'आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण' का अपराध | 16 Oct 2024

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 'आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण' के अपराध की व्याख्या कर ऐसे मामलों में दोष निर्धारित करने के मानदंडों का विवरण प्रदान किया।

'आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण' क्या है?

  • आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108) के तहत अपराध है।
    • इस अपराध के लिये 10 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 45 के अनुसार, दुष्प्रेरण (अर्थात् उकसाना) तब होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अवैध कार्य के निष्पादन में सहायता करता है, किसी कार्य को करने के लिये दूसरों के साथ षड्यंत्र करता है, या किसी अन्य को कार्य करने के लिये उकसाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या:
    • यह अपराध तब बनता है जब अभियुक्त के “प्रत्यक्ष और भयावह प्रोत्साहन या उकसावे” के कारण मृतक के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता।
    • न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश निर्धारित किये कि किन स्थितियों में असहनीय उत्पीड़न या भावनात्मक शोषण शामिल था, जिसने मृतक को आत्महत्या के लिये प्रेरित किया।
    • न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश निर्धारित किये हैं कि क्या कोई कार्य आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के रूप में योग्य है, जिसने मृतक को आत्महत्या के लिये प्रेरित किया। इनमें शामिल हैं:
      • अभियुक्तों ने असहनीय उत्पीड़न या यातना जैसी ऐसी स्थिति पैदा की जहाँ मृतक को आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखा।
      • अभियुक्त ने मृतक की भावनाओं से छेड़छाड़ की, जिससे उन्हें जीवन के लिये बेकार या अयोग्य महसूस हुआ।
      • अभियुक्त ने मृतक या उनके परिवार को नुकसान पहुँचाने या आर्थिक बर्बादी की धमकी दी, जिससे मृतक को आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखा।
      • अभियुक्तों ने झूठे आरोप लगाए जिससे पीड़िता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा, सार्वजनिक रूप से अपमानित होना पड़ा तथा उसकी गरिमा को ठेस पहुँची।
  • संबंधित मामले:
    • एम मोहन बनाम राज्य, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि IPC की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण को साबित करने हेतु प्रत्यक्ष इरादे (Direct Act with Intent) से कार्य करना आवश्यक है, जिससे पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
      • उदे सिंह बनाम हरियाणा राज्य, 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण को साबित करना मामले की बारीकियों पर निर्भर करता है, जिसके लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रेरण की आवश्यकता होती है, जिससे पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
  • आत्महत्या रोकथाम के लिये सरकारी पहल:

भारत में आत्महत्या से संबंधित आँकड़े क्या हैं?

  • एनसीआरबी द्वारा संकलित आँकड़े पुलिस द्वारा दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) पर आधारित हैं ।
    • छात्र आत्महत्याओं में वृद्धि: भारत में छात्र आत्महत्याओं में प्रतिवर्ष 4% की वृद्धि हुई है, जो कि कुल आत्महत्या दर में 2% की वृद्धि से अधिक है , बावजूद इसके कि छात्र आत्महत्या के मामलों की "कम रिपोर्टिंग" की जाती है।
    • लैंगिक असमानता:वर्ष 2022 में, कुल छात्र आत्महत्याओं में 53% पुरुष छात्र थे। वर्ष 2021 से पुरुष आत्महत्याओं में 6% की कमी आई, जबकि महिला छात्रों की आत्महत्याओं में 7% की वृद्धि देखी गई।
    • दशक का रुझान: पिछले दशक में, 0-24 आयु वर्ग की आबादी में अल्प कमी के बावजूद, छात्र आत्महत्याओं की संख्या 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गयी
    • राज्यवार वितरण: महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में छात्र आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक है, जो कुल राष्ट्रीय आँकड़ों का एक तिहाई है।
  • आत्महत्या से संबंधित कानूनी मानदंड:
    • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (MHCA) की धारा 115 में प्रावधान किया  गया है कि आत्महत्या के प्रयास को गंभीर तनाव का परिणाम माना जाएगा और व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। 
    • यद्यपि भारतीय न्याय संहिता ने आत्महत्या का प्रयास करने संबंधी धारा को कानून की पुस्तकों से हटा दिया है, फिर भी आत्महत्या  का प्रयास करना अभी भी आपराधिक रूप से दंडनीय है।
      • भारतीय न्याय संहिता की धारा 224 में कहा गया है कि किसी भी लोकसेवक को अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करने के लिये मजबूर करने के इरादे से आत्महत्या का प्रयास करने पर एक वर्ष तक कारावास, जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा।