरू किया।

  • इस द्विपक्षीय अभ्यास पर फैसला वर्ष 2019 में आयोजित रियाद शिखर सम्मेलन में लिया गया।

Saudi-Arabia

प्रमुख बिंदु

संदर्भ:

  • भारतीय नौसेना का जहाज़ (INS) कोच्चि इस अभ्यास में भाग ले रहा है। इस अभ्यास में दोनों नौसेनाओं के बीच कई तटीय और समुद्र आधारित अभ्यास शामिल हैं।
    • INS कोच्चि कोलकाता-श्रेणी के स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक का दूसरा जहाज़ है, जिसे भारतीय नौसेना द्वारा कोड नाम प्रोजेक्ट 15ए (Project 15A) के तहत बनाया गया था।
    • इस जहाज़ को 'नेटवर्क्स का नेटवर्क' (Network of Networks) कहा जाता है क्योंकि यह परिष्कृत डिजिटल नेटवर्क, अत्याधुनिक हथियारों और सेंसर से लैस है जो किसी भी समुद्री खतरे से निपटने में सक्षम है।
  • एक-दूसरे की परिचालन प्रथाओं की गहरी समझ प्रदान करने के लिये दोनों नौसेनाओं के विषय विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान भी दिये जाएंगे।

लक्ष्य:

  • इसका लक्ष्य इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाने के लिये सामरिक युद्धाभ्यास, खोज और बचाव अभियान तथा एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध अभ्यास करना है।

महत्त्व: 

  • यह खाड़ी क्षेत्र में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम के बीच दोनों देशों के मध्य बढ़ते रक्षा संबंधों को दर्शाता है।
  • यह हिंद महासागर क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग और सुरक्षा को बढ़ाएगा।

प्रमुख भारतीय समुद्री अभ्यास

अभ्यास का नाम

देश का नाम

SLINEX

श्रीलंका

बोंगोसागर और IN-BN CORPAT

बांग्लादेश

जिमेक्स

जापान

नसीम-अल-बहर

ओमान

इंद्र

रूस

ज़ैर-अल-बहरी

कतर

समुद्र शक्ति

इंडोनेशिया

भारत-थाई कॉर्पेट

थाईलैंड

IMCOR 

मलेशिया

सिम्बेक्स

सिंगापुर

औसइंडेक्स

ऑस्ट्रेलिया

मालाबार अभ्यास

जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका


केव लाॅयन

Cave Lion

हाल ही में वैज्ञानिकों ने लगभग पूरी तरह से संरक्षित दो केव लाॅयन (Cave Lion) शावकों की खोज की है जो 28,000 वर्ष पहले के थे, इनके उपनाम बोरिस (Boris) और स्पार्टा ( Sparta) हैं।

  • ये साइबेरिया के पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost), रूस में पाए गए। शावक एक-दूसरे से 15 मीटर की दूरी पर पाए गए थे, ये न केवल अलग-अलग जगह पर मिले, बल्कि हज़ारों वर्षो के अंतर पर पैदा हुए थे।

Cave-Lion

प्रमुख बिंदु

संदर्भ:

  • केव लाॅयन (पैंथेरा स्पेलिया-Panthera spelaea), जिसे प्रायः मेगा-लाॅयन के नाम से जाना जाता है, प्रागैतिहासिक लाॅयन की एक प्रजाति है जो अंतिम हिमयुग के दौरान उत्पन्न हुई थी। 
  • आयु- 2.6 मिलियन वर्ष पूर्व से 11,700 वर्ष पूर्व।
    • इसे आमतौर पर लाॅयन की उप-प्रजाति के रूप में रखा जाता है।
  • यह अंतिम हिमयुग के दौरान पूरे उत्तरी यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका में वितरण के साथ ही सबसे आम बड़े शिकारियों में से एक था। यह लगभग 14,000 साल पहले विलुप्त हो गया था।

व्यवहार और विशेषता:

  • केव लाॅयन प्रमुख शिकारी थे, जो हिमयुग के हिरण, बाइसन और अन्य जानवरों का शिकार करते थे। ये लाॅयन भी घात लगाने वाले शिकारी थे, जो प्रतीक्षा में लेटे हुए और प्रभावशाली गति, चपलता तथा ताकत के साथ अपने शिकार से निपटने के लिये अपने निवास से बाहर निकलते थे।
    • 3 मीटर लंबा और 340 किलो वज़नी, यह बिल्ली की अब तक की सबसे बड़ी प्रजाति थी।
  • हालाँकि सभी बिल्लियों की तरह केव लाॅयन कुछ ही दूरी तक शिकार का पीछा कर सकता था।
  • अपने आकार, ताकत और अपेक्षाकृत लंबे पैरों के बावजूद केव लाॅयन लंबी दूरी के शिकार करने मे सक्षम नहीं थे।

खोज का महत्त्व:

  • रूस के विशाल साइबेरियाई क्षेत्र में इसी तरह की खोज नियमितता के साथ बढ़ी है। जलवायु परिवर्तन विश्व के बाकी हिस्सों की तुलना में आर्कटिक को तेज़ गति से गर्म कर रहा है और जिसने कुछ क्षेत्रों में लंबे समय से पर्माफ्रॉस्ट को पिघला दिया है।

पर्माफ्रॉस्ट

परिचय:

  • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
    • पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी में पत्तियाँ, टूटे हुए वृक्ष आदि बिना क्षय हुए पड़े रहते है। इस कारण यह जैविक कार्बन से समृद्ध होती है।
  • ये स्थायी रूप से जमे हुए भूमि-क्षेत्र मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्रों और पृथ्वी के उच्च अक्षांशों (उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के निकट) में पाए जाते हैं।
  • पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में लगभग एक-चौथाई भूमि में पर्माफ्रॉस्ट मौजूद हैं। यद्यपि ये भूमि-क्षेत्र जमे हुए होते हैं, लेकिन आवश्यक रूप से हमेशा बर्फ से ढके नहीं होते।

पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना:

  • आधारिक संरचना की क्षति: कई गाँव पर्माफ्रॉस्ट पर बने हैं। जब पर्माफ्रॉस्ट जम जाता है, तो यह कंक्रीट से भी सख्त होता है। हालाँकि पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना घरों, सड़कों और अन्य आधारिक संरचनाओं को नष्ट कर सकता है।
  • ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: जैसे ही पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, जीवाणु इस सामग्री को विघटित करना शुरू कर देते हैं। यह प्रक्रिया वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ती है।
  • रोग: जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस बर्फ तथा मिट्टी में मौजूद होते हैं। ये नए न जमे हुए रोगाणु इंसानों और जानवरों को गंभीर रूप से बीमार कर सकते हैं।

पारसी नववर्ष: नवरोज़

Parsi New Year: Navroz

भारत में 16 अगस्त को नवरोज उत्सव मनाया जा रहा है।

  • संपूर्ण विश्व में उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत विषुव (वसंत की शुरुआत का प्रतीक) के समय नवरोज़ त्योहार मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

नवरोज़ के बारे में:

  • नवरोज़ को पारसी नववर्ष के नाम से भी जाना जाता है।
  • फारसी में 'नव' का अर्थ है नया और 'रोज़' का अर्थ है दिन, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'नया दिन'(New Day).
  • हालांँकि वैश्विक स्तर पर इसे मार्च में मनाया जाता है। नवरोज़ भारत में 200 दिन बाद आता है और अगस्त के महीने में मनाया जाता है क्योंकि यहांँ पारसी शहंशाही कैलेंडर (Shahenshahi Calendar) को मानते हैं जिसमें लीप वर्ष नहीं होता है।
    • भारत में नवरोज़ को फारसी राजा जमशेद के बाद से जमशेद-ए-नवरोज़ (Jamshed-i-Navroz) के नाम से भी जाना जाता है। राजा जमशेद को शहंशाही कैलेंडर बनाने का श्रेय दिया जाता है।
  • इस त्योहार की खास बात यह है कि भारत में लोग इसे वर्ष  में दो बार मनाते हैं- पहला ईरानी कैलेंडर के अनुसार और दूसरा शहंशाही कैलेंडर के अनुसार जिसका पालन भारत और पाकिस्तान में लोग करते हैं। यह त्योहार जुलाई और अगस्त माह के मध्य आता है।
  • इस परंपरा को दुनिया भर में ईरानियों और पारसियों द्वारा मनाया जाता है।
  • वर्ष 2009 में नवरोज़ को यूनेस्को द्वारा भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल  किया गया था।
    • इस प्रतिष्ठित सूची में उन अमूर्त विरासत तत्त्वों को शामिल किया जाता है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।

पारसी धर्म (ज़ोरोएस्ट्रिनिइज़्म) 

  • पारसी धर्म/ज़ोरोएस्ट्रिनिइज़्म पारसियों द्वारा अपनाए जाने वाले सबसे पहले ज्ञात एकेश्वरवादी विश्वासों में से एक है।
  • इस धर्म की आधारशिला 3,500 वर्ष पूर्व प्राचीन ईरान में पैगंबर जरथुस्त्र (Prophet Zarathustra) द्वारा रखी गई थी।
  • यह 650 ईसा पूर्व से 7वीं शताब्दी में इस्लाम के उद्भव तक फारस (अब ईरान) का आधिकारिक धर्म था और 1000 वर्षों से भी अधिक समय तक यह  प्राचीन विश्व के महत्त्वपूर्ण  धर्मों में से एक था।
  • जब इस्लामी सैनिकों ने फारस पर आक्रमण किया, तो कई पारसी लोग भारत (गुजरात) और पाकिस्तान में आकर बस गए।
  • पारसी ('पारसी' फारसियों के लिये गुजराती है) भारत में सबसे बड़ा एकल समूह है।  विश्व में इनकी कुल अनुमानित आबादी 2.6 मिलियन है।
  • पारसी अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों में से एक है।

पारंपरिक नववर्ष के त्योहार

चैत्र शुक्लादि:

  • यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है।
  • विक्रम संवत उस दिन से संबंधित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का आह्वान किया।

गुड़ी पड़वा और उगादि:

  • ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में लोगों द्वारा मनाए जाते हैं।

नवरेह:

  • यह कश्मीर में मनाया जाने वाला चंद्र नववर्ष है तथा इसे  चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आयोजित किया जाता है।

शाजिबू चीरोबा:

  • यह मैतेई (मणिपुर में एक जातीय समूह) द्वारा मनाया जाता है जो मणिपुर चंद्र माह शाजिबू  (Manipur lunar month Shajibu) के पहले दिन मनाया जाता है, यह हर वर्ष अप्रैल के महीने में आता है।

चेटी चंड:

  • सिंधी ‘चेटी चंड’ को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। चैत्र माह को सिंधी में 'चेत' कहा जाता है।
  • यह दिन सिंधियों के संरक्षक संत उदयलाल/झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

बिहू:

  • यह साल में तीन बार मनाया जाता है।
  • बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू, जिसे हतबिहू (सात बिहू) भी कहा जाता है, यह असम तथा पूर्वोत्तर भारत के अन्य भागों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक आदिवासी जातीय त्योहार है।
  • रोंगाली या बोहाग बिहू असमिया नववर्ष और वसंत त्योहार है।

बैसाखी:

  • इसे भारतीय  किसानों द्वारा धन्यवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • सिख समुदाय के लिये भी इसका धार्मिक महत्त्व है क्योंकि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की नींव रखी गई थी।

लोसूंग:

  • इसे नामसूंग के रूप में भी जाना जाता है, यह सिक्किम का नया वर्ष  है।
  • यह आमतौर पर वह समय होता है जब किसान खुश होकर अपनी फसल का जश्न मनाते हैं।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2