भारतीय अर्थव्यवस्था
राजकोषीय परिषद: आवश्यकता व महत्त्व
- 25 Aug 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में राजकोषीय परिषद व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वैश्विक महामारी COVID-19 की चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार को अधिक व्यय करना पड़ रहा है जबकि आर्थिक गतिविधियों के मंद होने से अपेक्षानुरूप राजस्व की प्राप्ति नहीं हो रही है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में नियंत्रक महालेखाकार (Controller General of Accounts-CGA) द्वारा अनुमानित राजकोषीय घाटा संशोधित अनुमान से 0.8 प्रतिशत अधिक 4.6 प्रतिशत है। चालू वित्तीय वर्ष में बिना किसी राजकोषीय प्रोत्साहन के राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 7.0 प्रतिशत तक अनुमानित है।संघ और राज्यों का समेकित राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 12 प्रतिशत के बराबर हो सकता है और समग्र ऋण 85 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
विदित है कि COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों के इस दौर में भारत में कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत सरकार को अपना खर्च बढ़ाना चाहिये ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। दूसरी तरफ सरकार को यह डर है कि अधिक खर्च करने से सरकार पर कर्ज का बोझ और राजकोषीय घाटा अनियंत्रित रूप से बढ़ सकते हैं। इस स्थिति में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग कम कर सकती हैं, इससे देश में निवेश भी कम आयेगा। अर्थव्यवस्था में निवेश के कम आने से आर्थिक गतिविधियाँ नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं और अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में जा सकती है।
महामारी के प्रकोप के बीच आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने और सरकार की राजकोषीय घाटा एवं अन्य चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु राजकोषीय परिषद के गठन की बात की जा रही है ताकि राजकोषीय प्रबंधन को स्वतंत्र रूप से परिस्थितियों के मुताबिक प्रबंधित किया जा सके।
राजकोषीय परिषद क्या है?
- सर्वप्रथम इसकी अनुशंसा 13वें वित्त आयोग द्वारा की गई थी और बाद में 14वें वित्त आयोग और राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन समीक्षा समिति द्वारा भी इसे समर्थन प्राप्त हुआ जिसकी अध्यक्षता एन.के. सिंह द्वारा की गई थी।
- राजकोषीय परिषद मूल रूप में एक स्थायी एजेंसी है जिसे सरकार के राजकोषीय योजना एवं आर्थिक स्थिरता संबंधी मापदंडों के संबंध में किये गए अनुमानों का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करने का जनादेश प्राप्त है।
- राजकोषीय परिषद एक ऐसी स्थायी संस्था होती है जो सरकार की राजकोषीय योजना का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन या विश्लेषण करती है तथा अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों को प्रस्तुत करती है। राजकोषीय योजना के मूल्यांकन के तहत सरकार के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों यथा- अग्रिम वर्षों में राजकोषीय घाटा को कितना कम करना है, अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को कितना लेकर जाना है आदि, का विश्लेषण करना होता है।
राजकोषीय परिषद के कार्य
- राजकोषीय परिषद का उद्देश्य बहु-वर्षीय राजकोषीय प्रक्षेपण (Multi-year fiscal projection) भी है। बहु-वर्षीय राजकोषीय प्रक्षेपण का तात्पर्य यह है कि राजकोषीय परिषद को राजकोषीय प्रबंधन एवं इससे संबंधित अन्य बातों का आकलन करना होगा, जैसे कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कितनी रहेगी या फिर आगे आने वाले वर्षों में यह कैसे हो सकती है इत्यादि।
- इस संस्था द्वारा राजकोषीय स्थिरता का विश्लेषण तैयार किया जाता है। जब राजस्व की प्राप्ति और खर्च संतुलन की अवस्था में हो और सरकार सुचारु रूप से चलती रहे तो इसे राजकोषीय स्थिरता की स्थिति कहते हैं। ध्यातव्य है कि 1990 के दशक में राजकोषीय स्थिरता को गंभीर रूप से तब नुकसान पहुँचा था जब भारत सरकार के समक्ष भुगतान संतुलन (Balance of Payment) का संकट खड़ा हो गया था।
- सरकार अपने तय लक्ष्यों के अनुरूप (FRBM कानून के तहत) राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त कर पाई है या नहीं, इस बात का मूल्यांकन राजकोषीय परिषद द्वारा किया जाता है। इसके लिये परिषद एक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करती है।
- सरकार राजकोषीय नियमों का पालन किस प्रकार से कर रही है राजकोषीय परिषद इस तथ्य का भी मूल्यांकन करती है।
- सरकार द्वारा बजट में की गयी घोषणाअें को भविष्य में कैसे आसानी से लागू किया जाए, इसके लिये राजकोषीय प्रबंधन में जरूरी संशोधनों का सुझाव परिषद द्वारा किया जाता है।
- राजकोषीय परिषद द्वारा वार्षिक राजकोषीय रणनीतिक रिपोर्ट (Annual fiscal strategic report) भी तैयार की जाती है और उसे पब्लिक डोमेन में रखा जाता है ताकि राजकोषीय प्रबंधन में पारदर्शिता को स्थापित किया जा सकता है।
राजकोषीय परिषद की आवश्यकता
- पक्ष में तर्क
- विशेषज्ञों के एक वर्ग का मानना है कि राजकोषीय परिषद के कार्यों को भारत में विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न रूपों में संपन्न किया जा रहा है लेकिन फिर भी यदि राजकोषीय परिषद की स्थापना की जाएगी तो राजकोषीय प्रबंधन और बेहतर ढंग से हो सकेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय अनुभव बताते हैं कि राजकोषीय परिषद सार्वजनिक वित्त पर बहस की गुणवत्ता में सुधार करती है और इससे, राजकोषीय अनुशासन के अनुकूल सार्वजनिक राय बनाने में मदद मिलती है।
- पिछले आठ वर्षों से सरकार के अनुमानों में लगातार 10 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे वर्ष के मध्य में फंड में कटौती हुई है। इस प्रकार एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद तय मानदंडों के अनुसार बजट प्रस्तावों और पूर्वानुमानों का मूल्यांकन करेगी।
- इससे सरकार की राजकोषीय प्रतिबद्धता के बारे में वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में विश्वास बढ़ेगा।
- विपक्ष में तर्क
- कुछ विशेषज्ञ यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या वास्तव में भारत में राजकोषीय परिषद के गठन की आवश्यकता है? जबकि इस परिषद के द्वारा किये जाने वाले कार्यों को भारत में विभिन्न कानून एवं संस्थाएँ कर रही हैं, जैसे कि FRBM कानून (2003) में सरकार के लिये आगे आने वाले वर्षों में राजकोषीय घाटे को कितना कम करना है, यह निर्धारित कर दिया गया है। यदि सरकार इन लक्ष्यों से विचलित होती है तो उसको इसका स्पष्टीकरण प्रदान करना होगा।
- संसद में भारत सरकार को एक राजकोषीय नीति रणनीति स्टेटमेंट (Fiscal Policy Strategy Statement-FPSS) रखना होता है ताकि सरकार की राजकोषीय नीति से संबंधित स्थितियाँ स्पष्ट हो सकें और संसद में इस पर सार्थक बहस हो सके। जब उपर्युक्त कार्य पहले से ही संसद में किया जा रहा है तो इसके लिये एक नई संस्था के निर्माण की औचित्यता पर कुछ विशेषज्ञ सवाल खड़ा कर रहे हैं।
- राजकोषीय परिषद भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के संदर्भ में समय-समय पर अनुमान व्यक्त करने के साथ वर्तमान वृद्धि दर का विश्लेषण भी करता है, लेकिन यह कार्य भारत में कई सरकारी एजेंसियाँ कर रही हैं जैसे- भारतीय रिजर्व बैंक, केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन आदि। इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि भी ऐसे आँकड़ें प्रस्तुत करती हैं।
- भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भी सरकार की राजकोषीय नीतियों का विश्लेषण करता है और इस संबंध में रिपोर्ट तैयार करता है।
राजकोषीय परिषद की चुनौतियाँ
- राजनैतिक इच्छा में कमी से गंभीर राजकोषीय गैर-जिम्मेदारियों में वृद्धि होगी
- वर्ष 2003 में जब FRBM को कानून के दायरे में लाया गया था, तब इस पर वित्तीय समस्याओं के उपाय के रूप में विचार किया गया था।
- FRBM सरकार को पूर्व-निर्धारित राजकोषीय लक्ष्यों के अनुरूप तथा इसमें विफल रहने पर विचलन संबंधी कारणों की व्याख्या करने में मदद करता है।
- सरकार को अपने राजकोषीय उद्देश्यों की विश्वसनीयता प्रदर्शित करने हेतु FPSS को संसद में प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
- हालाँकि राजकोषीय उद्देश्यों पर संसद में गहन चर्चा का अभाव है और FPSS का प्रस्ताव अक्सर बगैर किसी सूचना के हो जाता है।
- इसके कार्यों से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना
- राजकोषीय परिषद व्यापक आर्थिक पूर्वानुमान प्रदान करेगी जिसे वित्त मंत्रालय द्वारा बजट हेतु उपयोग किये जाने की उम्मीद है और यदि मंत्रालय उन अनुमानों से अलग जाने का निर्णय लेता है तो यह व्याख्या करनी आवश्यक होगी कि अलग जाने की जरूरत क्या थी।
- इसके अलावा वित्त मंत्रालय को किसी अन्य अनुमान को उपयोग में लाने हेतु मजबूर करना इसकी जवाबदेहिता को कम करेगा।
- कार्यों का दोहराव
- अब तक केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और RBI दोनों विकास और अन्य वृहद आर्थिक चरों (Variables) का पूर्वानुमान देते हैं, परंतु अब राजकोषीय परिषद के अनुमानों के बारे में सवाल उठाए जाएंगे।
- राजकोषीय परिषद निगरानी तंत्र के रूप में कार्य करेगी और सरकार को रचनात्मक लेखांकन के माध्यम से राजकोषीय नियमों के उल्लंघन से रोकेगी।
- हालाँकि सरकारी खर्चों की लेखा परीक्षा और राजकोषीय निगरानी का काम करने के लिये कैग के रूप में पहले से ही एक संस्थागत तंत्र है।
आगे की राह
- COVID-19 महामारी ने अभूतपूर्व आर्थिक चुनौतियों को उत्पन्न किया है। इसके लिये राजकोषीय परिषद की स्थापना की जानी चाहिये ताकि राजकोषीय प्रबंधन को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सके।
- जब तक सरकार राजकोषीय परिषद को स्थापित नहीं कर पा रही है, उसके पहले कुछ अन्य छोटे-छोटे प्रयास किये जा सकते हैं जैसे- जब सरकार बजट प्रस्तुत करे तो उसके तुरंत बाद कैग की देखरेख में एक समिति गठित की जा सकती है। (जिसमें आरबीआई, नीति आयोग, वित्त मंत्रलय, सीएसओ आदि का भी योगदान लेना चाहिए) यह समिति सरकार के बजटीय तथ्यों का सूक्ष्म रूप से विश्लेषण कर राजकोषीय नीति के संबंध में एक रिपोर्ट तैयार करेगी जो भविष्य के लिये मार्गदर्शक का कार्य कर सकती है।
प्रश्न- राजकोषीय परिषद क्या है? इसके कार्यों का उल्लेख करते हुए आवश्यकता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।