भारत अगली पीढ़ी के शहरों की ओर | 15 Dec 2022
यह एडिटोरियल 13/12/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “The urban vision: Creating next-gen cities across India” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के अगली पीढ़ी के शहरों के लिये शहरी विकास विज़न के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत की शहरी जनसंख्या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 63% का योगदान करती है, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 75% हो जाने उम्मीद है। इस विशाल योगदान के बावजूद, सभी शहरों में विकास का एक समान स्तर नहीं रहा है, जिससे बड़े शहरों पर अत्यधिक दबाव बना है।
- हमारे बड़े शहर (Mega-cities) मलिन बस्तियों एवं असंगठित आर्थिक गतिविधियों, अत्यधिक भीड़भाड़, नागरिक बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता में गिरावट, यातायात एवं परिवहन अपर्याप्तता, जलवायु परिवर्तन और हमारी संस्कृति और विरासत के साथ बढ़ते अलगाव के रूप में अनौपचारिक क्षेत्र की वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
- जबकि पिछले 25 वर्षों की आर्थिक क्रांति ने भारत को शहरी आर्थिक विकास पर केंद्रित एक प्रतिमान की ओर अग्रसर किया है, अब यह प्रकट है कि भारत को ऐसे समाधान विकसित करने की आवश्यकता है जो अपने अगली पीढ़ी के शहरों (Next-gen Cities) के लिये अधिक न्यायसंगत और सतत विकास को प्राथमिकता दें।
शहरी विकास की आवश्यकता को भारत ने कैसे चिह्नित किया है?
- 1980 के दशक में राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग (वर्ष 1988) के निर्माण के साथ पहली बार भारत का अखिल भारतीय शहरी विज़न व्यक्त हुआ।
- भारतीय संविधान ने राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों और 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से भारत के शहरी क्षेत्र में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (नगर निकाय) के लिये एक स्पष्ट अधिदेश प्रदान किया है।
- इसके अतिरिक्त, स्थानीय निकायों पर 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में नगर प्रशासन संरचनाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- सरकार की हाल की पहलें:
भारतीय शहरों से संबद्ध प्रमुख मुद्दे
- सुदृढ़ शहर नियोजन का अभाव: भारत सुदृढ़ और सार्वभौमिक शहर नियोजन के अभाव का सामना कर रहा है, जो UNEP की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष हमारे सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक की लागत के बराबर हो सकता है।
- इसमें शहरी सड़कों और फुटपाथों जैसी महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपयोगिताओं के लिये सार्वभौमिक शहरी डिज़ाइन मानकों का अभाव शामिल है।
- अधिकांश नगर नियोजन प्राधिकरण आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों की कमी का सामना कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप ढाँचागत अक्षमता उत्पन्न होती है।
- जवाबदेही की असंगतता: शहर की सरकारों का नेतृत्व शहर के महापौर या परिषद द्वारा किया जाता है। अधिकांश शहरों में यही मॉडल सामान्य शासन तंत्र है।
- हालाँकि, वे राज्य सरकार द्वारा संचालित विभिन्न असंगठित सरकारी निकायों और अर्द्ध-सरकारी निकायों (जैसे जल, परिवहन और विकास प्राधिकरण) द्वारा प्रबंधित किये जाते हैं तथा जिनके माध्यम से वे प्रायः शहर के कार्यों एवं नीति को प्रभावित करते हैं।
- इससे जवाबदेही की असंगतता और ज़िम्मेदारियों के टकराव की स्थिति बनती है।
- नागरिक केंद्रियता का अभाव: नागरिक भागीदारी के लिये कोई संरचित मंच नहीं है (वार्ड समिति और एरिया सभा), कोई सुसंगत भागीदारी प्रक्रिया नहीं है (जैसे भागीदारी बजट), नागरिक शिकायत निवारण तंत्र पर्याप्त मज़बूत नहीं है और वित्त एवं संचालन में पारदर्शिता की कमी है—जो समस्या को और बढ़ाते हैं।
- पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी के मज़बूत घटक की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप नागरिकों और सरकारों के बीच संलग्नता का स्तर कमज़ोर हो गया है। यह भरोसे के निम्न स्तर की ओर ले जाता है और इसने आम तौर पर शहर के लोकतांत्रिक मूल्यों को कमज़ोर किया है।
- अनधिकृत बस्तियाँ और मलिन बस्तियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास करने वाले लोग शहरी क्षेत्रों में वास करने की उच्च लागत का वहन नहीं कर पाते हैं, जिससे प्रवासियों के लिये सुरक्षित आवास के रूप में मलिन बस्तियों का विकास होता है।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत में मलिन बस्तियों में रहने वाली आबादी कुल शहरी आबादी की लगभग 35.2% है। मुंबई में धारावी को एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती माना जाता है।
- अक्षम सीवेज सुविधाएँ: तीव्र शहरीकरण से शहरों का बेतरतीब और अनियोजित विकास होता है तथा अधिकांश शहर अपर्याप्त सीवेज तंत्र की समस्या से पीड़ित हैं।
- भारत सरकार के अनुसार, भारत में उत्पन्न सीवेज का लगभग 78% अनुपचारित रहता है और इसे नदियों, झीलों या समुद्र में बहा दिया जाता है।
- अकुशल परिवहन प्रणाली और जलवायु परिवर्तन: शहर के बहुत से निवासी सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर प्रायः निजी परिवहन साधनों का उपयोग करते हैं। इससे सड़कों पर अत्यधिक भीड़भाड़, प्रदूषण और यात्रा समय में वृद्धि जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
- भारतीय शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या को जलवायु परिवर्तन के आवश्यक चालक के रूप में देखा जाता है, जो प्रायः दहनशील ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता रखते हैं।
आगे की राह
- शहर के विकास में केंद्र-राज्य सहयोग: इस विषय में शहर मॉडल कानूनों एवं नीतियों का निर्माण कर केंद्र सरकार आगे कदम बढ़ा सकती है।
- राज्य सरकारों को स्थानिक योजना, राजकोषीय विकेंद्रीकरण, नगर निकायों के लिये कैडर एवं भर्ती नियमों में परिवर्तन, महापौरों एवं नगरपालिका परिषदों को सशक्त बनाने और नागरिक भागीदारी के लिये विकेंद्रीकृत मंचों को स्थापित करने के विषय में संस्थागत सुधार लाने के लिये अग्रणी भूमिका निभाने की ज़रूरत है।
- इसके अलावा, भारतीय शहर विभिन्न वार्डों का एक सामान्य डिजिटल GIS बेस-मैप तैयार कर सकते हैं, जो सेवा वितरण से संलग्न विभिन्न एजेंसियों द्वारा साझा किया जा सकता है।
- अनौपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था को संगठित रूप देना: प्रवासियों पर डेटा एकत्र करना महत्त्वपूर्ण है ताकि शहर विकास गतिविधियों में उनका उपयोग कर प्रवासियों को लाभान्वित किया जा सके।
- श्रम मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित असंगठित श्रमिक सूचकांक संख्या कार्ड (Unorganised Worker Index Number Card- UWIN Card) भी कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद करेगा ।
- नागरिकों की भागीदारी: शहरी नियोजन प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से नागरिकों को शहर-निर्माण कार्य में हितधारक बनाया जाना चाहिये।
- शहर के नेतृत्वकर्ता वर्ग को भी प्रबुद्ध एवं जागरूक होना चाहिये कि शहरों को रहने योग्य और समावेशी कैसे बनाया जाए।
- शहरी रोज़गार गारंटी: शहरी निर्धनों को बुनियादी जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में भी मनरेगा जैसी कोई रोज़गार गारंटी योजना होनी चाहिये।
- राजस्थान में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना इस दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है
- हरित संक्रमण की ओर: शहरी समस्याओं के प्रभावी समाधानों की ओर विभिन्न प्रयासों को संरेखित करने की आवश्यकता है, जिसमें नील-हरित अवसंरचना (Blue- Green Infrastructure), सार्वजनिक स्थानों का मिश्रित उपयोग और सौर एवं पवन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
- शहरों के हरित संक्रमण (Green Transition) के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी आमंत्रित किया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में शहरी नियोजन में व्याप्त प्रमुख खामियों की चर्चा कीजिये। साथ ही, सुझाव दीजिये कि भारत सतत शहरी विकास की दिशा में कैसे आगे बढ़ सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:Q1. स्थानीय स्वशासन को निम्न में से किसके अभ्यास हेतु सबसे अच्छी तरह परिभाषित किया जा सकता है: (वर्ष 2017) (A) संघवाद उत्तर: (B) मुख्य परीक्षाQ. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिए आवश्यक सामाजिक संसाधनों की रक्षा करके उनके उत्थान के लिए सरकार योजनाएँ बनाने के कारण शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना में बाधा आ रही है। (वर्ष 2014) |