प्रारंभिक परीक्षा
राष्ट्रपति भवन में कोणार्क व्हील्स
- 11 Nov 2024
- 6 min read
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र एवं अमृत उद्यान में कोणार्क मंदिर के प्रतिष्ठित कोणार्क व्हील्स की चार बलुआ पत्थर की प्रतिकृतियाँ स्थापित की गई हैं। यह पहल राष्ट्रपति भवन में पारंपरिक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक तत्त्वों को शामिल करने के विविध प्रयासों में से एक है।
- कोणार्क मंदिर को वर्ष 1984 में UNESCO विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इसका निर्माण ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली में किया गया है।
ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली
- यह नागर वास्तुकला शैली की उप-शैली है और यह पूर्वी भारत के मंदिरों में मिलती है।
- ओडिशा के मंदिरों की मुख्य स्थापत्य विशेषताओं को तीन क्रमों में वर्गीकृत किया गया है अर्थात् रेखापिडा, पिधादेउल और खाकरा।
- अधिकांश मुख्य मंदिर स्थल प्राचीन कलिंग (आधुनिक पुरी ज़िले) में स्थित हैं, जिनमें भुवनेश्वर या प्राचीन त्रिभुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क शामिल हैं।
- सामान्यतः शिखर (जिसे ओडिशा में देउल कहा जाता है) लगभग शीर्ष तक सीधा रहता है, फिर एकाएक अंदर की ओर मुड़ा रहता है।
- ओडिशा में हमेशा की तरह देउल से पहले मंडप बनाए जाते हैं, जिन्हें जगमोहन कहा जाता है।
- ओडिशा के मंदिरों में आमतौर पर चाहरदीवारी होती है।
- मुख्य मंदिर की योजना लगभग हमेशा वर्गाकार होती है, जो इसके अधिष्ठान के ऊपरी हिस्से में गोलाकार होती है।
- कक्ष आमतौर पर वर्गाकार होने के साथ मंदिरों के बाहरी भाग में भव्य नक्काशी देखने को मिलती है तथा उनके अंदरूनी भाग आमतौर पर सपाट होते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर से संबंधित मुख्य तथ्य और इसका महत्त्व क्या है?
- परिचय:
- कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है।
- इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई.) में कराया गया था। यह गंग वंश के वैभव, स्थापत्य, मज़बूती और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है।
- पूर्वी गंग राजवंश को रूधि गंग या प्राच्य गंग के नाम से भी जाना जाता है।
- यह एक प्रमुख भारतीय शाही राजवंश था जिसने 5वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी के प्रारंभ तक कलिंग पर शासन किया था।
- मंदिर की मुख्य विशेषताएँ:
- विमान के ऊपर एक ऊंचा टॉवर (शिखर) था, जिसे रेखा देउल के नाम से भी जाना जाता था, जिसे 19वीं शताब्दी में ध्वस्त कर दिया गया था।
- पूर्व की ओर जगमोहन (दर्शक कक्ष या मंडप) अपने पिरामिड आकार रूप में है।
- इससे पूर्व की ओर नटमंदिर (नृत्य हॉल-जिसकी वर्तमान में छत नहीं है), एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है।
- वास्तुशिल्पीय महत्त्व:
- रथ का डिज़ाइन: मंदिर एक विशाल रथ का आकार है जिसमें 7 घोड़े हैं जो सप्ताह के दिनों का प्रतीक हैं और 24 पहिए हैं जो दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहिया निर्माण: प्रत्येक पहिये का व्यास 9 फीट 9 इंच है तथा इसमें 8 मोटी और 8 पतली तीलियाँ हैं, जो प्राचीन सूर्यघड़ी के रूप में काम करती हैं।
- जटिल नक्काशी में गोलाकार पदक, पशु और किनारों पर पत्ते, साथ ही पदकों के भीतर विलासिता के दृश्य शामिल हैं।
- प्रतीकात्मक तत्त्व: पहियों के 12 जोड़े वर्ष के महीनों को दर्शाते हैं, जबकि कुछ व्याख्याएँ पहिये को 'जीवन के चक्र' से जोड़ती हैं जो सृजन, संरक्षण और प्राप्ति का चक्र है।
- सांस्कृतिक विरासत:
- धर्म और कर्म: कोणार्क चक्र बौद्ध धर्म के धर्मचक्र के समान है, जो धर्म और कर्म के ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतीक है।
- राशि प्रतिनिधित्व: एक अन्य व्याख्या के अनुसार 12 पहिये राशि चिह्न का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इसे ज्योतिषीय और ब्रह्मांडीय सिद्धांतों से जोड़ता है।
- सूर्यघड़ी की कार्यक्षमता:
- समय मापन: दो पहिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय निर्धारित कर सकते हैं।
- स्पोक व्यवस्था: चौड़ी स्पोक 3 घंटे के अंतराल को दर्शाती हैं, पतली स्पोक 1.5 घंटे की अवधि को दर्शाती हैं तथा स्पोक के बीच की मालाएँ 3 मिनट की वृद्धि को दर्शाती हैं।
- मध्यरात्रि चिह्न: शीर्ष मध्य का चौड़ा स्पोक मध्यरात्रि का प्रतीक है, जिसमें डायल समय प्रदर्शित करने के लिये वामावर्त घूमता है।
- समय मापन: दो पहिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय निर्धारित कर सकते हैं।
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