इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय ऋण व्यवस्था में सुधार की व्यवस्था

  • 07 Oct 2020
  • 13 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अंतर्राष्ट्रीय ऋण व्यवस्था में सुधार की व्यवस्था व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 ने अंतर्राष्ट्रीय ऋण की माँग में वृद्धि करते हुए उसे नए स्तर पर पहुँचा दिया है। वर्ष 2019 के अंत की तुलना में वर्ष 2021 तक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ऋण अनुपात सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत और निम्न-आय वाले देशों में लगभग 7 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। ऋण की माँग में इस प्रकार की वृद्धि अपने सर्वोच्च स्तर पर है  जो कि पूर्व में ही ऐतिहासिक रूप से अधिक थी। वस्तुतः कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में अभी भी ऋण लेने की क्षमता है, उभरते बाजारों और कम आय वाले देशों को उनकी क्षमता पर अतिरिक्त ऋण लेने की स्थिति में कठोर नियमों का सामना करना पड़ता है।

International-Monetary-fund

दरअसल कम आय वाले देशों और कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएँ पहले से ही ऋण संकट के उच्च जोखिम में थी और महामारी के बाद ऋण की मांग में हुई वृद्धि चिंताजनक है। कई देश वैश्विक महामारी के प्रभावों से उबरने के लिये  अतिरिक्त ऋण ले रहे हैं, जिससे इन देशों के ऋण जाल (Debt Trap) में फँसने की संभावना है। ऐसे में  ऋण प्रबंधन हेतु कई संरचनात्मक सुधारों की अपेक्षा की जा रही है।

विकासशील एवं निम्न आय वाले देशों की स्थिति 

  • विकासशील और निम्न आय वाले देशों की आबादी कुल वैश्विक आबादी की 70 प्रतिशत है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इनकी हिस्सेदारी करीब 33 प्रतिशत है। COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक गरीबी अपने पाँव पसार रही है।
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार,  यह महामारी भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में करीब दोगुनी वृद्धि (26.5 करोड़) कर सकती है। इसके अलावा आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development-OECD) की नीतिगत रिपोर्ट के अनुसार इस वैश्विक आर्थिक संकट के चलते वर्ष 2019 के स्तर की तुलना में वर्ष 2020 में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वाह्य निजी वित्तपोषण 700 अरब यूएस डॉलर तक सिकुड़ सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund - IMF) के अनुसार, विकासशील देशों को अपनी आबादी को आर्थिक सहायता और सुविधा के मामले में महामारी और इसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तुरंत 2.5 खरब  (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।
  • अंकटाड (United Nations Conference on Trade and Development–UNCTAD) के महासचिव मुखिसा कित्युई (Mukhisa Kituyi) के अनुसार,  विकासशील देशों पर कर्ज का भुगतान बढ़ रहा है, क्योंकि उन्हें कोविड-19 के साथ काफी आर्थिक झटके लगें हैं ऐसे में इस बढ़ते वित्तीय दबाव को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुरंत और कदम उठाने चाहिये।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

  • IMF  एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का कार्य करती है।  यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने तथा आर्थिक विकास को सुगम बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।
  • IMF वर्ष 1945 में अस्तित्व में आया। IMF का मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. संयुक्त राज्य अमेरिका में है। 
  • IMF का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना, आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना, गरीबी को कम करना, रोज़गार के नए अवसरों का सृजन करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।

भारत की स्थिति

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार चालू वर्ष में वैश्विक सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 100 प्रतिशत का स्तर पार कर जाएगा। वर्ष 2019 में यह स्तर 83 प्रतिशत था। जीडीपी वृद्धि में गिरावट के कारण ऋण-जीडीपी अनुपात कम से कम चार फीसदी बढ़ेगा। परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 तक कुल ऋण को जीडीपी के 60 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य कम से कम सात वर्ष पीछे चला गया। 
  • महामारी के कारण बजट घाटे में वृद्धि समझा जा सकता है लेकिन चिंता की बात यह है कि देश का सार्वजनिक ऋण भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वर्ष 2011-12 के जीडीपी के 67 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 72 प्रतिशत तक आया था। 
  •  ऋण में वृद्धि का अर्थ यह है कि आने वाले वर्षों में सरकार को इससे निपटने के लिये और अधिक धन की व्यवस्था करनी होगी।       

किन क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है?

  • ऋण सेवा निलंबन पहल (The Debt Service Suspension Initiative): सर्वप्रथम वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऋण सेवा निलंबन पहल को वर्ष 2021 तक बढ़ाया जाना चाहिये ताकि अनिश्चित ऋण समस्याओं से निपटने के लिये प्रोत्साहन मिल सके। ऋण सेवा निलंबन पहल में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक को भी शामिल करना चाहिये जिससे ऋण सुभेद्यताओं को कम किया जा सके।
  • ऋण सुभेद्य देशों का पुनर्गठन: ऋण सुभेद्य देशों में ऋण प्रबंधन और विकास को बहाल करने के उपायों के संयोजन के माध्यम से तत्काल प्रयास करना होगा । जिन देशों में ऋण प्रबंधन की व्यवस्था अस्थिर है उनका पुनर्गठन किया जाना चाहिये। ऋण प्रबंधन के लिये निजी क्षेत्र के दावों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
  • ऋण का मुद्रीकरण: सभी देशों की सरकारों को प्रत्यक्ष रूप से ऋण का मुद्रीकरण करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से व्यय और वृद्धि की लागत कम करने में मदद मिलेगी। चूंकि माँग में कमी है इसलिये  इससे मुद्रास्फीति में वृद्धि नहीं होगी।

ऋण संरचना में सुधार हेतु प्रयास

  • सर्वप्रथम देनदार और लेनदारों के आर्थिक व्यवधानों को कम करने में मदद करने के लिये संविदात्मक प्रावधानों  को मज़बूत  करना चाहिये। IMF और अन्य संस्थानों ने अंतर्राष्ट्रीय बॉन्ड में सामूहिक कलेक्शन एक्शन क्लॉज को अपनाने हेतु बढ़ावा दिया है। बिना आनुषंगिक (without Collateral)  वाले ऋण के क्रमबद्ध पुनर्गठन की सुविधा के लिये भी इसी तरह के प्रावधानों की आवश्यकता है। 
  • ऋण पारदर्शिता में वृद्धि दूसरा प्रमुख सुधार है। लेनदार ऋण संरचना के पुनर्गठन में तभी प्रतिभाग करेंगे जब उन्हें शेष लेनदारों को दिये गए ऋण की सभी शर्तें ज्ञात होंगी।
  • तीसरे सुधार के अंतर्गत आवश्यक है कि आधिकारिक द्विपक्षीय लेनदारों को द्विपक्षीय ऋण के पुनर्गठन के लिये एक आम दृष्टिकोण पर सहमत होना चाहिये। यह पुनर्गठन पेरिस क्लब के सदस्यों और अन्य लोगों के लिये स्वीकार्य होना चाहिये । पुनर्गठन में सामान्य शर्त दस्तावेज़ शामिल हो सकता है जिसके लिये  देनदार को अपने ऋणों को पारदर्शी रूप से रखना और उसके सभी लेनदारों (सरकारी और निजी) से तुलनीय शर्तों पर पुनर्गठन समझौते की आवश्यकता होती है। इस तरह के दृष्टिकोण से सभी लेनदारों के बीच सूचना साझाकरण सुनिश्चित करना होगा। ऐसा करने से यह संभव होगा कि भागीदारी बढ़े और अनावश्यक देरी से भी बचाव हो।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भूमिका 

  • IMF ऋण संकट को दूर करने के लिये कड़ी मेहनत कर रहा है, अपने सदस्यों देशों को नीति सलाह, वित्तपोषण और क्षमता विकास के साथ वित्तीय समर्थन भी दे रहा है।
  • IMF बैंकिंग क्षेत्र में ऋण आवंटन की दक्षता में सुधार करने एवं शासन संबंधी सुधारों द्वारा अर्थव्यवस्था के प्रति विश्वास में वृद्धि करने के लिये लगातार कार्य कर रहा है।
  • IMF एक मज़बूत ऋण सीमा नीति के माध्यम से ऋण पारदर्शिता को भी बढ़ावा दे रहा है। कार्यकारी निकाय के अनुसार,  वे ऋण प्रबंधन पर तकनीकी सहायता प्रदान करना और ऋण सेवा निलंबन पहल का विस्तार करने के लिये  G20 के साथ काम कर रहे हैं। 
  • IMF ऋण स्थिरता को बहाल करने के लिये देनदार-लेनदार समन्वय और कार्यों के विश्लेषण के माध्यम से ऋण पुनर्गठन का समर्थन कर रहा है और उच्च लेनदार भागीदारी पर वित्तीय समर्थन भी प्रदान कर रहा है।

निष्कर्ष

इस तरह की राहत भले ही तात्कालिक रूप से मदद कर सकती हैं,  परंतु यह विकासशील देशों को महामारी से लड़ने के लिये ऋण लेने में मदद नहीं करेगीइस तरह उन्हें शिक्षा और अन्य टीका कार्यक्रमों जैसे अन्य सामाजिक क्षेत्र के खर्चों से वित्तीय संसाधनों को हटाने के लिये मज़बूर करेगी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अन्य वितीय संस्थानों को विकासशील और निम्न आय वाले देशों के लिये एकीकृत अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न- ‘वैश्विक महामारी के बाद उभरते बाजारों और निम्न आय वाले देशों को उनकी क्षमता पर अतिरिक्त ऋण लेने की स्थिति में कठोर नियमों का सामना करना पड़ रहा है।’ ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय ऋण संरचना के बेहतर प्रबंधन हेतु कैसे प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2