NCERT के पाठ्यक्रम में ‘वीर अब्दुल हमीद’ पर अध्याय | 21 Sep 2024

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'वीर अब्दुल हमीद' शीर्षक से एक अध्याय और 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' शीर्षक से एक कविता को कक्षा VI के NCERT पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

NCERT पाठ्यपुस्तक में हुए परिवर्तनों से जुड़े प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • 'वीर अब्दुल हमीद' पर अध्याय: यह कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार (CQMH) अब्दुल हमीद को सम्मानित करता है। वह वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के एक युद्ध नायक हैं जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
    • उनकी बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान की कहानी का उद्देश्य छात्रों को देशभक्ति और कर्तव्य के प्रति समर्पण के वास्तविक जीवन के उदाहरणों से प्रेरित करना है।
  • 'राष्ट्रीय युद्ध स्मारक' पर कविता: इसका उद्देश्य राष्ट्र के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि देना तथा उनकी बहादुरी के प्रति राष्ट्रीय गौरव एवं स्मरण की भावना को प्रोत्साहित करना है।
  • NEP 2020 और NCF 2023 के अनुरूप: ये परिवर्तन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) 2023 के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं। 
    • NEP 2020 और NCF 2023 समग्र शिक्षा पर ज़ोर देते हैं जो नैतिक मूल्यों, देशभक्ति तथा ज़िम्मेदार नागरिकों के विकास को प्रोत्साहित करती है।

वीर अब्दुल हमीद के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • अब्दुल हमीद के बारे में: उन्होंने भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर्स बटालियन के साथ सेवा की और वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान असल उत्तर की लड़ाई में भारत के रक्षा बल का हिस्सा थे।
  • असल उत्तर की लड़ाई: असल उत्तर की लड़ाई सितंबर 1965 की शुरुआत में पंजाब में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास, खेमकरण शहर के पास हुई थी।
    • पाकिस्तान का लक्ष्य भारत पर आक्रमण करना, खेमकरण पर कब्जा करना तथा अमृतसर जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को अलग-थलग करने के लिये व्यास नदी पुल की ओर बढ़ना था।
    • बड़ी संख्या में बेहतर पैटन टैंकों का उपयोग करते हुए पाकिस्तान के आक्रमण ने भारतीय सेना को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे शुरू में उन्हें पीछे हटने पर मज़बूर होना पड़ा। 
      • यह वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के सबसे बड़े टैंक युद्धों में से एक थी।
  • अब्दुल हमीद की भूमिका: अब्दुल हमीद अमृतसर-खेम करण रोड पर चीमा गाँव के पास तैनात थे , जहाँ वह दुश्मन के टैंकों को निशाना बनाने के लिये रिकोइललेस गन (Recoilless Guns) की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। 
    • 10 सितंबर, 1965 को उन्होंने चार पाकिस्तानी पैटन टैंक देखे, जिनमें से तीन को नष्ट कर दिया और एक को क्षतिग्रस्त कर दिया। बाद में दूसरे टैंक से हुई गोलीबारी में उनकी मृत्यु हो गई।
  • सम्मान: उनकी मृत्यु का स्थान अब युद्ध स्मारक का हिस्सा है। 
    • एक पाकिस्तानी पैटन टैंक जिस पर युद्ध के दौरान कब्ज़ा कर लिया गया था भवन के प्रवेश द्वार पर स्थित है, जो युद्ध में लड़ने और शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि है।