भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: विधान और व्यवधान | 13 May 2023
यह एडिटोरियल 11/05/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘A ground view of the Indian Space Policy 2023’’ लेख पर आधारित है। इसमें इसरो की नई अंतरिक्ष नीति और उसमें व्याप्त कमियों के बारे में चर्चा की गई है।
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन/इसरो (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा इस वर्ष भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 जारी की गई है जिस पर वह कुछ वर्षों से कार्य कर रहा था।
नए अंतरिक्ष युग में भारत के प्रवेश की दिशा में एक प्रगति के रूप में इस नीति का स्वागत किया गया है। हालाँकि इसे उपयुक्त विधान के साथ सहयोग देने की भी आवश्यकता होगी जहाँ स्पष्ट नियम एवं विनियम मौजूद हों।
1990 के दशक की शुरुआत तक भारत के अंतरिक्ष उद्योग और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को इसरो द्वारा ही परिभाषित किया जाता था। इनमें निजी क्षेत्र की भागीदारी इसरो के डिज़ाइन और विशिष्टताओं में सहयोग देने तक सीमित थी।
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 में निजी उद्यमों को आद्योपांत गतिविधियों—यानी उपग्रहों एवं रॉकेटों के अंतरिक्ष में प्रक्षेपण से लेकर अर्थ स्टेशनों के संचालन तक सभी में प्रवेश देने की सरकार की योजना का खुलासा किया गया है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार के लिये भारत द्वारा अतीत में उठाये गए कदम
- प्रथम उपग्रह संचार नीति (First Satellite Communication Policy): इसे वर्ष 1997 में पेश किया गया था जहाँ उपग्रह उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गए थे। इन्हें आगे और उदार/मुक्त बनाया गया था लेकिन इसे लेकर कभी अधिक उत्साह नहीं दिखा।
- दूरस्थ संवेदन डेटा नीति (Remote Sensing Data Policy): इसे वर्ष 2001 में पेश किया गया था, जिसे वर्ष 2011 में संशोधित किया गया; वर्ष 2016 में इसे राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (National Geospatial Policy) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसे वर्ष 2022 में और उदार बनाया गया।
- मसौदा अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक (Draft Space Activities Bill): इसे वर्ष 2017 में लाया गया था जो एक सुदीर्घ परामर्श प्रक्रिया से गुज़रा, लेकिन वर्ष 2019 में निवर्तमान लोकसभा के विघटन के साथ समाप्त हो गया।
- अपेक्षा थी कि सरकार वर्ष 2021 तक एक नया विधेयक पेश करेगी, लेकिन प्रतीत होता है कि वह इसरो द्वारा जारी नई नीति वक्तव्य से संतुष्ट है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी खिलाड़ियों को शामिल करने की आवश्यकता क्यों है?
- अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का पिछड़ापन: वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में लगभग 360 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की है। दुनिया के कुछ प्रमुख अंतरिक्षयात्री देशों में से एक होने के बावजूद भारत इस वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में महज 2% की हिस्सेदारी रखता है।
- भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की पूर्ण क्षमता का दोहन करना: आज जबकि इसरो का बजट लगभग 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 9.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की है। ब्रॉडबैंड, ओटीटी और 5G उपग्रह आधारित सेवाओं में दोहरे अंकों की वार्षिक वृद्धि की संभावना निहित है।
- आकलन किया जाता है कि अनुकूल माहौल के साथ भारतीय अंतरिक्ष उद्योग वर्ष 2030 तक 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य तक बढ़ सकता है, जिससे प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार के दो लाख से अधिक अवसर सृजित हो सकते हैं।
- निजी क्षेत्र द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात: स्पेसएक्स (SpaceX), ब्लू ओरिजिन (Blue Origin), वर्जिन गैलेक्टिक (Virgin Galactic) जैसी कंपनियों ने लागत और टर्नअराउंड समय को कम करके अंतरिक्ष क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जबकि भारत में निजी अंतरिक्ष उद्योग के खिलाड़ी सरकार के अंतरिक्ष कार्यक्रम में विक्रेता या आपूर्तिकर्त्ता होने तक ही सीमित रहे हैं।
- सुरक्षा बढ़ाना: सुरक्षा और रक्षा एजेंसियाँ विदेशी स्रोतों से पृथ्वी अवलोकन डेटा और इमेजरी प्राप्त करने के लिये सालाना लगभग एक बिलियन डॉलर खर्च करती हैं। विदेशी संस्थाओं पर इतनी निर्भरता भारत की सुरक्षा को दाँव पर लगा सकती है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र आत्मनिर्भरता लाना: वर्तमान में भारतीय घरों में टीवी संकेतों को प्रसारित करने वाले आधे से अधिक ट्रांसपोंडर विदेशी उपग्रहों पर होस्ट किये गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप ½ बिलियन डॉलर से अधिक का वार्षिक बहिर्वाह होता है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देना: भारत के युवाओं और उद्यमियों की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग कर सकने के लिये अंतरिक्ष सहित सभी उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की गतिविधि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इस विज़न को साकार करने के लिये, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के भीतर निजी संस्थाओं को आरंभ शुरू से अंत तक की सभी अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्षम स्वतंत्र खिलाड़ियों के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकने में सक्षम बनाना आवश्यक है।
- भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को वैश्विक उद्योग के समकक्ष बनाना: निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार के भीतर लागत प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में सक्षम होगा और इस प्रकार अंतरिक्ष एवं अन्य संबंधित क्षेत्रों में विभिन्न रोज़गार सृजित होंगे।
भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023
- विज़न: भारतीय अंतरिक्ष नीति का ‘विज़न’ है ‘‘अंतरिक्ष में एक समृद्ध वाणिज्यिक उपस्थिति को सक्षम, प्रोत्साहित और विकसित करना’’, जो इस स्वीकृति की पुष्टि करता है कि निजी क्षेत्र अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की संपूर्ण मूल्य शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक है।
- मुख्य बातें:
- यह नीति चार अलग-अलग, लेकिन संबंधित निकायों का सृजन करती है, जो उन गतिविधियों में निजी क्षेत्र की वृहत भागीदारी को सुगम बनाएगी जो आमतौर पर इसरो का पारंपरिक डोमेन रहा है।
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre- InSPACe): यह अंतरिक्ष प्रक्षेपण, लॉन्च पैड की स्थापना, उपग्रहों को खरीद-बिक्री और हाई-रिज़ॉल्यूशन डेटा का प्रसार करने सहित विभिन्न विषयों के लिये एकल खिड़की मंज़ूरी एवं प्राधिकरण एजेंसी के रूप में काम करेगा।
- यह गैर-सरकारी निकायों (Non-Government Entities- NGEs)—जिसमें निजी कंपनियाँ भी शामिल होंगी—और सरकारी कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकियों, उत्पादों, प्रक्रियाओं और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी भी करेगा।
- IN-SPACe एक ‘स्थिर और पूर्वानुमेय विनियामक ढाँचा’ तैयार करेगा जो NGEs के लिये एक समान अवसर सुनिश्चित करेगा।
- यह उद्योग समूहों की स्थापना के लिये एक प्रवर्तक (Promoter) के रूप में और देयता के मुद्दों पर दिशानिर्देश जारी करने में नियामक (Regulator) के रूप में कार्य करेगा।
- न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): यह सार्वजनिक व्यय के माध्यम से सृजित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और मंचों के व्यावसायीकरण के साथ-साथ निजी या सार्वजनिक क्षेत्र से अंतरिक्ष संबंधी घटकों, प्रौद्योगिकियों, मंचों एवं अन्य आस्तियों के विनिर्माण, लीज़िंग या खरीद के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- अंतरिक्ष विभाग: यह समग्र नीति दिशानिर्देश प्रदान करेगा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिये नोडल विभाग होगा। यह अन्य कार्यों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय के परामर्श से वैश्विक अंतरिक्ष प्रशासन एवं कार्यक्रमों के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समन्वय की दिशा में भी कार्य करेगा।
- यह अंतरिक्ष गतिविधियों से संबंधित विवादों को हल करने के लिये एक उपयुक्त तंत्र का भी सृजन करेगा।
- इसरो की भूमिका को युक्तिसंगत बनाना: नवीन नीति में कहा गया है कि इसरो ‘‘ऑपरेशनल स्पेस सिस्टम के विनिर्माण में मौजूद होने के मौजूदा अभ्यास से बाहर निकलेगा।’’
- इस प्रकार, अब परिपक्व प्रणालियों को वाणिज्यिक उपयोग के लिये उद्योगों को स्थानांतरित किया जाएगा। इसरो उन्नत प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास, नई प्रणालियों की सिद्धि और राष्ट्रीय विशेषाधिकारों की पूर्ति के लिये स्पेस ऑब्जेक्ट्स को साकार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- इसरो अन्य सरकारी और गैर-सरकारी कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकियों, उत्पादों, प्रक्रियाओं और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करेगा।
- यह इसरो को अपनी पूरी शक्ति अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास पर और चंद्रयान एवं गगनयान जैसी दीर्घकालिक परियोजनाओं पर लगाने का अवसर देगा।
- निजी क्षेत्र की भूमिका:
- NGEs (इसमें निजी क्षेत्र शामिल है) को ‘‘स्पेस ऑब्जेक्ट्स, भूमि-आधारित संपत्तियों और संचार, रिमोट सेंसिंग, नेविगेशन आदि संबंधित सेवाओं की स्थापना एवं संचालन के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में सभी प्रकार की गतिविधियों की अनुमति दी गई है।’’
- उपग्रह स्व-स्वामित्व वाले, खरीदे गये या पट्टे पर लिये गए हो सकते हैं; संचार सेवाएँ भारत या बाहर प्रदत्त हो सकती हैं; और रिमोट सेंसिंग डेटा को भारत या विदेश में प्रसारित किया जा सकता है।
- NGEs अंतरिक्ष परिवहन के लिये लॉन्च वाहनों को डिज़ाइन एवं संचालित कर सकते हैं और अपनी स्वयं की आधारभूत संरचना स्थापित कर सकते हैं।
- NGEs अब अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) के साथ फाइलिंग कर सकते हैं और उपग्रहीय संसाधनों की वाणिज्यिक रिकवरी में संलग्न हो सकते हैं।
- संक्षेप में, अंतरिक्ष गतिविधियों का पूरा दायरा अब निजी क्षेत्र के लिये खुल गया है। सुरक्षा एजेंसियाँ विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये NGEs को अनुकूल समाधान प्राप्त करने का कार्य सौंप सकती हैं।
नीति में व्याप्त कमियाँ
- नवीन नीति IN-SPACe के लिये एक महत्त्वाकांक्षी भूमिका तो निर्धारित करती है लेकिन आगे के आवश्यक कदमों के लिये समय-सीमा प्रदान नहीं करती है।
- न तो इसरो के लिये वर्तमान अभ्यासों से बाहर निकलने के लिये कोई सांकेतिक समयरेखा तय की गई है, न ही IN-SPACe को नियामक ढाँचा सृजित करने के लिये कोई समयसीमा सौंपी गई है।
- परिकल्पित नीतिगत ढाँचे में FDI एवं लाइसेंसिंग से संबंधित स्पष्ट नियमों एवं विनियमों, नए अंतरिक्ष स्टार्ट-अप्स को बनाए रखने के लिये सरकारी खरीद, उल्लंघन के मामले में देयता और विवाद निपटान के लिये एक अपीलीय ढाँचे की आवश्यकता होगी।
- IN-SPACe एक नियामक संस्था है लेकिन इसे विधायी प्राधिकार प्राप्त नहीं है।
- IN-SPACe से सभी के लिये (सरकारी और गैर-सरकारी निकाय दोनों) अंतरिक्ष गतिविधियों को अधिकृत करने की उम्मीद है। वर्तमान में इसकी स्थिति अस्पष्ट है क्योंकि यह अंतरिक्ष विभाग के दायरे में कार्य करता है।
इन कमियों को दूर करने के लिये क्या किया जाना चाहिये?
- अंतरिक्ष नीति 2023 एक भविष्योन्मुखी दस्तावेज़ है जो अच्छी मंशा और विज़न को प्रकट करता है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। तत्काल आवश्यकता इस बात की है कि इस विज़न को वास्तविकता में बदलने के लिये आवश्यक विधिक ढाँचा प्रदान करने हेतु एक समयसीमा तय की जाए ताकि भारत को सफलतापूर्वक द्वितीय अंतरिक्ष युग में प्रक्षेपित किया जा सके।
- सरकार को एक विधेयक लाना चाहिये जो IN-SPACe को वैधानिक दर्जा प्रदान करे और ISRO एवं IN-SPACe दोनों के लिये समयसीमा भी निर्धारित करे। यह विधेयक विदेशी निवेश, नए अंतरिक्ष स्टार्टअप के लिये सरकारी समर्थन आदि से संबंधित अस्पष्टता को भी संबोधित करे।
अभ्यास प्रश्न: भारत लंबे समय से निजी खिलाड़ियों को अपनी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में शामिल करने के लिये प्रयासरत रहा है। इस संदर्भ में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के महत्त्व की चर्चा करें और इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में इसरो द्वारा पेश की गई भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 की भूमिका पर भी विचार करें।
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