भारत के शहरी क्षेत्र का पुनर्गठन | 27 Sep 2022
यह एडिटोरियल 24/09/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Why our urban spaces need to be reimagined” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के शहरी क्षेत्र के विकास के लिये सुधारों की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
‘अर्बन स्पेस’ या शहरी क्षेत्र एक सजीव निकाय है; यह लगातार बढ़ रहा है और विकसित हो रहा है। भारत में शहरीकरण तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2022 के अंत तक भारत की लगभग 35% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।
- हालाँकि शहरीकरण (Urbanisation) की वास्तविक आर्थिक संभावनाओं को साकार करने में असंवहनीय शहरी नियोजन (urban planning) एक बड़ा सीमाकारी कारक रहा है, क्योंकि शहरी चुनौतियाँ बदल गई हैं और वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अलग दृष्टिकोणों की आवश्यकता है।
- चूँकि भारत ग्रामीण से शहरी समाज में अपने संक्रमण के चरम बिंदु की ओर पहुँच रहा है, यह आवश्यक है कि समाज के सभी वर्गों के पास आर्थिक विकास के सर्वोत्तम अवसर उपलब्ध हों।
भारत में शहरी शासन से संबंधित प्रमुख प्रावधान
- शहरी क्षेत्र के लिये एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण पहली बार 1980 के दशक में ‘राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग’ (National Commission on Urbanisation, 1988) के निर्माण के साथ व्यक्त किया गया था।
- राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों और 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से भारतीय संविधान भारत के शहरी क्षेत्र में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (नगर निकाय) के लिये एक स्पष्ट अधिदेश लागू करता है।
- स्थानीय निकायों पर 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने भी शहरी शासन संरचनाओं और उनके वित्तीय सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बल दिया।
शहरी विकास से संबंधित हाल की प्रमुख पहलें
- शहरी कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT)
- प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U)
- क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क 2.0
- ट्यूलिप-द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम (TULIP)
भारत में शहरी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मौजूदा चुनौतियाँ
- ULBs के वित्तपोषण, उद्देश्य और राजनीतिकरण की समस्या: शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies (ULBs) वित्तपोषण, उद्देश्य और राजनीतिकरण (Purse, Purpose and Politicisation) की समस्या से ग्रस्त हैं। अपर्याप्त वित्त के कारण, शहरी स्थानीय निकाय अपने अनिवार्य कार्यों को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं।
- ULBs के कार्य प्रायः विशेष प्रयोजन एजेंसियों के कार्य के साथ ओवरलैप होते हैं जिससे जवाबदेही की असंगतता की स्थिति बनती है।
- इसके अतिरिक्त, ULBs को विकास के प्रभावी साधनों के बजाय राजनीतिक लामबंदी के मंच के रूप में अधिक देखा जाता है।
- अर्बन हीट आइलैंड: शहरी क्षेत्रों में फुटपाथ, इमारतों और अन्य सतहों की सघन सांद्रता के साथ प्राकृतिक भूमि आवरण कम हो जाता है जो फिर ऊष्मा के अवशोषण और उसे बनाए रखने के साथ ‘अर्बन हीट आइलैंड’ (Urban Heat Island) का निर्माण करता है।
- यह ऊर्जा लागत (जैसे, एयर कंडीशनिंग के लिये), वायु प्रदूषण के स्तर और गर्मी संबंधी बीमारियों एवं मृत्यु का कारण बनता है।
- महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की कमी: अवसंरचना उन परतों में से एक है जो किसी शहर का निर्माण करती हैं। भारत के अधिकांश शहरों में स्थानीय अर्थव्यवस्था और स्थानीय शासन के न्यूनतम संचालन के लिये आवश्यक भौतिक और साइबर-आधारित प्रणालियों का अभाव है।
- सुरक्षित आवास, स्वच्छ जल एवं साफ-सफाई, अपशिष्ट प्रबंधन, समयबद्ध स्वास्थ्य देखभाल, डिजिटल अवसंरचना और शिक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं की कमी शहरी निवासियों और पूरे शहर की उर्ध्वगामी गतिशीलता को प्रभावित करती है।
- अक्षम जल संसाधन प्रबंधन: शहर के केंद्रीय क्षेत्रों भूमि की कीमतों में वृद्धि और उपलब्ध भूमि की कमी के कारण भारतीय शहरों और कस्बों में नए विस्तार एवं विकास उनके निचले इलाकों में हो रहे हैं जिनके लिये प्रायः झीलों, आर्द्रभूमियों और नदियों की भूमि का अतिक्रमण भी किया जाता है।
- नतीजतन, प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था की प्रभाविता कम हो गई है, जिससे शहरी बाढ़ (Urban Flooding) की समस्या उत्पन्न हुई है।
- इसके अलावा बदतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अत्यधिक वर्षा जल या ‘स्टॉर्म वाटर’ की निकासी में रुकावट उत्पन्न करता है, जिससे जलजमाव और बाढ़ की स्थिति बनती है।
- अक्षम शहरी परिवहन: शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन की आपूर्ति और मांग में संतुलन नहीं है, जिससे निजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है, जिससे शहरी परिवहन में भीड़भाड़ सबसे व्याप्त समस्या बन गई है।
- इसके साथ ही, भारतीय शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या को जलवायु परिवर्तन के आवश्यक चालक के रूप में देखा जाता है क्योंकि ये वाहन दहन ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता रखते हैं।
- शहरी गरीबी: शहरी गरीब मुख्य रूप से ग्रामीण गरीबों के अतिप्रवाह से उत्पन्न होते हैं जो वैकल्पिक रोज़गार एवं आजीविका की तलाश में शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। यह पहले से ही अति सघन शहरी अवसंरचना में और भीड़भाड़ की स्थिति उत्पन्न करते हैं।
- कार्य की अनौपचारिक प्रकृति के कारण इन प्रवासियों को कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है, जिससे उन्हें किसी भी समय निकाले जाने का भय रहता है (जैसा कि कोविड-19 के समय देखा भी गया)।
आगे की राह
- संवहनीय शहरी नियोजन: हमारे प्रयासों को शहरी समस्याओं के संवहनीय समाधान की दिशा में संरेखित करने की आवश्यकता है जिसमें हरित अवसंरचना, सार्वजनिक स्थानों का मिश्रित उपयोग और सौर एवं पवन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
- सुसंवहनीय शहरी नियोजन शहरी क्षेत्रों और पास-पड़ोस को स्वास्थ्यप्रद एवं अधिक कुशल क्षेत्रों में बदलते हुए निवासियों के कल्याण में सुधार लाने में मदद कर सकता है।
- यह भारत को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs), विशेष रूप से लक्ष्य 11 (शहरों को समावेशी, सुरक्षित, प्रत्यास्थी और संवहनीय बनाना) की प्राप्ति में मदद कर सकता है।
- स्थानीय ई-शासन: शहरी स्थानीय निकायों को ई-भागीदारी (e-participation) को अधिकतम करना चाहिये और सोशल नेटवर्क जैसी नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग के माध्यम से निर्णयन में विभिन्न सामाजिक श्रेणियों और नीतिनिर्माण में ऊर्ध्वगामी दृष्टिकोण को शामिल करना चाहिये।
- शहरी रोज़गार गारंटी: शहरी गरीबों को एक आधारभूत जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में मनरेगा योजना जैसी एक योजना के कार्यान्वयन की आवश्यकता है। प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा उपाय भी आवश्यक हैं।
- शहरों में रहने वाले गरीब और ज़रूरतमंद परिवारों को वर्ष में 100 दिन मांग-आधारित कार्य प्रदान करने के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु राजस्थान में इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना शुरू की गई है।
- हरित परिवहन की ओर आगे बढ़ना: सार्वजनिक परिवहन पर पुनर्विचार करने और इनका पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता है। इसके तहत ई-बसों को अपनाना, बस कॉरिडोर बनाना, और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम का उपयोग करना शामिल है जो भारत के शहरी क्षेत्र में हरित गतिशीलता (Green Mobility) को सक्षम करेगा।
- विशेष सांस्कृतिक और पर्यावरण क्षेत्र: भारतीय शहर विशेष सांस्कृतिक और पर्यावरण क्षेत्र (Special Cultural and Environment Zones) का निर्माण कर सकते हैं जहाँ उस क्षेत्र का शून्य-दोहन (zero-exploitation) सुनिश्चित किया जाए। इसी प्रकार, सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के साधन के रूप में ‘हमारा शहर हमारी संस्कृति’ (Our City Our Culture) केंद्रों की स्थापना की जा सकती है।
- शहरी क्षेत्रों में शहर पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है और इसे विद्यालयी गतिविधियों (विशेषकर सरकारी विद्यालयों) में शामिल किया जा सकता है जो लोगों का अपने शहरों के साथ भावनात्मक लगाव को मज़बूत करेगा, साथ ही साथ नई शहरीकृत भारतीय आबादी के लिये रोज़गार के अवसर सृजित करेगा।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘शहरी क्षेत्र की वास्तविक आर्थिक क्षमता को साकार कर सकने में असंवहनीय शहरी नियोजन एक बड़ा सीमाकारी कारक है।’’ टिप्पणी करें।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षास्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सबसे अच्छी तरह परिभाषित करता है: (A) संघवाद उत्तर: (B) मुख्य परीक्षाक्या सरकार की कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों की रक्षा करके उनके उत्थान के लिये योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसाय के बहिष्कार की तरफ अग्रसर करती है? (वर्ष 2014) |