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जैव विविधता और पर्यावरण

श्वसन के अधिकार पर खतरा

  • 03 Nov 2022
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 02/11/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The weakest link in the air pollution fight” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों और संबंधित नियामक चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल के वर्षों में वायु प्रदूषण की समस्या में व्यापक वृद्धि हुई है और अधिकांश भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता सुरक्षित स्तरों के WHO दिशानिर्देशों की पूर्ति कर सकने में विफल रही है।

  • ‘द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ’ (The Lancet Planetary Health) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण भारत में 16.7 लाख मौतों के लिये ज़िम्मेदार था (उस वर्ष देश में हुई सभी मौतों का 17.8%) और सिंधु-गंगा मैदान में वायु प्रदूषण की यह समस्या सबसे गंभीर थी। घरों में ईंधन के रूप में बायोमास का उपयोग भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण था, जिसके बाद दूसरे स्थान पर कोयले के दहन का योगदान था।
  • 5 और PM10 के स्तर के साथ-साथ सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) जैसे खतरनाक कैंसरकारक पदार्थों की सांद्रता अधिकांश भारतीय शहरों में खतरनाक स्तर तक पहुँच गई है, जिसने लोगों को श्वसन-संबंधी बीमारियों एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के अतिरिक्त जोखिम में डाल दिया गया है।
  • देश में जिस दर से वायु प्रदूषण की वृद्धि हो रही है, तत्काल कार्रवाई एक परम आवश्यकता बन गई है। इस परिदृश्य में, इस समस्या पर नियंत्रण के लिये सरकार के प्रयासों को पुनर्जीवन देना आवश्यक हो गया है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत

  • शहरीकरण (Urbanisation): बढ़ता शहरीकरण और निर्माण जैसी मानव गतिविधियाँ वायु प्रदूषक उत्सर्जन और खराब वायु गुणवत्ता के प्रमुख कारण हैं।
    • अनुमान किया जाता है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक आबादी का लगभग 50% शहरी क्षेत्रों में निवास कर रहा होगा जो वायु प्रदूषण में और योगदान करेगा।
    • शहरीकरण के परिणामस्वरूप सड़कों पर वाहनों की उपस्थिति व्यापक रूप से बढ़ी है जो यातायात की भीड़ में योगदान करते हैं और इससे उस विशेष क्षेत्र की वायु गुणवत्ता काफी हद तक प्रभावित होती है।
  • जीवाश्म ईंधन का दहन: जीवाश्म ईंधन के अपूर्ण दहन से वायु प्रदूषण होता है। इन ईंधनों में कोयला, तेल और गैसोलीन शामिल हैं जिनका उपयोग बिजली एवं परिवहन हेतु ऊर्जा उत्पादन के लिये किया जाता है।
    • जब जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है तो वे केवल CO2 ही उत्सर्जित नहीं करते। उदाहरण के लिये, अकेले कोयला-संचालित बिजली स्टेशन ही भारत में हानिकारक पारा उत्सर्जन (mercury emissions) में 80% की हिस्सेदारी रखते हैं।
    • वातावरण में धूल (कणिका प्रदूषण) का एक बड़ा भाग जीवाश्म ईंधन दहन से उत्सर्जित होता है।
  • औद्योगिक उत्सर्जन: पार्टिकुलेट मैटर 2.5 एवं 10, NO2, SO2, और CO प्रमुख प्रदूषक हैं जो उन उद्योगों से उत्सर्जित होते हैं जो अपने माल के उत्पादन के लिये कोयले एवं लकड़ी को प्राथमिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।
  • कृषि और संबद्ध स्रोत: कृषि उद्योग प्रदूषण के स्रोतों में से एक है जहाँ पशुधन खाद एवं उर्वरकों से उत्पन्न अमोनिया वातावरण को प्रदूषित करता है।
    • इसके अलावा, पराली दहन (stubble burning) भी उत्तरी भारत में, विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में, वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में से एक है।
  • घरेलू प्रदूषण: घरों में जहरीले उत्पादों का उपयोग (जिन्हें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (Volatile Organic Compounds- VOCs) के रूप में भी जाना जाता है), अपर्याप्त वेंटिलेशन, असमान तापमान और आर्द्रता का स्तर घरेलू या आंतरिक वायु प्रदूषण (indoor air pollution) का कारण बन सकता है।
    • वुड स्टोव या स्पेस हीटर का उपयोग आर्द्रता के स्तर को बढ़ाने में सक्षम है जो प्रत्यक्ष रूप से कुछ ही समय में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
      • आंतरिक वायु प्रदूषण में मौजूद कैंसरकारक तत्वों एवं जहरीले पदार्थों से होने वाले फेफड़ों के कैंसर 17% मौतों का कारण बनते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन प्रेरित वनाग्नि: ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) के कारण औसत तापमान में दिनानुदिन वृद्धि हो रही है। तापमान में वृद्धि वनाग्नि (Wildfire) की घटनाओं में वृद्धि कर रही है।
    • जलवायु परिवर्तन न केवल वनाग्नि की घटनाओं को बढ़ा रहा है बल्कि वायु प्रदूषण की भी वृद्धि कर रहा है। यह हवा में PM2.5 की वृद्धि का कारण बनता है जो रासायनिक गैस एवं पराग जैसे अन्य पदार्थों से संयुक्त हो धूम-कोहरा या ‘स्मॉग’ (smog) बनाता है।

भारत में वायु प्रदूषण से संबद्ध प्रमुख मुद्दे

  • ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी: भारत में वायु प्रदूषण को आमतौर पर शहरों की समस्या और शहरों द्वारा उत्पन्न समस्या के रूप में देखा जाता है। स्वाभाविक रूप से फिर समाधान भी शहरों को ही केंद्र में रखकर विचार किये गए हैं। खराब वायु गुणवत्ता में सुधार की पहल ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकट रूप अनुपस्थित रही है।
    • 96% वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन शहर की सीमाओं के भीतर अवस्थित हैं और आसपास के ग्रामीण बस्तियों को अपने दायरे में नहीं लेते हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में भी टियर-2 और टियर-3 शहरों पर कम ध्यान दिया गया है। उदाहरण के लिये, भारत में राष्ट्रीय परिवेश निगरानी कार्यक्रम ( National Ambient Monitoring Programme- NAMP) के तहत 804 मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशन के साथ ही 274 रीयल-टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन (CAAQMS) मौजूद हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश टियर-1 शहरों में स्थित हैं और कुछ ही टियर-2 शहरों में हैं।
      • इसके साथ ही, कई राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियाँ अपने सांविधिक कार्य दायित्व को पूरा करने में विफल रही हैं।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: विश्व बैंक के ‘भारत में चुनिंदा पर्यावरणीय चुनौतियों का निदानात्मक आकलन’ (Diagnostic Assessment of Select Environmental Challenges in India) शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण की वार्षिक लागत, विशेष रूप से पार्टिकुलेट मैटर (जीवाश्म ईंधन दहन से उत्पन्न) से होने वाले प्रदूषण के कारण, देश के सकल घरेलू उत्पाद की 3% है। इसी प्रकार, बाह्य वायु प्रदूषण 1.7% और आंतरिक वायु प्रदूषण 1.3% की लागत लाता है।
    • स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से अपना प्रभाव डालता है।
  • स्वास्थ्य के लिये खतरा: वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (Air Quality Life Index- AQLI) दर्शाता है कि पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण संचारी रोगों की तुलना में जीवन प्रत्याशा को कम करने में कहीं अधिक योगदान करते हैं।
    • प्राकृतिक गैस और जीवाश्म ईंधन दहन से उत्पन्न प्रदूषकों से युक्त हवा के श्वसन से हृदय की पर्याप्त ऑक्सीजन पंप करने की क्षमता कम हो जाती है। इससे व्यक्ति विभिन्न श्वसन एवं हृदय संबंधी विकारों से पीड़ित होता है।
      • इसके अलावा, नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा (acid rain) के लिये ज़िम्मेदार होते हैं जो त्वचा कैंसर की संभावना को बढ़ाती है।
      • केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि जीव-जंतु भी वायु प्रदूषण से प्रभावित होते हैं। यह उनके फेफड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, अस्थमा उत्पन्न करता है और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोग का कारण बनता है।
  • महिलाओं पर असंगत प्रभाव: अध्ययन से पुष्टि हुई है कि बायोमास दहन से होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण से महिलाएँ अधिक प्रभावित होती हैं।
    • वायु प्रदूषण का संबंध गर्भपात, गर्भावस्था की जटिलताओं और मृत शिशु जन्म के उच्च दर से भी देखा गया है, जो महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
  • पारिस्थितिक असंतुलन: वायु प्रदूषण कई तरह से फसलों और पेड़ों को हानि पहुँचा सकता है। भूमि-तलीय ओज़ोन (Ground-level ozone) कृषि उत्पादकता एवं वाणिज्यिक वन उपज में कमी, वृक्ष नवांकुरों की वृद्धि एवं उत्तरजीविता में कमी और रोगों, कीटों एवं अन्य पर्यावरणीय तनावों (जैसे कठोर मौसम) के प्रति पादप संवेदनशीलता में वृद्धि का कारण बन सकता है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु भारत की प्रमुख पहलें

आगे की राह

  • शून्य उत्सर्जन को मानवाधिकारों से संबद्ध करना: वायु प्रदूषण को महज एक पर्यावरणीय चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि मानव अधिकार के एक मुद्दे के रूप में अधिक मान्यता देने की आवश्यकता है। इसे मानवाधिकार के मुद्दे के रूप में वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के मिशन से संबद्ध किया जाना चाहिये।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने भी एक संकल्प पारित किया है जहाँ स्वच्छ, स्वस्थ और सतत पर्यावरण के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में चिह्नित किया है।
  • हरित-संक्रमण वित्त (Green-Transition Finance): एक ऐसा वित्तीय ढाँचा तैयार करने की आवश्यकता है जो भारत में स्वच्छ वात समाधानों के लिये निजी वित्त जुटा सके। स्वच्छ ऊर्जा और ई-मोबिलिटी जैसे हरित क्षेत्र वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये ठोस समाधान प्रदान करते हैं।
    • एक समर्पित हरित फोकस के साथ वित्त से संबंद्ध एक निवेश कोष विकास को उत्प्रेरित करने और इसके साथ ही वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की दोहरी समस्याओं को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • एक आरंभ करते हुए सबसे पहले कम से कम केंद्र सरकार के उपयोग के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की खरीद को अनिवार्य कर देना चाहिये।
  • औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र के लिये दाम-दंड उपागम:नीति आयोग ने वायु प्रदूषण के प्रति कई यूरोपीय देशों में अपनाए गए दाम-दंड नीति (carrot-and-stick policy) का प्रयोग करने का सुझाव दिया है।
    • दाम-दंड एक प्रेरक दृष्टिकोण है जिसमें ‘दाम’ (अच्छे व्यवहार के लिये पुरस्कृत करने) और ‘दंड (खराब व्यवहार के लिये दंडित करने) की पेशकश शामिल होती है।
  • निर्माण के लिये रेडीमेड कंक्रीट: विस्तारित होते शहरों में हवा में प्रदूषकों के लिये निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल एक प्रमुख योगदानकर्ता है। इस स्थिति से निपटने के लिये नीति आयोग ने रेडीमेड कंक्रीट के उपयोग का सुझाव दिया है जो भवन निर्माण गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर सकता है।
  • अकुशल बिजली संयंत्रों को बंद करना: पुराने बिजली संयंत्र मुख्यतः कोयले का उपयोग करते हैं और वायु प्रदूषण में भारी योगदान करते हैं।
    • इन संयंत्रों को बंद कर दिया जाना चाहिये और इनके स्थान पर कुशल सुपर-थर्मल संयंत्र या अक्षय ऊर्जा पर आधारित बिजली जनरेटर स्थापित किया जाना चाहिये।
  • रूफ-टॉप सोलर पावर जनरेटर को बढ़ावा देना: वायु प्रदूषण को कम करने के लिये सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाना एक महत्त्वपूर्ण उपाय है जिसे अपनाने की आवश्यकता है।
    • सरकार द्वारा सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और इस क्रम में रूफ-टॉप सोलर पैनल पावर जनरेटर को बढ़ावा देना चाहिये।
    • इसके साथ ही, संचालन के लिये नियमों, विनियमों और लीजिंग नीति के सरलीकरण और बिजली वितरण सुधारों की आवश्यकता है।
  • एकीकृत निगरानी मंच: भारत को स्वास्थ्य एवं जोखिम निगरानी के लिये एक एकीकृत निगरानी मंच की आवश्यकता है।
    • जैविक एवं पर्यावरणीय निगरानी के माध्यम से जनसंख्या जोखिम निगरानी (Population exposure surveillance) खराब वायु गुणवत्ता के जोखिम से अवगत करा सकती है।
  • उत्सर्जन में कमी से व्यय की बचत: विश्व बैंक के हाल के एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक पार्टिकुलेट उत्सर्जन में 30% की कमी से भारत को स्वास्थ्य संबंधी लागतों में 105 बिलियन डॉलर की बचत होगी।
    • भारत की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु रणनीति (National Clean Air Strategy) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन को 30% तक कम करना है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण से संबद्ध प्रमुख मुद्दों की चर्चा कीजिये। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये हाल की कुछ सरकारी पहलों का उल्लेख कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा

Q.1 बेंजीन प्रदूषण के संपर्क में आने के निम्नलिखित में से कौन से कारण/कारक हैं?  (वर्ष 2020)

  1. ऑटोमोबाइल निकास
  2. तंबाकू का धुआं
  3. लकड़ी का जलना
  4. वार्निश लकड़ी के फर्नीचर का उपयोग करना
  5. पॉलीयुरेथेन से बने उत्पादों का उपयोग करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1, 2 और 3
 (B) केवल 2 और 4
 (C) केवल 1, 3 और 4
 (D) 1, 2, 3, 4 और 5

 उत्तर: (A)


Q.2 हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक में सामान्य रूप से निम्नलिखित में से किस वायुमंडलीय गैसों पर विचार किया जाता है?  (वर्ष 2016)

  1. कार्बन डाइआक्साइड
  2. कार्बन मोनोआक्साइड
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मीथेन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1, 2 और 3
 (B) केवल 2, 3 और 4
 (C) केवल 1, 4 और 5
 (D) 1, 2, 3, 4 और 5

 उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन करें। ये वर्ष 2005 में इसके पिछले अद्यतन से किस प्रकार भिन्न हैं? संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिए भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में कौन से परिवर्तन आवश्यक हैं? (वर्ष 2021)

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