प्रारंभिक परीक्षा
भारत में झींगा पालन
- 15 Apr 2025
- 5 min read
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत की जलीय कृषि देश के पोषण और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक और झींगा उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
- भारत के झींगा उत्पादन में 17% की वार्षिक वृद्धि देखी गई है जिससे घरेलू खपत और निर्यात दोनों में योगदान मिला है।
जलीय कृषि क्या है?
- जलीय कृषि की परिभाषा:
- जलीय कृषि से तात्पर्य वाणिज्यिक, मनोरंजक और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों सहित जलीय जीवों के पालन और प्रबंधन से है।
- इसे कृषि का जलीय प्रतिरूप माना जाता है, जिसमें समुद्री और मीठे जल की प्रजातियों के पालन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- वैश्विक विकास:
- जलीय कृषि विश्व भर में सबसे तेजी से बढ़ते खाद्य उत्पादन क्षेत्रों में से एक है।
- वर्तमान में इससे विश्व भर में उपभोग किये जाने वाले समुद्री भोजन के 50% से अधिक की आपूर्ति होती है।
- अग्रणी उत्पादक:
- चीन वैश्विक जलीय कृषि में अग्रणी है और कुल उत्पादन में लगभग 60% हिस्सा चीन का है। अन्य प्रमुख उत्पादकों में इंडोनेशिया, भारत और वियतनाम शामिल हैं।
भारत में झींगा पालन की स्थिति क्या है?
- झींगा: उच्च प्रोटीन और कम वसा के कारण, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग बढ़ती जा रही है।
- एक प्रीमियम किस्म, ब्लैक टाइगर प्रॉन (पेनियस मोनोडोन), अपने आकार और गुणवत्ता के लिये अत्यधिक मूल्यवान है।
- इन झींगों को 10-25 ग्राम/लीटर लवणता की आवश्यकता होती है जबकि समुद्री जल की लवणता 35 ग्राम/लीटर होती है।
- भारत में झींगा उत्पादन में आँध्र प्रदेश का सबसे अधिक योगदान है, इसके बाद पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओडिशा और गुजरात का स्थान है।
- तटीय आँध्र प्रदेश में खारे भू-जल को नदियों और नहरों के ताजे जल के साथ मिश्रित किया जाता है।
- किसानों की नवीन पद्धतियाँ: आँध्र प्रदेश के शिव राम रुद्रराजू ने उपज बढ़ाने और रोगाणुओं के जोखिम को कम करने के लिये छोटे तालाबों का उपयोग किया।
- छोटे तालाब बीमारी के प्रकोप के दौरान आर्थिक नुकसान को रोकने में मदद करते हैं।
- प्रत्येक चक्र 4-6 महीने तक चलता है जिसके बाद तालाबों को सुखाया और साफ किया जाता है।
- झींगा पालन में रोग नियंत्रण: विब्रियो हार्वेई जैसे जीवाणु संक्रमण और व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम जैसे विषाणु प्रकोप से उत्पादन में 25% तक वार्षिक हानि हो सकती है।
- नियंत्रण के उपाय:
- कौओं द्वारा होने वाले प्रदूषण की रोकथाम करने हेतु किसान तालाबों पर प्लास्टिक के जालों का आवरण कर देते हैं।
- झींगों को क्षति पहुँचाए बिना हानिकारक रोगाणुओं से निपटने के लिये बैसिलस बैक्टीरिया जैसे प्रोबायोटिक्स मिलाए जाते हैं।
- चेन्नई स्थित ICAR-CIBA ने 'विशिष्ट रोगाणु मुक्त' ब्रूडस्टॉक विकसित किया है, जिसका पालन जैवसुरक्षित वातावरण में किया गया है तथा रोग मुक्त होने का प्रमाण पत्र दिया गया है।
- फेज थेरेपी में बैक्टीरियोफेज़ वायरस का उपयोग किया जाता है जो अन्य जीवों को नुकसान पहुँचाए बिना विशेष रूप से विब्रियो बैक्टीरिया को लक्षित करता है।