लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

शासन व्यवस्था

ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना

  • 11 Nov 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 09/11/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Fostering rural India’s growth” लेख पर आधारित है। इसमें ग्रामीण भारत से संबंधित मुद्दों और प्रमुख विकास बाधाओं के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत मुख्य रूप से एक ग्रामीण देश है जिसकी दो तिहाई आबादी और 70% कार्यबल ग्रामीण क्षेत्रों में वास करती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय आय में 46% का योगदान करती है। इस प्रकार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं जनसंख्या की प्रगति एवं विकास देश की समग्र प्रगति और समावेशी विकास की कुंजी है।

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की प्रधानता होने की आम धारणा के विपरीत वर्तमान में ग्रामीण आय की लगभग दो तिहाई गैर-कृषि गतिविधियों में सृजित होती है।
  • हालाँकि ग्रामीण भारत में गैर-कृषि क्षेत्र के प्रभावशाली विकास ने महत्त्वपूर्ण रोजगार लाभ या श्रमिक उत्पादकता में विद्यमान असमानता में कमी लाने जैसे परिणाम उत्पन्न नहीं किये हैं। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संक्रमण को निर्देशित करने हेतु एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: संविधान के अनुच्छेद 40 में सन्निहित राज्य नीति के एक निदेशक सिद्धांत में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिये कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिये आवश्यक हों।
  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं का गठन ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के निर्माण के लिये किया गया और इन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
  • संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची: इसमें कृषि विस्तार, भूमि विकास, भूमि सुधारों के कार्यान्वयन जैसे 29 कार्यों को पंचायती राज निकायों के दायरे में रखा गया है।
    • पंचायतों को ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित विषयों सहित पंचायतों के विभिन्न स्तरों पर कानून द्वारा सौंपे गए विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजना तैयार करने की शक्ति दी गई है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • शैक्षिक जागरूकता का अभाव: ग्रामीण भारत में स्कूली शिक्षा मुख्यतः सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों पर निर्भर है। ग्रामीण भारत के लिये शिक्षा का सफर आसान नहीं रहा है।
    • ग्रामीण स्कूलों के छात्रों की डिजिटल लर्निंग, कंप्यूटर शिक्षा और गैर-शैक्षणिक पुस्तकों जैसे उन्नत शिक्षण साधनों तक पहुँच नहीं है अथवा बेहद सीमित पहुँच है।
    • इसके साथ ही, ग्रामीण परिवार विभिन्न कारणों से हमेशा आर्थिक बोझ में दबे रहते हैं। उनके लिये अपने बच्चों की शिक्षा दूसरी प्राथमिकता बन जाती है; उन्हें अपने अस्तित्व के लिये आय सृजन गतिविधियों में भाग लेने के लिये विवश होना पड़ता है।
  • प्रभावी प्रशासन का अभाव: भारत में सफल ग्रामीण विकास की राह में सबसे बड़ी समस्या है प्रशासनिक प्रणाली में पारदर्शिता की कमी।
    • इन क्षेत्रों में राजनीतिक जागरूकता की कमी के कारण भ्रष्टाचार पनपता है। विशेष प्रयोजन एजेंसियों और पंचायतों के बीच जवाबदेही की असंगतता भी इस समस्या में योगदान देती है।
  • ग्रामीण-शहरी जल विवाद: तीव्र शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासियों की एक बड़ी आमद ने शहरों में जल के प्रति व्यक्ति उपभोग में वृद्धि कर दी है। इसने शहरी क्षेत्रों में जल की कमी की पूर्ति के लिये ग्रामीण जल स्रोतों से जल के स्थानांतरण को गति दी है जिससे स्वयं ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आवश्यकताओं की पूर्ति के एक जोखिम उत्पन्न हुआ है।
  • ग्रामीण मुद्रास्फीति: अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का दबाव शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत को अधिक प्रभावित कर रहा है।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आँकड़ों से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) की अधिक उच्च दर से वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण के लिये, ग्रामीण क्षेत्रों में अनाजों की मुद्रास्फीति दर अगस्त 2022 के दौरान बढ़कर 10.08% हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिये यह 8.65% थी।
  • अनियोजित प्रवासन: अनियोजित ग्राम-से-शहर प्रवासन (विशेष रूप से बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में) शहरी सुविधाओं पर गंभीर दबाव डाल रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए कम मज़दूरी पर कार्य करने वाले प्रवासियों को अस्वच्छ एवं वंचित परिस्थितियों में रहने के लिये विवश कर रहा है।
  • वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: पंचायतों को बहुत कम वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त है। कर दरों और राजस्व आधार के निर्धारण में ग्राम पंचायतों के पास बेहद सीमित शक्तियाँ हैं, क्योंकि इस तरह के अभ्यासों के लिये व्यापक मानदंड राज्य सरकार द्वारा तय किये जाते हैं।
    • परिणामस्वरूप, लंबवत अंतराल की सीमा और सशर्त अनुदान की मात्रा बहुत अधिक है।
      • यह ग्राम पंचायतों की वित्तीय स्वायत्तता को कम करता है और उनके लिये उधार लेने एवं विकास करने का सीमित अवसर ही प्रदान करता है।

ग्रामीण सशक्तीकरण से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें

आगे की राह

  • सशक्त महिला-सशक्त राष्ट्र: ग्रामीण महिलाएँ ‘नए भारत’ के लिये सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय परिवर्तन की पथप्रदर्शक हैं।
    • कृषि क्षेत्र में ग्रामीण महिला कार्यबल का सशक्तीकरण और उन्हें मुख्यधारा में लाना ग्रामीण आर्थिक विकास की दिशा में एक आदर्श बदलाव ला सकता है।
      • यह खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की संवृद्धि करेगा और वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये एक सर्वविजय रणनीति प्रदान करेगा।
  • ‘फार्म-फैक्ट्री अप्रोच’: ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये और प्रसंस्करण को कुशल मूल्य शृंखलाओं के माध्यम से परिवहन से जोड़ा जाना चाहिये।
    • इसके अलावा, अनुबंध खेती और प्रत्यक्ष फार्म-फैक्ट्री कनेक्शन ग्रामीण आय सुरक्षा के लिये व्यापक संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
  • डिजीटलीकृत ग्रामीण क्षेत्र: ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटलीकरण और स्थानीय ई-गवर्नेंस 650,000 गाँवों और 80 करोड़ नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
    • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सक्रिय सहयोग के माध्यम से एक ग्रामीण ज्ञान मंच का निर्माण किया जा सकता है जो अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को गाँवों तक लाएगा और रोज़गार सृजित करेगा।
      • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग स्मार्ट और परिशुद्ध कृषि को सुगम बनाने के लिये किया जा सकता है।
  • वित्तीय विवेक की ओर: पंचायतों के पास अपने वित्त और विकास संबंधी मामलों के प्रबंधन के लिये अधिक वित्तीय स्वायत्तता होनी चाहिये। इसके साथ ही, ग्रामीण विकास मॉडल को वित्तपोषित करने के लिये संसाधन जुटाने हेतु ‘आत्मनिर्भर ग्राम बॉण्ड’ जारी किये जा सकते हैं।
  • डा. कलाम के दृष्टिकोण को अपनाना: पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने ‘ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं के प्रावधान’ (Provision of Urban Amenities to Rural Areas- PURA) की अवधारणा प्रस्तुत की थी जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में केवल आर्थिक अवसंरचना और रोजगार अवसरों के निर्माण तक सीमित नहीं था।
    • इस प्रतिमान को आगे बढ़ाने के लिये आवास से संबद्ध सुविधाओं सहित अच्छे आवास तक पहुँच को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: मुद्रास्फीति का दबाव शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत को कैसे अधिक प्रभावित कर रहा है? भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित प्रमुख चुनौतियों के समाधान भी सुझाएँ।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2