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भारत की आर्थिक संवृद्धि के लिये प्रमुख सुधारों की आवश्यकता

  • 20 Aug 2024
  • 10 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के उप प्रबंध निदेशक ने विकसित अर्थव्यवस्था बनने के भारत के मार्ग पर प्रकाश डालते हुए घरेलू स्तर पर संसाधनों के एकत्रीकरण एवं बुनियादी ढाँचे में निवेश तथा महिला कार्यबल की भागीदारी में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।

भारत की आर्थिक संवृद्धि हेतु कौन-से प्रमुख सुधार आवश्यक हैं?

  • GST का सरलीकरण: भारत की कर संरचना को सरल बनाने की आवश्यता है तथा कम कर दरों को कम करके कर आधार को विस्तृत किया जा सकता है, वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के सापेक्ष अधिक धन जुटाया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप GDP का अतिरिक्त 1% राजस्व प्राप्त हो सकता है।
    • कर GDP अनुपात किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के सापेक्ष उसके कर राजस्व का अनुपात है।
      • यह किसी देश की कर नीति, संभावित करों और सीमापार कर राजस्व तुलनाओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
    • देशों को घरेलू संसाधन संग्रहण पर निर्भर रहना होगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं या बहुपक्षीय विकास बैंकों से प्राप्त धनराशि, आवश्यक व्यय का एक अंश ही होगी।  
      • भारत के मामले में, राजकोषीय गुंजाइश (Fiscal Space) को बढ़ाने के लिये सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले राजस्व में वृद्धि की जानी चाहिये, न कि समग्र व्यय में कटौती की जानी चाहिये।
  • व्यक्तिगत आयकर आधार का विस्तार: व्यक्तिगत आयकर आधार का विस्तार करना, कर छूट में खामियों को कम करना तथा बेहतर प्रौद्योगिकी के माध्यम से संपत्ति कर संग्रह में सुधार करना, भारत की कराधान प्रणाली में पर्याप्त प्रगतिशीलता सुनिश्चित करने तथा राजस्व सृजन को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इसके अतिरिक्त राजकोषीय संसाधनों को बढ़ाने के लिये पूंजीगत लाभ और संपत्ति करों का प्रभावी संग्रह आवश्यक है।
  • लक्षित सब्सिडी सुधार: भारत लाभ और सब्सिडी को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित करके भी धन की बचत कर सकता है, जैसे कि खेत के आकार के आधार पर उर्वरक सब्सिडी प्रदान करना, जैसा कि कर्नाटक में पायलट परियोजना के रूप में किया जा रहा है। 
    • यह सुनिश्चित करना कि सब्सिडी सही लाभार्थियों तक पहुँचे, राजस्व बचत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
  • कुशल कार्यबल और शिक्षा: भारत की आर्थिक उन्नति के लिये शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और अधिक कुशल कार्यबल विकसित करना आवश्यक है। इसमें औपचारिक शिक्षा तथा कौशल अधिग्रहण में सुधार शामिल है, ताकि विशेष रूप से G20 समकक्षों की तुलना में प्रतिस्पर्द्धी कार्यबल सुनिश्चित किया जा सके।
  • महिलाओं की श्रम बल भागीदारी: उच्च आय की स्थिति प्राप्त करने के लिये महिलाओं की भागीदारी को वर्तमान 35% से बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • इसके लिये न केवल महिलाओं हेतु अधिक अवसर सृजित करने की आवश्यकता है, बल्कि सुरक्षित कार्यस्थल भी सुनिश्चित करना होगा।
  • रोज़गार सृजन और नीतियाँ: भारत को अगले दशक में वार्षिक 10 से 24 मिलियन रोज़गार सृजित करने की आवश्यकता है। इसके लिये विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिये पर्याप्त प्रयास करने की आवश्यकता होगी।
    • व्यापक रोज़गार अवसर सुनिश्चित करने के लिये केवल कुछ उद्योगों तक ही सीमित न रहकर अनेक क्षेत्रों तक समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है।
  • भूमि एवं श्रम सुधार: उच्च आय वाले देश में परिवर्तन के लिये भूमि एवं श्रम सुधार भी आवश्यक हैं।
    • श्रम बाज़ारों में अनुकूलनशीलता की आवश्यकता है। वर्ष 2019 की श्रम संहिता अनुकूलनशीलता  और कामगारों की सुरक्षा के बीच संतुलन प्रदान करती हैं, लेकिन उनका प्रभावी कार्यान्वयन भी ज़रूरी है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: आर्थिक गतिविधि के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने हेतु नियामक वातावरण में सुधार, न्यायिक प्रणाली की दक्षता में वृद्धि और व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना आवश्यक है।
  • व्यापार के प्रति स्पष्टता और कम टैरिफ: भारत को अपनी औसत टैरिफ दरें कम करनी चाहिये तथा इन्हें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अनुकूल सुलभ बनना चाहिये।
    • व्यापार बाधाओं को कम करके भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में स्वयं को बेहतर रूप से एकीकृत कर सकेगा तथा वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकेगा।
  • बुनियादी अवसरंचना में निवेश: हालाँकि भारत ने सार्वजनिक और डिजिटल बुनियादी अवसरंचना में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन अभी भी विकास की आवश्यकता है। आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये इस क्षेत्र में निरंतर निवेश आवश्यक है।

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति

  • भारत का लक्ष्य "विकसित भारत 2047" के बैनर तले वर्ष 2047 तक "विकसित राष्ट्र" बनना है।
  • भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। मॉर्गन स्टेनली के विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत वर्ष 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर पहुँच सकता है।
    • भारत ने 7% की दर से वार्षिक संवृद्धि दर्ज़ करते हुए  महत्त्वपूर्ण प्रगति की है और सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन चुनौती यह है कि उच्च प्रति व्यक्ति आय व उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की ओर गति को बनाए रखा जाए और बढ़ाया जाए।
  • भारत के डिजिटल गवर्नेंस सुधारों ने वित्तीय समावेशन में सहयोग प्रदान किया है, सार्वजनिक सेवा वितरण को सुव्यवस्थित किया और भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया है। डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र का काफी विस्तार हुआ है जिससे लाखों लोग आसानी से लेन-देन कर पा रहे हैं।
  • वर्तमान आर्थिक संकेतक:
    • मौद्रिक GDP: वित्त वर्ष 24 के लिये 3.54 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर, जो मज़बूत वृद्धि को दर्शाता है। 
    • वास्तविक GDP वृद्धि: वित्त वर्ष 24 के लिये 8.2% अनुमानित की गई।
  • आय स्तर के आधार पर विश्व बैंक का वर्गीकरण: वर्ष 2006 तक विश्व बैंक ने भारत को निम्न आय वाले राष्ट्र के रूप में वर्गीकृत किया था। वर्ष 2007 में, भारत निम्न-मध्यम आय समूह में परिवर्तित हो गया और तब से उसी वर्गीकरण में बना हुआ है।

और पढ़ें: वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत को निम्न-मध्यम आय से विकसित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिये किन महत्त्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुक़ाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)

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