संविधान (125वाँ संशोधन) विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय (MHA) ने लोकसभा को यह सूचित किया कि फिलहाल असम (संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाला राज्य) में पंचायती राज प्रणाली को लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
- जनवरी 2019 में 125वें संविधान संशोधन विधेयक, 2019 को वित्त आयोग और संविधान की छठी अनुसूची से संबंधित प्रावधानों में संशोधन के लिये राज्यसभा में पेश किया गया था।
- संविधान की छठी अनुसूची में असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों के लिये प्रसाशनिक व्यवस्था की गई है।
प्रमुख बिंदु :
प्रस्तावित संशोधन:
- ग्राम और नगरपालिका परिषद:
- यह ग्राम और नगरपालिका परिषद को ज़िला और क्षेत्रीय परिषदों के साथ जोड़ने का प्रावधान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों के गाँवों या गाँव समूहों के लिये ग्राम परिषद की स्थापना की जाएगी और प्रत्येक ज़िले के शहरी क्षेत्रों में नगरपालिका परिषद की स्थापना की जाएगी।
- संरचना:
- ज़िला परिषदें विभिन्न मुद्दों पर कानून बना सकती हैं, जिनमें शामिल हैं :
- गठित ग्राम और नगरपालिका परिषदों की संख्या और उनकी संरचना।
- ग्राम और नगरपालिका परिषदों के चुनाव के लिये निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन।
- ग्राम और नगरपालिका परिषदों की शक्तियाँ एवं कार्य।
- ज़िला परिषदें विभिन्न मुद्दों पर कानून बना सकती हैं, जिनमें शामिल हैं :
- शक्तियों के हस्तांतरण के नियम:
- ग्राम और नगर पालिका परिषदों की शक्तियों और उत्तरदायित्व के हस्तांतरण संबंधी नियम राज्यपाल द्वारा बनाए जा सकते हैं।
- इस तरह के नियमों को निम्नलिखित के संबंध में बनाया जा सकता है:
- आर्थिक विकास के लिये योजनाओं की तैयारी।
- भूमि सुधारों का कार्यान्वयन।
- शहरी और नगर नियोजन।
- अन्य कार्यों के साथ भूमि-उपयोग का विनियमन।
- राज्य वित्त आयोग:
- विधेयक एक वित्त आयोग का गठन कर इन राज्यों के ज़िला, ग्राम और नगर परिषदों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा।
- आयोग निम्नलिखित के बारे में सिफारिशें करेगा:
- राज्यों और ज़िला परिषदों के बीच करों का वितरण।
- राज्य के समेकित कोष से ज़िला, ग्राम और नगरपालिका परिषदों को अनुदान सहायता प्रदान करना।
- परिषदों के चुनाव:
- राज्यपाल द्वारा गठित राज्य चुनाव आयोग द्वारा असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के ज़िला परिषदों, क्षेत्रीय परिषदों, ग्राम परिषदों और नगरपालिका परिषदों के चुनाव कराए जाएंगे।
- परिषदों के सदस्यों की अयोग्यता:
- छठी अनुसूची राज्यपाल को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह ज़िला और क्षेत्रीय परिषदों के गठन के साथ-साथ इन परिषदों के सदस्यों के निर्वाचन के लिये योग्यता संबंधी नियम बना सकता है।
- विधेयक में कहा गया है कि राज्यपाल दल-बदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के लिये नियम बना सकता है।
छठी अनुसूची:
परिचय:
- छठी अनुसूची मूल रूप से अविभाजित असम के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों (90% से अधिक आदिवासी आबादी) के लिये लागू की गई थी। ऐसे क्षेत्रों को ‘भारत सरकार अधिनियम, 1935’ के तहत "बहिष्कृत क्षेत्रों" (Excluded Areas) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। ये क्षेत्र राज्यपाल के सीधे नियंत्रण में थे।
- संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिये इन जनजातीय क्षेत्रों के स्वायत्त स्थानीय प्रशासन का अधिकार प्रदान करती है।
- यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किया गया है।
- छठी अनुसूची ‘स्वायत्त ज़िला परिषदों’ (ADCs) के माध्यम से इन क्षेत्रों के प्रशासन को स्वायत्तता प्रदान करती है।
- इन परिषदों (ADCs) को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले क्षेत्रों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है, जिनमें भूमि, जंगल, खेती, विरासत, आदिवासियों के स्वदेशी रीति-रिवाजों और परंपराओं आदि से संबंधित कानून शामिल हैं, साथ ही इन्हें भूमि राजस्व तथा कुछ अन्य करों को इकट्ठा करने का भी अधिकार प्राप्त है।
- ADCs शासन की तीनों शाखाओं (विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका) के संबंध में विशिष्ट शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ रखते हुए एक लघु राज्य की तरह कार्य करते हैं।
स्वायत्त ज़िले:
परिचय:
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित करने और फिर से संगठित करने की शक्ति प्राप्त है अर्थात् वह ज़िले के क्षेत्रों को बढ़ाने या घटाने, उनके नाम परिवर्तित करने अथवा सीमाओं का सीमांकन कर सकता है।
- यदि किसी स्वायत्त ज़िले में विभिन्न जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल उस ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
संरचना:
- प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक ज़िला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, इनमें से चार सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किये जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं। निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पहले भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद पर बने रहते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
- ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का प्रशासन संभालती हैं।
- अपने क्षेत्राधिकार में ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें, जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। ये अदालतें उनकी अपीलों की सुनवाई करती हैं।
- इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
छठी अनुसूची क्षेत्र:
पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs)
परिचय:
- भारतीय संविधान के नीति निदेशक सिद्धांत के अंतर्गत अनुच्छेद-40 में पंचायतों का प्रावधान किया गया है।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई।
अनुसूचित क्षेत्र:
- संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची के अंतर्गत आदिवासी बहुल राज्यों को इस संबंध में पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की गई है कि वे या तो पंचायती राज संस्थान को लागू कर सकते हैं अथवा अपने पारंपरिक स्थानीय स्वशासन को जारी रख सकते हैं।
- भारत के सभी राज्यों (5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत जम्मू-कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, मिज़ोरम और असम एवं त्रिपुरा के स्वायत्त क्षेत्रों को छोड़कर) ने 73वें संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को समायोजित करने के लिये अपने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया।
पीआरआई के प्रावधान:
- एक त्रि-स्तरीय ढाँचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा ज़िला पंचायत)
- ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना तथा हर पाँच वर्ष में पंचायतों के नियमित चुनाव।
- अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिये उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण।
- महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटों का आरक्षण।
- पंचायतों की निधियों में सुधार के लिये उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्त आयोगों का गठन।
पंचायतों की शक्तियाँ:
- 73वाँ संशोधन अधिनियम पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियांँ और अधिकार देने के लिये राज्य सरकार को शक्तियाँ प्रदान करता है। ये शक्तियांँ और अधिकार इस प्रकार हो सकते हैं-
- संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्व 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजनाएँ तैयार करना और उनका निष्पादन करना।
- कर, डयूटीज़, टोल टैक्स, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार।
- राज्यों द्वारा एकत्र करों, ड्यूटीज़, टोल टैक्स और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण।