बायो-प्लास्टिक | 27 Nov 2024

चर्चा में क्यों? 

फरवरी 2024 में, भारत के प्रमुख चीनी उत्पादकों में से एक, उत्तर प्रदेश के बलरामपुर चीनी मिल्स ने बायो-प्लास्टिक्स का उत्पादन करने वाली भारत की पहली बायो-प्लास्टिक्स फैक्ट्री में 2,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की।

  • इस परियोजना से चीनी उद्योग में विविधता लाने और पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक  के लिये बायोडिग्रेडेबल विकल्प पेश करके पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।

बायो-प्लास्टिक क्या हैं?

  • परिचय: बायो-प्लास्टिक्स को गन्ना, मक्का जैसे नवीकरणीय कार्बनिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है, जबकि पारंपरिक प्लास्टिक पेट्रोलियम से बने होते हैं। वे हमेशा बायोडिग्रेडेबल या कम्पोस्ट करने योग्य नहीं होते हैं।
    • बायो-प्लास्टिक का उत्पादन मकई और गन्ने जैसे पौधों से चीनी निकालकर और उसे पॉलीलैक्टिक एसिड (PLA) में परिवर्तित करके किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, उन्हें सूक्ष्मजीवों से पॉलीहाइड्रॉक्सीएल्कानोएट्स (PHA) से बनाया जा सकता है जिन्हें फिर बायो-प्लास्टिक में पॉलीमराइज़ किया जाता है।
  • बायो-प्लास्टिक के लाभ: चीनी कंपनियों के लिये बायो-प्लास्टिक पारंपरिक चीनी उत्पादन और इथेनॉल से परे एक नया राजस्व स्रोत प्रदान करता है। बायो-प्लास्टिक परियोजना से सालाना 1,700 करोड़ रुपए से 1,800 करोड़ रुपए की आय होने की उम्मीद है।
    • बायो-प्लास्टिक का उत्पादन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करता है और एक तटस्थ या संभावित रूप से नकारात्मक कार्बन संतुलन में योगदान देता है, जिससे जीवाश्म-आधारित प्लास्टिक की तुलना में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलती है।
    • पारंपरिक प्लास्टिक के विपरीत, बायो-प्लास्टिक में फ्थालेट्स (Phthalates) जैसे हानिकारक रसायन नहीं होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक माने जाते हैं।
    • बायो-प्लास्टिक पारंपरिक प्लास्टिक की तरह ही मज़बूत और धारणीय होते हैं, जिससे वे खाद्य पैकेजिंग, कृषि और चिकित्सा आपूर्ति जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोग के लिये आदर्श होते हैं।
    • बायो-प्लास्टिक उत्पादन के लिये नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग से पेट्रोलियम जैसे गैर-नवीकरणीय संसाधनों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलती है।
  • चुनौतियाँ: यद्यपि बायो-प्लास्टिक के अनेक लाभ हैं, फिर भी प्रौद्योगिकी अभी भी विकसित हो रही है, तथा उत्पादन लागत पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में अधिक हो सकती है। 
    • कुछ क्षेत्रों में कृषि अपशिष्ट जैसे कच्चे माल की आपूर्ति भी सीमित हो सकती है।
    • भारत के चीनी उद्योग को गन्ने की बढ़ती मांग को पूरा करना चिंता का विषय है, क्योंकि बायो-प्लास्टिक उत्पादन चीनी और इथेनॉल की जरूरतों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है। वर्ष 2024-25 में चीनी उत्पादन में 4 मिलियन टन की अनुमानित कमी के साथ, इन मांगों को संतुलित करना एक चुनौती होगी।
  • बायो-प्लास्टिक के लिये भविष्य का दृष्टिकोण: बायो-प्लास्टिक उत्पादन प्रक्रियाओं और सामग्रियों में निरंतर नवाचार से लागत कम करने और मापनीयता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
    • बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये कृषि अपशिष्ट और गन्ना जैसे कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
    • धारणीय उत्पादों और पैकेजिंग के लिये उपभोक्ता मांग, विशेष रूप से पर्यावरण के प्रति जागरूक बाज़ारों में, बायो-प्लास्टिक्स को अपनाने को बढ़ावा देगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: पर्यावरण में मुक्त हो जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं (माइक्रोबीड्स) के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019)

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: A