प्रारंभिक परीक्षा
समय मापने वाले उपकरणों का विकास
- 07 Aug 2024
- 6 min read
स्रोत : द हिंदू
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, शोधकर्ताओं ने थोरियम-229 नाभिक उत्तेजना के लिये एक लेज़र विकसित करके और इसे एक ऑप्टिकल क्लॉक से जोड़कर परमाणु घड़ियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- समय ज्ञात करने के लिये सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर गणना करने से लेकर परमाणुओं और उनके नाभिकों का उपयोग करने तक विश्व का विकास होता आया है।
समय मापने वाले उपकरण इतिहास में कैसे विकसित हुए?
- ऐतिहासिक समय मापने वाले उपकरण:
- सनक्लॉक: प्राचीन उपकरण जो सूर्य के प्रकाश की छाया डालकर समय बताते थे।
- वाटर क्लॉक: बर्तन में धीरे-धीरे पानी भरकर समय मापा जाता था।
- ऑवरग्लास: समय मापने के लिये पानी की जगह रेत का प्रयोग किया जाता था।
- यांत्रिक घड़ियों का विकास:
- प्रारंभिक मैकेनिकल क्लॉक: उन्नत वाटर क्लॉक में अतिरिक्त टैंक, गियर और पुली शामिल थे।
- एस्ट्रारियम (मध्यकालीन एस्ट्रोनॉमिकल क्लॉक): आकाशीय हलचलों को ट्रैक करने के लिये एक परिष्कृत उपकरण।
- पेंडुलम क्लॉक: स्प्रिंग से चलने वाली घड़ियों में वज़न की जगह कुंडलित स्प्रिंग का प्रयोग किया जाता है।
- मॉडर्न क्लॉक:
- इलेक्ट्रिक क्लॉक: इन घड़ियों का विकास 19वीं सदी में हुआ, जिसमें स्प्रिंग या वज़न के बजाय बैटरी या इलेक्ट्रिक मोटर का इस्तेमाल किया जाता था।
- क्वार्ट्ज़ क्लॉक: इन घड़ियों में क्वार्ट्ज़ क्रिस्टल का इस्तेमाल किया जाता है जो विद्युत से चार्ज होने पर दोलन करता है। ये घड़ियाँ सस्ती और व्यापक रूप से उपलब्ध हैं, जिससे क्वार्ट्ज़ क्लॉक तथा वाॅल क्लॉक की लोकप्रियता बढ़ गई है।
- एटॉमिक क्लॉक:
- ऑपरेशन/परिचालन: समय मापने के लिये लेज़र और समान आइसोटोप के परमाणुओं का प्रयोग किया जाता है। ऊर्जा स्तरों के बीच संक्रमण के दौरान परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति द्वारा समय निर्धारित होता है।
- वन-नेशन-वन-टाइम परियोजना के एक भाग के रूप में भारत पूरे देश में एटॉमिक क्लॉक स्थापित कर रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल उपकरणों पर समय भारतीय मानक समय के अनुरूप हो।
- सीज़ियम एटॉमिक क्लॉक: इसमें सीज़ियम-133 परमाणुओं का प्रयोग होता है और IST को बनाए रखने में अत्यधिक सटीक होती हैं।
- IST एक सीज़ियम एटॉमिक क्लॉक है जिसका प्रयोग राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL) नई दिल्ली में किया जाता है।
- वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (CSIR–NPL) IST का रखरखाव करती है।
- नेक्स्ट जनरेशन ऑप्टिकल क्लॉक: समय की और भी अधिक सटीकता प्राप्त करने के लिये स्ट्रॉन्टीयम या यटरबियम जैसे परमाणुओं का प्रयोग किया जाता है।
- ऑपरेशन/परिचालन: समय मापने के लिये लेज़र और समान आइसोटोप के परमाणुओं का प्रयोग किया जाता है। ऊर्जा स्तरों के बीच संक्रमण के दौरान परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति द्वारा समय निर्धारित होता है।
- समय-निर्धारण में भावी विकास:
- न्यूक्लियर क्लॉक/परमाणु घड़ी: और भी अधिक परिशुद्धता के लिये घड़ियों के निर्माण में परमाणुओं के नाभिक का प्रयोग किया जाता है। इन परमाणु घड़ियों की उत्सर्जन आवृत्ति लगभग 2,020 टेराहर्ट्ज़ होती है जो अति-उच्च परिशुद्धता को दर्शाती है।
भारत में घड़ियों का इतिहास किस प्रकार विकसित हुआ?
- भारतीय इतिहास में घड़ियों का विकास स्वदेशी सरलता और बाह्य प्रभावों का एक समृद्ध मिश्रण दर्शाता है।
- प्राचीन भारत में समय निर्धारित करने के विभिन्न तरीके अपनाए जाते थे, जैसे कि जल घड़ियाँ (जिसे घटिका यंत्र के नाम से जाना जाता है) और सूर्य घड़ियाँ जिनका प्रयोग मंदिरों और दैनिक गतिविधियों में किया जाता था।
- प्राचीन भारतीय महत्त्वपूर्ण घटनाओं को सटीक रूप से रिकॉर्ड करने के लिये सितारों और ग्रहों की स्थिति (नक्षत्रों) का उपयोग करके समय का पता लगाते थे।
- ग्रहों की स्थिति से जुड़ी समय-सारिणी ने ज्योतिष के विकास और मानव जीवन पर ग्रहों के प्रभाव की खोज़ को जन्म दिया।
- उन्नत प्रणाली के बावजूद, दैनिक समय का निर्धारण प्रायः घंटों या पहरों में किया जाता था और सामान्य जनता के उपयोग के लिये साधारण घड़ी टॉवर ही पर्याप्त थे।
- इस्लामी शासकों के आगमन के साथ, स्थानीय परंपराओं के साथ मिश्रित होकर अधिक एडवांस वॉटर क्लॉक और खगोलीय उपकरण विकसित हुए।
- औपनिवेशिक काल में यांत्रिक घड़ियों और पॉकेट घड़ियों का प्रचलन हुआ।