आंतरिक सुरक्षा
समुद्री सुरक्षा रणनीति: आवश्यकता और महत्त्व
- 01 Oct 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में समुद्री सुरक्षा रणनीति व उससे संबंधित विभिन्न पहलूओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत का विशाल प्रायद्वीप और इसके चारों ओर फैली हुई द्वीपीय श्रृंखला की सामरिक अवस्थिति के कारण ये क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत (मात्रा में) तथा 70 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) समुद्री मार्ग से संचालित होता है। अतः भारत की सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण अवयव है। वर्तमान में चीन और पाकिस्तान के साथ भारत का स्थलीय सीमाओं को लेकर तनाव व्याप्त है। यह तनाव कई बार हिंसक झड़पों का रूप भी ले चुका है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विभिन्न रणनीतिकारों और सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह महसूस किया है कि भारत की महाद्वीपीय रणनीति (Continental 'Grand' Strategy) अस्तित्व के संकट से गुज़र रही है। चीन व पाकिस्तान दोनों ही भारत के क्षेत्रों पर लगातार अपना दावा प्रस्तुत कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर की स्थिति में परिवर्तन के बाद से पाकिस्तान ने लगातार सीज़फायर का उल्लंघन किया है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सुरक्षा बलों की वापसी से शक्ति-शून्यता की स्थिति उत्पन्न होगी जिससे वह क्षेत्र पुनः आतंकी गतिविधियों के लिये उपजाऊ बन सकता है। चिंता इस बात की है कि पाकिस्तान इस अवसर का उपयोग भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये कर सकता है। निश्चित रूप से इस प्रकार की घटना के बाद भारत अपनी सुरक्षा रणनीति का विश्लेषण कर रहा है, यहाँ ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसी भी देश के लिये जितनी महत्त्वपूर्ण उसकी स्थलीय सीमाएँ हैं उतनी ही महत्त्वपूर्ण जलीय सीमाएँ हैं।
समुद्री सुरक्षा आवश्यक क्यों?
- भारत एक प्रायद्वीपीय देश है जो पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है।
- भारत अपनी जलीय सीमा पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ साझा करता है।
- भारत के उत्तर में स्थित पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद की लगातार गतिविधियों, अधिक सैन्य क्षमता प्राप्ति और परंपरागत संघर्ष में परमाणु हथियारों का प्रयोग करने के घोषित उद्देश्य के कारण उतार-चढ़ाव वाले संबंध बने हुए हैं। विदित है कि वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने समुद्र के रास्ते भारत में घुसपैठ कराने का नाकाम प्रयास किया था।
- भारत की विभिन्न देशों के साथ लंबी जलीय सीमा से कई प्रकार की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती है। इन चुनौतियों में समुद्री द्वीपों निर्जन स्थानों में हथियार एवं गोला बारूद रखना, राष्ट्रविरोधी तत्त्वों द्वारा उन स्थानों का प्रयोग देश में घुसपैठ करने एवं यहाँ से भागने के लिये करना, अपतटीय एवं समुद्री द्वीपों का प्रयोग आपराधिक क्रियाकलापों के लिये करना, समुद्री मार्गों से तस्करी करना आदि शामिल हैं।
- समुद्री तटों पर भौतिक अवरोधों के न होने तथा तटों के समीप महत्त्वपूर्ण औद्योगिक एवं रक्षा संबंधी अवसंरचनाओं की मौजूदगी से भी सीमापार अवैध गतिविधियों में बढ़ोतरी होने की संभावना अधिक होती है।
- मुंबई हमले के बाद से तटीय, अपतटीय और समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये सरकार ने कई उपाय किये हैं।
हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति
- पिछले कुछ वर्षों में भारत की नीति में इस क्षेत्र के संबंध में बदलाव आया है। पहले भारत की नीति में इस क्षेत्र के लिये अलगाव की स्थिति थी। लेकिन अब हिंद महासागर क्षेत्र के लिये भारत की नीति भारतीय सामुद्रिक हितों से परिचालित हो रही है।
- सागर पहल (Security and Growth for All in the Region-SAGAR) द्वारा भारत इस क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा पर ज़ोर दे रहा है। साथ ही इस रणनीति को मूर्तरूप देने के लिये सागरमाला परियोजना पर कार्य कर रहा है, ताकि भारत अपनी तटीय अवसंरचना को सुदृढ़ करके अपनी क्षमता में वृद्धि कर सके।
- इस तरह भारत न सिर्फ हिंद महासागर क्षेत्र में अपने हितों को साध सकेगा बल्कि ब्लू इकॉनमी के लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकेगा। ब्लू इकॉनमी पर बल देने तथा हिंद महासागर क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए ही नई सरकार ने अपने शपथ ग्रहण में बिम्सटेक (BIMSTEC) देशों को आमंत्रित किया, इतना ही नहीं भारतीय प्रधानमंत्री नें अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये मालदीव और श्रीलंका चुना।
- कुछ वर्षों में भारत द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र को लेकर किये गए प्रयास इस क्षेत्र के संबंध में भारत की बदलती नीति को प्रदर्शित करते हैं तथा इस क्षेत्र के महत्त्व को भी इंगित करते हैं।
भारत के समक्ष समुद्री चुनौतियाँ
- समुद्री डकैती- अरब सागर के क्षेत्र में सोमालियाई लुटेरों से भारतीय व्यापारिक जहाज़ों को सदैव खतरा बना रहता है। कोलाराडो स्थित वन अर्थ फाउंडेशन (One Earth Foundation) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती की वजह से दुनियाभर के देशों को प्रतिवर्ष 7 से 12 अरब डॉलर का व्यय करना पड़ता है। इसमें उन्हें दी जाने वाली फिरौती, जहाजों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिये कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इस अतिरिक्त व्यय में शामिल हैं।
- आतंकवाद- समुद्री मार्ग से आतंकवाद का दंश भी भारत झेल चुका है। 26/11 का मुंबई हमला, भारतीय समुद्री सुरक्षा पर बड़े प्रश्न-चिन्ह पहले ही खड़े कर चुका है।
- संगठित अपराध- समुद्री रास्तों से हथियारों, नशीले पदार्थों और मानवों तस्करी, संगठित अपराध के रूप में एक बड़ी सामुद्रिक सुरक्षा चुनौती है। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2020 के अनुसार वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान भी मादक द्रव्यों की तस्करी अनवरत रूप से जारी रही। लॉकडाउन के कारण स्थलीय सीमाओं पर होने वाला आवागमन प्रतिबंधित था परंतु मादक द्रव्यों व मानव तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की गई थी।
- स्वतंत्र नौवहन में बाधा- चीन द्वारा भारतीय सीमा के समीप विकसित किये जा रहे बंदरगाहों ने तनाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसके कारण भविष्य में भारत के लिये स्वतंत्र नौवहन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। चीन द्वारा भारत के चारों ओर बंदरगाहों का इस प्रकार विकास उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (String of Pearls) नीति को दर्शाता है।
स्ट्रिंग ऑफ पर्ल
- ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ हिंद महासागर क्षेत्र में संभावित चीनी इरादों से संबंधित एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है, जो चीनी मुख्य भूमि से सूडान पोर्ट तक फैला हुआ है।
- वर्ष 2017 में चीन ने जिबूती में अपनी पहली विदेशी सैन्य सुविधा (Overseas Military Facility) शुरू की और वह अपने महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative-BRI) के हिस्से के रूप में श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार और अफ्रीका के पूर्वी तट, तंज़ानिया तथा केन्या में बुनियादी ढाँचे में भी भारी निवेश कर रहा है।
- इस प्रकार की गतिविधियाँ चीन की भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश को दर्शाती हैं, जिसे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ कहा जाता है।
समुद्री सुरक्षा रणनीति से जुड़े प्रमुख अवयव
- अवरोध की रणनीति- यह भारतीय सुरक्षा की मूलभूत रणनीति है। संभावित संघर्षों को टालना (अवरोध करना) भारतीय सुरक्षा बलों का प्रमुख उद्देश्य है। इस रणनीति के अंतर्गत भूल-वश भारत की जलीय सीमा में प्रवेश करने वाले जलयानों या नौकाओं को सुरक्षा जाँच के बाद वापस कर दिया जाता है।
- संघर्ष की रणनीति- भारत के विरुद्ध संघर्ष के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों के संसाधनों में वृद्धि इसका उद्देश्य है। इस रणनीति के अंतर्गत युद्ध के दौरान नौसैन्य बलों को पर्याप्त मात्र में रसद सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
- अनुकूल समुद्री माहौल के लिये रणनीति- इस रणनीति के अंतर्गत शांतिकाल के दौरान भारतीय नौसेना द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियाँ शामिल हैं। इसका लक्ष्य मित्र देशों के समुद्री सुरक्षा बलों के मध्य आपसी सहयोग और अंतर्संचालन द्वारा सुरक्षापूर्ण तथा स्थायित्व युक्त माहौल तैयार करना है।
- तटीय एवं अपतटीय सुरक्षा की रणनीति- इसके अंतर्गत तटीय समुदायों की भागीदारी के माध्यम से सुरक्षा बलों की संचालनीय क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाता है।
- निगरानी और अंतर-एजेंसी समन्वय- सतर्कता के लिये भारत को बेहतर निगरानी की आवश्यकता है। तटीय राडार श्रृंखलाओं की स्थापना में तेजी लाने और सूचना तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के अलावा केंद्र सरकार को कई एजेंसियों (ओवरलैपिंग क्षेत्राधिकारों के साथ) और प्राधिकरणों में देरी से होने वाली बातचीत से उत्पन्न समन्वय के अभाव की समस्याओं का समाधान करना चाहिये।
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त हेतु सुझाव
- भारत के विशेष सहभागियों में बहुत से जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, और इंडोनेशिया वास्तव में हिंद-प्रशांत को एशिया-प्रशांत प्लस भारत के रूप में देखते हैं। वे भारत को एशिया-प्रशांत की रणनीतिक गतिकी में जोड़ने की कोशिश करते हैं।
- वे दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति मुख्य रूप से चीन के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के लिये चाहते हैं। इस कड़ी में ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात क्वाड को पुनर्जीवित करना एक सराहनीय पहल है।
- भारत के लिये हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी क्षेत्र है। इसमें यह भौगोलिक क्षेत्र के सारे देशों को शामिल करता है तथा साथ ही उन अन्य को भी जिनका इससे कोई हित जुड़ा है। इसके भौगोलिक विस्तार में भारत इस क्षेत्र में अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों को समाहित करता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत एक नियम आधारित, मुक्त, संतुलित और स्थिर व्यापार पर्यावरण का समर्थन करता है जो कि व्यापार और निवेश में विश्व के समस्त देशों का उत्थान करे। भारत रीज़नल कॉम्प्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) से जो चाहता है, यह उसके समान है।
- विश्व के लगभग सभी देश समुद्र में स्वतंत्र नौ-परिवहन को लेकर एक मत हैं लेकिन विभिन्न देशों में नौ-परिवहन की स्वतंत्रता की परिभाषा को लेकर गहरे मतभेद बने हुए हैं। इसका कारण कई देशों के कानूनों का अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून (International Maritime Law-IML) से भिन्न होना है। इस विषय पर भारत अन्य देशों के मध्य मतभेदों को समाप्त करने और एक निश्चित परिभाषा पर सहमत होने के लिये नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है।
- चीन एशिया-प्रशांत देशों के लिये एक खतरा बन चुका है और साथ-ही-साथ हिन्द महासागर में भारतीय हितों के लिये खतरा बन रहा है। भारत क्षेत्र में किसी खिलाड़ी की प्रधानता नहीं चाहता। यह सुनिश्चित करने के लिये कि क्षेत्र में चीन अपना प्रभुत्व स्थापित न कर सके, भारत त्रिकोणीय जैसे भारत-ऑस्ट्रेलिया-फ़्रांस, भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया, व्यवस्था की स्थापना करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
आगे की राह
- क्षेत्र में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिये सम्मान, परामर्श, अच्छा प्रशासन, पारदर्शिता, व्यवहार्यता और संवहनीयता के आधार पर संपर्क स्थापित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
- हिंद-प्रशांत सुरक्षा के लिये मैरीटाइम डोमैन अवेयरनेस (MDA) आवश्यक है।
- भारत को समुद्री सुरक्षा के अपने विज़न अर्थात सागर- ‘सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीज़न’ पर तेज़ी से कार्य करना होगा।
प्रश्न- समुद्री सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों का उल्लेख करते हुए भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति के प्रमुख अवयवों का विश्लेषण कीजिये तथा समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये?