लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

शैडो उद्यमिता

  • 27 Jan 2021
  • 9 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में शैडो उद्यमिता के लाभ, इसकी चुनौतियों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में एक बिज़नेस स्कूल के प्रोफेसर ने छात्रों को नकली प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिये कथित रूप से अपने पद का दुरुपयोग किया। यह ऐसे उन कई मामलों में से एक है जिसके तहत ऑनलाइन गतिविधियों से जुड़े एक व्यापक नियमाकीय तंत्र के अभाव के कारण विश्व भर के लोगों को ठगी का सामना करना पड़ता है

उपरोक्त मामला वैश्विक स्तर पर  शैडो उद्यमिता (Shadow Entrepreneurship) के उदय से जुड़े दुष्प्रभावों को रेखांकित करता है। शैडो उद्यमी एक ऐसे व्यवसाय का संचालन करते हैं जो वैध वस्तुएँ और सेवाएँ तो उपलब्ध कराते हैं परंतु उनके द्वारा ऐसे व्यवसायों को पंजीकृत नहीं किया जाता है। शैडो उद्यमिता आर्थिक विकास को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है। 

इसके अतिरिक्त विश्व भर में सबसे अधिक शैडो उद्यमी भारत में ही हैं और भारत में गिग इकॉनमी (Gig Economy) की वृद्धि को देखते हुए शैडो उद्यमिता को समझना बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो गया है।  

शैडो उद्यमिता का सकारात्मक पक्ष: 

  • रोज़गार के अवसरों का विकास: वर्तमान में भारत का विनिर्माण क्षेत्र युवाओं को मांग के अनुरूप  पर्याप्त औपचारिक रोज़गार के अवसर प्रदान करने में असमर्थ है। इसके अतिरिक्त भारत में शिक्षा और रोज़गार से जुड़े कौशल की मांग में भारी अंतर दिखाई देता है। 
    • इस संदर्भ में शैडो उद्यमिता को रोज़गार में वृद्धि और आर्थिक विकास के संभावित उत्प्रेरक के रूप में देखा जाता है।  
  • मार्केट गैप को कम करना: शैडो उद्यमी बाज़ार से जुड़ी विकृतियों और चुनौतियों को कम करने में मदद कर सकते हैं।  
    • वे ऐसी पूरक सेवाएँ दे सकते हैं जो पारंपरिक सेवा प्रदाता नहीं उपलब्ध करा सकते या उपभोक्ताओं तक वर्तमान में ऐसे उत्पादों या सेवाओं की पहुँच नहीं है।  
  • सामाजिक सेवाओं का संवर्द्धन: शैडो उद्यमिता सरकारी योजनाओं के कल्याणकारी समर्थन को बढ़ा सकती है क्योंकि वह पहुँच, उपलब्धता या वहनीयता से जुड़े मुद्दों को संबोधित कर सकती है।

शैडो उद्यमिता की चुनौतियाँ व इससे जुड़े अन्य मुद्दे:  

  • अनौपचारिक श्रम का विस्तार: चूँकि शैडो उद्यमिता काफी हद तक अनियमित है, ऐसे में इस क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों को बहुत ही सीमित लाभ (जैसे-रोज़गार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, बीमा इत्यादि) मिल पाता है। 
    • ऐसे में यह भारत के अनौपचारिक श्रम क्षेत्र का ही एक विस्तार है, जो भारत में लंबे समय से प्रचलित है और इस क्षेत्र में बड़े पैमाने किसी विनियमन का अभाव रहा है। 
  • आर्थिक वृद्धि में बाधा:  शैडो उद्यमिता के परिणामस्वरूप कर राजस्व (Tax Revenue) की हानि, पंजीकृत व्यवसायों के लिये अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और खराब उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है। गौरतलब है कि ये कुछ ऐसे कारक हैं जो आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं। 
    • चूँकि शैडो उद्यमिता से जुड़े व्यवसाय पंजीकृत नहीं होते हैं, जो उन्हें कानून की पहुँच से परे ले जाता है और यह शैडो अर्थव्यवस्था उद्यमियों को भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के प्रति संवेदनशील बनाती है।    
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: शैडो उद्यमिता का विनियमन न होना सीमा पार और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का एक प्रमुख कारक बन सकता है। उदाहरण के लिये हाल में कुछ चीनी कंपनियों द्वारा भारत में ऑनलाइन तात्कालिक ऋण वितरण के संदिग्ध मामले देखने को मिले थे। 
  •  घोटालो में वृद्धि: शैडो उद्यमिता से जुड़े व्यक्ति जो औपचारिक रूप से पंजीकृत न होकर एक पूरक सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करते हैं, संभावित रूप से इस महामारी के कारण उत्पन्न हुई बाज़ार की बाधाओं का लाभ उठाते हुए दस्तावेज़ जालसाज़ी जैसे माध्यमों द्वारा उपभोक्ताओं से धन उगाही का प्रयास किया जा सकता है।  

आगे की राह:  

  • औपचारिकरण: किसी देश में अनौपचारिक क्षेत्र की उद्यमिता, गरीबी और असमानता से जुड़े सुधार  उस देश के आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों की नीतियों पर निर्भर करती है। 
    • ऐसे में सरकार की नीतियाँ शैडो अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्यमियों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में स्थांतरित होने के लिये अतिरिक्त समर्थन प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
    • इसके अतिरिक्त उचित आर्थिक और राजनीतिक ढाँचे की स्थापना लोगों को 'औपचारिक' उद्यमी बनने और अपने व्यवसायों को पंजीकृत करने लिये प्रेरित कर सकती है।
  • सामंजस्य:  साथ ही सरकारों के विभिन्न विभागों के बीच गतिविधियों के संबद्ध सामंजस्य को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है  (भारत के संदर्भ में शैडो उद्यमिता के विनियमन हेतु कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय और स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा या वित्त मामलों से जुड़े सरकारी विभागों के बीच सामंजस्य।)
  • विधि निर्माण: भारत में शैडो उद्यमिता की व्यापकता को देखते हुए इसे कम समय में औपचारिक रूप देना संभव नहीं होगा। ऐसे में वर्तमान में ऐसे कानूनी सुधार की आवश्यकता है जो शैडो उद्यमिता को विनियमित करने के साथ इससे जुड़े लोगों को सामाजिक सुरक्षा लाभ भी प्रदान करता हो। 
    • इस संदर्भ में हालिया सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 एक सकारात्मक कदम है, इस विधेयक के माध्यम से पहली बार प्लेटफॉर्म वर्कर्स और गिग वर्कर्स को रोज़गार की नई श्रेणियों के रूप में स्वीकार किया गया है।  

निष्कर्ष:  

शैडो उद्यमिता भले ही बेरोज़गारी संकट तथा बाज़ार की रिक्तता आदि जैसी समस्याओं से तात्कालिक और अस्थायी रूप से निपटने में सफल हो सकती है परंतु विकासशील देशों हेतु सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण की निगरानी की ज़रूरत को देखते हुए एक व्यवस्थित विनियमन तंत्र के अभाव की यह स्थिति किसी भी समय अनियंत्रित हो सकती है। 

अभ्यास प्रश्न: शैडो उद्यमिता से आप क्या समझते हैं? भारतीय अर्थव्यवस्था में शैडो उद्यमिता की भूमिका की समीक्षा करते हुए इसकी चुनौतियों और इस क्षेत्र में नियामकीय हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2