अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 | 06 Jan 2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अरुणाचल प्रदेश सरकार, अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 के अधिनियमित होने के लगभग 46 वर्ष बाद, इसके प्रवर्तन हेतु नियम बनाकर इसे लागू करने के क्रम में कदम उठा रही है।
- इस कदम का उद्देश्य राज्य में जबरन धर्मांतरण से संबंधित चिंताओं को दूर करना है।
अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 क्या है?
- परिचय:
- अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 को जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिये लागू किया गया था।
- यह अधिनियम अरुणाचल प्रदेश में तीव्र सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों के दौर में (1978 में) लागू किया गया था जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों की पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं का बाहरी प्रभाव या दबाव से संरक्षण करना था।
- प्रमुख प्रावधान:
- स्वदेशी आस्थाओं की परिभाषा: यह अधिनियम स्पष्ट रूप से अरुणाचल प्रदेश के मूल समुदायों द्वारा अपनाए जाने वाले धर्मों, विश्वासों, रीति-रिवाजों को स्वदेशी आस्थाओं के रूप में मान्यता देता है। इनमें शामिल हैं:
- बौद्ध धर्म: मोनपा, मेंबा, शेरदुकपेन, खंबा, खंपति और सिंगफोस जैसे जनजातीय समूहों के बीच प्रचलित।
- प्रकृति पूजा: विशेष रूप से डोनी-पोलो (जिसका अर्थ है "सूर्य और चंद्रमा") की पूजा राज्य के कई समुदायों द्वारा की जाती है।
- डोनी-पोलो पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम के तानी और अन्य चीनी-तिब्बती लोगों का स्वदेशी धर्म है।
- वैष्णव धर्म: जैसा कि नोक्टेस और आकाओं द्वारा प्रचलित है।
- जबरन धर्म परिवर्तन पर प्रतिषेध: यह अधिनियम स्पष्ट रूप से किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध या बलपूर्वक किसी एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है।
- उल्लंघन के लिये दंड: अधिनियम में दूसरों को जबरन धर्मांतरित करने या ऐसा करने का प्रयास करने का दोषी पाए जाने पर 2 वर्ष तक के कारावास और 10,000 रुपए तक के ज़ुर्माने की सजा का प्रावधान है।
- अनिवार्य रिपोर्टिंग: अधिनियम में यह प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन के किसी भी कृत्य की सूचना संबंधित जिले के उपायुक्त (DC) को दी जानी चाहिये।
- स्वदेशी आस्थाओं की परिभाषा: यह अधिनियम स्पष्ट रूप से अरुणाचल प्रदेश के मूल समुदायों द्वारा अपनाए जाने वाले धर्मों, विश्वासों, रीति-रिवाजों को स्वदेशी आस्थाओं के रूप में मान्यता देता है। इनमें शामिल हैं:
- पुनरुद्धार हेतु प्रयास:
- वर्ष 2022 में एक जनहित याचिका (PIL) के बाद अधिनियम के पुनरुद्धार को गति मिली, जिसके कारण गुवाहाटी उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से राज्य सरकार को इसके कार्यान्वयन के लिये आवश्यक नियमों को अंतिम रूप देने के लिये प्रेरित किया गया।
- इसे अरुणाचल प्रदेश के स्वदेशी आस्था और सांस्कृतिक सोसायटी (IFCSAP) जैसे संगठनों द्वारा भी समर्थन दिया गया है, जिसका उद्देश्य स्वदेशी मान्यताओं की रक्षा करना है, विशेष रूप से कुछ ज़िलों में जहाँ धर्मांतरण की दर 90% तक देखी गई है।
- अरुणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या वर्ष 1971 में 0.79% से बढ़कर वर्ष 2011 में 30.26% हो गयी।
धार्मिक आस्था से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 25: अनुच्छेद 25 सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
- यह राज्य को धार्मिक आचरण से संबंधित धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने की अनुमति देता है, जो सभी हिंदुओं के लिये हिंदू धार्मिक संस्थानों को खोलने का आदेश देता है, चाहे उनकी जाति या वर्ग कुछ भी हो।
- अनुच्छेद 26: अनुच्छेद 26 प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 27-30: धार्मिक प्रथाओं के लिये वित्तीय योगदान देने, धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने तथा धार्मिक उद्देश्यों के लिये शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने की स्वतंत्रता की रक्षा करना है।
राज्य स्तरीय धर्मांतरण विरोधी कानून
- ओडिशा (वर्ष 1967): यह धार्मिक रूपांतरण पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पारित करने वाला पहला राज्य बना, जिसमें जबरन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण पर रोक लगाई गई।
- मध्यप्रदेश (वर्ष 1968): मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम लागू किया गया, जिसके अधीन किसी भी धर्मांतरण गतिविधि की सूचना ज़िला मजिस्ट्रेट को देना अनिवार्य किया गया, तथा इसका पालन न करने पर दंड का प्रावधान किया गया।
- अन्य राज्य: गुजरात (2003), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), राजस्थान (2006 और 2008), हिमाचल प्रदेश (2006 तथा 2019), तमिलनाडु (2002 एवं 2004), झारखंड (2017), उत्तराखंड (2018), उत्तर प्रदेश (2021) और हरियाणा (2022) सहित कई अन्य राज्यों ने विभिन्न प्रकार के धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से समान कानून प्रवर्तित किये।
- इन कानूनों में प्रायः अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर कठोर दंड का प्रावधान होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान की उद्देशिका है (2020) (a) संविधान का भाग है किंतु कोई विधिक प्रभाव नहीं रखती। उत्तर: (d) |