कटक रूपा ताराकासी को GI टैग | 15 Mar 2024
स्रोत: द हिंदू
प्रसिद्ध कटक रूपा तारकासी (सिल्वर फिलिग्री) को इसकी विशिष्ट विरासत और शिल्प कौशल को चिह्नित करते हुए भौगोलिक संकेत (Geographical Indication (GI) टैग प्रदान किया गया है।
- इसका इतिहास प्राचीन मेसोपोटामिया से है, जहाँ 3500 ईसा पूर्व में फिलाग्री से आभूषण सजाए जाते थे, फारस और इंडोनेशिया के रास्ते कटक तक की इसकी यात्रा समुद्री व्यापार मार्गों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- फिलाग्री विशेष रूप से सोने, चाँदी या ताँबे के महीन तार का सजावटी काम है जिसका उपयोग मुख्य रूप से सोने और चाँदी की सतहों पर किया जाता है।
- कटक रूपा तारकासी के साथ-साथ बांग्लार मलमल (पश्चिम बंगाल), नरसापुर क्रोकेट लेस (आंध्र प्रदेश) और कच्छ रोगन शिल्प (गुजरात) जैसे अन्य शिल्पों ने भी भारत के पारंपरिक शिल्प की विविधता एवं उत्कृष्टता पर बल देते हुए GI दर्जा हासिल किया है।
- GI टैग एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक लेबल है जो यह सुनिश्चित करता है कि केवल उस क्षेत्र के अधिकृत उपयोगकर्त्ता ही उत्पाद के नाम का उपयोग कर सकते हैं।
- यह नकल से बचाता है और एक बार पंजीकृत होने के बाद 10 साल तक वैध होता है।
- उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ट्रिप्स समझौते के अनुरूप वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीयन एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत भारत में GI पंजीकरण का प्रबंधन करता है।
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