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भारतीय अर्थव्यवस्था

ऊर्जा संक्रमण में राज्यों की भूमिका

  • 09 Jun 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 07/06/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Seeing India’s energy transition through its States’’ लेख पर आधारित है। यह भारत की नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण यात्रा में राज्यों की भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स:

पीएम कुसुम (PM KUSUM), सौर ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा

मेन्स:

ऊर्जा संक्रमण में राज्यों की भूमिका - चुनौतियाँ और आगे की राह

भारत विविध संदर्भों और देशों के विकास पथ को समायोजित करने के लिये एक बहु ऊर्जा मार्ग (Multiple Energy Pathways) दृष्टिकोण का प्रस्ताव करने की योजना बना रहा है। भारतीय राज्यों की विविधता, जिसके लिये विभिन्न या बहु मार्गों की आवश्यकता है, इसके स्वयं के घरेलू ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) की दिशा को निर्धारित करेगी। भारत की वैश्विक जलवायु प्रतिज्ञा, जहाँ वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन क्षमता प्राप्त करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (Net-Zero Emissions) प्राप्त करने की प्रतिबद्धता प्रकट की गई है, राष्ट्रीय स्तर पर घरेलू ऊर्जा लक्ष्यों द्वारा समर्थित हैं। 

  • भारत के ऊर्जा संक्रमण में राज्य महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता होंगे क्योंकि ऊर्जा उत्पादन और उपयोग की बहु-स्तरीय शासन व्यवस्था मौजूद है। एक प्रभावी संक्रमण के लिये केंद्र और राज्यों के बीच महत्त्वाकांक्षाओं और कार्यान्वयन के अंतराल को दूर करने की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही, राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को राज्य स्तर पर अलग-अलग प्रोत्साहन संरचनाओं, प्रक्रियाओं और संस्थागत क्षमताओं में शामिल करने की आवश्यकता होगी। 

राज्य क्यों मायने रखते हैं? 

  • राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने के लिये महत्त्वपूर्ण: कार्यान्वयन क्षेत्र के रूप में राज्यों की स्थिति राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है। जबकि केंद्र लक्ष्य निर्धारित कर सकता है और उन्हें प्राप्त करने में मदद करने के लिये दाम-दंड का उपयोग कर सकता है, इन लक्ष्यों की प्राप्ति प्रायः इस बात पर निर्भर करती है कि वे राज्य की प्राथमिकताओं एवं क्षमताओं के साथ कैसे संरेखित होते हैं। 
  • समावेशी विकास के लिये महत्त्वपूर्ण: 175 GW नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य की दिशा में भारत की प्रगति जटिल है। केवल तीन राज्यों ने अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा किया है और वर्तमान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का 80% पश्चिम एवं दक्षिण में छह राज्यों में संक्रेंद्रित है। एक सफल स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिये सभी राज्यों को शामिल करते हुए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। 
  • ऊर्जा नीति निर्माण: राज्य अपनी विशिष्ट ऊर्जा आवश्यकताओं और संसाधनों को पूरा करने के लिये अपनी नवीकरणीय ऊर्जा नीतियों को अनुकूलित कर सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, प्रोत्साहन और विनियमन को स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित स्वच्छ ऊर्जा अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है। 
    • इसके अलावा, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के दौरान बिजली क्षेत्र के अनसुलझे मुद्दे (जैसे उच्च हानि एवं अविश्वसनीय आपूर्ति) और जटिल बन सकते हैं। इस परिदृश्य में राज्य-स्तरीय समाधानों की आवश्यकता है क्योंकि ये मुद्दे राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित हैं। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: भारत के विविधतापूर्ण भूगोल एवं जलवायु के कारण विभिन्न राज्य नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता के मामले में भिन्नता रखते हैं। राज्य परियोजनाओं की स्थापना, निवेश आकर्षित करने और देश की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में योगदान करने के लिये अपने विशिष्ट संसाधनों (जैसे सौर, पवन या पनबिजली) का लाभ उठा सकते हैं। 
  • नीतिगत नवाचारों की प्रयोगशालाएँ: राज्यों ने भारत के ऊर्जा संक्रमण से संबंधित नीतिगत नवाचारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिये, सौर ऊर्जा पर गुजरात और राजस्थान तथा पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु की आरंभिक पहलों ने राष्ट्रीय स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के अंगीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। 
    • इसी प्रकार, कृषि के सोलराइजेशन (solarisation) पर राज्य के सफल प्रयोगों को पीएम कुसुम (PM KUSUM) के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया है। 
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों की राह में बाधक: जबकि राज्यों के पास स्वच्छ ऊर्जा अंगीकरण को बढ़ावा देने की शक्ति है, वे राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिये भी बाधक बन सकते हैं, विशेष रूप से यदि इन लक्ष्यों को राज्य की प्राथमिकताओं के साथ संघर्ष की स्थिति में या इनके प्रतिकूल देखा जाए। 
    • उदाहरण के लिये, कोयले पर निर्भर कोई राज्य कोयला-संचालित बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का विरोध कर सकता है। सभी राज्यों के सहयोग के बिना राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन सिद्ध हो सकता है। 
  • मांग-पक्ष प्रबंधन: राज्य प्रमुख ऊर्जा उपभोक्ताओं के रूप में मांग-पक्ष प्रबंधन रणनीतियों को नियंत्रित कर सकते हैं। वे स्थानीय स्तर पर ऊर्जा दक्षता उपायों, स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा संरक्षण अभ्यासों को बढ़ावा दे सकते हैं। राज्य इलेक्ट्रिक वाहनों, रूफटॉप सोलर इनस्टॉलेशन और ऊर्जा-कुशल भवन डिज़ाइनों के उपयोग को भी प्रोत्साहन प्रदान कर सकते हैं। 
  • सहकार्यता और ज्ञान साझेदारी: राज्य एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकते हैं, सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी कर सकते हैं और सफल पहलों से प्रेरणा ले सकते हैं। नीति आयोग (National Institution for Transforming India- NITI Aayog) जैसे मंच और अन्य राज्य-स्तरीय एजेंसियाँ ज्ञान साझेदारी (Knowledge Sharing) की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे राज्यों को एक-दूसरे के अनुभवों और सबक से लाभ प्राप्त होता है। 

संबद्ध चुनौतियाँ:  

  • भिन्न-भिन्न नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पाई जाती है, जिससे इनके योगदानों और लक्ष्यों को संतुलित करना कठिन हो जाता है। कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में योगदान करने की अधिक क्षमता मौजूद है। 
  • नीतिगत भिन्नताएँ: राज्यों की अपनी अलग-अलग ऊर्जा नीतियाँ होती हैं, जिससे उनके दृष्टिकोण और लक्ष्यों में अंतर उत्पन्न होता है। इन नीतियों को संरेखित करना और एक समन्वित ढाँचे का निर्माण करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है। 
  • वित्तीय विषमताएँ: भारत के अलग-अलग राज्यों में वित्तीय संसाधनों के अलग-अलग स्तर मौजूद हैं, जिससे कुछ राज्यों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। विभिन्न राज्यों में वित्तपोषण तंत्र की उपलब्धता और पूंजी तक पहुँच की स्थिति भी एक जैसी नहीं है। 
  • तकनीकी क्षमता: राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के योजना-निर्माण, कार्यान्वयन और संचालन के लिये आवश्यक तकनीकी क्षमता एवं विशेषज्ञता भी भिन्न-भिन्न हो सकती है। कुछ राज्यों में अधिक विकसित नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र और तकनीकी विशेषज्ञता की स्थिति हो सकती है तो अन्य राज्यों में आवश्यक विशेषज्ञता की कमी हो सकती है। 
  • अनुकूल अवसंरचना: विभिन्न राज्यों में ग्रिड अवसंरचना की स्थिति भिन्न-भिन्न है और नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिये इनमें उन्नयन की आवश्यकता है। सीमित संसाधनों के कारण कुछ राज्यों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक दक्षता: सार्वभौमिक ऊर्जा संक्रमण के लिये सभी राज्यों में राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक दक्षता का होना आवश्यक है। प्राथमिकताओं और क्षमताओं में अंतर, गति एवं प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है। इस क्षेत्र में सफलता के लिये राज्यों के बीच समन्वय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
  • क्षेत्रीय हित और प्राथमिकताएँ: प्रत्येक राज्य क्षेत्रीय हितों और प्राथमिकताओं में अंतर रखते हैं, जो कभी-कभी व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संघर्ष की स्थिति में भी हो सकते हैं। ऊर्जा संक्रमण में क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय हितों को संतुलित करना जटिल है और इसके लिये राज्यों के बीच प्रभावी वार्ता एवं सहमति निर्माण की आवश्यकता है। 
  • हितधारक संलग्नता: एक सफल ऊर्जा संक्रमण के लिये हितधारकों को संलग्न करना महत्त्वपूर्ण है। उनकी चिंताओं को दूर करने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये समावेशी एवं भागीदारीपूर्ण प्रक्रियाओं को आकार दिया जाना चाहिये, विशेष रूप से इसलिये क्योंकि राज्यों के बीच दृष्टिकोण एवं हितों का अंतर हो सकता है। 

आगे की राह: 

  • एक राज्यस्तरीय ढाँचा: तकनीकी-आर्थिक विमर्श को पूरकता प्रदान करने के लिये एक राज्यस्तरीय ढाँचा होना चाहिये जो ऊर्जा संक्रमण की दिशा में योजनाओं, कार्यान्वयनों और शासन प्रक्रियाओं को समझ सके। इस तरह के ढाँचे के उपयोग से कई तरीकों से त्वरित संक्रमण को बढ़ावा मिलेगा। 
    • यह संक्रमण विमर्श को, परिणामों को आकार देने वाली प्रक्रियाओं को शामिल करने तक विस्तृत करेगा। पारदर्शिता, जवाबदेहिता, वहनीयता और विश्वसनीयता पर संक्रमण के प्रभावों को समझना महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह अधिक पारदर्शिता की ओर ले जाएगा जिससे इन प्रक्रियाओं में हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है और जटिल निर्णयों में सार्वजनिक वैधता एवं भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है। 
    • राज्य की तैयारी या तत्परता से राज्यस्तरीय अंतरों की बेहतर समझ बनेगी और एक व्यावहारिक और तीव्र ऊर्जा संक्रमण के लिये साक्ष्य-आधारित नीतिगत विकल्पों के निर्माण में मदद मिलेगी। 
  • राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति ढाँचा: एक राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति ढाँचा (National Renewable Energy Policy Framework) तैयार किया जाना चाहिये जो राज्य-विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करते हुए और समन्वय एवं निरंतरता को बढ़ावा देते हुए राज्यों को अपनी नीतियों को राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये मार्गदर्शन प्रदान करे। 
  • क्षमता निर्माण और साझेदारी: राज्यों के बीच तकनीकी विशेषज्ञता और संबंधित ज्ञान साझेदारी को बढ़ावा देने के लिये क्षमता निर्माण में निवेश किया जाना चाहिये। इसमें प्रशिक्षण, कार्यशालाएँ, सम्मेलन और सहयोगी अनुसंधान परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं। 
  • वित्तीय सहायता तंत्र: वित्त तक उपयुक्त पहुँच सुनिश्चित की जाए और राज्यों के बीच वित्तीय अंतर को दूर करने के लिये तंत्र स्थापित किया जाए। उपलब्ध विकल्पों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये धन का सृजन, निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना और निम्न-लागत वित्तपोषण तक पहुँच को सुगम बनाना शामिल हो सकता है। 
  • मानकीकरण और सामंजस्य: राज्यों के बीच नीतियों, विनियमों और तकनीकी मानकों के मानकीकरण एवं सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। यह निरंतरता को बढ़ावा दे सकता है, जटिलता को कम कर सकता है और सहज अंतर-राज्य परियोजना कार्यान्वयन एवं ग्रिड एकीकरण को सुगम बना सकता है। 
  • ग्रिड अवसंरचना विकास: ग्रिड अवसंरचना के सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये (विशेष रूप से उच्च नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता रखने वाले राज्यों में)। पारेषण एवं वितरण प्रणाली का उन्नयन, उन्नत ग्रिड प्रबंधन तकनीकों को लागू करना और सुदृढ़ अंतर-राज्यीय पारेषण नेटवर्क स्थापित करना, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण का समर्थन कर सकता है। 
  • संस्थागत समन्वय और सहयोग: केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, नियामक निकायों और अन्य हितधारकों के बीच संस्थागत समन्वय एवं सहयोग को मज़बूत किया जाना चाहिये। नियमित संचार, विचारों के आदान-प्रदान और ऊर्जा संक्रमण से संबंधित मामलों पर समन्वय की सुविधा प्रदान करने वाले समर्पित प्लेटफॉर्म या टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिये। 
  • समावेशी और न्यायसंगत संक्रमण: यह सुनिश्चित किया जाए कि ऊर्जा संक्रमण सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को भी ध्यान में रखे (विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो जीवाश्म ईंधन आधारित उद्योगों पर अत्यधिक निर्भर हैं)। प्रभावित समुदायों का समर्थन करने के लिये विभिन्न उपाय किये जाएँ, वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किये जाएँ और सभी के लिये न्यायसंगत एवं उचित संक्रमण सुनिश्चित किया जाए। 

नवीकरणीय ऊर्जा के संबंध में राज्य सरकारों की कुछ प्रमुख नीतियाँ: 

  • आंध्र प्रदेश ने सौर, पवन और पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं के लिये नवीकरणीय ऊर्जा निर्यात नीति, 2020 कार्यान्वित की है। इस नीति का उद्देश्य राज्य वितरण कंपनियों (DISCOMs) द्वारा विद्युत खरीद के किसी दायित्व के बिना राज्य के बाहर नवीकरणीय ऊर्जा के निर्यात को बढ़ावा देना है। 
  • गुजरात की सौर ऊर्जा नीति 2021 द्वारा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिये विद्युत शुल्क से छूट, बैंकिंग सुविधा, क्रॉस-सब्सिडी अधिभार से छूट जैसे विभिन्न लाभ प्रदान होते हैं। 
  • कर्नाटक की नवीकरणीय ऊर्जा नीति (2022-2027) के माध्यम से 10 GW अतिरिक्त RE परियोजनाओं के विकास को सुगम बनाने का लक्ष्य रखा गया है (राज्य में ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के साथ या उसके बिना)। 
  • तमिलनाडु की सौर ऊर्जा नीति, 2019 का लक्ष्य वर्ष 2023 तक 9 GW सौर ऊर्जा प्राप्त करना है, जहाँ ग्रिड-कनेक्टेड एवं ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं, रूफटॉप सौर प्रणाली, सौर पार्क आदि के संबंध में प्रावधान मौजूद हैं। 

निष्कर्ष: 

भारत ने अपने ऊर्जा संक्रमण के लिये सराहनीय लक्ष्य निर्धारित किये हैं और यह प्रोत्साहन एवं प्रवर्तन तंत्र के निर्माण की दिशा में कार्यरत है लेकिन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण अगला कदम यह होगा कि क्षमताओं एवं प्राथमिकताओं के आधार पर राज्यों के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जाए। इसे उपलब्ध तकनीकी-आर्थिक विकल्पों, राजकोषीय अवसर और सामाजिक एवं राजनीतिक अनिवार्यताओं सहित विभिन्न प्रेरकों, बाधाओं एवं सक्षमताओं के बीच परस्पर क्रिया द्वारा आकार मिलेगा। 

अभ्यास प्रश्न: भारत की ऊर्जा संक्रमण यात्रा में राज्यों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। भारत के ऊर्जा संक्रमण में राज्यों की भूमिका से संबद्ध चुनौतियों की चर्चा कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

मेन्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020)

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