नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

शासन व्यवस्था

सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की चुनौतियाँ और समाधान

  • 08 Apr 2025
  • 32 min read

यह एडिटोरियल 07/04/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Bridging gaps, building resilience” पर आधारित है। इस लेख में भारत में बीमारियों और स्वास्थ्य सेवा असमानताओं के दोहरे बोझ को सामने लाया गया है, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार अपर्याप्त फंडिंग और उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कारण लाखों लोगों को निर्धनता से जूझना पड़ रहा है। आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के बावजूद, असमान अभिगम बना हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये:

आयुष्मान भारत, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, स्वास्थ्य सेवा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अनुप्रयोग, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, वन हेल्थ अप्रोच, गैर-संचारी रोग, जूनोटिक रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध 

मेन्स के लिये:

भारत के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना और समुत्थानशक्ति में प्रमुख हालिया विकास, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली लगातार संचारी रोगों और बढ़ती गैर-संचारी स्थितियों के दोहरे बोझ का सामना कर रही है, जिसमें ग्रामीण-शहरी बुनियादी अवसंरचना की असमानताएँ एवं अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य निधियाँ शामिल हैं। आयुष्मान भारत और डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म जैसी पहलों के माध्यम से प्रगति के बावजूद, असमान अभिगम एक चिंता का विषय बनी हुई है। उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कारण प्रत्येक वर्ष 55 मिलियन भारतीयों को निर्धनता से जूझना पड़ता है, जो निवारक देखभाल और सार्वभौमिक कवरेज में निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है। 

भारत के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना और समुत्थानशीलन में हाल के प्रमुख विकास क्या हैं? 

  • आधारभूत संरचना: 
    • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का विस्तार: भारत सरकार आयुष्मान आरोग्य मंदिर की स्थापना के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार कर रही है। 
      • यह विस्तार रोग का शीघ्र पता लगाने, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य तथा गैर-संचारी रोग प्रबंधन जैसी सेवाएँ प्रदान करके ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना में गहन अंतराल को दूर करता है।
      • फरवरी 2025 तक, पूरे भारत में 1.7 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर संचालित किये जा चुके हैं, जिनका उद्देश्य वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली आबादी को सेवा प्रदान करना है। 
    • उन्नत चिकित्सा प्रौद्योगिकी और AI एकीकरण में निवेश: भारत के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना में निदान, उपचार परिणामों और रोगी देखभाल में सुधार के लिये अत्याधुनिक चिकित्सा प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को तेज़ी से एकीकृत किया गया है।
      • इसमें AI-संचालित चिकित्सा उपकरण, रोबोटिक सर्जरी उपकरण और अस्पतालों में रोगी भर्ती एवं संसाधन आवंटन को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिये पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण शामिल हैं। 
      • उदाहरण के लिये, अपोलो हॉस्पिटल्स AI का उपयोग करके अपने स्टाफ का कार्यभार कम करने पर ज़ोर दे रहा है, जबकि DNA वेलनेस ने पूरे भारत में 100 सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग लैब स्थापित करने के लिये 200 करोड़ रुपए का निवेश करने की घोषणा की है। 
    • मेडिकल कॉलेजों का विस्तार: भारत में बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल मांगों से निपटने के लिये सरकार ने नए AIIMS और मेडिकल कॉलेजों की स्थापना में तेज़ी लाई है।
      • इस कदम का उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर करना तथा विशेष चिकित्सा देखभाल की उपलब्धता में सुधार करना है।
      • उदाहरण के लिये, सरकार की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 22 AIIMS विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
  • समुत्थानशीलन: 
    • टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य समाधान: भारत ने डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों, विशेष रूप से टेलीमेडिसिन को अपनाकर अपनी स्वास्थ्य सेवा क्षमता में उल्लेखनीय सुधार किया है।
      • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) ने 73 करोड़ स्वास्थ्य खाते (ABHA) बनाए हैं, जिससे संस्थानों में स्वास्थ्य रिकॉर्ड का निर्बाध, डिजिटल आदान-प्रदान संभव हो पाया है
      • 6 अप्रैल, 2025 तक, ई-संजीवनी ने वर्ष 2020 में अपनी शुरुआत के बाद से टेली-परामर्श के माध्यम से 36 करोड़ से अधिक रोगियों को सेवा प्रदान की है।
      • भारत में टेलीमेडिसिन मार्केट वित्त वर्ष 2025 तक 5.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो स्वास्थ्य सेवा समुत्थानशीलन में डिजिटल सॉल्यूशन्स के बढ़ते महत्त्व को दर्शाता है।
    • फार्मास्युटिकल उद्योग का विकास: भारत का फार्मास्युटिकल क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा समुत्थानशीलन के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है, जो टीकों और आवश्यक दवाओं की वैश्विक आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 
      • देश की अभूतपूर्व पैमाने पर कोविड-19 टीकों का उत्पादन और वितरण क्षमता, साथ ही टीका निर्यात में अग्रणी होने से, उसके स्वास्थ्य समुत्थानशीलन में बहुत वृद्धि हुई है।
      • उदाहरण के लिये, भारत ने 220 करोड़ से अधिक COVID-19 वैक्सीन खुराकें लगाई हैं, जिनमें से 30 करोड़ खुराकें निर्यात की गई हैं। 
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और टेली मानसिक स्वास्थ्य में निवेश: बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट को देखते हुए, भारत ने टेली-मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दी है, विशेष रूप से राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (टेली MANAS) के माध्यम से, जो मनोवैज्ञानिक सेवाओं तक दूरस्थ पहुँच प्रदान करता है। 
      • इस पहल ने पूरे देश में, विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक अभिगम सुनिश्चित करके मानसिक स्वास्थ्य समुत्थानशीलन का विस्तार किया है।
      • 1 अप्रैल 2025 तक, 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने देश भर में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये पहले ही 53 टेली मानस प्रकोष्ठ स्थापित कर दिये हैं।

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुँच: भारत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में महत्त्वपूर्ण असमानता से जूझ रहा है। 
    • अनेक सरकारी पहलों के बावजूद, ग्रामीण भारत को स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी अवसंरचना और चिकित्सा पेशेवरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण स्वास्थ्य परिणाम असमान हो रहे हैं। 
    • शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों का संकेंद्रण इन असमानताओं को बढ़ाता है। 
    • भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, लेकिन केवल 35-40% स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना वहाँ स्थित है। 
      • इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1,000 व्यक्तियों पर केवल 1.7 नर्सें हैं, जो प्रति 1,000 पर 3-4 के वैश्विक मानक से काफी कम है।
  • उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अभी भी बहुत अधिक आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय पर निर्भर है, जो प्रत्येक वर्ष लाखों भारतीयों के गरीबी का कारण बनती है। 
    • यद्यपि आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं का उद्देश्य परिवारों पर वित्तीय बोझ को कम करना है, फिर भी निजी स्वास्थ्य सुविधाओं पर समग्र निर्भरता बढ़ती जा रही है। 
    • भारत के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान (सत्र 2019-20) के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल पर आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय कुल स्वास्थ्य व्यय का 47.1% था।
      • यह अनुमान लगाया गया है कि स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण प्रत्येक वर्ष 55 मिलियन भारतीय गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा वितरण का विखंडन: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली विखंडित बनी हुई है तथा सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों के बीच गहरा अंतर है। 
    • निजी क्षेत्र अधिकांश माध्यमिक, तृतीयक और चतुर्थक देखभाल संस्थान प्रदान करता है, जिनमें से अधिकांश महानगरों, टियर-I एवं टियर-II शहरों में केंद्रित हैं, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा अभी भी सकल घरेलू उत्पाद के 1.9% व्यय के साथ संघर्ष कर रही है। 
    • इस विखंडन के कारण स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में विसंगति उत्पन्न होती है, जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रायः अपर्याप्त वित्तपोषित होती हैं तथा उन पर अत्यधिक दबाव होता है।

  • गैर-संचारी रोगों (NCD) का बढ़ता बोझ: भारत रोगों के दोहरे बोझ का सामना कर रहा है, जिसमें परंपरागत संचारी रोगों के साथ-साथ मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी रोगों जैसे गैर-संचारी रोगों (NCD) का प्रचलन भी बढ़ रहा है।
    • NCD के बढ़ते प्रचलन के लिये गतिहीन जीवन शैली, अनुचित आहार-शैली व तंबाकू का सेवन (जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में भी उद्धृत किया गया है) को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिससे पहले से ही बोझिल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर और अधिक दबाव पड़ रहा है।
    • अनुमान है कि 5-6 मिलियन भारतीय प्रतिवर्ष गैर-संचारी रोगों के कारण अपनी जान गंवाते हैं। 30 वर्ष से अधिक आयु के 22% भारतीयों को 70 वर्ष की आयु से पूर्व गैर-संचारी रोगों के कारण मृत्यु का खतरा होता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन और प्रशासन में अकुशलता: भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन प्रणाली की प्रायः अकुशलता और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी के लिये आलोचना की जाती है। 
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017 जैसे नीतिगत ढाँचों के बावजूद, कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से शासन, डेटा संग्रहण और गुणवत्ता आश्वासन के संदर्भ में। 
    • ये मुद्दे स्वास्थ्य कार्यक्रमों की समग्र प्रभावशीलता में बाधा डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सेवाएँ खंडित हो जाती हैं और उभरते स्वास्थ्य संकटों के मोचन में विलंब होता है।
    • उदाहरण के लिये, PM-JAY योजना के तहत 55 करोड़ से अधिक लोगों को लाभ मिला है, लेकिन धोखाधड़ी का पता लगाने और सेवा वितरण की गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ इसकी प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रही हैं। 
      • आयुष्मान भारत योजना पर हाल ही में CAG की रिपोर्ट में अवैध मोबाइल नंबर और संभावित धोखाधड़ी सहित अनियमितताओं का खुलासा हुआ है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में चुनौतियाँ: स्वास्थ्य सेवा तक अभिगम में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, भारत को अभी भी सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा, विशेषकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में, औपचारिक स्वास्थ्य बीमा प्रणाली से बाहर है। 
    • यद्यपि आयुष्मान भारत ने काफी प्रगति की है, फिर भी प्रणालीगत बाधाएँ और उपलब्ध योजनाओं के बारे में जागरूकता की कमी UHC में बाधा बनी हुई है।
    • 73 करोड़ से अधिक आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते बनाए गए हैं, लेकिन स्वास्थ्य बीमा का कवरेज सीमित बना हुआ है, वित्त वर्ष 2024 में कुल स्वास्थ्य प्रीमियम में स्वास्थ्य बीमा की हिस्सेदारी केवल 33.33% है।
  • पर्यावरणीय स्वास्थ्य और एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की उपेक्षा: वायु और जल प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारकों को प्रमुख स्वास्थ्य जोखिमों के रूप में पहचाना जा रहा है, फिर भी इन जोखिमों को कम करने के प्रयास अपर्याप्त हैं। 
    • प्रमुख शहरों में खराब वायु गुणवत्ता के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ और हृदय संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। 
      • प्रभावी पर्यावरणीय स्वास्थ्य नीतियों का अभाव इस समस्या को और बढ़ा देता है, विशेष रूप से उच्च प्रदूषण स्तर वाले शहरी केंद्रों में।
      • वर्ष 2019 में भारत में 1.6 मिलियन मौतों के लिये वायु प्रदूषण जिम्मेदार था। दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में वायु की गुणवत्ता प्रायः खतरनाक स्तर तक बिगड़ जाती है।
    • इसके अलावा, निपाह, एवियन इन्फ्लूएंज़ा जैसी जूनोटिक बीमारियों और बढ़ती रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के प्रति भारत की सुभेद्यता को देखते हुए, एक एकीकृत कार्यढाँचे का अभाव एक महत्त्वपूर्ण कमी है।  

One Health Approach

स्वास्थ्य सेवा के मामले में भारत अन्य देशों से क्या सीख ले सकता है? 

  • थाईलैंड: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC)
    • थाईलैंड का UHC एक कुशल सार्वजनिक बीमा मॉडल के माध्यम से लगभग सार्वभौमिक स्वास्थ्य पहुँच प्रदान करता है, जिससे वित्तीय बाधाएँ न्यूनतम हो जाती हैं।
      • भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने के लिये एक समान प्रणाली अपना सकता है जो सभी के लिये, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, किफायती देखभाल सुनिश्चित करती है
  • क्यूबा: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान
    • क्यूबा निवारक देखभाल और सुदृढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर ज़ोर देता है, जिसमें प्रारंभिक पहचान के लिये समुदायों में डॉक्टरों को तैनात किया जाता है। 
      • भारत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और निवारक सेवाओं को बढ़ाकर इसका अनुकरण कर सकता है, ताकि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ने से पहले ही उनसे निपटा जा सके।
  • जर्मनी: स्वास्थ्य बीमा विस्तार
    • जर्मनी की दोहरी सार्वजनिक-निजी बीमा प्रणाली सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करती है, तथा सार्वजनिक पहुँच एवं निजी विकल्प के बीच संतुलन बनाती है। 
      • भारत गुणवत्तापूर्ण देखभाल बनाए रखते हुए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिये हाइब्रिड प्रणाली अपना सकता है।
  • एस्टोनिया: डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण
    • एस्टोनिया की डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली निर्बाध स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिये सार्वभौमिक इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रदान करती है।
      • भारत अपने डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्मों को बढ़ाकर सभी सेवाओं में इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को एकीकृत कर सकता है।
  • स्वीडन: स्वास्थ्य सेवा वित्तपोषण
    • स्वीडन स्वास्थ्य सेवा के वित्तपोषण के लिये प्रगतिशील कराधान का उपयोग करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सेवा के स्थान पर यह निःशुल्क हो। 
      • भारत भी अपनी जेब से होने वाले खर्च को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये इसी तरह की प्रगतिशील कर प्रणाली के बारे में सोच सकता है। (हालाँकि स्वास्थ्य देखभाल उपकर पहले से ही मौजूद है)
  • इथियोपिया: सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता
    • इथियोपिया दूरदराज़ के क्षेत्रों में देखभाल उपलब्ध कराने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं का उपयोग करता है, जिससे पहुँच में सुधार होता है।
      • भारत ASHA जैसी सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करके उनकी भूमिका का विस्तार और सुरक्षा कर सकता है।

भारत अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • टेलीमेडिसिन एकीकरण के साथ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना को सुदृढ़ करना: शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा विभाजन को समाप्त करने के लिये, भारत को आयुष्मान आरोग्य मंदिर का विस्तार करके और उन्हें टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों के साथ एकीकृत करके ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाना होगा।
    • दूरदराज़ के क्षेत्रों में विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करने के लिये टेलीमेडिसिन का और अधिक लाभ उठाया जाना चाहिये, जिससे शहरी केंद्रों पर निर्भरता कम हो सके। 
    • इस संयोजन से अभिगम में सुधार हो सकता है, तृतीयक अस्पतालों पर बोझ कम हो सकता है तथा वंचित क्षेत्रों में प्राथमिक देखभाल सुनिश्चित हो सकती है। 
  • स्वास्थ्य सेवा कवरेज के विस्तार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): भारत को बुनियादी अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवा वितरण दोनों को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के उपयोग का विस्तार करना चाहिये।
    • सरकार निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग कर सकती है ताकि वंचित क्षेत्रों में अधिक चिकित्सा सुविधाएँ स्थापित की जा सकें तथा आयुष्मान भारत जैसी बीमा योजनाओं के माध्यम से किफायती देखभाल प्रदान की जा सके। 
    • सार्वजनिक और निजी हितधारकों के लक्ष्यों को संरेखित करके, भारत क्षमता में वृद्धि कर सकता है, सेवाओं को सुव्यवस्थित कर सकता है तथा संपूर्ण प्रणाली में गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए अभिगम में सुधार कर सकता है।
  • निवारक देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार: भारत को गैर-संचारी रोगों (NCD) के बोझ को कम करने के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों (PHC) के स्तर पर निवारक स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • यह उन्नत जाँच कार्यक्रमों, स्वास्थ्य शिक्षा तथा मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का शीघ्र पता लगाने के माध्यम से किया जा सकता है। 
    • प्रारंभिक हस्तक्षेपों को लागू करने और लगातार अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित करने से, माध्यमिक एवं तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर दबाव कम किया जा सकता है, जिससे प्रणाली की समग्र दक्षता और लागत-प्रभावशीलता में सुधार होगा।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत करना: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण प्रदान करके मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • इस एकीकरण से यह सुनिश्चित होगा कि मानसिक स्वास्थ्य सहायता सभी क्षेत्रों में, विशेषकर वंचित क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो सके। 
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को मुख्यधारा में लाकर और इसे नियमित चिकित्सा जाँच के भाग के रूप में शामिल करके, भारत बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य बोझ का अधिक प्रभावी ढंग से निवारण कर सकता है तथा कलंक को कम कर सकता है।
  • सार्वभौमिक कवरेज के लिये स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को सुव्यवस्थित करना: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की ओर बढ़ने के लिये, भारत को बाह्य रोगी देखभाल को शामिल करने हेतु कवरेज का विस्तार करके अपनी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को सुव्यवस्थित करना होगा।
    • क्लेम प्रोसेस को सरल बनाने तथा शीघ्र प्रतिपूर्ति समय-सीमा सुनिश्चित करने से ये योजनाएँ कमज़ोर वर्ग के लिये अधिक सुलभ हो जाएंगी।
    • राष्ट्रीय और राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के बीच समन्वय, साथ ही बेहतर जागरूकता एवं अभिगम से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि अधिकांश आबादी को व्यापक कवरेज का लाभ मिले।
  • डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों और डेटा एकीकरण को बढ़ावा देना: भारत को एक निर्बाध और अंतर-संचालनीय स्वास्थ्य डेटा इको-सिस्टम बनाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड (EHR), आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) और टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों जैसे डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों के एकीकरण में तेज़ी लानी चाहिये।
    • इससे स्वास्थ्य डेटा का बेहतर प्रबंधन संभव होगा, सेवा वितरण में सुधार होगा तथा यह सुनिश्चित होगा कि रोगियों को विभिन्न स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से समन्वित देखभाल प्राप्त हो। 
    • AI-आधारित नैदानिक ​​उपकरण तथा दूरस्थ रोगी निगरानी प्रणालियों को लागू करने से स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में और वृद्धि होगी, विशेष रूप से संसाधन-विहीन क्षेत्रों में।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यबल रणनीति का कार्यान्वयन: भारत को एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यबल रणनीति लागू करने की आवश्यकता है जिसमें व्यापक कार्यबल नियोजन, कौशल विकास कार्यक्रम और प्रतिधारण रणनीतियाँ शामिल हों। 
    • इसे वंचित क्षेत्रों में काम करने के लिये पेशेवरों को प्रोत्साहन देने तथा आगामी शिक्षा के लिये प्रोत्साहन देने से जोड़ा जाना चाहिये।
    • स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के प्रशिक्षण और प्रमाणन के लिये नियामक कार्यढाँचे को सुव्यवस्थित करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि कार्यबल देश की विविध स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त रूप से सुसज्जित है।
  • स्वास्थ्य वित्तपोषण में वृद्धि तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये अधिक आवंटन: भारत को 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि धनराशि का आवंटन प्रभावी ढंग से हो। 
    • इसमें प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये वित्तपोषण बढ़ाना, निवारक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों में निवेश करना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी अवसंरचना को उन्नत करना शामिल हो सकता है।
  • पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करना और वन हेल्थ अप्रोच को दृढ़ करना: पर्यावरणीय स्वास्थ्य, विशेष रूप से वायु प्रदूषण को एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिये। भारत सख्त प्रदूषण नियंत्रण नीतियों का अंगीकरण कर सकता है, हरित प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित कर सकता है एवं वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों में निवेश कर सकता है। 
    • इन प्रयासों को श्वसन रोगों पर केंद्रित स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।
    • जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गतिशीलता से प्रभावित विश्व में रोग का शीघ्र पता लगाने, प्रकोप को रोकने तथा समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये वन हेल्थ अप्रोच को दृढ़ करना आवश्यक है।

निष्कर्ष: 

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली विकसित हो रही है, लेकिन अभिगम, सामर्थ्य और बुनियादी अवसंरचना में लगातार अंतर बना हुआ है। प्राथमिक देखभाल को सुदृढ़ करना, डिजिटल स्वास्थ्य का लाभ उठाना और आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को कम करना एक समुत्थानशील, समावेशी प्रणाली के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है। SDG3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली) के साथ तालमेल बिठाते हुए, भारत को लक्षित निवेश, सुदृढ़ शासन एवं समान सेवा वितरण के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को प्राथमिकता देनी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी अवसंरचना की वर्तमान स्थिति का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक समान अभिगम सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न 1. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2