खाड़ी देश: बदलता परिदृश्य और संभावनाएँ | 24 Nov 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में भारत और खाड़ी के संबंधों के महत्त्व के साथ भविष्य में इनके बीच राजनीतिक और आर्थिक सहयोग की संभावनाओं तथा इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
पिछले कई दशकों से खाड़ी देशों के संदर्भ में भारत के वणिकवादी दृष्टिकोण के तहत इन देशों को खनिज तेल और प्रवासी श्रमिकों के लिये रोज़गार के स्रोत के रूप में ही देखा गया है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान खाड़ी क्षेत्र में हुए बड़े राजनीतिक और आर्थिक बदलावों के परिणामस्वरूप आर्थिक और सामरिक दृष्टि से वैश्विक राजनीति में खाड़ी देशों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण हुई है। गौरतलब है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 6 वर्षों से अधिक समय के कार्यकाल के दौरान खाड़ी देशों और हिंद महासागर को भारत की विदेशी नीति की रणनीतिक प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा गया है। ऐसे में इस सप्ताह भारतीय विदेश मंत्री की बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात या यूएई (UAE) की यात्रा खाड़ी क्षेत्र में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तनों और हिंद महासागर में इसके बड़ते प्रभाव की समीक्षा का उपयुक्त अवसर प्रदान करेगा।
खाड़ी देश:
- खाड़ी देशों से आशय सामान्यतयः ‘खाड़ी सहयोग परिषद’ (Gulf Cooperation Council-GCC) के 6 संस्थापक सदस्य देशों से है। इनमें कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन शामिल हैं।
- इस समूह में शामिल सभी देश फारस की खाड़ी से अपनी सीमा साझा करते हैं और इन देशों में किसी न किसी रूप में राजशाही का शासन लागू है।
- गौरतलब है ईरान और इराक भी फारस की खाड़ी से अपनी सीमाएँ साझा करते हैं परंतु ये दोनों देश GCC के सदस्य नहीं हैं।
पृष्ठभूमि:
- खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंध मुख्य रूप से कच्चे तेल के व्यापार और भारतीय प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही तक ही सीमित रहे हैं।
- भारत का संकीर्ण नौकरशाही दृष्टिकोण खाड़ी क्षेत्र के हितों के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को आगे ले जाने में सफल नहीं रहा।
- पूर्व में भी खाड़ी देशों ने कई मौकों पर पकिस्तान के संदर्भ के बिना ही भारत के साथ स्वतंत्र और मज़बूत राजनीतिक संबंध स्थापित करने की इच्छा प्रकट की थी परंतु भारत द्वारा इस क्षेत्र को कभी भी पाकिस्तान के संदर्भ से अलग नहीं देखा गया।
- भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग में यह अवधारण बनी हुई है कि खाड़ी के देश खनिज तेल के उत्पादन से जुड़ी कुछ अर्थव्यवस्थाएँ है जिनका प्रबंधन कुछ रूढ़िवादी शासकों द्वारा किया जाता है, हालाँकि भारत को इन देशों द्वारा पिछले कुछ दशकों के दौरान तेल के राजस्व से खड़ी की गई वित्त पूंजी के महत्त्व को समझना बहुत ही आवश्यक है।
खाड़ी देशों और भारत के संबंधों में सुधार:
- पिछले कुछ वर्षों में खाड़ी देशों के प्रति भारत का वणिकवादी दृष्टिकोण एक राणनीतिक साझेदारी में बदल रहा है।
- प्रधानमंत्री मोदी द्वारा खाड़ी शासकों से व्यक्तिगत संबंधों को मज़बूत करने के प्रयासों ने राजनीतिक और रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने के लिये व्यापाक संभावनाएँ प्रस्तुत की हैं।
- हालाँकि अभी भी भारत खाड़ी देशों में पूंजीवाद के उदय के बाद उत्पन्न हुए अवसरों से स्वयं को जोड़ने में पूरी तरह से सफल नहीं रहा है।
खाड़ी देशों का आर्थिक और राजनीतिक बदलाव:
- हाल के वर्षों में खाड़ी के देशों में बड़े आर्थिक और सामाजिक बदलाव देखने को मिले हैं।
- इनमें से अधिकांश देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को खनिज तेल उत्पादन तक ही सीमित न रखते हुए इनमें व्यापक विस्तार किया है और इनके द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा से लेकर परिवहन, बैंकिंग और सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में निवेश किया गया है।
- खाड़ी देशों की आर्थिक नीति में हुए इस व्यापक बदलाव के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में कई बड़े व्यावसायिक समूहों और संप्रभु धन निधियों के विस्तार को कई विशेषज्ञों द्वारा ‘खालीजी पूंजीवाद’ (Khaleeji Capitalism) की संज्ञा दी गई है।
- खाड़ी देशों की इस वित्तीय प्रगति से मध्य पूर्व और हिंद महासागर क्षेत्र में उनके भू-राजनीतिक प्रभाव में भी वृद्धि हुई है।
- हाल के वर्षों में खाड़ी देशों के द्वारा दैनिक जीवन में अनावश्यक धार्मिक या सामाजिक हस्तक्षेप को कम करने के लिये कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं जैसे-महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित सुधार, सहिष्णुता को बढ़ावा देना और एक राष्ट्रीय पहचान विकसित करना जो केवल धर्म से न परिभाषित होती हो।
- हाल ही में यूएई द्वारा विदेशी उद्यमियों और श्रमिकों को आकर्षित करने के लिये कई बड़े सुधार किये गए है, जिनमें शराब के सेवन को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, अविवाहित जोड़ों को साथ रहने की अनुमति, महिलाओं के खिलाफ ऑनर किलिंग के मामलों का अपराधीकरण, दीर्घकालिक वीज़ाकी व्यवस्था आदि।
हिंद महासागर क्षेत्र और भारत:
- पिछले 6 वर्षों के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर के प्रति भारत के दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव देखने को मिला है।
- इस दौरान मॉरीशस और वहाँ बड़ी संख्या में रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ भारत के पारंपरिक संबंधों को पुनः मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की मॉरीशस और सेशेल्स यात्रा काफी समय से लंबित रही हिंद महासागर नीति की स्पष्टता तथा इन द्वीपीय देशों के रणनीतिक महत्त्व की स्वीकार्यता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रही।
- इस दौरान भारत ने फ्राँस के साथ मिलकर एक रणनीतिक समुद्री साझेदारी की शुरुआत की है।
- इसी वर्ष भारत ‘हिंद महासागर आयोग’ (Indian Ocean Commission) में एक पर्यवेक्षक (Observer) के रूप में शामिल हुआ है।
- साथ ही भारत ‘जिबूती आचार संहिता’ (DCOC) में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ है।
भारत के लिये खाड़ी देशों का महत्त्व:
- भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में खाड़ी देशों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत और खाड़ी देशों का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा, जो पिछले वित्तीय वर्ष से लगभग 17% अधिक है।
- गौरतलब है कि द्विपक्षीय व्यापार के मामले में GCC के दो देश यूएई और सऊदी अरब भारत के तीसरे और चौथे सबसे बड़े व्यापार सहयोगी हैं, इन दोनों देशों के साथ वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत का द्विपक्षीय व्यापार क्रमशः 60 व 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा था।
- भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में यूएई शीर्ष 10 देशों में शामिल है।
- वर्तमान समय में ऊर्जा आपूर्ति की दृष्टि से भी भारत के लिये खाड़ी देशों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, भारत द्वारा आयात किये जाने वाले कुल कच्चे तेल में से लगभग 34%इन्हीं देशों से आता है।
- भारत और कई खाड़ी देशों के द्वारा एक दूसरे के देश में तेल की खोज और रिफाइनरियों में भी निवेश किया गया है, उदहारण के लिये महाराष्ट्र की रत्नागिरी रिफाइनरी में ‘आबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी’ (ADNOC) और ‘सऊदी अरामको’ का संयुक्त निवेश, कतर निवेश प्राधिकरण द्वारा अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड में 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा आदि।
- एक अनुमान के अनुसार, लगभग 9.3 मिलियन भारतीय अपनी आजीविक के लिये खाड़ी देशों में रहकर कार्य करते हैं, केवल यूएई में ही लगभग 3 मिलियन प्रवासी भारतीय श्रमिक कार्य करते हैं।
- वर्ष 2019 में खाड़ी देशों में कार्य करने वाले भारतीय श्रमिकों द्वारा 49 अरब अमेरिकी डॉलर प्रेषित धन प्राप्त हुआ जो भारत की जीडीपी का लगभग 2% है।
- भारत और GCC दोनों ही ‘वित्तीय कार्रवाई कार्य बल’ (FATF) के साथ अन्य कई महत्त्वपूर्ण वैश्विक मंचों के सदस्य हैं।
चुनौतियाँ:
- COVID-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की खपत में भारी गिरावट ने खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। जिसके कारण बहुत से प्रवासी भारतीय श्रमिकों को भी अपनी आजीविका गंवानी पड़ी है।
- इस महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में ही गिरावट के बीच कई खाड़ी देशों ने प्रवासी श्रमिकों की संख्या में कटौती करने का निर्णय लिया है।
- भारत द्वारा परियोजनाओं में विलंब (उदाहरण के लिये रत्नागिरी रिफाइनरी के लिये भूमि अधिग्रहण में देरी) दिपक्षीय व्यापार के लिये एक बड़ी बाधा रही है।
- गौरतलब है कि यूएई द्वारा वर्ष 2015 में भारत में 75 बिलियन डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता दिखाई थी, हालाँकि भारत इतने बड़े निवेश के लिये अभी तक पर्याप्त संसाधन और अवसंरचना का प्रबंध नहीं कर सका है।
- भारत और खाड़ी देशों के बीच कश्मीर मुद्दा या ऐसे कुछ अन्य स्थानीय तथा वैश्विक मुद्दों पर कुछ मतभेद रहे हैं।
समाधान:
- भारतीय विदेश मंत्री की खाड़ी देशों की आगामी यात्रा के दौरान COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई अस्थिरता के बीच भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा को सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही इन देशों में कार्य कर रहे लोगों के लिये कार्य क्षेत्र के परिवेश में सुधार आदि समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।
- खाड़ी देशों द्वारा कच्छे तेल के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में निवेश की इच्छा प्रकट की गई है ऐसे में भारत द्वारा इन देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में लंबी अवधि की आर्थिक साझेदारी स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- खाड़ी देश का निवेश हमारे आत्मनिर्भर भारत अभियान को मज़बूती प्रदान करने में सहायक हो सकता है, परंतु इसके लिये संभावित निवेश और अवसंरचना के अंतर को शीघ्र ही दूर करना होगा।
- खाड़ी क्षेत्र के देशों ने अपनी आर्थिक शक्ति के माध्यम से मध्यपूर्व के राजनीतिक परिवेश में अपने प्रभाव को मज़बूत करने के लिये किया है और इसका एक उदाहरण एब्राहम एकार्ड के तहत अरब-इज़राइल संबंधों में सुधार के रूप में देखा जा सकता है। यूएई और बहरीन द्वारा इज़राइल के साथ आर्थिक संबंधों की बहाली भारत के लिये एक सकारात्मक संकेत है।
- क्षेत्रीय विवादों के समाधान (अफगानिस्तान, लेबनान,लीबिया आदि) में खाड़ी देशों के बढ़ते प्रभुत्त्व पर भी ध्यान देना बहुत आवश्यक है साथ ही हिंद महासागर में भी इन देशों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
- यूएई वर्तमान में हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की अध्यक्षता करता है और उसने भारत के साथ संयुक्त बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास की भी इच्छा व्यक्त की है।
- भारत को हिंद महासागर के संदर्भ में संपर्क और सुरक्षा से जुड़ी क्षेत्रीय पहलों में व्यापकता लाने की आवश्यकता है तथा यूएई इसमें सहयोग का एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है।
निष्कर्ष:
भारत द्वारा लंबे समय से खाड़ी के देशों को चरमपंथी धार्मिक विचारधारा के एक ऐसे स्रोत के रूप में देखा गया है, जिसने उपमहाद्वीप के साथ विश्व के कई क्षेत्रों में अस्थिरता लाने का कार्य किया है। हालाँकि वर्तमान में जब खाड़ी के अधिकांश शासकों द्वारा बड़े बदलावों के साथ अपने देश के साथ क्षेत्र में राजनीतिक और सामाजिक सुधारों के प्रयास किये जा रहे है तो ऐसे समय में भारत को अपना सहयोग देना चाहिये। साथ ही भारत को खाड़ी देशों से आने वाले निवेश को बढाने के लिये स्थानीय अवसंरचना तंत्र के विकास पर विशेष ध्यान देना होगा।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में खाड़ी देशों की भूमिका की समीक्षा करते हुए वर्तमान समय में खाड़ी देशों तथा भारत के संबंधों को मज़बूत करने की संभावनाओं और इनकी प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।