भारत का मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय सर्वेक्षण | 04 Jul 2024

यह एडिटोरियल 02/07/2024 को ‘बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित What’s driving rural spending?”  लेख पर आधारित है। इसमें NSSO के MPCE सर्वेक्षण पर विचार किया गया है, जहाँ ग्रामीण-शहरी उपभोग असमानताओं में कमी, राज्यवार प्रदर्शन, ग्रामीण व्यय पर सरकारी हस्तांतरण के प्रभाव के साथ-साथ सर्वेक्षण की प्रतिनिधिक प्रकृति और नीति एवं बाज़ार रणनीतियों के लिये इसके निहितार्थ पर प्रकाश डाला गया है ।

प्रिलिम्स के लिये:

मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (MPCE), राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO), पीएम-किसान योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (NREGA), आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS), राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन

मेन्स के लिये:

ग्रामीण उपभोग पैटर्न को प्रभावित करने वाले कारक, ग्रामीण-शहरी विभाजन

हाल ही में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) द्वारा मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (Monthly Per Capita Consumption Expenditure- MPCE) सर्वेक्षण जारी किया गया।

वर्तमान समय में उपभोग सर्वेक्षण कई कारणों से अत्यंत आवश्यक हो गए हैं। सर्वप्रथम, वे मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए इस बात के आकलन में मदद करते हैं कि लोगों की स्थिति पहले की तुलना में बेहतर हुई है या नहीं। इसके साथ ही फिर ये सर्वेक्षण विभिन्न आय समूहों में ग्रामीण-शहरी विभाजन और उपभोग पैटर्न के बारे में भी सूचना प्रदान करते हैं।

वे राज्यों के बीच के अंतरों को भी उजागर करते हैं, जो नीति निर्माण के लिये मूल्यवान सिद्ध होते हैं।

इसके अलावा, इन सर्वेक्षणों के आँकड़े का उपयोग अर्थशास्त्रियों द्वारा अद्यतन भार (updated weights) को शामिल करते हुए राष्ट्रीय मुद्रास्फीति सूचकांकों को समायोजित करने के लिये किया जा सकता है। अंत में, कारोबार जगत विभिन्न बाज़ारों के लिये अपने उत्पादों को तैयार करने के लिये उपभोग सर्वेक्षणों को उपयोगी पाते हैं, जिससे विविध उपभोक्ता आवश्यकताओं को पूरा कर सकने की उनकी क्षमता बढ़ती है।

नोट:

एक महानिदेशक की अध्यक्षता में कार्यरत NSSO अखिल भारतीय स्तर पर विविध क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नमूना सर्वेक्षण करने के लिये उत्तरदायी है। मुख्य रूप से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों पर राष्ट्रव्यापी घरेलू सर्वेक्षण, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) आदि के माध्यम से आँकड़े एकत्र किये जाते हैं।

मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) सर्वेक्षण के मुख्य 

  • ग्रामीण-शहरी विभाजन में कमी: वर्ष 2022-23 में समाप्त हुई 11 वर्ष की अवधि में शहरी और ग्रामीण MPCE के बीच का अंतराल 84% से घटकर 75% रह गया है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्रगति का संकेत देता है।
    • यह कमी उस आम धारणा को चुनौती देती है कि आर्थिक ख़ुशहाली और उपभोग के मामले में शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों से व्यापक रूप से आगे हैं।
  • वृद्धि दरों की तुलना: रियल टर्म्स में ग्रामीण क्षेत्रों में MPCE की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 4.7% थी, जबकि इसी अवधि में शहरी क्षेत्रों में यह केवल 2.7% थी।
    • राज्यवार प्रदर्शन की तुलना: सर्वेक्षण में पिछले वर्षों के दौरान ग्रामीण MPCE के संदर्भ में विभिन्न राज्यों के सापेक्ष प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया है।
  • ग्रामीण भारत के लिये औसत MPCE 3,773 रुपए है।
  • राज्यों का औसत राष्ट्रीय औसत से बेहतर: सूचीबद्ध 18 प्रमुख राज्यों में से 10 का MPCE राष्ट्रीय औसत से अधिक रहा है।
    • 5,924 रुपए के MPCE के साथ केरल सूची में शीर्ष पर है।
  • क्षेत्रीय पैटर्न: सभी पाँच दक्षिणी राज्य (केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), उत्तर में पंजाब एवं हरियाणा और तीन पश्चिमी राज्यों (महाराष्ट्र, गुजरात एवं राजस्थान) में MPCE राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
    • ये राज्य अधिक घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करते हैं, जिससे उनकी उच्च विकास दर में योगदान प्राप्त होता है।
  • राष्ट्रीय औसत से नीचे रहे राज्य: छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा का MPCE 3,000 रुपए से कम है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
    • राजस्थान, जो ग्रामीण MPCE में अच्छा प्रदर्शनकर्त्ता रहा है, शहरी MPCE में राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
    • शहरी भारत के लिये औसत MPCE 6,657 रुपए है।
  • निचले स्तर के राज्य: मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में शहरी MPCE 5,000 रुपए से कम है, जो उन्हें शहरी उपभोग के मामले में निचले स्तर पर रखता है।
  • औपचारिकरण का अभाव: राज्यों में निम्न शहरी MPCE सीमित औपचारिकरण को दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि उनके पास महत्त्वपूर्ण औद्योगिकीकरण और विकसित सेवा उद्योग का अभाव है। यह संयोजन उनकी शहरी आय और उपभोग के स्तर को प्रभावित करता है।
  • तीव्र असमानता: विभिन्न राज्यों के बीच MPCE में महत्त्वपूर्ण अंतर असमान ग्रामीण विकास को दर्शाता है, जिसमें कुछ राज्यों का प्रदर्शन अन्य की तुलना में काफी बेहतर है।
    • MPCE में असमानता पिछड़े राज्यों में निम्न उपभोग और संभावित अंतर्निहित मुद्दों को दूर करने के लिये लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता की ओर संकेत करती है

ग्रामीण उपभोग पैटर्न को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:

  • सरकारी नकद हस्तांतरण: सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर नकद हस्तांतरण (जैसे कि पीएम-किसान योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत नकद हस्तांतरण) से ग्रामीण परिवारों की प्रभावी व्यय शक्ति में वृद्धि हुई है।
    • अतिरिक्त सरकारी सब्सिडी ने ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को और बढ़ा दिया है, जिससे उपभोग में वृद्धि हुई है।
  • शहरी प्रवासन और धन प्रेषण: शहरी प्रवासन (Urban Migration) के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में धन प्रेषण (Remittances) बढ़ा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग बढ़ रहा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में उपभोग कम हो रहा है।
    • धन प्रेषण वह धन हस्तांतरण है जो प्रवासी व्यक्ति द्वारा गृह देश (ज़िला, ग्राम) में रहने वाले अपने परिवारजनों और मित्रों को भेजा जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न बचत दर: ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में निम्न बचत दर देखी जाती है, जिसकी पुष्टि शहरी क्षेत्रों में बैंक जमाओं के संकेंद्रण से होती है। यह निम्न बचत दर ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च उपभोग वृद्धि को दर्शाती है।

ग्रामीण उपभोग पैटर्न से संबद्ध लगातार बनी रहीं चुनौतियाँ:

  • कृषि पर निर्भरता और मौसमी रोज़गार: ग्रामीण आय व्यापक रूप से कृषि पर निर्भर है, जो मौसम, कीटों के हमले और बाज़ार में उतार-चढ़ाव जैसे विषयों के अधीन है। इससे ग्रामीण आय अस्थिर और अप्रत्याशित हो जाती है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश रोज़गार मौसमी प्रकृति का होता है, जिसके कारण फसल कटाई के समय उच्च आय प्राप्त होती है जबकि परती अवधि या ऑफ-सीज़न में निम्न आय प्राप्त होती है।
  • पर्यावरणीय एवं जलवायु संबंधी चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित मौसम पैटर्न, सूखा और बाढ़ ग्रामीण क्षेत्रों को असंगत रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता एवं आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • ऋण तक सीमित पहुँच: ग्रामीण परिवार ऋण तक सीमित पहुँच रखते हैं, हालाँकि सूक्ष्म-वित्त संस्थान और स्व-सहायता समूह (SHGs) ग्रामीण परिवारों को छोटे ऋण उपलब्ध कराते हैं, जिससे वे आय-उत्पादक गतिविधियों में निवेश करने या वस्तुओं की खरीद में सक्षम हो जाते हैं और इस प्रकार उपभोग में वृद्धि होती है।
    • लेकिन कई ग्रामीण परिवारों के पास अभी भी अपर्याप्त संपार्श्विक, ऋण इतिहास की कमी और अपर्याप्त बैंकिंग अवसंरचना के कारण औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
    • इससे अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता बढ़ती है जो उच्च ब्याज दर वसूलते हैं, जिससे ग्रामीण वित्त पर दबाव और बढ़ जाता है।
  • उच्च मुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति, विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं के मामले में, क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। उच्च मुद्रास्फीति प्रायः प्रयोज्य आय को कम कर देती है, जबकि स्थिर या निम्न मुद्रास्फीति उपभोग क्षमता को बढ़ा सकती है।
    • ग्रामीण खुदरा मुद्रास्फीति अभी भी 5% से अधिक है (मई 2024), जिससे ग्रामीण परिवारों का उपभोग व्यय कम हो रहा है।
  • बचत संबंधी विरोधाभास: उच्च मुद्रास्फीति से उच्च बचत की स्थिति भी उत्पन्न होती है। उच्च बचत का अर्थ है कि परिवार त्वरित रूप से वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय करने के बजाय बचत के मद में अधिक आय आवंटित करते हैं, जो वर्तमान उपभोग स्तरों को कम कर सकता है।
  • अपर्याप्त अवसंरचना: कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी पर्याप्त सड़क, परिवहन और संचार अवसंरचना का अभाव है, जिससे बाज़ारों और सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
    • बिज़ली और जल की अनियमित आपूर्ति या उनकी अनुपस्थिति उत्पादकता को प्रभावित करती है और आधुनिक उपकरणों एवं प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करती है।

ग्रामीण उपभोग व्यय की वृद्धि के लिये क्या किया जा सकता है?

  • विपणन रणनीतियों का अनुकूलन: उपभोक्ता वस्तु संबंधी कंपनियों के लिये विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों में ग्रामीण-शहरी उपभोग अंतर के विभिन्न स्तर महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्हें ग्रामीण-शहरी उपभोग अंतर के भिन्न-भिन्न स्तरों वाले राज्यों के लिये अलग-अलग रणनीतियाँ तैयार करने की आवश्यकता होती है। उच्च उपभोग अंतर वाले राज्य (जहाँ ग्रामीण उपभोग शहरी स्तरों के निकट है) उच्च आय समूहों द्वारा पसंद किये जाने वाले जीवनशैली उत्पादों के लिये आकर्षक बाज़ार प्रस्तुत कर सकते हैं।
    • इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम ग्रामीण उपभोग रखने वाले राज्यों को ऐसी रणनीतियों की आवश्यकता है जो निम्न उपभोक्ता व्यय क्षमता के अनुरूप हों।
    • प्रत्येक राज्य में विशिष्ट उपभोग पैटर्न, आर्थिक स्थिति और विशिष्ट उपभोक्ता प्राथमिकताओं को समझना बाज़ार पैठ के अनुकूलन (optimising market penetration), उपभोक्ता संलग्नता की वृद्धि और बिक्री क्षमता को अधिकतम करने के लिये आवश्यक है।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: ग्रामीण-शहरी उपभोग अंतर में कमी का श्रेय मुख्य रूप से संतुलित आर्थिक विकास के बजाय ग्रामीण भारत में सकारात्मक कार्रवाइयों को दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिये लक्षित विशिष्ट सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों (जैसे कि सब्सिडी, कल्याणकारी योजनाएँ और NREGA जैसी रोज़गार गारंटी) ने ग्रामीण आय एवं उपभोग के स्तर में प्रभावी रूप से वृद्धि की है।
    • हालाँकि, यह सुधार अनिवार्य रूप से देश के सभी क्षेत्रों में समग्र संतुलित आर्थिक विकास को नहीं दर्शाता है। उपभोग अंतर में आ रही कमी के बावजूद ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक विकास में असमानताएँ मौजूद हो सकती हैं। इन असमानताओं को दूर करने के लिये लक्षित नीतियों की आवश्यकता है जो सभी क्षेत्रों में समान विकास को बढ़ावा दें।
  • वित्तीय समावेशन और डिजिटल भुगतान: वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान अवसंरचना का विस्तार करना (UPI, AePS आदि के माध्यम से) नकदी पर निर्भरता को कम करता है, सुविधा बढ़ाता है और लेनदेन को प्रोत्साहित करता है, जिससे समग्र उपभोग में वृद्धि होती है।
  • अवसंरचनात्मक विकास: ग्रामीण अवसंरचना, जैसे सड़क, विद्युतीकरण और इंटरनेट कनेक्टिविटी (‘भारतनेट’ जैसी पहल के माध्यम से) में सुधार से बाज़ारों, सेवाओं तथा रोज़गार के अवसरों तक आसान पहुँच की सुविधा मिलती है, जिससे आर्थिक गतिविधि एवं उपभोग को बढ़ावा मिलता है।
  • वित्तीय समावेशन संबंधी नवाचार: ग्रामीण आवश्यकताओं के अनुरूप सूक्ष्म बीमा, फसल बीमा और बचत योजनाओं जैसे नवोन्मेषी वित्तीय उत्पादों को शुरू करने से प्रत्यास्थता का निर्माण हो सकता है और उपभोग वस्तुओं में अधिक निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।

ग्रामीण विकास से संबंधित प्रमुख पहलें:

अभ्यास प्रश्न: भारत में ग्रामीण-शहरी उपभोग अंतर में कमी लाने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये। लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप इस अंतर को किस प्रकार और कम कर सकते हैं? उदाहरण सहित चर्चा कीजिये

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 
  2. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास 
  3. भूमि विकास बैंक

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


प्रश्न. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण क्षेत्रीय निर्धनों के आजीविका विकल्पों को सुधारने का किस प्रकार प्रयास करता है? (2012)

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नए विनिर्माण उद्योग तथा कृषि व्यापार केंद्र स्थापित कर।
  2. 'स्व-सहायता समूहों' को सशक्त बनाकर और कौशल विकास की सुविधाएँ प्रदान कर।
  3. कृषकों को निःशुल्क बीज, उर्वरक, डीज़ल पंपसेट तथा लघु सिंचाई सयंत्र देकर।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)