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दौलताबाद किला

  • 10 Apr 2025
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर ज़िले में दौलताबाद किले में लगी आग के बाद  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हुई क्षति का आकलन शुरू कर दिया है। 

  • महत्त्व: मूल रूप से इसे देवगिरि (देवताओं की पहाड़ी) कहा जाता था। 14वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुगलक ने जब अपनी राजधानी यहाँ स्थानांतरित की तो इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया गया।
    • यह स्थल यादवों, तुगलकों, बहमनी, निजामशाही, मुगलों और हैदराबाद के निजामों से पहले मराठों सहित कई राजवंशों की राजधानी रहा है।
    • यह एक यूनेस्को-नामांकित विरासत स्थल है जो अपने ऐतिहासिक, वास्तुशिल्प और पारिस्थितिकी महत्त्व के लिये जाना जाता है।
  • वास्तुकला की उत्कृष्टता: दौलताबाद किला तीन स्तरों पर अंबरकोट, महाकोट और कालाकोट में खाइयों, बुर्जों तथा लोहे के नुकीली दरवाजों से घिरा हुआ है।
  • इसमें अंधेरी नामक एक घातक सुरंग है , जिसका उपयोग आक्रमणकारियों को फंसाने और उन पर हमला करने के लिये किया जाता था।
  • स्मारक एवं संरचनाएँ:

    • चाँद मीनार (1435 ई.): कुतुबमीनार के अनुरूप निर्मित इंडो-इस्लामिक शैली का विजय टॉवर।
    • किले के भीतर स्थित भारत माता मंदिर, कुतुबुद्दीन मुबारक के शासनकाल (1318 ई.) के दौरान पहले जामा मस्जिद था।
    • चीनी महल (एक भव्य महल) को औरंगजेब ने जेल में बदल दिया।
  • तोपखाना और तोपें: यह किला लगभग 288 तोपों से सुसज्जित था इनमें एक उल्लेखनीय तोप औरंगजेब की मेंढा थी जिसे किला शिकन (किला तोड़ने वाला) भी कहा जाता था, जो सैन्य शक्ति का प्रतीक थी।

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