रैपिड फायर
भारत में ओलिव रिडले कछुए
- 12 Apr 2025
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स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
एक अध्ययन के अनुसार हिंद महासागर में पाए जाने वाले ओलिव रिडले कछुए विश्व के प्राचीनतम कछुओं में से हैं।
- मुख्य निष्कर्ष: हिंद महासागर के ऑलिव रिडले पूर्व में जलवायु में हुए परिवर्तनों के बावजूद जीवित बचे रहे, जबकि अटलांटिक और प्रशांत महासागर क्षेत्र के कछुए लगभग 300,000-400,000 वर्ष पहले उनसे अलग हो गए थे।
- यह उस पूर्व मान्यता के विपरीत है जिसके अनुसार पनामा इस्तमुस के निर्माण के कारण मध्य अमेरिकी कछुए प्राचीनतम हैं।
- ऑलिव रिडले (Lepidochelys olivacea): यह सरीसृप वर्ग और चेलोनीडी कुल से संबंधित है, यह समुद्री कछुओं की सबसे छोटी प्रजाति है, जो अपने जैतून अथवा भूरे-हरे रंग और हृदयाकार आवरण से पहचानी जाती है।
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ऑलिव रिडले सर्वाहारी होते हैं और अरिबाडा नामक सामूहिक नीडन क्रिया करते हैं, जिसमें अनेकों मादा कछुए एक साथ नीडन करती हैं।
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वे प्रशांत महासागर से भारतीय सागर में 9,000 किमी. तक प्रवास करते हैं, दिसंबर से मार्च के बीच 1-3 बार नीडन करते हैं तथा प्रत्येक समूह में लगभग 100 अंडे देते हैं।
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- प्रमुख नीडन स्थल: ओडिशा का गहिरमाथा और रुशिकुल्या ओलिव रिडले कछुओं के लिये विश्व के सबसे बड़े नीडन स्थलों में से हैं। वर्ष 2024 में, इन नीडन स्थलों पर 1.3 मिलियन से अधिक कछुओं ने अंडे दिये, जो वर्ष 2023 में 1.15 मिलियन के पूर्व रिकॉर्ड से भी अधिक था।
- भारत में अन्य महत्त्वपूर्ण नीडन स्थलों में ओडिशा में देवी नदी का मुहाना और अंडमान द्वीप समूह शामिल हैं।
- खतरे: मत्स्यन के उपकरणों में बाईकैच, अवैध शिकार, पर्यावास का ह्रास और प्लास्टिक प्रदूषण। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और समुद्र के जल स्तर में होने वाली वृद्धि से नीडन और आहार उपलब्धता सीमित हो जाती है।
- संरक्षण स्थिति: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (अनुसूची 1), IUCN रेड लिस्ट (सुभेद्य), और CITES (परिशिष्ट I)
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