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भारत में दिव्यांगता: समस्याएँ एवं समाधान

  • 04 Dec 2020
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में दिव्यांग व्यक्तियों के समक्ष चुनौतियों और सरकार द्वारा इससे निपटने हेतु किये गए प्रयासों व संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

किसी शारीरिक या मानसिक विकार के कारण एक सामान्य मनुष्य की तरह किसी कार्य (जो मानव के लिये सामान्य समझी जाने वाली सीमा के भीतर हो) को करने में परेशानी या न कर पाने की क्षमता को दिव्यांगता के रूप में पारिभाषित किया जाता है।

दिव्यांगता विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देश में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। दिव्यांगता के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 दिसंबर को  विश्व दिव्यांग दिवस के रूप में घोषित किया गया है। यह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आदि जैसे जीवन के हर पहलू में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों तथा उनके हितों को प्रोत्साहित करने की परिकल्पना करता है। 

भारत में कई कानूनों और योजनाओं के माध्यम से दिव्यांग व्यक्तियों के लिये अवसरों की सुलभता और समानता सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। हालाँकि भारत अभी भी दिव्यांग व्यक्तियों के लिये अवसंरचनात्मक, संस्थागत और दृष्टिकोण/व्यवहार संबंधी बाधाओं को दूर करने में बहुत पीछे है। 

भारत में दिव्यांगता:

  • आबादी का एक बड़ा अनुपात: दिव्यांग लोगों की आबादी को विश्व के सबसे बड़े गैर-मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समूह के रूप में देखा जाता है। 
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग लोगों की आबादी लगभग 26.8 मिलियन थी, जो देश की कुल आबादी 2.21% है।
    • हालाँकि विश्व बैंक (World Bank) द्वारा जारी एक अनुमान में देश में दिव्यांग लोगों की आबादी लगभग 40 मिलियन बताई गई है। 
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव: भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की व्यापक आबादी होने के बावजूद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछले लगभग 7 दशकों में मात्र 4 संसद सदस्य और 6 राज्य विधानसभा सदस्य ही ऐसे रहे हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिव्यांगता से पीड़ित हैं।
  • अतिरिक्त बाधाएँ: भारत में दिव्यांग लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास की चुनौतियों से प्रभावित होने की संभावनाएँ भी अधिक हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस आबादी के 45% लोग निरक्षर हैं, जो उनके लिये बेहतर और अधिक सुविधा-संपन्न जीवन के निर्माण प्रक्रिया को मुश्किल बनाता है। यह चुनौती राजनीतिक प्रतिनिधित्व के अभाव में और जटिल हो जाती है।    
  • दिव्यांगता और गरीबी: दिव्यांगता से जुड़ा डेटा गरीबी और दिव्यांगता के बीच पारस्परिक संबंध की ओर संकेत करता है। दिव्यांगता से प्रभावित लोगों की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिनका जन्म गरीब परिवारों में हुआ।
    • इसका एक बड़ा कारण यह है कि गरीब परिवारों में गर्भवती माताओं को आवश्यक देखभाल की कमी का सामना करना पड़ता है, ऐसी प्रणालीगत कमियाँ गर्भावस्था के दौरान बड़ी चिकित्सा जटिलताओं का कारण बनती हैं और कई मामलों में इन कमियों के कारण बच्चे जन्मजात दिव्यांगता का शिकार हो जाते हैं।    
    • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। इसके अनुसार, देश में दिव्यांग लोगों की कुल आबादी के 69% ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
    • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में विश्व में दिव्यांग व्यक्तियों की कुल आबादी लगभग 1 बिलियन है और इनमें से लगभग 80% लोग विश्व के अलग-अलग विकासशील देशों में रहते हैं। 

चुनौतियाँ:

  • संस्थागत अड़चनें:  वर्तमान में भी देश में दिव्यांगता के संदर्भ में जागरूकता, देखभाल, अच्छी और सुलभ चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी बनी हुई है। इसके अतिरिक्त पुनर्वास सेवाओं की पहुँच, उपलब्धता और सदुपयोग में भी कमी देखी गई है।
    • ये कारक दिव्यांग लोगों के लिये निवारक और उपचारात्मक ढाँचा सुनिश्चित करने में बाधक बने हुए हैं।
  • शिथिल कार्यान्वयन: सरकार द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति में सुधार के लिये कई सराहनीय पहलों की शुरुआत की गई है। 
    • हालाँकि सरकार द्वारा सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) के तहत सभी मंत्रालयों को दिव्यांग व्यक्तियों के लिये अपने भवनों/इमारतों को सुलभ बनाने का निर्देश दिये जाने के बाद भी वर्तमान में अधिकांश भवन दिव्यांग व्यक्तियों के लिये अनुकूल नहीं हैं।
    • इसी प्रकार ‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016’ के तहत सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है, परंतु वर्तमान में इनमें से अधिकांश पद खाली हैं 
    • गौरतलब है कि भारत  ‘दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities-UNCRPD) का भी हिस्सा है
  • सामाजिक नज़रिया: समाज का एक बड़ा वर्ग दिव्यांग व्यक्तियों को 'सहानुभूतिपूर्ण' और 'दया' की नज़र से देखता है, जिससे उन्हें सामान्य से अलग या ‘अन्य’ (Other) के रूप में देखे जाने और देश के तीसरे दर्जे के नागरिक के रूप में उनसे व्यवहार को बढ़ावा मिलता है 
    • इसके अलावा एक बड़ी समस्या समाज के एक बड़े वर्ग की मानसिकता से है जो दिव्यांग व्यक्तियों को एक दायित्व या बोझ के रूप में देखते हैं। इस प्रकार की मानसिकता से दिव्यांग व्यक्तियों के उत्पीड़न और भेदभाव के साथ मुख्यधारा से उनके अलगाव को बढ़ावा मिलता है 

आगे की राह: 

  • समुदाय-आधारित पुनर्वास (CBR) दृष्टिकोण : CBR प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर एक व्यापक दृष्टिकोण है जिसका उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ सामुदायिक स्तर पर पुनर्वास के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध होते हैं।
    • CBR पद्धति यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि कोई भी दिव्यांग व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने में सक्षम है,  साथ ही उन्हें सभी अवसरों और सेवाओं की नियमित पहुँच सुलभ हो तथा उन्हें समुदाय में पूर्ण एकीकरण की स्थिति प्राप्त हो सके। 
  • दिव्यांगता को लेकर जागरूकता में वृद्धि: सरकारों, सामाजिक संस्थाओं और पेशेवर संगठनों द्वारा दिव्यांगता से जुड़ी द्वेषपूर्ण मानसिकता या सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिये व्यापक सामाजिक अभियान चलाने पर विचार करना चाहिये।
    • इस संदर्भ में मुख्यधारा की मीडिया ने फिल्मों (जैसे-तारे जमीं पर, बर्फी आदि) के माध्यम से दिव्यांग व्यक्तियों के सकारात्मक प्रतिनिधित्त्व के लिये सही मार्ग चुना है।
  • राज्यों के साथ साझेदारी: गर्भवती महिलाओं की देखभाल के संदर्भ में व्यापक जागरूकता और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की उन्नत एवं सुलभ पहुँच सुनिश्चित करना दिव्यांगता की समस्या से निपटने के प्रयासों के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं।
    • दिव्यांगता की समस्या से निपटने के इन दोनों कारकों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों के सक्रिय सहयोग के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक निवेश करना चाहिये। गौरतलब है कि भारतीय संविधान के तहत स्वास्थ्य को राज्य सूची में शामिल किया गया है।
  • मज़बूत इच्छाशक्ति और अकृत्रिम मंशा: 
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद से इस अधिनियम के तहत निर्धारित आरक्षण को लागू करने में गड़बड़ी से जुड़े कई मामले देखने को मिले हैं। 
    • कोई भी नया कानून अपने उद्देश्य में तभी सफल हो सकता है जब दिव्यांग लोगों को उनके लिये आरक्षित पदों पर नियुक्त करने हेतु संबंधित अधिकारियों द्वारा इस संदर्भ में मज़बूत इच्छाशक्ति दिखाई जाए। 
    • इसके साथ ही भारत में एक संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है, जहाँ किसी भी बुनियादी ढाँचे का निर्माण करते समय दिव्यांग लोगों के हितों को भी ध्यान में रखा जाए।

निष्कर्ष: 

‘दिव्यांग’ या 'डिफरेंटली एबल्ड' जैसे शब्दों के प्रयोग मात्र से ही दिव्यांग लोगों के प्रति बड़े पैमाने पर सामाजिक विचारधारा को नहीं बदला जा सकता। ऐसे में यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा नागरिक समाज और दिव्यांग व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करते हुए एक ऐसे भारत के निर्माण का प्रयास किया जाए जहाँ किसी की दिव्यांगता पर ध्यान दिये बगैर सभी का स्वागत और सम्मान किया जाता है। 

अभ्यास प्रश्न: ‘‘दिव्यांग’ या 'डिफरेंटली एबल्ड' जैसे शब्दों के प्रयोग मात्र से ही दिव्यांग लोगों के प्रति बड़े पैमाने पर सामाजिक विचारधारा को नहीं बदला जा सकता।” भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष चुनौतियों के प्रकाश में इस कथन पर चर्चा कीजिये।

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