भारतीय समाज
भारत में जाति आधारित हिंसा की निरंतरता तथा निहित चिंताएँ
- 29 Jul 2023
- 14 min read
यह एडिटोरियल 25/07/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Caste has no place in a modern democracy’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में जाति-आधारित हिंसा की समस्याओं के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, वन अधिकार अधिनियम 2006, अनुच्छेद 14, पंचायतें, नगर पालिकाएँ, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955; हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 मेन्स के लिये:जाति आधारित हिंसा के कारण और परिणाम |
भारत में जाति-आधारित हिंसा भेदभाव और उत्पीड़न का एक रूप है जो अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) से संबंधित लोगों को लक्षित करती है, जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय समाज में हाशिए पर स्थित और वंचित समूह हैं।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जैसे संवैधानिक सुरक्षा उपायों और विशेष कानून के बावजूद, जाति-आधारित अपराध विभिन्न रूपों और क्षेत्रों में घटित होते रहते हैं, जो लाखों लोगों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
भारत में जाति-आधारित अपराध की स्थिति
- भारत में जाति-आधारित अपराध:
- जाति-आधारित अपराधों में शारीरिक हमला, हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, यातना, आगजनी, सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक शोषण, भूमि पर कब्जा, जबरन विस्थापन और अपमान एवं हिंसा के अन्य रूप शामिल हो सकते हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित भारत में अपराध की वार्षिक रिपोर्ट (Annual Crime in India Report) 2019 के अनुसार, वर्ष 2019 में SCs और STs के विरुद्ध अपराधों में क्रमशः 7% और 26% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।
- इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में हर दिन बलात्कार के 88 मामले दर्ज किये जाते हैं। इनमें से कुछ मामले जाति-आधारित अपराधों से संबंधित होते हैं।
- अपराध दर और आरोप पत्रों में क्षेत्रीय अंतर:
- जाति-आधारित अपराध क्षेत्रीय विशिष्टताओं और उनसे लड़ने के लिये विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में अंतर से भी प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण के लिये, मध्य प्रदेश में वर्ष 2021 में अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराध दर (Crime Rate) सबसे अधिक थी।
- मध्य प्रदेश में वर्ष 2020 में भी अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराध दर सबसे अधिक थी, जबकि वर्ष 2019 में यह राजस्थान के बाद दूसरे स्थान पर था।
- लेकिन आँकड़ों से यह भी पता चला कि मध्य प्रदेश में आरोप पत्र (Charge Sheet) दाखिल करने की दर अधिकांश भारतीय राज्यों की तुलना में सबसे अधिक थी।
- इसका पड़ोसी राज्य राजस्थान इस मामले में काफी पीछे था, जिससे प्रकट होता है कि राज्य पुलिस को बहुत कुछ करने की ज़रूरत है।
भारत में जाति-आधारित अपराधों के कारण
- जाति व्यवस्था और पदानुक्रमित संरचना:
- जाति व्यवस्था—जो वंश और व्यवसाय पर आधारित एक प्राचीन सामाजिक स्तरीकरण है, एक कठोर पदानुक्रमित संरचना का निर्माण करता है जहाँ व्यक्तियों को विशिष्ट जातियों में वर्गीकृत किया जाता है।
- यह व्यवस्था कथित उच्च जातियों में श्रेष्ठता की भावना और निचली जातियों में हीनता की भावना को बढ़ावा देती है, जिससे निचली जातियों के विरुद्ध भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
- सामाजिक मानदंड और सांस्कृतिक मान्यताएँ:
- सामाजिक मानदंड और सांस्कृतिक मान्यताएँ, जो प्रायः पीढ़ियों से चली आ रही हैं, जाति-आधारित श्रेष्ठता और हीनता की धारणा को पुष्ट करती हैं।
- ये मानदंड भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण और प्रथाओं का सामान्यीकरण करते हैं, जिससे जाति-आधारित हिंसा से मुक्ति पाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- आर्थिक शोषण:
- जाति-आधारित हिंसा कभी-कभी आर्थिक उद्देश्यों से भी प्रेरित होती है। निचली जाति के व्यक्तियों को प्रभुत्वशाली जाति समूहों के हाथों शोषण, बलात् श्रम और आर्थिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ सकता है, जिससे संघर्ष और हिंसा की स्थिति बन सकती है।
- राजनीतिक सत्ता संघर्ष:
- जाति-आधारित हिंसा राजनीतिक सत्ता संघर्ष से भी जुड़ी हुई है। प्रभुत्वशाली जाति समूह अपना प्रभुत्व और प्रभाव बनाए रखने के लिये निचली जाति के व्यक्तियों की राजनीतिक आकांक्षाओं और प्रतिनिधित्व का दमन करने के लिये हिंसा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- अंतर्जातीय विवाह:
- पारंपरिक जाति सीमाओं को चुनौती देने वाले अंतर्जातीय विवाहों को कभी-कभी अपनी जाति की शुद्धता की रक्षा के नाम पर समाज के रूढ़िवादी वर्गों की ओर से शत्रुता और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- कानूनों के कार्यान्वयन का अभाव:
- कानूनी सुरक्षाओं के बावजूद, जाति-आधारित हिंसा के विरुद्ध कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन कुछ भूभागों में चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, जिससे अपराधियों के लिये दंडमुक्ति की एक संस्कृति (culture of impunity) का निर्माण होता है।
जाति-आधारित अपराधों के प्रभाव
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:
- जाति-आधारित हिंसा जीवन, गरिमा, समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों सहित मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का कारण बनती है।
- ऐसी हिंसा के शिकार लोग शारीरिक और मनोवैज्ञानिक क्षति उठाते हैं, जिससे उनके लिये सदमा और दीर्घकालिक भावनात्मक संकट की स्थिति बनती है।
- सामाजिक विखंडन:
- जाति-आधारित हिंसा सामाजिक विभाजन को गहरा करती है और विभिन्न जाति समूहों के बीच शत्रुता पैदा करती है।
- यह सामाजिक एकता को बाधित करती है और एक सामंजस्यपूर्ण एवं समावेशी समाज के निर्माण के प्रयासों को कमज़ोर करती है।
- भय और असुरक्षा:
- जाति-आधारित हिंसा हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच भय और असुरक्षा का माहौल पैदा करती है।
- हिंसा और भेदभाव का भय ‘सेल्फ-सेंसरशिप’ को जन्म दे सकता है और प्रभावित व्यक्तियों की अभिव्यक्ति एवं अबाध संचरण की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर सकता है।
- विकास और सशक्तीकरण में बाधाएँ:
- जाति-आधारित हिंसा हाशिए पर स्थित समुदायों के विकास और सशक्तीकरण को बाधित करती है।
- यह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक अवसरों तक उनकी पहुँच को सीमित करती है, उन्हें अपनी पूरी क्षमता को साकार कर सकने से अवरुद्ध करती है।
- संस्थानों के प्रति विश्वास की हानि:
- जाति-आधारित हिंसा राज्य के संस्थानों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्याय प्रणाली के प्रति भरोसे का क्षरण करती है। पीड़ित और संबंधित समुदाय आगे और उत्पीड़न के भय से या तंत्र पर भरोसे की कमी के कारण न्याय की मांग करने या घटनाओं की रिपोर्टिंग में झिझक रख सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय छवि:
- जाति-आधारित हिंसा की मौजूदगी एक लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह वैश्विक समुदाय के बीच जातिगत पहचान के आधार पर भेदभाव और हिंसा की व्यापकता के बारे में चिंता पैदा करता है।
जाति आधारित भेदभाव के विरुद्ध कौन-से सुरक्षा उपाय उपलब्ध हैं?
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 15: राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 16: राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
- अनुच्छेद 335: संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिये नियुक्तियाँ करने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा।
- अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332: लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण।
- संवैधानिक निकाय:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes)
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes)
- सांविधिक प्रावधान:
भारत में जाति-आधारित अपराधों को रोकने और इसके निवारण के संभावित समाधान
- कानूनों के कार्यान्वयन को सुदृढ़ करना:
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989; नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955; हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013।
- राज्य संस्थानों को सशक्त करना:
- अपराधियों को रोकने, उनकी जाँच करने, मुक़दमा चलाने, दंडित करने और पुनर्वास के लिये पुलिस, न्यायपालिका, शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण क्षेत्र को सशक्त करना होगा।
- जागरूकता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देना:
- उच्च जातियाँ, निचली जातियाँ, नागरिक समाज संगठन, मीडिया, शिक्षा जगत, धार्मिक नेता और राजनीतिक दल जैसे सभी हितधारकों के बीच जागरूकता और संवेदनशीलता को बढ़ावा देना होगा।
- अनुसूचित जाति/जनजाति को सशक्त बनाना:
- शिक्षा, रोज़गार, भूमि अधिकार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सामाजिक लामबंदी, कानूनी सहायता और परामर्श सेवाओं के माध्यम से अनुसूचित जाति/जनजाति को सशक्त बनाना होगा।
- संवाद और मेल-मिलाप को बढ़ावा देना:
- विश्वास एवं एकजुटता का निर्माण, रूढ़ियों एवं पूर्वाग्रहों को चुनौती देना और विविधता एवं मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना एक सार्थक पहल होगी।
अभ्यास प्रश्न: जाति-आधारित हिंसा एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो पीड़ितों के संवैधानिक अधिकारों और मानवीय गरिमा का उल्लंघन करती है। भारत में जाति-आधारित हिंसा के कारणों और परिणामों की चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न 1. बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज को समझने में क्या जाति की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है? उदाहरणों सहित विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न 2. “जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। टिप्पणी कीजिये। (2018) |