जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान | 30 Nov 2024
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के कोर और बफर ज़ोन से होकर निजी बसों के संचालन के मुद्दे पर विचार करते हुए वन्यजीव संरक्षण और स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने पर ज़ोर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के वर्ष 2020 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मुख्य क्षेत्र के भीतर निजी बसों को अनुमति दी गई थी, जिस पर वर्ष 2021 से रोक लगी हुई थी।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 38(o) में कहा गया है कि बाघ अभयारण्यों को पारिस्थितिक रूप से असंवहनीय उपयोगों के लिये नहीं बदला जा सकता।
- यदि ऐसा परिवर्तन आवश्यक हो तो उत्तराखंड राज्य को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सलाह पर राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
- संरक्षित क्षेत्रों के परिवर्तन में पारिस्थितिकी तंत्र को दीर्घकालिक नुकसान से बचाने के लिये सख्त दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिये।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 38(o) में कहा गया है कि बाघ अभयारण्यों को पारिस्थितिक रूप से असंवहनीय उपयोगों के लिये नहीं बदला जा सकता।
- उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का हिस्सा है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1936 में बंगाल बाघ के संरक्षण के लिये हैली राष्ट्रीय उद्यान के रूप में की गई थी, यह भारत का सबसे तथा वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल पहला राष्ट्रीय उद्यान है।
- कोर ज़ोन प्राकृतिक संसाधनों के लिये कानूनी रूप से संरक्षित क्षेत्र है, जबकि इसके चारों ओर का क्षेत्र बफर ज़ोन कहलाता है, जिसमे सुसंगत मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ स्थायी प्रकृति संरक्षण की भी अनुमति प्राप्त होती है।
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