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भारत की भुगतान संतुलन स्थिति का आकलन

  • 20 Aug 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार 2017-18 के लिये भारत का भुगतान संतुलन यह प्रदर्शित करता है कि चालू खाता घाटा (CAD) 48.72 बिलियन डॉलर है जो कि 2012-13 के रिकॉर्ड 88.16 बिलियन डॉलर के बाद से सर्वाधिक है।
  • हाल ही में स्विस निवेश बैंक क्रेडिट सुईस ने 2018-19 में भारत के लिये 55 बिलियन डॉलर के शुद्ध पूंजी प्रवाह की भविष्यवाणी की है जो कि 75 बिलियन डॉलर के अनुमानित चालू खाता घाटे से कम है। इस कारण से 2011-12 से लेकर अब तक पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने की संभावना है।
  • रिज़र्व बैंक के आँकड़े पहले ही यह प्रदर्शित करते हैं कि 8 जून, 2018 को विदेशी मुद्रा भंडार 413.11 बिलियन डॉलर रहा, इसमें मार्च 2018 की समाप्ति के स्तर से 11.43 बिलियन डॉलर की कमी आई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2018 तक 424.55 बिलियन डॉलर का था जो कि विश्व में आठवाँ सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है, इससे 10.9 माह की आयात ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है।
  • इस दृष्टिकोण से आर्थिक तंगी का कोई भी संकेत पूरी तरह गलत होगा क्योंकि रिज़र्व बैंक का वर्तमान मुद्रा भंडार तत्काल आयात ज़रूरतों और रुपए पर आने वाले संकट दोनों को टालने के लिये पूर्णतः पर्याप्त है।
  • सामान्यतः सभी राष्ट्र आयातों की तुलना में निर्यातों से अपने मुद्रा भंडार को संचित करते हैं। निर्यात के मुकाबले वाणिज्यिक वस्तुओं के आयात की कीमतों के साथ भारत को हमेशा अपने पण्य व्यापार खाते पर घाटे का सामना करना पड़ा है। परंतु उसी दौरान देश को परंपरागत रूप से अपने अदृश्य खाते पर अधिशेष का लाभ मिला है।
  • अदृश्य खाते में मूलतः सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात से प्राप्तियाँ, प्रवासी श्रमिकों द्वारा आवक प्रेषण और पर्यटन तथा दूसरी तरफ बैंकिंग, बीमा और शिपिंग सेवाओं के अलावा ब्याज भुगतान, विदेशी ऋण पर लाभांश एवं रॉयल्टी, निवेश और प्रौद्योगिकी/ब्राण्डों को शामिल किया जाता है।
  • लेकिन अदृश्य अधिशेष 2001-02 से 2003-04 के तीन वर्षों के अलावा व्यापार घाटे से अधिक नहीं है इसके परिणामस्वरूप देश लगातार चालू खाता घाटा दर्ज कर रहा है।
  • चालू खाता घाटा 2012-13 के 88.16 बिलियन डॉलर से घटकर 2016-17 में 15.30 बिलियन डॉलर हो गया, इसका मुख्य कारण भारत के तेल आयात बिल में लगभग आधे की कमी होना है जो कि 164.04 बिलियन डॉलर से घटकर 86.87 बिलियन डॉलर हो गया। 
  • हालाँकि, 2017-18 में चालू खाता घाटा 48.72 बिलियन डॉलर हो गया और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में पुनः बढ़ोत्तरी के कारण इस वित्त वर्ष में  इसके 75 बिलियन डॉलर से ज़्यादा होने की उम्मीद है।
  • भारत के संदर्भ में अब पूंजी प्रवाह के कम होते जाने के संकेत मिल रहे हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 1 अप्रैल से भारतीय इक्विटी और ऋण बाजारों में 7.9 बिलियन डॉलर की शुद्ध बिक्री की है। यह अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों और यूरोपीय सेंट्रल बैंक की 2018 के अंत तक अपने मौद्रिक प्रोत्साहन कार्यक्रम को समाप्त करने की योजना के फलस्वरूप उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में एक बड़े बिकने वाले पैटर्न का हिस्सा है। 

भारत द्वारा चालू खाता घाटे का प्रबंधन 

  • एक देश का विदेशी मुद्रा भंडार न केवल वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात से संचित होता है बल्कि विदेशी निवेश, वाणिज्यिक उधारियाँ या विदेशी सहायता के रास्ते पूंजी प्रवाह से भी प्राप्त होता है।
  • इसी वज़ह से कई वर्षों से चालू खाता घाटा होने के बावजूद भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बना हुआ है क्योंकि अधिकांश वर्षों में भारत में शुद्ध पूंजी प्रवाह, चालू खाता घाटे से ज़्यादा रहा है। यही पूंजी प्रवाह का अधिशेष विदेशी मुद्रा भंडार के निर्माण में सहायक होता है।
  • इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण वर्ष 2007-08 में देखने को मिला, जब शुद्ध विदेशी पूंजी अंतर्वाह 107.90 बिलियन डॉलर था, जो 15.74 बिलियन डॉलर के चालू खाता घाटे से काफी अधिक हो गया, जिससे एक वर्ष के दौरान ही विदेशी मुद्रा भंडार में 92.16 बिलियन डॉलर की अभिवृद्धि हो गई।
  • हालाँकि, 2008-09 और 2011-12 जैसे कुछ वर्ष भी रहे हैं, जहाँ अपर्याप्त  शुद्ध पूंजी प्रवाह के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखी गई जिससे चालू खाता घाटे का वित्तपोषण भी संभव नहीं था।

भुगतान संतुलन के संबंध में भारत की विशेष स्थिति

  • भारत और ब्राजील अर्थव्यवस्थाओं के अद्वितीय मामलों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्होंने भुगतान संतुलन के चालू खाते की बजाय अपनी पूंजी की ताकत पर बड़े स्तर के विदेशी मुद्रा भंडार बनाए हैं। भारत इस मामले में और भी विशेष है क्योंकि ब्राज़िलियन मुद्रा रियाल के विपरीत इसकी मुद्रा अपेक्षाकृत स्थिर है और लगातार कारोबारी उतार-चढ़ाव से होने वाले जोखिम से सुरक्षित है।
  • सिद्धांततः, एक देश तब तक चालू खाता घाटे को वित्तपोषित करने के लिये पूंजीगत प्रवाह को आकर्षित कर सकता है जब तक इसकी विकास संभावनाएँ अच्छी हों और निवेश वातावरण भी समान रूप से बेहतर हो।
  • हालाँकि, यदि ऐसा विदेशी निवेश सामान्य उत्पादन या घरेलू बाजार के लिये आयात करने के विपरीत अर्थव्यवस्था के विनिर्माण और सेवाओं की निर्यात क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में किया जाता है,तो भी सहायक होगा। लंबे समय तक यह चालू खाता घाटे को अधिक टिकाऊ स्तर तक सीमित करने में मदद कर सकता है।
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